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Eid-ul-Adha 2022: देशभर में ईद की धूम, 4 हजार साल पुराना है कुर्बानी का इतिहास

Eid-ul-Adha 2022: ईद-उल-अजहा का त्योहार हजरत इब्राहीम और उनके बेटे हजरत इस्माईल से जुड़ा है.

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ईद उल अजहा 2022 (Eid-ul-Adha 2022) का त्योहार भारत में मनाया जा रहा है. इस्लाम में ईद उल फित्र के बाद ये सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है, जिसका इतिहास करीब 4 हजार साल पुराना है. ईद उल अजहा इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु अल हिज्ज की 10 तारीख को मनाई जाती है. इस्लाम में चांद के हिसाब से महीने की तारीखें तय की जाती हैं. तो जब चांद दिख जाता है उसके 10वें दिन ईद उल अजहा मनाई जाती है. और फिर अगले तीन दिन तक मुसलमान कुर्बानी देते हैं.

ईद उल अजहा पर कुर्बानी क्यों दी जाती है और इसे बकरा ईद क्यों कहा जाने लगा. साथ ही ईद उल अजहा का इतिहास और हजरत इब्राहीम में जुड़ी वो कहानी क्या है जिसके बाद से ये त्योहार मनाया जाने लगा. ये सब हम आपको इस स्टोरी में बताएंगे.
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ईद उल अजहा का इतिहास

ईद उल अजहा का इतिहास 4 हजार साल पुराना है. मौलाना ताहिर हुसैन कादरी के मुताबिक, हजरत इब्राहीम इस्लाम में 1 लाख 24 हजार पैगंबरों में से एक हैं. कुरआन शरीफ में सूरह इब्राहीम भी उन्हीं के नाम पर है. ईद उल अजहा का इतिहास भी हजरत इब्राहीम से ही जुड़ा है.

वो आगे बताते हैं कि एक रात हजरत इब्राहीम ने ख्वाब देखा, जिसमें अल्लाह ने उनसे सबसे प्यारी चीज खुदा की राह में कुर्बान करने की बात कही. सुबह जब हजरत इब्राहीम उठे तो उन्होंने इसे अल्लाह का आदेश मानते हुए. अपने बेटे हजरत इस्माईल को कुर्बान करने के लिए चल दिये. हजरत इस्माईल को उन्होंने पहले ही पूरा माजरा बता दिया. लेकिन अल्लाह की मुहब्बत में दोनों बाप-बेटे ने कुर्बानी देने का मन बनाया और मुख्तसर ये कि जब हजरत इब्राहीम ने आंखो पर काली पट्टी बांधी और हजरत इस्माईल की गर्दन पर छुरी चलाई. जब पट्टी हटाई और आंख खोली तो देखा कि हजरत इस्माईल अलग खड़े हैं और उनकी जगह दुंबा लेटा हुआ है.

अल्लाह ने हजरत इब्राहीम की कुर्बानी कबूल कर ली और हजरत इस्माईल को खरोंच तक नहीं आई. बस इसी दिन के बाद से इस्लाम में कुर्बानी दी जाने लगी और ईद-उल-अजहा मनाई जाने लगी. जो आज तक बदस्तूर मनाई जा रही है.

हजरत इब्राहीम कौन हैं?

हजरत इब्राहीम इस्लाम में आने वाले 1 लाख 24 हजार पैगंबरों में से एक हैं. जिनके लिए अल्लाह ने इस्लाम की सबसे पवित्र किताब कुरआन में कई जगह तारीफें की हैं. हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का जन्म तकरीबन 4 हजार साल पहले इराक में हुआ था.

ईसाई और यहूदियों से हजरत इब्राहीम का क्या नाता है?

दरअसल हजरत इब्राहीम की नस्ल से कई पैगंबर हुए. जिनमें हजरत मूसा, हजरत ईसा और मोहम्मद साहब प्रमुख हैं. यही वजह है कि इस्लाम के मानने वालों के अलावा यहूदी और ईसाई भी इब्राहीम अलैहिस्सलाम को काफी मानते हैं.

किस चीज की कुर्बानी दी जा सकती है?

ईद उल अजहा पर वैसे तो बकरे और दुंबे की कुर्बानी ज्यादा दी जाती है लेकिन कुछ लोग बड़े जानवरों जैसे- ऊंट, भैंस या भैंसा की भी कुर्बानी करते हैं. ये अलग-अलग इलाकों में वहां पाये जाने वाले जानवरों पर निर्भर करता है. भारत में बकरे और भैंसे की कुर्बानी ज्यादा दी जाती है.

हज से भी जुड़ा है कुर्बानी का त्योहार

हज पर जाने वाले हाजी भी अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर कुर्बानी करने के बाद और वहां ईद उल अजहा मनाने के बाद ही वापस लौटते हैं. लोग अपने मरे हुए बुजुर्गों के सवाब (पुण्य) पहुंचाने के लिए कुर्बानी करते हैं.

मुंडन में भी कुर्बानी की जाती है

इस्लाम में एक बार हर किसी बच्चे का मुंडन और उसके सदके में कुर्बानी दी जाती है. ये कुर्बानी थोड़ी अलग तरीके से होती है, आसान भाषा में समझिये तो अगर आप बकरे की कुर्बानी करते हैं तो उसमें एक ही बच्चे का मुंडन हो सकता है. जबकि अगर आप भैंसे की कुर्बानी देते हैं तो उसमें सात हिस्से होते हैं. जिसमें अगर लड़के के नाम पर कुर्बानी होगी तो उसके दो हिस्से पड़ेंगे और अलर लड़की के नाम की कुर्बानी होगी तो उसमें 1 हिस्सा पड़ेगा.

मतलब जितने पैसे का पूरा जानवर मिलेगा. उसे सात हिस्सों में बांट लिया जाएगा और अगर कोई दूसरा व्यक्ति भी उसमें शरीक होना चाहता है तो जितने हिस्से वो डालना चाहेगा उससे उतने पैसे ले लिए जाएंगे.
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इस्लाम में कुर्बानी के नियम

ईद उल अजहा पर कुर्बानी देते वक्त कई नियमों का पालन करना पड़ता है, जैस- जिस जानवर की कुर्बानी दी जाये वो बीमार ना हो, उसे किसी प्रकार की चोट ना लगी हो और आपने उसे पाला हो तो बेहतर है. मौलाना ताहिर हुसैन कादरी कहते हैं कि आजकल फैशन हो गया है कि ईद से चंद दिन पहले कुर्बानी के लिए जानवर लिया और फिर उसे पूरे मोहल्ले में घुमाया कि कितना महंगा लिया है. लेकिन ये तरीका ठीक नहीं है. अल्लाह ने अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी हजरत इब्राहीम से मांगी थी.

इसीलिए जिस जानवर को आप कुर्बान करना चाहते हैं उसे एक साल कम से कम पालिये ताकि आपको उससे मोहब्बत हो और अहसास हो कि आपने अल्लाह की राह में कुछ अपना कुर्बान किया है. इसके अलावा एक साल से कम के जानवर की कुर्बानी भी जायज नहीं है.

कुर्बानी के गोश्त (मीट) का क्या होता है

ईद उल अजहा पर दी जाने वाली कुर्बानी के गोश्त में तीन हिस्से किये जाते हैं. इसमें से एक हिस्सा आप खुद रखते हैं, एक हिस्सा अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में दिया जाता है. जबकि एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है. इस तरीके से ईद उल अजहा सबको एक साथ लेकर चलने का संदेश देती है. साथ ही ये भी संदेश देती है कि खुदा की राह में हमेशा अपना सबकुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहना चाहिए.

क्या ईद पर महंगे जानवर कुर्बान करने से फायदा होता है?

इस सवाल के जवाब में मौलाना ताहिर हुसैन कादरी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है. इस्लाम में शोशेबाजी के लिए कोई जगह नहीं है. हालांकि आजकल ये ट्रेंड है कि लाखों रुपये का बकरा खरीद कर दिखावा किया जाता है. लेकिन कुर्बानी का जानवर 10 हजार का हो या 10 लाख का सवाब (पुण्य) बराबर ही मिलता है. बस इतना ध्यान रखें कि जानवर बीमार ना हो और उसके सभी अंग सही सलामत हों.

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