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श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी हर साल 2 दिन क्‍यों मनाई जाती है? 

अक्‍सर लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव प्राय: हर साल 2 दिन क्‍यों मनाया जाता है. 

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श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का त्‍योहार इस बार 2 और 3 सितंबर को मनाया जाना है. अक्‍सर लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव प्राय: हर साल 2 दिन क्‍यों मनाया जाता है. साथ ही इन दो दिनों में से वे किस दिन व्रत-उपवास रखें.

दरअसल, जन्‍माष्‍टमी 2 दिन मनाए जाने के पीछे दो तरह की परंपरा और मान्‍यताएं हैं. प्राय: पहले दिन जन्‍माष्‍टमी स्‍मार्त मनाते हैं और इसके बाद वाले दिन वैष्‍णव.

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स्‍मार्त कौन, वैष्‍णव कौन?

स्‍मृति आदि धर्मग्रंथों को मानने वाले और इसके आधार पर व्रत के नियमों का पालन करने वाले स्‍मार्त कहलाते हैं. दूसरी ओर, विष्‍णु के उपासक या विष्‍णु के अवतारों को मानने वाले वैष्‍णव कहलाते हैं.

मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि साधु-संत स्‍मार्त की श्रेणी में आते हैं, जबकि गृहस्‍थ वैष्‍णव की श्रेणी में.

स्‍मार्त एक दिन पहले क्‍यों मनाते हैं जन्‍माष्‍टमी

स्‍मार्त, अक्‍सर वैष्‍णव से एक दिन पहले जन्‍माष्‍टमी मनाते हैं, इसके पीछे का कारण समझना ज्‍यादा मुश्किल नहीं है. स्‍मार्त कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव मनाने के लिए कुछ खास योग देखते हैं और उसी के आधार पर व्रत का दिन तय करते हैं. ये योग इस तरह हैं:

  • भाद्रपद मास के कृष्‍णपक्ष की अष्‍टमी तिथि हो
  • चंद्रोदय व्‍यापिनी अष्‍टमी हो
  • रात में रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा हो

इस मान्‍यता पर चलने वालों का उदया तिथि पर जोर नहीं होता, इसलिए स्‍मार्त अष्‍टमी या इन संयोगों के आधार पर सप्‍तमी को जन्‍माष्‍टमी मनाते हैं.

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अक्‍सर लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव प्राय: हर साल 2 दिन क्‍यों मनाया जाता है. 
कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव लोगों को आनंद से भर देता है
(फाइल फोटो: Reuters)

ठीक इसी तरह वैष्‍णव भी इस उत्‍सव को मनाने के लिए कुछ योग देखते हैं.

जन्‍माष्‍टमी के लिए वैष्‍णव का इन योगों पर जोर

  • भाद्रपद मास के कृष्‍णपक्ष की अष्‍टमी तिथि हो
  • उदयकाल में (सूर्योदय के समय) अष्‍टमी तिथि‍ हो
  • अष्‍टमी तिथि‍ को रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा हो

इस नियम पर चलने वालों का उदया तिथि पर जोर होता है, इसलिए ये जन्‍माष्‍टमी अष्‍टमी तिथि को मनाते हैं. संयोगवश ये उत्‍सव नवमी को भी मनाया जा सकता है.

क्‍या है उदया तिथि की मान्‍यता

सबसे पहले हमें ये देखना होगा कि हिंदी महीने की तिथि‍ अंग्रेजी कैलेंडर से अलग है. अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से रात 12 बजे के बाद तारीख बदल जाती है, जबकि हिंदी तिथि इस आधार पर नहीं बदलती.

उदया तिथि की मान्‍यता ये है कि सूर्योदय के समय जो तिथि पड़ रही हो, पूरे दिन (अगले दिन सूर्योदय से पहले तक) वही तिथि मानी जाती है. अगर सूर्योदय अष्‍टमी तिथि को स्‍पर्श कर रहा हो, लेकिन इसके कुछ ही क्षण बाद नवमी तिथि पड़ रही हो, इसके बावजूद पूरे दिन अष्‍टमी तिथि‍ ही मानी जाएगी. साथ ही अगर अगला सूर्योदय दशमी को स्‍पर्श कर रहा हो, तो नवमी तिथि‍ का लोप हो जाता है.

जहां तक जन्‍माष्‍टमी की बात है, तो इसकी धूम दोनों ही दिन होती है. कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव भक्‍तों को आनंद से भर देता है. ऐसा लगता है, जैसे पूरा देश मथुरा-वृंदावन बन गया हो.

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