कड़क आवाज, बेहतरीन पर्सनैलिटी और दमदार डायलॉग डिलीवरी के चलते जो शख्स आज भी बॉलीवुड इंडस्ट्री में याद किया जाता है वो है अजीत. कई फिल्मों में विलेन का रोल प्ले करने वाले अजीत वैसे तो बॉलीवुड में हीरो बनने आए थे, लेकिन बन गए विलेन. और ऐसे विलेन बने कि सारा शहर उन्हें लॉयन के नाम जानने लगा. जनवरी, 1922 को हैदराबाद के गोलकुंडा में जन्में अजीत अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन आज भी अपने निगेटिव किरदारों के लिए जानें जाते हैं.
अजीत का असली नाम हामिद अली खान है. बचपन से उन्हें एक्टिंग शौक था. कम ही लोग जानते हैं कि अजीत अपना सपना पूरा करने के लिए घर से भागकर मुंबई आए थे. उनपर अपने इस सपने को पूरा करने का जुनून इस कदर सवार था कि उन्होंने अपनी कॉलेज की किताबें तक बेच डाली थीं.
अजीत का एक्टिंग करियर 1940 में शुरू हुआ था. शुरुआती दौर में उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिलीं. फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने के लिए उन्हें सालों तक संघर्ष करना पड़ा था.
सीमेंट के पाइप में सोते थे
मुंबई आने के बाद उनके पास रहने के लिए घर तक नहीं था. काफी वक्त तक वो सीमेंट की बनी पाइपों में रहते थे, लेकिन इसमें भी रहना उनके लिए आसान नहीं था. उन दिनों लोकल एरिया के गुंडे पाइपों में रहने वाले लोगों से भी हफ्ता वसूली करते थे और जो हफ्ता नहीं देता उसे बाहर का रास्ता दिखा देते थे.
रियल लाइफ में गुंडों की पिटाई
सीमेंट के पाइप में रहने के कारण अजीत को भी इन गुंडों का सामना करना पड़ता था. एक दिन जब लोकल गुंडों ने अजीत से पैसे वसूलना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया और गुंडों ने उनकी जमकर पिटाई कर दी. बदले में अजीत ने भी गुंड़ों को जमकर मारा. अगले ही दिन से अजीत से लोकल गुंडे डरने लगे. इसका असर ये हुआ कि उन्हें खाना-पीना मुफ्त में मिलने लगा और उनके रहने का भी इंतजाम हो गया. डर की वजह से कोई भी उनसे पैसे नहीं मांगता था.
कुछ फिल्मों में बने हीरो
1940 में उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की. उनकी पहली 1946 में रिलीज हुई थी जिसका नाम था ‘शाहे मिश्रा’. वे जितनी भी फिल्मों में हीरो के तौर पर नजर आए वो सभी फ्लॉप रही. लगातार फ्लॉप से निराश होकर अजीत ने फिल्मों में विलेन का रोल करना शुरू किया. हीरो के बाद उन्होंने 1966 में आई राजेंद्र कुमार की फिल्म ‘सूरज’ से विलेन की पारी की शुरुआत की थी. यह मौका भी उन्हें राजेंद्र कुमार ने ही दिया था. उनको विलेन में रोल में काफी पसंद किया और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
‘कालीचरण’ से मिली पहचान
अजीत ने अपने फिल्मी करियर में 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है, जिनमें ज्यादातर वो विलेन ही बने. अजीत को असली पहचान 1976 में आई फिल्म कालीचरण से मिली. इस फिल्म में उनका डायलॉग- “सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है’ और “इस शहर में मेरी हैसियत वही है, जो जंगल में शेर की होती है...” ने उन्हें बॉलीवुड इंडस्ट्री का लॉयन बना दिया.
कालीचरण से पहले अजीत, अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘जंजीर’ में नजर आए थे. इस फिल्म से भी उनके डायलॉग काफी फेमस हुए.
अजीत के रोल को लेकर फिल्म के राइटर जावेद अख्तर ने कहा था कि अमिताभ बच्चन की तरह ‘जंजीर’ ने अजीत के करियर को भी नई उंचाई दी थी. उनके किरदार ने बॉलीवुड में एक नया ट्रेंड शुरू किया था, जिसमें विलेन ज्यादा लाउड नहीं होता, लेकिन उसके पास बहुत ताकत होती है.
विलेन बनकर पाया स्टारडम
विलेन बनकर अजीत ने ऐसा स्टारडम पाया जो शायद ही किसी हीरो को मिला हो। विलेन के तौर पर ना सिर्फ उनके रोल को सराहा गया बल्कि उनके कई डायलॉग जबरदस्त हिट हुए। आज भी जब अजीत के नाम का जिक्र होता है तो 'मोना डार्लिंग', 'लिली डोंट भी सिली' और 'लॉयन' जैसे डायलॉग याद आ जाते हैं।
इन फिल्मों में किया काम
राजा और रंक, प्रिंस, जीवन-मृत्यु, धरती, जंजीर, यादों की बरात, कहानी किस्मत की, खोटे सिक्के, चरस, हम किसी से कम नहीं, देश परदेश, आजाद, राज तिलक, ज्योति, हीरा-मोती, चोरों की बरात, रजिया सुल्तान, गैंगस्टर, क्रिमिनल जैसी फिल्मों में काम किया।
3 शादियां और 5 बच्चे
अजीत ने लाइफ में तीन शादियां की. पहली शादी उन्होंने एंगो इंडियन महिला से की थी. यह लव मैरिज थी, लेकिन अलग-अलग धर्मों का होने के कारण कुछ समय बाद उनकी शादी टूट गई. इसके बाद उन्होंने शाहिदा से शादी की. यह शादी उनके परिवारवालों ने तय की थी. कपल के तीन बेटे हुए, जिनका नाम जाहिद अली खान, शाहिद अली खान, आबिद अली खान है. फिर पत्नी शाहिदा की मौत के बाद उन्होंने तीसरी शादी की, जो लव मैरिज थी. उनकी तीसरी पत्नी का नाम सारा था. दोनों के दो बेटे हुए, जिनका नाम शहजाद खान और अरबाज अली खान है.
अजीत के कुछ फेमस डायलॉग
- फिल्म कालीचरण- “सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है.”
- फिल्म कालीचरण- “इस शहर में मेरी हैसियत वही है, जो जंगल में शेर की होती है.”
- फिल्म मुगल-ए-आजम- “मेरा जिस्म जरूर जख्मी है, लेकिन मेरी हिम्मत जख्मी नहीं.”
- फिल्म जंजीर- “कुत्ता जब पागल हो जाता है तो उसे गोली मार देते हैं.”
- फिल्म जंजीर- “जिस तरह कुछ आदमियों की कमजोरी बेईमानी होती है, इसी तरह कुछ आदमियों की कमजोरी ईमानदारी होती है.”
- फिल्म बेताज बादशाह- “लम्हों का भंवर चीर के इंसान बना हूं, एहसास हूं मैं वक्त के सीने में गढ़ा हूं.”
- फिल्म राज तिलक- “जिनकी रगों में राजपूती खून होता है, उनके जिस्म पर दुश्मन के दिए हुए घाव तो होते है, लेकिन उनकी तलवार कफन की तरह कोरी नहीं होती.”
- फिल्म आजाद- “जिंदगी सिर्फ दो पांव से भागती है…और मौत हजारों हाथों से उसका रास्ता रोकती है.”
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