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पुण्यतिथि विशेष: पाकिस्तान में कमला नेहरू आज भी जिंदा हैं

कराची में कॉस्मोपॉलिटन सोसाइटी के पास कमला नेहरू, सरोजिनी नायडू और एनी बेसेंट के नाम पर सड़कें हैं

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कमला नेहरू के नाम से कराची में एक सड़क है. और आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि वो सड़क मोहम्मद अली जिन्ना, पाकिस्तान के संस्थापक, के मजार के ठीक बगल में है. कराची की कॉस्मोपॉलिटन सोसाइटी - देश के पॉश इलाकों में से एक. ऐसी और भी सड़कें हैं, जो दूसरी मशहूर भारतीय महिलाओं के नाम पर हैं. एक सड़क का नाम है सरोजिनी नायडू (या सिर्फ, नायडू) रोड, वहीं एक और सड़क है जो एनी बेसंट के नाम से जाना जाता है.

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पाकिस्तान का ये इलाका सबसे ज्यादा चहल पहल वाले सार्वजनिक जगहों में से एक है, जहां हाल ही में एक नई बस लाइन बनने से आसपास की बिल्डिंग और रिहायशी जगहों को बड़ा नुकसान पहुंचा है.

नाम में क्या रखा है?

ऐसा लगता है पाकिस्तान में सड़कों और स्मारकों को मुस्लिम पुरुषों के नाम देने का जुनून सवार है चाहे वो जिन्ना हों, या इकबाल, सर सैयद हों या आगा खान. कभी कभी बेनजीर भुट्टो और फातिमा जिन्ना के नाम से भी सड़कों के नाम सुनने में आतें है, लेकिन यह बस इन्हीं एकाध नामों तक सीमित है.

ऐसे में ये गर्व की बात है कि यहां नायडू, नेहरू और बेसंत के नाम पर भी सड़कें मौजूद हैं. सारी की सारी महिलाएं और वो भी गैर-मुस्लिम. उम्मीद है यहां से गुजरने वाले लोग और बच्चे जब इन नामों को सुनते होंगे तो जरूर सोचते होंगे कि आखिर इन महिलाओं का आज के इस्लामिक पाकिस्तान से क्या ताल्लुक है.

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इन साहसी और वीर महिलाओं के हमारे उप-महाद्वीप और यहां के इतिहास से बहुत गहरे संबंध हैं. जैसे कमला नेहरू, जिनकी मौत 1937 में हुई, ने आजादी की जंग में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. वो अहसयोग आंदोलन के सबसे अग्रणी नेताओं में एक थीं. 1921 में जब देशद्रोह के आरोप में उनके पति को गिरफ्तार किया गया तो कमला ने नेहरू की जगह उनका भाषण पढ़ा और अंग्रेजों ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था.

नेहरू की साथी सरोजिनी नायडू की कहानियां और प्रसिद्ध हैं. एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी होने के अलावा, वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष और यूनाइटेड प्रॉविंस (अब उत्तर प्रदेश) की पहली महिला राज्यपाल भी रहीं थी.

इस तिकड़ी में तीसरी, एनी बेसंट, महिला सशक्तिकरण और स्वतंत्रता आंदोलन की बुलंद आवाज थीं. वो सेकुलरिज्म की पुरजोर समर्थक थीं और भारत की आजादी और थियोसॉफी (ब्रह्मवाद) के लिए बड़ा अभियान छेड़ा था.

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संशोधनवाद जिंदाबाद !

पाकिस्तान में बंटवारा, हिंदुस्तान और गैर-मुस्लिम लोगों से जुड़े आधिकारिक और किताबी तथ्यों से छेड़छाड़ करने का लंबा इतिहास है. जिसमें खासतौर पर सार्वजनिक जगहों और स्मारकों को मुस्लिम लोगों का नाम देना शामिल है. इनमें से कई नाम तो विदेशी लोगों और आक्रांताओं के हैं. पाकिस्तानी अधिकारी नहीं चाहते कि किसी गैर-मुस्लिम हीरो की सार्वजनिक तौर पर चर्चा हो.

लाहौर के शादमान चौक का नाम बदलने की मांग इसकी ताजा मिसाल है. ये वही जगह है जहां भगत सिंह को फांसी दी गई थी और लोगों की मांग थी कि इस चौक को उनका नाम दे दिया जाए. ये आंदोलन 21वीं शताब्दी की शुरुआत में कई वर्षों तक चला. लेकिन जब जमात-ए-इस्लामी ने इसका विरोध शुरू कर दिया तो पाकिस्तानी अधिकारी भी कोई बदलाव ना करने के लिए मजबूर हो गए.
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कॉस्मोपॉलिटन सोसाइटी की पूरी कहानी

1925 में शुरू किया गया कॉस्मोपॉलिटन क्लब एक रिहायशी इलाके में रहने वाले लोगों का क्लब है जो किसी जमाने में काफी जीवंत था, लेकिन आज जर्जर हो गया है. हालांकि ये इलाका कराची के बीचों बीच है, जहां 1947 की भूल से पहले हर तरह की भाषा और जाति-धर्म के लोग रहते थे, और शहर के इस पुराने हिस्से में सड़कों के नाम बदलने के दर्द से लोग आज भी बचे हुए हैं.

इकबाल अलवी एक समाजिक कार्यकर्ता और तारीख फाउंडेशन ट्रस्ट के सचिव हैं. वो सोसायटी के कॉस्मोपॉलिटन क्लब का दौरा किया, तो क्लब के एक बुजुर्ग सचिव, इनाम मसूद, ने उन्हें जानकारी दी कि ये सड़कें आज भी यहां मौजूद हैं.

‘मैं आज कॉस्मोपॉलिटन क्लब गया था, ’ अलवी ने कहा. ‘कॉलोनी के लोगों ने इसकी पुष्टि की कि बंटवारे से पहले की हीरो कमला नेहरू, सरोजिनी नायडू और एनी बेसंट के नाम पर बनी सड़कें यहां आज भी मौजूद हैं, इसके बावजूद कि यहां सड़कों और स्मारकों के नाम बदलकर उन्हें मुस्लिम शख्सियतों के नाम देने का चलन है.’

हालांकि स्थानीय लोग आज भी इन रास्तों को पुराने नामों से जानते हैं, ये उस सोसायटी की आखिरी निशानी हैं, जो कभी यहां बसती थी. ज्यादातर पुराने बंगलों और घरों की जगह अब नए आलीशान मकान बन गए हैं, बहुत कम पुराने मकान बच गए हैं.

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मुझे अपने नाम से (मत) बुलाओ?

विडम्बना ये है कि कॉस्मोपॉलिटन सोसायटी और मोहम्मद अली जिन्ना की कब्र को जोड़ने वाली मुख्य सड़क को पहले मोतीलाल नेहरू रोड कहा जाता था जो कमला नेहरू के ससुर और जवाहरलाल नेहरू के पिता थे. बाद में उस सड़क का नाम बदल कर जिगर मुरादाबादी रोड, उर्दू शायर जो पाकिस्तान में कभी नहीं रहे उनके नाम कर दिया गया.

‘हमने सड़कों को हसरत मोहानी और जिगर मुरादाबादी जैसे लोगों का नाम दे दिया,’ कराची में रहने वाले कॉलमनिस्ट अख्तर बलोच ने बताया. ‘जो एकाध बार पाकिस्तान घूमने जरूर आए लेकिन यहां कभी रहे नहीं. उनकी यहां मौत भी नहीं हुई. फिर क्यों सड़कों को इनका नाम दे दिया गया? उन गैर-मुस्लिमों के नाम क्यों नहीं दिए गए जो कभी यहां रहे थे?’

बलोच ऐसे बदलाव के बहुत बड़े विरोधी हैं. वो पुरानी कानूनी प्रक्रिया को याद करते हैं, जिसमें किसी सड़क या लैंडमार्क का नाम बदलना आसान नहीं था. पहले, नगर परिषद की बैठक में फैसला होता था, फिर अखबारों में विज्ञापन के जरिए लोगों को इसकी जानकारी दी जाती थी. उसके बाद वो इंतजार करते थे कि नाम में बदलाव का.

कोई विरोध तो नहीं हो रहा और जब कोई इसके विरोध में सामने नहीं आता, तभी इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता था. लेकिन अब तो वो पूरी प्रक्रिया भी खत्म हो गई है और बदलाव तुरंत कर दिए जाते हैं, बलोच ने बताया.

कराची की सबसे मशहूर सड़कों में से एक है बंदर रोड. अब इस सड़क का नाम बदलकर एम ए जिन्ना रोड कर दिया गया है, जबकि यहां पहले हिंदू नाम, वास्तुशिल्प और स्मारक खूब दिखते थे – हालांकि ये सब बंटवारे के पहले की बात थी.

सबसे अच्छी बात ये है कि आधिकारिक तौर पर इनके नाम बदलने के बाद भी कोई बोर्ड या रजिस्ट्रेशन पर ध्यान नहीं देता. लोग अब भी पुराने नाम का ही इस्तेमाल करते हैं. यकीन नहीं होता? आप कराची के बंदर रोड चले जाएं और किसी से पूछ लें कि एम ए जिन्ना रोड कहां है.

या फिर आप लाहौर के डेविस रोड चले जाएं और आगा खान तीन रोड के बारे में पूछ लें. या तो लोग आपको घूरते नजर आएंगे या फिर आपको शहर के किसी दूसरे हिस्से का रास्ता दिखा देंगे.

उम्मीद है पाकिस्तान के अधिकारी समझ लें कि नाम बदलने का ये चलन बेकार है और इसे बंद कर दें. ताकि मुझ जैसी युवतियां उन सड़कों की अहमियत को समझ सकें जिन्हें उन मशहूर महिलाओं का नाम दिया गया है जिनकी वजह से आज हम आजाद हैं.

(लेखक लाहौर में स्थित हैं. @ammarawrites के नाम से उनका ट्वीटर हैंडल है. उनके काम को www.ammaraahmad.com पर देखा जा सकता है)

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