जयपुर की तीसरी महारानी गायत्री देवी को इमरजेंसी के दौरान जुलाई, 1975 में 6 महीने के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. इसके पीछे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का हाथ था. आखिर गायत्री देवी ने वहां कैसा अनुभव किया?
‘’तिहाड़ जेल मछली बाजार की तरह था, जो छोटे-मोटे चोर और चीखती-चिल्लाती वेश्याओं से भरा हुआ था.’’
ये कहना था गायत्री देवी का. 23 मई को गायत्री देवी का जन्मदिन है. इस मौके पर उनके जीवन के खास पलों पर नजर डालते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी के साथ उनके रिश्तों पर भी चर्चा जरूरी है.
इमरजेंसी के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जिन लोगों को जेल भिजवाया, उनमें विपक्ष के कई नेता, पत्रकार और अन्य लोग शामिल थे. कई लोगों को आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा एक्ट) के तहत जेल में रखा गया था. इनमें इंदिरा गांधी के निशाने पर कूच बिहार की राजकुमारी और जयपुर की तीसरी महारानी गायत्री देवी भी थीं, जिन्हें राजमाता के नाम से भी जाना जाता था. गायत्री देवी को इमरजेंसी घोषित करने के बाद तिहाड़ जेल भेज दिया गया था.
कौन थीं गायत्री देवी
गायत्री देवी का जन्म पूर्व महाराजा जितेंद्र नारायण भूप बहादुर के घर 23 मई, 1919 को हुआ था. उनके बचपन का नाम आयशा था, लेकिन एक दिन उनकी मां की एक मुस्लिम सहेली ने जब उनको ये कहा कि आयशा तो इस्लाम वाला नाम है, तो उनकी मां ने आयशा से बदलकर उनका नाम गायत्री रखा दिया.
गायत्री देवी की पढ़ाई शांति निकेतन और स्विट्जरलैंड में हुई थी. बचपन से ही उन्हें खेलकूद का काफी शौक था. गायत्री देवी और महाराजा मानसिंह की पहली मुलाकात लंदन में पोलो ग्राउंड पर हुई थी. उनकी खूबसूरती पर महाराजा फिदा हो गए थे. पहले से 2 बार शादी कर चुके महाराजा मानसिंह ने 9 मई, 1940 को गायत्री देवी से शादी कर ली.
लंदन में पली-बढ़ी गायत्री देवी को जयपुर में राजस्थान के रीति-रिवाजों के हिसाब से खुद को ढालना पड़ा, लेकिन उन्हें पर्दा प्रथा से बेहद नफरत थी. जयपुर राजघराने के रूढ़िवादी रिवाजों की परवाह किए बगैर महारानी अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया.
1962 में गायत्री देवी ने जयपुर से लोकसभा से चुनाव लड़ा था. उन्होंने 2,46,516 में से 1,92,909 वोट हासिल कर बड़ी जीत हासिल की थी. गायत्री देवी को स्वतंत्र पार्टी से टिकट दिया गया था, जो कि राजगोपालाचारी की पार्टी थी. ये पार्टी कांग्रेस की उम्मीदवार श्रद्धा देवी के लिए बहुत बड़ा चैलेंज साबित हो रही थी.
खुशवंत सिंह लिखते हैं कि गायत्री देवी और इंदिरा गांधी एक-दूसरे को काफी अरसे से जानती थीं. दोनों ने एकसाथ रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में पढ़ाई की थी.
खुशवंत सिंह के मुताबिक:
इंदिरा गांधी संसद में अपने से ज्यादा खूबसूरत महिला को बर्दाश्त नहीं कर पाती थीं. एक बार तो उन्होंने गायत्री देवी को भरी सभा में बेइज्जत भी किया था. संसद में गायत्री देवी का होना इंदिरा गांधी के लिए सबसे बड़ी झल्लाहट का काम करता था.इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक:
जब इंदिरा गांधी और गायत्री देवी साथ-साथ थीं, तब से इंदिरा को गायत्री की खूबसूरती और शोहरत से परेशानी थी. 1962 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद ये दायरा और भी बढ़ गया.
1965 में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने गायत्री देवी को पार्टी जॉइन करने का न्योता दिया, जिससे उन्होंने इनकार कर दिया. वे स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़ीं और 1967 में भारी वोटों से जीत हासिल की. लेकिन बाद में मालपुरा विधानसभा सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
इंदिरा गांधी की ओर से प्रीवी पर्स खत्म कर देने से देसी रजवाड़े नाराज हो गए थे. भारतीय संविधान में 26वें संशोधन के जरिए राजाओं को मिलने वाली रकम एक झटके में खत्म कर दी गई. प्रीवी पर्स इन राजाओं के भारतीय संघ में शामिल होने की ऐवज में दिया जाता था.
25 जून, 1975 में जब इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी का ऐलान किया, तब गायत्री देवी मुंबई में अपना इलाज करा रही थीं. जैसे ही उन्हें इस बात का पता चला, वो तुरंत वो दिल्ली लौटीं. लोकसभा पहुंचने पर विरोध दल की सारी सीटें उन्हें खाली मिलीं. औरंगजेब रोड पर उनके घर पर इनकम टैक्स का छापा मारा गया, जिसमें उन पर विदेशी मुद्रा कानून के तहत सम्पत्ति छुपाने का आरोप लगाया गया.
जेल में गायत्री देवी की जिन्दगी
गायत्री देवी को 1975 में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. वो वहां पूरे 6 महीने रहीं. जेल में भी गायत्री देवी का हौसला कम नहीं हुआ. वहां वह कैदियों के बच्चों को पढ़ाने लगीं. उनके लिए स्लेट और किताबों का इंतजाम किया. बच्चों के लिए बैडमिंटन कोर्ट भी बनवाया.
लेकिन जेल में उनकी तबीयत खराब हो गई. तिहाड़ पहुंचने के कुछ हफ्तों के बाद उन्हें मुंह का अल्सर हो गया. कहा जाता है कि जेल अधिकारियों ने उन्हें डेंटिस्ट से इलाज कराने की अनुमति देने में तीन सप्ताह का वक्त लिया. जेल में बिताए वक्त का उनकी सेहत पर असर पड़ा और बाद में उन्हें गैलस्टोन हो गया. आखिरकार उन्हें परोल पर रिहा कर दिया गया.
कहा जाता है कि इसके लिए इंदिरा गांधी ने कई शर्तें रखीं, जो 1977 के चुनाव तक लागू रहीं.
जेल से रिहा होने के बाद वह राजनीति से रिटायर हो गईं. इसके बाद उन्होंने A Princess Remembers: The Memoirs of the Maharani of Jaipur नाम से एक अपनी आत्मकथा लिखी. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में इंदिरा हार गईं. 1999 में कूचबिहार तृणमूल कांग्रेस ने गायत्री देवी को लोकसभा का टिकट देने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने ये स्वीकार नहीं किया.
29 जुलाई, 2009 को फेफड़े के संक्रमण और लकवे से संघर्ष करते हुए गायत्री देवी का निधन हो गया.
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