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चार युवा आंदोलनकारी, जिन्होंने बीजेपी सरकार को बैकफुट पर डाला

युवा आंदोलनकारियों ने स्थापित नेतृत्व को चुनौती दी और देश के राजनीतिक समीकरणों को हिलाकर रख दिया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा से देश के युवाओं को अपनी ताकत बताते रहे हैं. उनकी सोच है कि हुनरमंद युवा ही देश का विकास कर सकता है और यही सोच भारत को विकसित राष्ट्रों के बराबर खड़ा करेगी. पर माहौल कुछ बदला सा नजर आ रहा है. इन्हीं युवाओं में से कुछ ने स्थापित नेतृत्व को चुनौती दी और देश के राजनीतिक समीकरणों को हिलाकर रख दिया.

पटेलों के आरक्षण आंदोलन से गुजरात की राजनीति में कुछ नए नेता उभरकर सामने आए, जिन्होनें सत्तारूढ़ बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के स्थापित नेतृत्व को चुनौती दी.

हार्दिक पटेल (23) तो इन सबमें सबसे आगे हैं ही. इसके अलावा ओबीसी समाज में तेजी से उभरते नेता अल्पेश ठाकुर (38), पाटीदार नेता जिग्नेश मेवानी (35) और गुजरात से बाहर सरकार के लिए चुनौती बने जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार प्रमुख हैं. इनमें से तीन बागी चेहरे बीजेपी शासित गुजरात से ही हैं और खास बात यह है कि ये युवा चेहरे जनता के बीच खासे लोकप्रिय भी हो चुके हैं.

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1. जिग्नेश मेवानी

गुजरात के ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन को देशभर से लोगों का समर्थन मिला. इस सबके पीछे लोगों में चेतना लाने का काम कर रहा है गुजरात का ही एक युवा जिग्नेश मेवानी. मेवानी पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.

दलित आंदोलन के नए सुपर स्टार

जिग्नेश ने वो काम कर दिखाया, जिससे दलित समाज सदियों से मुक्त होना चाहता था. 5 अगस्त से शुरू हुए आजादी कूच आंदोलन में जिग्नेश ने 20 हजार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने की शपथ दिलाई.

जिग्नेश की अगुवाई वाले दलित आंदोलन ने बहुत ही शांति के साथ सत्ता को करारा झटका दिया. इस आंदोलन को हर वर्ग का समर्थन मिला. आंदोलन में दलित मुस्लिम एकता का बेजोड़ नजारा देखा गया.

2. हार्दिक पटेल

गुजरात में पटेल-पाटीदार समाज सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में 10% रिजर्वेशन की मांग कर रहा है. इस मांग को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन की अगुआई 2015 में हार्दिक पटेल ने की.

जुटाई 5 लाख लोगों की भीड़

13 साल से गुजरात में शांति थी. हर तरफ चर्चा में गुजरात का विकास था. लेकिन एक आंदोलन ने गुजरात की तस्वीर बदल कर रख दी. 25 अगस्त,2015 को हार्दिक पटेल ने अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में रैली की. इस रैली में 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ हार्दिक के आह्वान पर सड़कों पर उतर आई थी.

इस आंदोलन को मजबूत बनाने में हार्दिक पटेल सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल करते हैं और खुद बताते हैं कि ये उन्होंने मोदी से सीखा है. 31 साल के बाद राज्य में इस पैमाने पर कोई आंदोलन हुआ.

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3. कन्हैया कुमार

देशविरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार किए गए जेएनयूएसयू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार आज की तारीख में हीरो हैं. सरकार के खिलाफ जंगी ऐलान करने वाले कन्हैया उस वक्त सुर्खियों में आए, जब जेएनयू में कश्मीरी अलगाववादी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में कन्हैया को गिरफ्तार कर लिया गया.

बाद में कन्हैया कुमार ने देशद्रोह के मुद्दे पर बीजेपी को बैकफुट पर ला खड़ा किया.

कन्हैया को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था और 2 मार्च 2016 में अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया. कन्हैया हमेशा पीएम मोदी और उनकी सरकार पर अपने भाषणों के जरिए वार करते रहे हैं.

सबसे ज्यादा स्मृति ईरानी के साथ कन्हैया के समर्थकों का सोशल मीडिया वार चर्चा में रहा. कन्हैया देशभर में सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन को नए सिरे से एकजुट करने वाला एक नामी चेहरा बन गए हैं.

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4. अल्पेश ठाकुर

2015 में गुजरात में हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदोलन के विरोध में ‘गुजरात क्षत्रिय-ठाकुर सेना’ के अध्यक्ष और ओबीसी युवा नेता अल्पेश ठाकुर उभर कर सामने आए. उन्होंने गुजरात में पटेल आरक्षण का विरोध किया, लेकिन साथ ही साथ राज्य की बीजेपी सरकार को भी निशाने पर लिया.

गुजरात सरकार को दी ‘धमकी’

अल्पेश ने पटेल समुदाय की ओर से ओबीसी आरक्षण की अपनी मांग मनवाने के लिए किए जा रहे आंदोलन के विरोध में एक रैली की उस रैली में उन्हें लगभग 10,000 लोगों का समर्थन मिला. रैली के दौरान अल्पेश ने धमकी दी कि अगर पटेलों की मांगों के सामने बीजेपी शासित गुजरात सरकार ने घुटने टेके तो सरकार को ‘उखाड़ फेंका जाएगा.’

ओबीसी एकता मंच के 38 वर्षीय संयोजक अल्पेश ठाकुर अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों को पटेल आरक्षण की मांग के खिलाफ एकजुट कर रहे हैं. उन्होंने पटेल समुदाय की ओर से की जा रही आरक्षण की मांग के खिलाफ ओबीसी समुदाय में शामिल सभी 146 समुदायों को एकजुट करने की मुहिम की अगुवाई की. उनकी रैलियों में भी हजारों-हजार की भीड़ जुटती है.

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