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रूस का यूक्रेन पर हमला बिगाड़ेगा खेल,जानिए किसके पास कितना तेल,भारत पर क्या असर?

Russia Ukraine War: रूसी हमले का बहुत ज्यादा असर पेट्रोल डीजल व नेचुरल गैस की कीमतों पर पड़ेगा.

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यूक्रेन पर रूस का हमला शुरू!

(फोटो: क्विंट)

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रूस-यूक्रेन संकट (Russia Ukraine war) की वजह से दुनियाभर में तेल और गैस की सप्लाई (Oil supply in world) के बाधित होने का डर इनकी कीमतों पर नजर आने लगा है. रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन (Vladimir Putin) द्वारा युद्ध की घोषणा करने और रूसी सेनाओं द्वारा यूक्रेन में बमबारी शुरू करने के बाद ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें प्रति बैरल 100 डॉलर के आंकड़े पर आ गईं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है और नैचुरल गैस के उत्पादन में शीर्ष पर है. विश्लेषकों के मुताबिक, रूस की क्रूड और नैचुरल गैस की सप्लाई को कम करने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं इसका बहुत ज्यादा असर तेल व ईधन की कीमतों पर पड़ेगा और ग्लोबल इकोनॉमी हिल जाएगी.

अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने रूस को चेतावनी दी है कि उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे. अमेरिका उन तरीकों पर विचार कर रहा है जिससे रूस के एक्सपोर्ट रेवेन्यूज को कम किया जा सके. खासतौर से तेल और गैस को लेकर.ईरान के मामले में अमेरिका ने ये सुनिश्चित किया था कि ईरान के तेल के ग्राहक समय के साथ उससे खरीदारी कम करते जाएं और धीरे-धीरे दूसरे निर्यातकों से तेल खरीदें.

रूस के नैचुरल गैस निर्यात पर निशाना

इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल रूस के निर्यात के खिलाफ भी किया जा सकता है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो इसकी बड़ी कीमत भी चुकानी होगी.इससे वैश्विक रूप से तेल की कीमतें बढ़ेंगी जब तक कि दूसरे देश इस कमी को पूरा करने के लिए उत्पादन को नहीं बढ़ाते. ये एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लंबा वक्त लगेगा.

रूस के नैचुरल गैस एक्सपोर्ट्स को टारगेट करना सिर्फ रूस के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए अनिश्चितताओं से भरा साबित होगा. खासकर यूरोप के लिए जो पिछले एक साल से पहले ही नैचुरल गैस की कमी का सामना कर रहा है. वहीं अगर रूस नैचुरल गैस की आपूर्ति को रोक देता है तो इससे कई देशों की अर्थव्यवस्था और आम लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ेगा.

रूस की गैस पाइपलाइन पर रोक

पश्चिमी देश लगातार रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं और इस बीच जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज ने ऐलान किया है कि उनके देश ने नॉर्ड स्ट्रीम 2 (Nord Stream 2) गैस पाइपलाइन के अप्रूवल की प्रक्रिया को रोक दिया है.

11 बिलियन डॉलर की ये गैस पाइपलाइन बाल्टिक सागर से होते हुए रूस के साइबेरिया से जर्मनी तक जाएगी. रूस इस पाइपलाइन के जरिए यूरोप के दूसरे देशों तक गैस की सप्लाई करना चाहता है.

इतनी जल्दी उछाल, आगे क्या होगा

फरवरी की शुरुआत से ही पहले से बढ़ती तेल की कीमतों में तनाव की स्थिति के चलते अचानक 10 प्रतिशत से भी ज्यादा का उछाल आया. बीबीसी डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, Fidelity International के इंवेस्टमेंट डायरेक्टर Maike Currie ने तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाने की आशंका व्यक्त की थी.

इसकी वजह यूक्रेन संकट, अमेरिका में ठंड का मौसम और दुनियाभर में तेल—गैस सप्लाईज में इंवेस्टमेंट की कमी जैसी सभी वजहें को बताया है. पर केवल जंग के एलान के साथ ही ये 100 डॉलर प्रति बैरल के मार्क पर इतनी जल्दी आ जाएंगी यह किसी ने सोचा नहीं था.
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रूस एक अहम खिलाड़ी

वैश्विक रूप तेल की जितनी खपत है उसमें प्रति 10 बैरल में से एक बैरल रूस का है. इसलिए जहां तेल की कीमतों की बात आती है वहां रूस एक अहम खिलाड़ी है और जाहिर है कि पेट्रोल की कीमतों पर इसका असर पड़ेगा और ये ग्राहकों को चोट पहुंचाएगा. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रूस की अर्थव्यवस्था काफी हद तक तेल पर आधारित हो चुकी है.

तेल उत्पादन में अमेरिका की स्थिति

पिछले कुछ सालों में अमेरिका में तेल का उत्पादन बढ़ा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि अमेरिका बड़े तेल आयातक से दुनिया का अहम तेल निर्यातक देश बन गया है. इसका कारण यहां शेल तेल का उत्पादन बढ़ाया जाना है और यही वह वजह है जिसने अमेरिका को आयातक से ऑयल निर्यातक की स्थिति में पहुंचा दिया है.

अमेरिका का शेल ऑयल, तेल उत्पादक देशों के लिए चुनौती है, लेकिन इसका उत्पादन महंगा होता है. पारंपरिक कच्चे तेल की तुलना में शेल ऑयल चट्टानों की परतों से निकाला जाता है. इसकी तुलना में रूस और सऊदी अरब में पारंपरिक कच्चे तेल का भंडार है.

पिछले कुछ वर्षों से तेल की कीमतों पर अमेरिका का खासा प्रभाव रहा है. उसने अपने यहां से तेल आयात करने वाले देशों की संख्या भी बढ़ा ली है. अमेरिका, रूस और सऊदी अरब दुनिया के तीन सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं. 2018 में अमेरिका, सऊदी अरब को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश बन गया था.

तेल का भंडार किसके पास कितना?

2016 में आई रिस्ताद एनर्जी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के पास 264 अरब बैरल तेल का भंडार है. इस रिपोर्ट के अनुसार, रूस और सऊदी अरब से ज्यादा तेल भंडार अमेरिका के पास है. रिस्ताद एनर्जी के अनुमान के मुताबिक, रूस में तेल 256 अरब बैरल, सऊदी में 212 अरब बैरल, कनाडा में 167 अरब बैरल, ईरान में 143 और ब्राजील में 120 अरब बैरल तेल है.

वहीं यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका प्रति दिन 18.61 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है. वहीं सउदी अरब 10.81 मिलियन बैरल प्रतिदिन और रूस 10.50 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल का उत्पादन करता है.

कैसी है भारत की स्थिति

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. हमारे देश में आयात होने क्रूड ऑयल का लगभग 90% मिडिल ईस्ट, गल्फ कंट्रीज और अमेरिका से आता है. कंट्री वाइज इराक भारत का सबसे बड़ा ऑयल सप्लायर है. इसके बाद अमेरिका और सऊदी अरब का नंबर है. रूस से हमारी क्रूड ऑयल खरीद न के बराबर है, पर चूंकि वैश्विक रूप तेल की खपत का बड़ा खिलाड़ी रूस है तो वहां से आपूर्ति में बाधा आने पर हमारे यहां आने वाले कच्चे तेल पर इसका असर जरूर आएगा.

तेल की कीमतों में उछाल से भारत का ऑयल इम्पोर्ट बिल बहुत बढ़ जाएगा. तेल को लेकर भारत का व्यापार घाटा वैसे भी पिछले वर्षों में काफी बढ़ा है. भारत वह कच्चे तेल की खरीद के लिए सस्ती दरों वाले देश की तलाश में भी लगा हुआ था, अब इस संकट से देश के ऑयल प्लान पर काफी असर पड़ेगा.

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Published: 24 Feb 2022,01:08 PM IST

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