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रूस-यूक्रेन संकट (Russia Ukraine war) की वजह से दुनियाभर में तेल और गैस की सप्लाई (Oil supply in world) के बाधित होने का डर इनकी कीमतों पर नजर आने लगा है. रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन (Vladimir Putin) द्वारा युद्ध की घोषणा करने और रूसी सेनाओं द्वारा यूक्रेन में बमबारी शुरू करने के बाद ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें प्रति बैरल 100 डॉलर के आंकड़े पर आ गईं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है और नैचुरल गैस के उत्पादन में शीर्ष पर है. विश्लेषकों के मुताबिक, रूस की क्रूड और नैचुरल गैस की सप्लाई को कम करने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं इसका बहुत ज्यादा असर तेल व ईधन की कीमतों पर पड़ेगा और ग्लोबल इकोनॉमी हिल जाएगी.
इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल रूस के निर्यात के खिलाफ भी किया जा सकता है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो इसकी बड़ी कीमत भी चुकानी होगी.इससे वैश्विक रूप से तेल की कीमतें बढ़ेंगी जब तक कि दूसरे देश इस कमी को पूरा करने के लिए उत्पादन को नहीं बढ़ाते. ये एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लंबा वक्त लगेगा.
पश्चिमी देश लगातार रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं और इस बीच जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज ने ऐलान किया है कि उनके देश ने नॉर्ड स्ट्रीम 2 (Nord Stream 2) गैस पाइपलाइन के अप्रूवल की प्रक्रिया को रोक दिया है.
फरवरी की शुरुआत से ही पहले से बढ़ती तेल की कीमतों में तनाव की स्थिति के चलते अचानक 10 प्रतिशत से भी ज्यादा का उछाल आया. बीबीसी डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, Fidelity International के इंवेस्टमेंट डायरेक्टर Maike Currie ने तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाने की आशंका व्यक्त की थी.
वैश्विक रूप तेल की जितनी खपत है उसमें प्रति 10 बैरल में से एक बैरल रूस का है. इसलिए जहां तेल की कीमतों की बात आती है वहां रूस एक अहम खिलाड़ी है और जाहिर है कि पेट्रोल की कीमतों पर इसका असर पड़ेगा और ये ग्राहकों को चोट पहुंचाएगा. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रूस की अर्थव्यवस्था काफी हद तक तेल पर आधारित हो चुकी है.
पिछले कुछ सालों में अमेरिका में तेल का उत्पादन बढ़ा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि अमेरिका बड़े तेल आयातक से दुनिया का अहम तेल निर्यातक देश बन गया है. इसका कारण यहां शेल तेल का उत्पादन बढ़ाया जाना है और यही वह वजह है जिसने अमेरिका को आयातक से ऑयल निर्यातक की स्थिति में पहुंचा दिया है.
अमेरिका का शेल ऑयल, तेल उत्पादक देशों के लिए चुनौती है, लेकिन इसका उत्पादन महंगा होता है. पारंपरिक कच्चे तेल की तुलना में शेल ऑयल चट्टानों की परतों से निकाला जाता है. इसकी तुलना में रूस और सऊदी अरब में पारंपरिक कच्चे तेल का भंडार है.
2016 में आई रिस्ताद एनर्जी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के पास 264 अरब बैरल तेल का भंडार है. इस रिपोर्ट के अनुसार, रूस और सऊदी अरब से ज्यादा तेल भंडार अमेरिका के पास है. रिस्ताद एनर्जी के अनुमान के मुताबिक, रूस में तेल 256 अरब बैरल, सऊदी में 212 अरब बैरल, कनाडा में 167 अरब बैरल, ईरान में 143 और ब्राजील में 120 अरब बैरल तेल है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. हमारे देश में आयात होने क्रूड ऑयल का लगभग 90% मिडिल ईस्ट, गल्फ कंट्रीज और अमेरिका से आता है. कंट्री वाइज इराक भारत का सबसे बड़ा ऑयल सप्लायर है. इसके बाद अमेरिका और सऊदी अरब का नंबर है. रूस से हमारी क्रूड ऑयल खरीद न के बराबर है, पर चूंकि वैश्विक रूप तेल की खपत का बड़ा खिलाड़ी रूस है तो वहां से आपूर्ति में बाधा आने पर हमारे यहां आने वाले कच्चे तेल पर इसका असर जरूर आएगा.
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