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केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को संसद में केन्द्रीय बजट 2022-23 पेश किया. कोरोना की मार, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी को देखते हुए लोगों को उम्मीद थी कि सरकार 5 राज्यों के चुनावों को देखते हुए लोगों को फौरी तौर पर राहत देगी. लेकिन सरकार ने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए कोई भी लोक-लुभावन ऐलान नहीं किया. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में 9.2 प्रतिशत के अनुमानित आर्थिक वृद्धि दर के साथ यह सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है.
मंत्री ने दावा किया कि 14 क्षेत्रों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के तहत 60 लाख नए रोजगार का सृजन होगा. साथ ही, पीएलआई योजना में 30 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त उत्पादन बढ़ाने की क्षमता है. मंत्री ने कहा कि ये बजट इंडिया@75 से इंडिया@100 की ओर ले जाने की बुनियाद रखने वाला है. सरकार का विजन अगले 25 सालों में सूक्ष्म आर्थिक स्तर-समग्र कल्याण पर बल देते हुए व्यापक आर्थिक विकास में मदद करना, डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं फिनटेक, टेक्नोलॉजी समर्थित विकास, ऊर्जा परिवर्तन तथा जलवायु कार्य योजना को प्रोत्साहन देना है.
साथ ही, सार्वजनिक पूंजी निवेश की मदद से निजी निवेश प्रारंभ करने के प्रभावी चक्र से लोगों को निजी निवेश से सहायता उपलब्ध कराना है. पीएम गतिशक्ति, समावेशी विकास, उत्पादकता में वृद्धि और निवेश, उद्यामान अवसर, ऊर्जा परिवर्तन और जलवायु कार्य योजना तथा निवेश को वित्तीय मदद इस समग्र बजट की चार प्राथमिकताएं हैं. संसद में पेश हुए बजट के मुताबिक, देश का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.9 प्रतिशत रह सकता है, जबकि पहले इसके 6.8 प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया गया था. राजकोषीय घाटे को अगले वित्त वर्ष में 6.4 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य तय किया गया है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये बजट देश की आर्थिक व्यवस्था को कितना मजबूत कर पाएगा? क्या सरकार की घोषणाओं का कोई दूरगामी प्रभाव पड़ेगा? ये समझने के लिए हमने देश के पूर्व इकनॉमिक अफेयर्स सेक्रेटरी सी. एम. वासुदेव से बात की. उन्होंने कहा कि इस बजट का फोकस मीडियम टर्म पर ज्यादा है. इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में इंवेस्टमेंट्स के जो प्रस्ताव दिए गए हैं, उनका मीडियम टर्म में काफी फायदा मिलेगा. सरकार ने पब्लिक सेक्टर इंवेस्टमेंटमेंट को ध्यान में रखते हुए ग्रोथ अप्रोच अपनाई है, जिसमें निश्चित तौर पर इससे जुड़े सर्विस सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर को लाभ मिलेगा क्योंकि इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंटमेंट के फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेजेस (कड़ियां) होते हैं. इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी. हालांकि, इस बजट का तात्कालिक तौर पर ज्यादा प्रभाव नहीं दिखेगा, लेकिन लंबी अवधि में इसका असर दिखेगा.
वर्ल्ड बैंक में भारत के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रह चुके सी एम वासुदेव ने बजट में लोक-लुभावन घोषणाएं न किए जाने पर हैरानी जताते हुए कहा कि चुनाव और दूसरी चीजों को देखते हुए बजट में कोई पॉप्युलिस्ट ऐलान नहीं किए गए. इस तरह की घोषणाएं नॉन प्रोडक्टिव एक्सपेंडिचर होते हैं, इनमें काफी खर्चा होता है. सरकार ने अपने सभी संसाधनों को इंवेस्टमेंट की तरफ इस्तेमाल करने की कोशिश की है, जिनसे ग्रोथ ही बढ़ेगी. हालांकि, सरकार ने कोरोना की मार झेलने वाले दिहाड़ी मजदूरों, छोटे कारोबारियों और गरीबों के लिए कोई सीधी राहत पहुंचाने वाली कोई घोषणा बजट में नहीं की है.
अगर बजट स्पीच में इनके लिए कुछ ऐलान करती तो ये कह सकते थे कि सरकार इन लोगों को नजरअंदाज नहीं कर रही. लेकिन अगर ग्रोथ बढ़ेगी, तो उसका फायदा इन लोगों तक भी पहुंचेगा. टैक्स स्लैब में बदलाव न होने को लेकर सी एम वासुदेव ने कहा कि एक अच्छे टैक्स पॉलिसी की सबसे अहम चीज उसके टैक्स रेट में स्थिरता होती है. हर साल टैक्स रेट में बदलाव किसी अच्छी टैक्स पॉलिसी के निशानी नहीं है.
अर्थशास्त्री रथिन रॉय वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए पेश किए गए बजट से बेहद नाखुश नजर आए. क्विंट से बातचीत में रथिन रॉय ने बताया कि जीडीपी के अनुपात में सरकार का कुल खर्चा 2 प्रतिशत घटा है, इसलिए ये छोटा बजट है. रथिन रॉय ने कहा कि सरकार ने मनरेगा को थोक के भाव में काटा है. महामारी के दौरान स्वास्थ्य खर्चा भी कम किया गया है, जो हैरान करने वाला है. इसलिए भले ही सरकार का पूंजीगत व्यय बढ़ा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि इससे इकनॉमी बूस्ट होगी.
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