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चुनाव की सरगर्मियों के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किए गए आम बजट (Budget 2022) में उत्तर प्रदेश में किसानों को कुछ राहत मिलती हुई नजर आ रही है. लेकिन जमीनी स्तर पर इसका क्या प्रभाव होगा इसको लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है. किसानों का आक्रोश झेल रही सरकार विवादित कृषि कानून वापस लेने के बाद बैकफुट पर आ गई थी. टैक्स स्लैब में कोई बदलाव ना होने से जहां मध्यम वर्गीय परिवार निराश है वहीं सरकार ने अपने बजट में किसानों को कुछ राहत पहुंचाने की कोशिश की है. हालांकि उत्तर प्रदेश के लिए अगर अलग से देखें तो उसे क्या मिला है, ये बड़ा सवाल.
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में एलान किया कि सरकार 1208 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 163 लाख मीट्रिक टन धान किसानों से खरीदेगी. इस अनाज का न्यूनतम समर्थन मूल्य सीधा उन किसानों के खातों में डाल दिया जाएगा. विशेषज्ञों की मानें तो खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में सरकारी क्रय विक्रय केंद्र पर फैली बदहाली की वजह से किसान अपना अनाज कम दाम पर प्राइवेट व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर हो जाता है. जिसे सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है.
बजट के तुरंत बाद अपनी प्रतिक्रिया में किसान नेता राकेश टिकैत ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि किसानों का फायदा न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून बनने से ही होगा. गन्ना किसानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि गन्ना मिल मालिकों द्वारा 14 दिन के अंदर भुगतान करने के नियम का पालन नहीं किया जाता है और अभी भी किसानों के करोड़ों रुपए बकाया हैं जबकि 14 दिन के अंदर भुगतान ना होने पर ब्याज का भी प्रावधान है.
उत्तर प्रदेश से सरोकार रखने वाले बजट में दूसरी घोषणा है केन बेतवा लिंक परियोजना, जिसको पिछले साल कैबिनेट मंजूरी मिल गई थी. सरकार का दावा है कि 44605 करोड़ रुपए की लागत से 8 साल में पूरी होने वाली इस परियोजना से पानी की कमी झेल रहे उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र और उससे सटे मध्य प्रदेश के कई जिलों को राहत मिलेगी.
बजट में ऑर्गेनिक फार्मिंग की एक नई रूपरेखा तैयार की जा रही है जिसमें इसको बढ़ावा देने के लिए गंगा नदी से सटे 5 किलोमीटर कॉरिडोर में किसानों को ऑर्गेनिक और केमिकल मुक्त फार्मिंग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. जिससे उत्तर प्रदेश के उस हिस्से के किसानों को फायदा मिल सकता है जो गंगा किनारे बसते हैं.
बजट में प्रस्तावित इन परियोजनाओं की घोषणा के बाद सत्ताधारी पार्टी को चुनाव में कितना लाभ मिलेगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन चुनावी मौसम में लोकलुभावन बजट की उम्मीद कर रहे लोग और विशेषज्ञों के अनुमान के विपरीत एक साधारण बजट ही पेश किया गया.
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