वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance minister Nirmala Sitharaman) ने मंगलवार, 1 फरवरी को केंद्रीय बजट 2022-23 (budget 2022) पेश किया. 5 राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए आम जनता, आर्थिक विशेषज्ञों के साथ-साथ चुनावी विश्लेषकों की भी नजर बजट पर थी.
ऐसे में बजट 2022 के बड़े ऐलान क्या हैं, बजट 2022 किसके लिए अच्छी खबर लाया है, बजट 2022 क्या कोविड 19 से पैदा हुई दिक्कतों को दूर करने वाला है, खर्च बढ़ाने का ऐलान तो हो गया लेकिन पैसा आएगा कहां से... जैसे तमाम सवालों पर चर्चा करने के लिए अर्थशास्त्री रथिन रॉय से क्विंट हिंदी ने खास बातचीत की, जिसे द क्विंट की ओपनियन एडिटर निष्ठा गौतम ने मॉडरेट किया.
बजट 2022 के बड़े ऐलान क्या हैं?
इस बजट में भी वो ही ट्रेंड दिख रहे हैं जो पिछले 5-6 साल में दिखे हैं- सरकार अपनी वित्तीय परिस्थितियों को ठीक नहीं कर पा रही है क्योंकि सरकार न टैक्स नहीं जमा कर पा रही है न ही विनिवेश कर पा रही है. यही कारण है कि सरकार केवल उधार लेकर खर्च कर पा रही है.
"यह एक छोटी बजट है, बड़ी बजट नहीं- क्योंकि सरकार के पास न टैक्स है, न ही विनिवेश के पैसे ठीक से आये हैं. सरकार नरेगा जैसी योजनाओं में अपना आवंटन कम कर रही है, महामारी के वक्त और महामारी के बाद स्वास्थ्य के लिए सरकारी आवंटन घटा है. आश्चर्य होता है कि इन परिस्थितियों में इनदोनों पर खर्च कैसे कम हो सकता है."
बजट 2022 किसके लिए अच्छी खबर लाया है?
ठेकेदार बड़े खुश होंगे इस बजट से. इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ने से ठेकेदार की आमदनी बढ़ेगी. अच्छी बात है ये अर्थव्यवस्था के लिए. खासतौर पर बीजेपी को ठेकेदार पसंद होंगे... क्या यह अजीब नहीं है कि जीडीपी घटा है, उत्पादन घटा है लेकिन पूंजीवादियों का प्रॉफिट बढ़ा है? अगर ऐसा है तो वे क्यों निवेश करेंगे. खास बात है कि इनका प्रॉफिट तो बढ़ा लेकिन इनसे सरकार को मिलने वाला टैक्स नहीं बढ़ा है."
बजट 2022 क्या कोविड 19 से पैदा हुई दिक्कतों को दूर करने वाला है?
अगर आप सरकार के दृष्टिकोण से देखें तो सरकार हाथ धो बैठी है क्योंकि अगले साल अगर आप सरकार से पूछें कि आप कितना खर्च करना चाहते हो...सारी बड़ी बातें अब बंद हो चुकी हैं...पौने दो लाख करोड़ के बजाय अगले साल ये लोग 65 हजार करोड़ प्राप्त करना चाहते हैं. मुझे लगता है कि एलआईसी की उम्मीद भी छोड़ चुके हैं ये लोग, अपने निकम्मेपन की वजह से.
ये अच्छी बात है कि सरकार समझ गई है कि उनकी जो पहुंच है, वो बहुत कम है...बड़ी-बड़ी बातें बंद होंगी, लेकिन इससे देश की समस्या नहीं खत्म होगी. ये तय है कि कोरोना महामारी से जनता को जूझना पड़ेगा.
खर्च बढ़ाने का ऐलान तो हो गया लेकिन पैसा आएगा कहां से?
इस पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इस पर मैं दो चीजें कहना चाहूंगा...एक तो हिन्दी भाषा की समस्या है, हिन्दी भाषा में हम कल, आज और कल बोलते हैं, तो इतिहास और भविष्य में शायद कभी-कभी गड़बड़ हो जाता है. हम बहुत कुछ कल की बात करते हैं, लेकिन आज की बात कम करते हैं.
दूसरी बात ये है कि प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर कहा था कि हमें तपस्या करनी होगी...तो फिर तपस्या करते हैं.
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