advertisement
पांच राज्यों के चुनाव के नतीजों से पहले एक बार फिर से EVM सवालों के घेरे में है. मिर्जापुर, बरेली से लेकर वाराणसी में अचानक ईवीएम को लेकर हंगामे हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हुए कहा है कि वाराणसी में EVM की गाड़ी पकड़ी गई है तो कहीं ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रवक्ता प्रशासन पर अवैध रूप से EVM के मूवमेंट का आरोप लगा रहे हैं.
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब ईवीएम को लेकर हंगामे हो रहे हैं, बीजेपी से लेकर कांग्रेस और दूसरी पार्टियां इस पर सवाल उठाती रही हैं.
हालांकि, सिर्फ बीजेपी ही नहीं कांग्रेस से लेकर आरजेडी, बीएसपी, टीएमसी ईवीएम की मशीन की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाया है.
आइए आपको ईवीएम पर उठते ऐसे ही कुछ अहम सवालों से मिलवाते हैं.
साल 2013 में Voter Verifiable Paper Trail यानी VVPAT मशीन को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2013 में चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया था. वीवीपैट ईवीएम मशीन के साथ प्रिंटर की तरह अटैच किया जाता है. ईवीएम में बटन दबाने के कुछ सेकेंड के बाद वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है. इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया है, उसका नाम और चुनाव चिन्ह होता है. पर्ची कुछ सेकेंड तक दिखती है फिर मशीन में लगे बॉक्स में चली जाती है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वोटर को ये पता चल सके कि उसने जिस उम्मीदवार को वोट दिया है वीवीपैट में भी वही बात दर्ज हुई है या नहीं.
बता दें कि साल 2019 लोकसभा चुनाव के बाद भी ईवीएम के कामकाज पर सवाल उठे थे. दरअसल, वोटिंग के दौरान VVPAT, EVM के ठीक बगल में होती है, जिसमें बटन दबाकर आप वोट डालते हैं. ईवीएम दो यूनिट से जुड़ा होता है, एक बैलेट यूनिट और दूसरा कंट्रोल यूनिट. अब मान लीजिये कि EVM एक कम्प्यूटर है इसके बैलट यूनिट की-बोर्ड की तरह काम करते हैं और इसका कंट्रोल यूनिट कम्प्यूटर का हार्ड ड्राइव है. मान लीजिये कि VVPAT मशीन कम्प्यूटर से लगा प्रिंटर है. जब भी बैलट यूनिट में वोट दर्ज किया जाता है तो इसे EVM के कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में स्टोर हो जाना चाहिए. इसके बाद VVPAT मशीन से निकलने वाला प्रिंटआउट तय करता है कि वोटर ने EVM में जिस बटन को दबाया, वही वोट दर्ज हुआ है. ये जानकारी बैलट यूनिट से कंट्रोल यूनिट में और फिर VVPAT मशीन में जानी चाहिए.
अब आप पूछ सकते हैं कि इसमें गौर करने लायक क्या बात है? इसमें समझने वाली बात ये है कि जब VVPAT मशीन को चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया था तो EVM सिर्फ बैलट यूनिट का बटन दबाने से मिलने वाली इंफॉर्मेशन को दर्ज करता था. तब EVM को मालूम नहीं होता था कि ये बटन किस पार्टी का है लेकिन VVPAT के आने के बाद ये मुमकिन हो गया है. उसे बताना पड़ता है कि बैलट यूनिट का हर बटन किस पार्टी और किस उम्मीदवार का है. VVPAT मशीनों में पार्टी का चुनाव चिह्न और उम्मीदवारों के नाम लैपटॉप से दर्ज किये जाते हैं. ये काम चुनाव की तारीख से दो हफ्ते पहले BEL और ECIL जैसी EVM बनाने वाली कम्पनियों के इंजीनियर करते हैं.
अब, अगर कोई चुनाव के नतीजों को मैन्यूपुलेट करना चाहे तो वो बाहरी डिवाइस में मालवेयर डाल सकता है. इसका मतलब है कि लैपटॉप, VVPAT मशीनों में संवेदनशील जानकारियां डालते वक्त मालवेयर डाल सकता है. बता दें कि जब ये सवाल उठे थे तब हमने पूर्व IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन से बात की, जो 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान एक चुनाव अधिकारी थे, जिन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है. उन्होंने हमें विस्तार से बताया कि मालवेयर किस तरह EVM के वोटों को मैन्यूपुलेट कर सकता है
सीधे शब्दों में कहा जाए तो कन्नन गोपीनाथ के मुताबिक अगर VVPAT मशीन में कोई मालवेयर है तो VVPAT, EVM की कंट्रोल यूनिट में वही सूचना भेजेगा जो उसे मालवेयर बताएगा. इस सूचना का वोटर के बैलट यूनिट में दबाए गए बटन से कोई लेना-देना नहीं होगा.
बता दें कि ईवीएम को भारत में दो कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BHEL) और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने डिजायन किया है. लेकिन आरोप लगा कि EVM की देखरेख के लिए चुनाव आयोग को प्राइवेट इंजीनियर देने वाली कंपनी M/s T&M Services Consulting Private Limited....ECIL से मान्यता प्राप्त वेंडर नहीं है.
अगस्त, 2019 में क्विंट ने खुलासा किया था कि चुनाव आयोग के लिए EVM बनाने वाली कंपनी THE Electronics Corporation of India Limited यानी ECIL ने चुनावों के दौरान EVM और VVPAT की देखरेख के लिए मंबई की एक फर्म M/s T&M Services Consulting Private Limited से कन्सल्टिंग इंजीनियर लिए. हालांकि चुनाव आयोग ने बताया है कि ECIL ने किसी PRIVATE consultant engineer की सेवा नहीं ली.
ईवीएम से हुए चुनाव में वोटों की गिनती को लेकर भी सवाल उठे हैं. द क्विंट ने भी साल 2019 में अपनी पड़ताल में पाया था कि वोटों की गिनती के बाद कई सीटों पर मतदान से ज्यादा वोट काउंट दर्ज किये गए थे. हालांकि चुनाव आयोग का कहना था कि "ये सभी आंकड़े प्रोविजनल हैं, डेटा अनुमानित हैं और इसमें बदलाव हो सकते हैं." लेकिन चार महीने बाद भी ऐसा नहीं हो सका था.
बता दें कि इलेक्शन कमीशन ने 1 जून, 2019 को एक प्रेस रिलीज जारी कर बताया था कि हर लोकसभा क्षेत्र के लिए एक 'इंडेक्स कार्ड' होता है. जो 'फाइनल वोट ब्रेकअप' बताता है, ये इंडेक्स कार्ड चुनाव अधिकारी बनाते हैं चुनाव अधिकारियों की ओर से चुनाव आयोग को भेजने के बाद इंडेक्स कार्ड जमा कर दिए जाते हैं. फिर इनकी जांच होती है और फिर चुनाव के फाइनल प्रमाणित डेटा सार्वजनिक किए जाते हैं. लेकिन चार महीने बीतने के बाद भी चुनाव आयोग ने फाइनल डेटा जारी नहीं किया था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined