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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
अगर मैं आपसे कहूं कि किसी गैजेट को हैक मैनिपुलेट या उसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती तो क्या आप मेरा यकीन करेंगे? नहीं
आप या तो खुद उसे चेक करेंगे या फिर किसी एक्सपर्ट से पूछेंगे तो जब EVM-VVPAT मशीनों की बात आती है तो चुनाव आयोग इस लॉजिक को फॉलो क्यों नहीं करता? नागरिक और वोटर के तौर पर हमें ये मानने के लिए मजबूर क्यों किया जा रहा है कि
EVM-VVPAT मशीनों को हैक नहीं किया जा सकता वो भी बस इसलिए क्योंकि चुनाव आयोग का ऐसा कहना है? नेशनल सिक्योरिटी के नाम पर इस जरूरी मुद्दे पर इतनी सीक्रेसी क्यों बरती जाती है?
क्विंट ने EVM-VVPAT मशीनों में इस्तेमाल होने वाले कंपोनेंट्स की जानकारी और उनके सप्लायर्स के नामों की मांग करते हुए इलेक्ट्रोनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) और भारत इलेक्ट्रोनिक्स (BEL) में RTI दाखिल की गौर करें कि ECIL और BEL सप्लायर्स से कंपोनेंट्स इंपोर्ट करने के बाद EVM-VVPAT मशीनों को केवल एसेंबल करते हैं. BEL और ECIL दोनों ने
ये कहते हुए जानकारी देने से मना कर दिया कि ये-
लेकिन एक्सपर्ट इससे सहमत नही हैं IIT कानपुर के साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट प्रोफेसर संदीप शुक्ला कहता हैं-
बहुत सारे विकसित देशों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की दिक्कतों को देखने के बाद इसका इस्तेमाल बंद कर दिया है
उदाहरण के लिए हॉलैंड ने 2007 में EVM का उपयोग बंद कर दिया था कंप्यूटर विेशेषज्ञों के साथ काम करने वाले जुड़े नागरिक समूहों ने पाया कि EVM मशीन की मेमोरी चिप्स को आराम से पांच मिनटों के भीतर बदला जा सकता है जिससे छेड़खानी की समस्या पैदा हो सकती है उन्होंने यह भी पाया कि पोलिंग स्टेशन के बाहर रखे सामान्य रेडियो रिसीवर भी EVM के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नलों में उतार-चढ़ाव को देख सकते हैं इससे यह पता चल सकता है कि कौन सा वोटर किसे वोट कर रहा है
ECIL और BEL से RTI में हमारा एक सवाल था कि "EVM में उपयोग की जाने वाली माइक्रोचिप का नाम क्या है?"
हमने आपूर्तिकर्ता का नाम और पता भी पूछा था हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया गया लेकिन हमने पाया कि BEL ने ये जानकारी मई 2019 में एक RTI के तहत शेयर की थी. हमारी EVM की माइक्रोचिप्स की आपूर्ति NXP करती है जो एक ख्यात अमेरिकी कंपनी है लेकिन इससे भी बड़ा एक अहम खुलाया था
लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग पर हॉलैंड में स्थित इन्टरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम एंड नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट के मुताबिक अगर बाहरी विशेषज्ञों से EVM की जांच कराई जाए तो इसकी गलतियां पकड़ में आ सकती हैं और इन्हें ठीक किया जा सकता है
इस स्टडी मे बताया गया है कि कैसे US में 2004 में ऐसा किया गया तब सरकार ने सोर्स कोड को पब्लिक कर दिया था जिसके बाद 4 वैज्ञानिकों ने इसमे कईं गड़बड़ियों का पता लगाया था सवाल ये है कि-
हम ऐसा भारत मे क्यों नहीं कर सकते?
हमारी EVM-VVPAT टेक्नोलॉजी में इतनी गोपनीयता क्यों है?
हम क्यों इसके डिजाइन, सोर्स कोड और इसके कंपोनेंट को नहीं खोलते ताकि इसकी विशेषज्ञों के जरिए पारदर्शी ढंग से जांच हो सके?
क्या इससे हमारी EVM-VVPAT मशीन ज्यादा सुरक्षित नहीं हो जाएंगी?
क्या चुनाव आयोग को डर है कि EVM-VVPAT मशीन के पब्लिक करने से उसकी कमजोरी सामने आ जायेगी और ये उनके लिए शर्मिंदगी की बात होगी? लेकिन भारत की EVM-VVPAT टेक्नोलॉजी में पारदर्शिता न होना और एक्सपर्ट ऑडिट न कराने से हम देश की चुनाव प्रक्रिया को जोखिम में डाल रहे हैं मतलब हम हमारे लोकतंत्र को खतरे मे डाल रहे हैं?
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