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लोकसभा चुनाव में कौन कितने वोट से जीता, पक्का क्यों नहीं बताता EC?

चुनाव नतीजों का ऐलान 23 मई को हो गया था, इसलिए चुनाव आयोग को ये इंडेक्स कार्ड 10 जून तक मिल जाने चाहिए थे.

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

  • मेरे लोकसभा क्षेत्र में जो नेता सांसद बने हैं उन्हें कितने वोटों से जीत मिली?
  • दूसरे नंबर पर आने वाले नेता को कितने वोट मिले?

पक्के तौर पर मैं नहीं जानती 2019 चुनावों में कितने वोट पड़े और कितने गिने गए, इसका प्रमाणित डेटा अभी तक चुनाव आयोग ने देश के वोटरों को नहीं बताया है. आप पूछ सकते हैं इन दोनों में क्या फर्क है और ये इतना अहम क्यों है?

दरअसल, चुनाव आयोग को ये पक्का करना होता है कि कहीं कोई गलती तो नहीं हुई? क्योंकि अगर गलती हो गई, तो किसी क्षेत्र के नतीजे बदल सकते हैं. आखिर हर वोट की कीमत होती है. इसीलिए आम तौर पर चुनाव परिणाम के अगले कुछ दिनों में चुनाव आयोग इलेक्शन डेटा की री-चेकिंग की कठिन प्रक्रिया पूरी करके जब ये सुनिश्चित कर लेता है, अब कोई गलती की गुंजाइश नहीं है, तब वो इलेक्शन के डेटा को अपनी वेबसाइट पर प्रमाणित घोषित करता है.

लेकिन 2019 के चुनाव के मामले में अभी तक ये नहीं हुआ है. इलेक्शन कमीशन ने 1 जून, 2019 को एक प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि हर लोकसभा क्षेत्र के लिए एक 'इंडेक्स कार्ड' होता है. जो 'फाइनल वोट ब्रेकअप' बताता है, ये इंडेक्स कार्ड चुनाव अधिकारी बनाते हैं चुनाव अधिकारियों की ओर से चुनाव आयोग को भेजने के बाद इंडेक्स कार्ड जमा कर दिए जाते हैं. फिर इनकी जांच होती है और फिर चुनाव के फाइनल प्रमाणित डेटा सार्वजनिक किए जाते हैं.

चुनाव आयोग के मुताबिक सभी चुनाव अधिकारियों को मतगणना वाले दिन के बाद से 15 दिन के अंदर अपने इंडेक्स कार्ड जमा करने को कहा गया था. क्योंकि चुनाव नतीजों का ऐलान 23 मई को हो गया था, इसलिए चुनाव आयोग को ये इंडेक्स कार्ड 10 जून तक मिल जाने चाहिए थे. 1 जून की प्रेस रिलीज में चुनाव आयोग ने कहा था कि प्रमाणित डेटा 2-3 महीने में जारी कर दिए जाएंगे, लेकिन चार महीने बीत गए ये डेटा जारी नहीं किए गए हैं. 
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क्विंट ने लगातार की है कवरेज...

संयोग से, चुनाव आयोग की 1 जून की प्रेस रिलीज अपने आप प्रकाशित नहीं हुई थी. ये 31 मई को क्विंट ने एक आर्टिकल में बताया था कि

370 से ज्यादा सीटों में EVM में पड़े वोटों और गिनती किए वोटों की संख्या में अंतर था. हमने दिखाया था कि 220 चुनावी क्षेत्रों में जितने वोट पड़े उससे ज्यादा गिनती में आ गए और बाकी में कम. चुनाव आयोग ने अपनी प्रेस रिलीज में दावा करते हुए इस अंतर को समझाया और मैं इसे कोट कर रही हूं "ये सभी आंकड़े प्रोविजनल हैं, डेटा अनुमानित हैं और इसमें बदलाव हो सकते हैं" और फिर डेटा रहस्यमयी तरीके से कुछ दिनों बाद सभी अंतर वाले आंकड़े गायब हो जाते हैं और उसकी जगह एक जैसे आंकड़े आ जाते हैं

एक चौंकाने वाली बात ये भी है कि अभी तक सभी सीटों के प्रोविजनल डेटा भी अपलोड नहीं किए गए हैं, यानी सिर्फ राज्यों के प्रोविजनल डेटा मौजूद हैं और 370 से ज्यादा चुनावी क्षेत्र में अंतर वाले डेटा के पीछे क्या कारण था? सारे गंभीर सवाल हमारी चुनाव प्रक्रिया की प्रमाणिकता से जुड़े हुए हैं. इसलिए, हम फिर से पूछते हैं चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनाव के फाइनल रिजल्ट को अपनी वेबसाइट पर क्यों नहीं अपलोड किया?

  • रुकावट कहां है? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लोग प्रमाणित इलेक्शन रिजल्ट डेटा से क्यों वंचित हो रहे हैं?
  • क्या ये सिर्फ ‘सरकारी’ red tap है या इसमें और कुछ है?

The Quint ने चुनाव आयोग से ये सभी सवाल पूछे हैं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है

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