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EVM-VVPAT में है एक बड़ी खामी, हो सकती है आपके वोट से छेड़खानी

वोटर को कैसे पता चलेगा VVPAT पर्ची में दिख रहा है वही वोट EVM में दर्ज हो रहा है?

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम/वरुण शर्मा

The Voter Verifiable Paper Trail यानी VVPAT मशीन को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2013 में चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया था. मकसद था कि वोटर को इस बात का यकीन हो कि  उसका वोट सही जगह पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था “Paper trail system चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा होगा EVM में वोट डालने के बाद VVPAT से निकलने वाला प्रिंटआउट तय करेगा कि वोटर का वोट सही जगह दर्ज हुआ है.”

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लेकिन क्या VVPAT लाने से चुनावी प्रक्रिया फूलप्रूफ हो गई है? जवाब है, नहीं.
क्या EVM-VVPAT की जोड़ी को मैन्यूपुलेट किया जा सकता है? दुर्भाग्य से इस सवाल का जवाब है, हां

जब आपने 2019 लोकसभा चुनाव में वोट डाला था तो आपने पाया होगा कि VVPAT कैसा दिखता है. इसकी जगह उस EVM के ठीक बगल में होती है, जिसमें बटन दबाकर आप वोट डालते हैं.  चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया और VVPAT मशीनों को चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनाया. लेकिन एक गंभीर तकनीकी खामी ने VVPAT को चुनावी प्रक्रिया में शामिल करने के मकसद पर पानी फेर दिया.

मान लीजिये कि EVM एक कम्प्यूटर है इसके बैलट यूनिट की-बोर्ड की तरह काम करते हैं और  इसका कंट्रोल यूनिट कम्प्यूटर का हार्ड ड्राइव है. मान लीजिये कि VVPAT मशीन कम्प्यूटर से लगा प्रिंटर है.

जब भी बैलट यूनिट में वोट दर्ज किया जाता है तो इसे EVM के कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में स्टोर हो जाना चाहिए. इसके बाद VVPAT मशीन से निकलने वाला प्रिंटआउट तय करता है कि वोटर ने EVM में जिस बटन को दबाया, वही वोट दर्ज हुआ है.  ये जानकारी बैलट यूनिट से कंट्रोल यूनिट में और फिर VVPAT मशीन में जानी चाहिए.

लेकिन द क्विंट ने पाया कि EVM और VVPAT मशीन को जिस प्रकार जोड़ा गया है, उसमें ऐसा नहीं हो रहा है. मौजूदा प्रोसेस में बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट के बीच में VVPAT मशीन है.   
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ऐसे में बैलट यूनिट सबसे पहले वोट को VVPAT मशीन में भेजता है, जहां से वोट का प्रिंटआउट निकलता है और फिर वो इंफॉर्मेशन इलेक्ट्रॉनिक तरीके से कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में दर्ज होती है.

आप पूछ सकते हैं कि इसमें गौर करने लायक क्या बात है?

जब VVPAT मशीन को चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया था तो EVM सिर्फ बैलट यूनिट का बटन दबाने से मिलने वाली इंफॉर्मेशन को दर्ज करता था. तब EVM को मालूम नहीं होता था कि
ये बटन किस पार्टी का है लेकिन VVPAT के आने के बाद ये मुमकिन हो गया है. उसे बताना पड़ता है कि बैलट यूनिट का हर बटन किस पार्टी और किस उम्मीदवार का है.

VVPAT मशीनों में पार्टी का चुनाव चिह्न और उम्मीदवारों के नाम लैपटॉप से दर्ज किये जाते हैं. ये काम चुनाव की तारीख से दो हफ्ते पहले BEL और ECIL जैसी EVM बनाने वाली कम्पनियों के इंजीनियर करते हैं.

अब, अगर कोई चुनाव के नतीजों को मैन्यूपुलेट करना चाहे तो वो बाहरी डिवाइस में मालवेयर डाल सकता है. इसका मतलब है कि लैपटॉप, VVPAT मशीनों में संवेदनशील जानकारियां डालते वक्त मालवेयर डाल सकता है.

इस सिलसिले में हमने पूर्व IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन से बात की, जो 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान एक चुनाव अधिकारी थे, जिन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है. उन्होंने हमें विस्तार से बताया कि मालवेयर किस तरह EVM के वोटों को मैन्यूपुलेट कर सकता है

“सबसे बड़ी खामी VVPAT मशीनों की जगह है जो बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट के बीच में है. इस हालत में VVPAT एक बाहरी उपकरण के साथ जुड़ा हुआ है. मान लीजिए कि इसमें मालवेयर जा सकता है. आप बैलट यूनिट में जो बटन दबा रहे हैं, वो VVPAT में भी दिखता है. वोटर इसे देखकर खुश हो जाता है कि उसने जिस चुनाव चिह्न और उम्मीदवार के बटन को दबाया है. उसका वोट वहीं पड़ा है लेकिन उसे ये नहीं मालूम होता है कि VVPAT और कंट्रोल यूनिट के बीच क्या गुल खिल रहा है. मान लिया जाए कि मालवेयर में कंट्रोल यूनिट को कोई दूसरी जानकारी भेजने की क्षमता है, इस हालत में वोटर अगर नंबर 1 या नंबर 2 उम्मीदवार का बटन दबाता है फिर भी VVPAT इस मालवेयर के जरिये कंट्रोल यूनिट में कुछ और सूचना भेजता है. मान लिया जाए कि वोटर ने उम्मीदवार 1 का बटन दबाया है और VVPAT उम्मीदवार 1 का प्रिंटआउट निकालता है लेकिन कंट्रोल यूनिट में उम्मीदवार 2 की सूचना भेजता है. इस प्रकार से चतुराई के साथ मैन्यूपुलेट करना मुमकिन है. वोटर के पास ये जानने का कोई रास्ता नहीं है कि कंट्रोल यूनिट में क्या दर्ज हुआ है.”
कन्नन गोपीनाथ, पूर्व IAS अधिकारी

सीधे शब्दों में कहा जाए तो कन्नन गोपीनाथ के मुताबिक अगर VVPAT मशीन में कोई मालवेयर है तो VVPAT, EVM की कंट्रोल यूनिट में वही सूचना भेजेगा जो उसे मालवेयर बताएगा. इस सूचना का वोटर के बैलट यूनिट में दबाए गए बटन से कोई लेना-देना नहीं होगा. तो क्या ये डर सही है?

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द क्विंट में पहले ही ये खबर छप चुकी है कि VVPAT मशीनों में संवेदनशील जानकारी डालने वाले इंजीनियर निजी कंपनियों के थे. क्या हम अब भी कह सकते हैं कि हमारी चुनाव प्रक्रिया सुरक्षित है? साफ जवाब है, नहीं. चुनाव आयोग अपने बचाव में बेतरतीब व्यवस्था का हवाला देता है. जिसका मतलब है कि किस EVM-VVPAT की जोड़ी किस चुनाव क्षेत्र में जाएगी, कोई नहीं जानता. लिहाजा उन्हें मैन्यूपुलेट नहीं किया जा सकता लेकिन अब इस तर्क में कोई दम नहीं, क्यों?

क्योंकि VVPAT मशीनों में किसी खास चुनाव क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों और पार्टी के नाम डाले जाते हैं. इसका मतलब है कि इस जानकारी के बाद कि कोई VVPAT मशीन कहां जा रही है, उसमें दर्ज आकड़ों को आसानी से मैन्यूपुलेट किया जा सकता है.

हमने चुनाव आयोग से ये गंभीर सवाल किये.

  1. VVPAT मशीनों को बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट के बीच क्यों रखा जाता है?
  2. VVPAT मशीन, कंट्रोल यूनिट में जाने वाली जानकारी पर कंट्रोल क्यों रखता है?
  3. इसे उल्‍टा क्यों नहीं किया जा सकता?
  4. क्या इस खामी के कारण VVPAT-EVM की जोड़ी को मैन्यूपुलेट नहीं किया जा सकता?

अब तक चुनाव आयोग ने इनमें से किसी सवाल का जवाब नहीं दिया है. एक वोटर के नाते हममें से हर किसी को ये जानने का हक है कि हमारी चुनाव प्रक्रिया सुरक्षित है या नहीं और लोकतंत्र को किसी तरह का खतरा तो नहीं? आश्चर्य है कि इन सवालों पर चुनाव आयोग खामोश है जब तक हमें संतोषजनक जवाब नहीं मिलता. हम सवाल पूछते रहेंगे और उससे जुड़ी जानकारियां आप तक पहुंचाते रहेंगे.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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