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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) की तपन ने देश के सबसे बड़े राज्य के सर्द दिनों में सियासी गर्मजोशी पैदा कर रखी है. जहां सीधी टक्कर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Aadityanath) के बीच मानी जा रही है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला किया है और फिर से पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का दम भर रही है.
1947 में जब से देश आजाद हुआ और 1950 में चुनाव के बाद पहली सरकार बनी, तब से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में कोई भी लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बना, जिसने अपना पहला कार्यकाल पूरा किया हो. अगर यूपी में दोबारा बीजेपी की सरकार बनती है और योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाया जाता है तो ये अपने आप में इतिहास होगा. क्योंकि उत्तर प्रदेश में पार्टी भले ही दोबारा सत्ता में आई हो लेकिन कभी कोई सीएम रिपीट नहीं हुआ.
हालांकि 3 जून 1995 को मायावती पहली बार जब सीएम बनीं तो उनकी सरकार 18 अक्टूबर 1995 तक चली और वो 137 दिन तक मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन इसके बाद उनकी सरकार गिर गई और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया. इसके बाद 1997 को राष्ट्रपति शासन हटा और मायावती फिर से सीएम बनीं. लेकिन इस बार भी उनकी सरकार 184 दिन ही चल सकी. तो मायावती दूसरी बार सीएम जरूर बनीं लेकिन बीच में 1 साल से ज्यादा तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा और मायावती ने अपना कार्यकाल पूरा भी नहीं किया था.
यूपी की राजनीति का ये भी बड़ा रोचक पहलू है कि किसी पार्टी की सत्ता रिपीट हुई तो उसने अपने पिछले सीएम को मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं दी. 1950 से 1967 तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन इस बीच में गोविंद वल्लभ पंत से शुरू हुई कुर्सी की कहानी चंद्रभान गुप्ता तक पहुंचते-पहुंचते बीच में पार्टी ने तीन सीएम और बदले. यानि 1950 से 1967 तक कांग्रेस की सरकार तो रही लेकिन हर बार मुख्यमंत्री बदलते रहे.
नोएडा को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा मिथक रहा है कि जिसने भी सीएम रहते नोएडा का दौरा किया उसकी सरकार नहीं बची. ये मिथक दशकों से चला आ रहा है, दरअसल इस मिथक की शुरुआत होती है 1988 से, उस वक्त वीर बहादुर सिंह यूपी के सीएम हुआ करते थे और वो नोएडा के दौरे पर आय़े थे. इसके बाद अगली बार उनकी सरकार नहीं बनी. उसके बाद एनडी तिवारी ने 1989 में नोएडा के सेक्टर 12 में नेहरू पार्क का उद्घाटन किया और कुछ दिन बाद उनकी कुर्सी चली गई. इसके बाद कल्याण सिंह और मुलायम सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ.
कल्याण सिंह की कुर्सी जाने के बाद राजनाथ सिंह को बीजेपी ने सीएम बनाया था, और उन्हें 2000 में डीएनडी फ्लाइओवर का उद्घाटन करना था लेकिन राजनाथ सिंह ने नोएडा ना आकर दिल्ली से ही उस फ्लाइओवर का उद्घाटन किया. हालांकि इसके बाद भी उनकी कुर्सी नहीं बची.
अब इसे इत्तेफाक कहें या मिथक कि 2011 में मायावती ने भी नोएडा आने की हिम्मत की और 2012 में उनकी सरकार चली गई. इसके बाद अखिलेश यादव सीएम रहते कभी नोएडा नहीं गए, कई लोगों ने कहा कि शायद वो इस मिथक की वजह से नोएडा नहीं गए. लेकिन योगी आदित्यनाथ सीएम रहते नोएडा आये और अब वो चुनावी मैदान में हैं, तो अगर वो दोबारा सीएम बनते हैं तो नोएडा का ये मिथक टूटेगा. लेकिन अगर नहीं बने तो नोएडा को लेकर ये मिथक और आगे बढ़ जाएगा.
इसे मिथक कहिए, अंधविश्वास या इत्तेफाक, लेकिन आगरा के सर्किट हाउस के साथ भी कुछ ऐसा ही है. दरअसल 2002 में राजनाथ सिंह आगरा के सर्किट हाउस में रुके थे उसके बाद उनकी सरकार चली गई. इस सर्किट हाउस में एक बार मुलायम सिंह यादव भी रुके थे. लेकिन इसके बाद ना तो सीएम रहते मायावती कभी सर्किट हाउस में रुकीं और ना ही आगरा के सर्किट हाउस में अखिलेश यादव ही रुके, हालांकि मायावती आगरा में कभी रात ही नहीं रुकीं. लेकिन अखिलेश यादव जब भी रुके किसी दूसरे होटल में रुके.
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