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देश में BJP-UP में योगी की माया,'कांग्रेस मुक्त भारत' मिशन में मोदी संग केजरीवाल

विपक्ष किंकर्तव्यविमूढ़: ''मोदी जी हम करें तो करें क्या, बोलें तो बोलें क्या?''

संतोष कुमार
उत्तर प्रदेश चुनाव
Updated:
<div class="paragraphs"><p>PM Modi, Arvind Kejriwal&nbsp;</p></div>
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PM Modi, Arvind Kejriwal 

फोटो : Altered by Quint

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यूपी के चुनाव (UP Assembly Election Result 2022) नतीजे आए तो क्विंट हिंदी पर किसी ने कमल फूल की तस्वीर लगाकर एक मीम बनाया-फ्लावर समझा क्या, फायर है मैं. सुपरहिट फिल्म पुष्पा का ये डायलॉग पांच राज्यों में चुनावी नतीजों के बाद बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर बड़ा फिट बैठ रहा है. इसके मायने लोग अलग-अलग लगा सकते हैं. लेकिन कुल मिलाकर बात है कि भगवा की लहर देश में चल रही है. मोदी का असर बाकी है. बीजपी की रणनीति और इलेक्शन मशीन आज भी विपक्ष के हर दांव पर भारी है. विपक्ष किंकर्तव्यविमूढ़ है, जैसे वो पूछ रहा हो-मोदी जी हम करें तो करें क्या, बोलें तो बोलें क्या?

मोदी युग के बाद भारत की राजनीति में तीन ऐतिहासिक साल दर्ज हो चुके हैं. 2014 में चला मोदी का विजय रथ 2019 में एक नए मुकाम तक पहुंचा और अब यूं लग रहा है 2022 में वो अंजाम तक पहुंच गया है. यूपी, उत्तराखंड में बीजेपी को प्रचंड बहुमत और गोवा, मणिपुर में सरकार बनाने की हैसियत. पांच राज्यों के टेस्ट में बीजेपी की 4-1 से जीत देश की राजनीति, विपक्ष और खुद बीजेपी का चाल चरित्र बदल सकती है. पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत का भी फायदा भविष्य में बीजेपी को ही हो तो चौंकिएगा नहीं.

बीजेपी की रणनीति और चुनावी मशीनरी

यूपी में ऐसा प्रतीत हो रहा कि हर चीज बीजेपी की मदद करती चली गई. यूपी में पिछली बार बीएसपी 19 सीटें जीती थी, इस बार एक सीट पर सिमट गई है. पहले उसकी सीट घटती भी थी तो वोट शेयर नहीं. इस बार वोट शेयर 19% से घटकर करीब 12% रह गया है. दूसरी तरफ बीजेपी का वोट शेयर कुछ बढ़ा है. अब चुनाव प्रचार के दौरान मायावती की चौंकाने वाली चुप्पी को याद कीजिए. ये भी गौर करते चलिए कि एसपी ने पिछले चुनाव से करीब 73 ज्यादा सीटें जीती हैं और 200 से ज्यादा सीटों पर नंबर दो की पार्टी रही है. RLD पिछले चुनाव के 1 सीट से आगे बढ़कर 8 पर पहुंची और 19 जगहों पर नंबर दो की पार्टी रही. दूसरी तरफ बीजेपी यूपी में पिछले चुनाव से करीब 57 सीटें पीछे रह गई. तो कोई अनुमान ही लगा सकता है कि माया, ओवैसी, निषाद फैक्टर न होते तो यूपी में क्या होता? यूपी में कुल मिलाकर ऐसे समीकरण बनते गए जैसे एसपी गठबंधन के खिलाफ पूरी फिल्डिंग सेट हो गई हो.

बीजेपी की सेट की हुई फिल्डिंग कुछ कम पड़ती है तो उसकी चुनावी महामशीन ये गैप पूरा कर देती है. गोवा में कांग्रेस की वापसी की चर्चा के बीच बीजेपी बहुमत के करीब और मणिपुर में उसे मिले बमुश्किल बहुमत को आप इस तथ्य से जोड़ कर देखिएगा.

यूपी में जीत के जश्न के शोर में राज्य से आ रही ये आहटें दब जाएंगी. और यही युद्ध से लेकर सियासत में जीतने वाले की खासियत होती है कि वो सामने वाले को भ्रम में रखता है. योगी की जीत के बाद कानून-व्यवस्था पर काम और श्रीराम का नाम लिया जाएगा. योगी ने भी जीत के बाद सुशासन, विकास और राष्ट्रवाद को जीत की वजह बताई लेकिन कौन जाने फ्री गैस कनेक्शन, फ्री राशन, पेंशन, पीएम आवास ने कितना काम किया. क्या पता विपक्ष ध्रुवीकरण को मुद्दा बनाता रह गया और बीजेपी की 'मुफ्त' वाली योजना चल गई.

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2024 की पटकथा लिखी जा चुकी है

कुछ ज्ञानी कहेंगे कि 2022 के रिजल्ट ने 2024 के नतीजों को तय कर दिया है.
चार राज्यों में जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

चुनाव नतीजे आने के बाद मोदी ने जो कहा है उसे समझने के लिए ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है. सबसे बड़े राज्य में विधानसभा चुनाव जीतने का फायदा तो मिलना ही है, लेकिन इस जीत से मोदी का विश्वास और बीजेपी का साहस बहुत बढ़ने वाला है. बीजेपी विरोधियों को उसके जिन एजेंडों से दिक्कत है, इन चुनाव नतीजों को बीजेपी उन मुद्दों पर एक और जनमत संग्रह मान सकती है. CAA/NRC, कथित लव जिहाद कानून, धारा 370 का हटना, कश्मीर का टूटना...इन पर बहुत शोर हुआ लेकिन अब बीजेपी मान सकती है कि पब्लिक को सब कबूल है. 2019 में 2014 से बड़ी जीत के बाद यही हुआ. 2017 के बाद 2022 में योगी की जीत के बाद यूपी में यही काम आगे बढ़ सकता है.

'पंजाब में केजरीवाल की जीत का भी फायदा भविष्य में बीजेपी को ही हो तो चौंकिएगा नहीं'. ऊपर लिखी इस बात से आप चौंके हैं तो इन सवालों के जवाब ढूंढिएगा-

  • केजरीवाल किसकी कीमत पर सीढ़ियां चढ़ रहे हैं?

  • पंजाब में उन्होंने किसे हराया है?

  • कल गुजरात चुनाव में AAP कुछ हासिल करती है तो कौन सी पार्टी है जो तीसरे नंबर पर धकेल दी जाएगी?

  • कांग्रेस मुक्त भारत वाला एजेंडा किसका है?

  • और जब देश में मोदी Vs केजरीवाल में चुनने की नौबत आई तो पलड़ा किसका भारी होगा? दोनों का सियासी प्लेबुक एक है. ऑरिजनल सबको भाता है.

कुल मिलाकर केजरीवाल 'मोदी Vs कोई नहीं' की स्थिति बनाने में मदद ही पहुंचा सकते हैं. विपक्ष और खासकर कांग्रेस की दिक्कत ये है कि बीजेपी के चौसर को समझना तो दूर, देखने तक की सलाहीयत खो चुकी है. एक तरफ आपस में लड़ता कमजोर, अकर्मण्य विपक्ष है और दूसरी तरफ पूरे तन-मन-धन से लड़ती बीजेपी. 2024 ही नहीं आगे की भी पटकथा लिखी जा चुकी है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 10 Mar 2022,12:48 AM IST

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