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देश में लोकसभा चुनाव के दूसरे फेज की वोटिंग 18 अप्रैल को होने जा रही है. कई लोग ऐसे भी हैं, जो चुनाव के समय अपने घर से दूर हैं और वोट डालने के लिए उन्हें घर आना पड़ता है.
कई लोग ऐसे हैं, जिन्हें ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाती, जिस वजह से वे वोट नहीं डाल पाते. ऐसे में क्विंट की पापरी दास ने अपने विचार साझा किए हैं.
उन्होंने बताया कि वह 27 वर्ष की हैं और अपनी जिंदगी में आज तक वोट नहीं डाल पाईं, क्योंकि वे अपनी पढ़ाई-लिखाई और नौकरी की वजह से घर से दूर रह रही हैं.
उन्होंने कहा, ''अगर आप 2011 की जनगणना देखें, तो मेरी तरह 139 मिलियन लोग हैं, जो देश के भीतर कई कारण से प्रवासी हैं (एक राज्य में ही जाने वाले या राज्य से बाहर गए लोगों सहित).तो ऐसे में क्या है, जो मुझ जैसे आंतरिक प्रवासियों को उनके मतदान के अधिकार का प्रयोग करने पर रोक लगा रहा है? पैसा और समय.''
चुनाव ड्यूटी पर तैनात वोटर, सर्विस वोटर और स्पेशल वोटर, भारतीय सेना या भारत सरकार के कर्मचारी, निर्वाचन क्षेत्र से दूर तैनात कर्मचारी अपवाद वाली कैटेगरी में आते हैं.
पापरी का कहना है, ''मैं इनमें से किसी कैटेगरी में नहीं आती हूं. मैं अपना वोट तब तक नहीं डाल सकती, जब तक कि मैं अपनी वोटर आईडी/वोटर सूची में लिखे गए पते पर खुद न पहुंच जाऊं.''
उन्होंने बताया, '‘वोट डालने के लिए मुझे अपने काम से कम से कम तीन दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी और नई दिल्ली से पश्चिम बंगाल के लिए ट्रेन या फ्लाइट बुक करानी होगी. इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 5,000 रुपए तक का खर्चा लग ही जाएगा.’'
ये आंकड़ा भारत के 43.37 करोड़ लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है. एक नागरिक के रूप में अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए किसी भी प्रकार का पोल टैक्स क्यों होना चाहिए?
वहीं NRI लोगों के लिए वोटिंग के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विदेश में रहने वाले भारतीय भी 2017 की अप्रवासी प्रॉक्सी वोटिंग की एक विधि के जरिए अपने स्थान से चुनावों में वोट डाल सकते हैं.
तो ऐसा क्या है, जो देश में 139 मिलियन आंतरिक प्रवासियों के लिए प्रॉक्सी वोटिंग पर कभी विचार नहीं किया गया?
इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए पापरी पूर्व उप चुनाव आयुक्त विनोद जुत्शी के पास गईं. उन्होंने पापरी को बताया:
जो लोग एक अलग निर्वाचन क्षेत्र में चले गए हैं, सिस्टम उन्हें फॉर्म 6 के माध्यम से अलग मतदाता सूची में खुद को रजिस्टर कराने की अनुमति देता है.
जब पापरी को पता लगा कि वह अपना नाम एक नई मतदाता सूची में दर्ज करवा सकती हैं, तो वह काफी हैरान थीं.
विनोद जुत्शी ने उन्हें बताया, ''आप जब भी दूसरी जगह जाते हैं, तो आपको उस निर्वाचन क्षेत्र के इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन अधिकार से अनुरोध करना होगा कि वह आपका नाम उस विशेष निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज कर दें और पिछले निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची से आपका नाम हटा दे.''
इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जा सकता है, जब तक कि आप नई जगह का एड्रेस प्रूफ न पा लें. पते के प्रमाणपत्र में कोई भी सरकारी पहचान पत्र, जैसे पासपोर्ट, आधार आदि या बैंक की पासबुक या आपके नाम का बिजली, गैस कनैक्शन का बिल शामिल है.
अगर किसी ने नए निर्वाचन क्षेत्र में अपना नाम रजिस्टर नहीं करवाया है, तो वे अपना वोटिंग का अधिकार खो सकता है.
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