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हिन्दी सिनेमा यानी बॉलीवुड (Bollywood) दिलीप कुमार (Dilip Kumar) के बिना हमेशा अधूरा रहेगा. उनके निधन से जो खालीपन भारतीय सिनेमा में आया है उसे भरा नहीं जा सकता. दिलीप साहब एक ऐसी शख्सियत थे जिनकी फैन्स की लिस्ट में देश-दुनिया के आम लोगों के साथ-साथ बॉलीवुड की महान शख्सियतों के नाम भी हैं.
जावेद अख्तर ने दिलीप कुमार की ऑटोबायोग्राफी “द सब्स्टेंस एंड द शैडो” के लॉन्च के दौरान कहा था कि दिलीप कुमार के बारे में कहा था “संस्कृत जो एक महान भाषा है. इसका इतिहास हजारों साल पुराना है. उसकी ग्रामर यानी व्याकरण को पिरानों का एक विद्वान ने किया है. उन्हीं के अनुसार यह तय हुआ कि यह जो लिखा है वह सही, ये ऐसा लिखा जाएगा और ऐसे पढ़ा जाएगा. उस विद्वान का नाम है पाणिनी. युसुफ साहब आप हिंदुस्तान की फिल्म एक्टिंग के आप पाणिनी हैं. आपने ने इंडियन सिनेमा को कोडिफाइ करने का काम किया है. यही वजह है कि पीढ़ी दर पीढ़ी और पीढ़ी दर पीढ़ी एक्टर्स आपसे प्रभावित हैं. युसुफ साहब से राइटर और डायरेक्टर भी सीखते थे. युसुफ साहब ने इंडस्ट्री से बाहर समाज में और सोसायटी में एक गहरी छाप छोड़ी है. जावेद अख्तर ने इन लाइनों से दिलीप साहब को नवाजा था. “आने वाली नस्लें तुम पर नाज करेंगी, ऐ लोगों जब उनको ये ध्यान आएगा तुमने दिलीप को देखा था.”
अमिताभ बच्चन ने दिलीप कुमार पर बात करते हुए बॉलीवुड हंगामा पर कहा था कि इंडस्ट्री को दिलीप कुमार के पहले और बाद में रूप में याद किया जाएगा. दरअसल जब उनसे पूछा गया कि आपकी नजर में इंडस्ट्री का सबसे बेहतरीन अभिनेता कौन रहा है? तब बिग बी ने कहा था कि मेरी लिए तो दिलीप साहब सबसे बेहतरीन एक्टर हैं. वो मेरे लिए आइडियल हैं. 'गंगा-जमुना' उनकी बेहतरीन फिल्मों से एक है. ये उनकी महानता ही है कि वे सबको इज्जत देते हैं. सेट में वो काफी संजीदा थे, सबका ध्यान रखते थे, किसी को असहज नहीं होने देते थे अगर कोई होता था तो उसे स्पेस देते थे.
दिलीप साहब की आत्मकथा के लॉन्च के दौरान बिग बी ने कहा था कि-
एक किस्सा सुनाते हुए बच्चन ने कहा कि एक बार रात को दो बजे वो सलीम साहब और जावेद अख्तर के साथ दिलीप कुमार जी के घर पहुंच गए. जाहिर तौर पर वो सो रहे थे लेकिन वे नीचे आए और तब हमने उनसे कहा कि हम कुछ ही देर उनसे बात करना चाहते हैं. लेकिन उन्होंने पूरी रात या यू कहें कि पूरी सुबह लगभग 4 बजे तक हमारे साथ बातें की.
दिलीप कुमार के निधन के बाद बिग बी ने अपने ट्वीट में लिखा कि “एक संस्था चली गई.. भारतीय सिनेमा का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, वह हमेशा ‘दिलीप कुमार से पहले और दिलीप कुमार के बाद' लिखा जाएगा.. मेरी दुआएं हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति मिले.. गहरा दुख हुआ..
इसके बाद एक और ट्वीट में बच्चन ने लिखा है कि “An epic era has drawn curtains... Never to happen again..”
आमिर खान ने दिलीप कुमार की ऑटोबायोग्राफी के लॉन्च के दौरान कहा था कि मुझको लगता है कि मेरे से बड़ा फैन दिलीप कुमार का इंडस्ट्री में कोई हो ही नहीं सकता. मैं उनकी हर फिल्म कई दफा देख चुका हूं. जब भी मैं उनकी फिल्म देखता हूं, नए दिलीप कुमार को पाता हूं. मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है.
धर्मेंद से एक बार जब इंडियन आइडल प्रोग्राम में पूछा गया कि आप किसके फैन हैं तब उन्होंने कहा कि एक ही महान इंसान हैं दिलीप साहब. मैं नौकरी करता, साइकल से आता-जाता और जब भी आइने में खुद को देखता तो ये पूछता कि क्या मैं दिलीप कुमार बन सकता हूं? मेरी चाहत का जवाब दिलीप साहब ने बखूबी दिया, वे मुझे बेपनाह प्यार करते थे. एक्टर तो वो थे ही ग्रेट लेकिन इंसान भी महान थे. रिश्तों के नाम नहीं होते. सायरा जी जब भी बिरयानी बनाती तो मुझे बुलाती थीं, जब मैं वहां जाता तो दिलीप साहब मेरे प्लेट में दो चम्मच तो खुद के प्लेट में चार चम्मच डालते थे. ऐसे में सायरा जी बस उन्हें देखती रह जाती. दिलीप जी ने मुझे बहुत प्यार दिया.
वहीं दिलीप कुमार की किताब लॉन्च के कार्यक्रम में धर्मेंद्र ने कहा था कि इस इंडस्ट्री के सबसे चमकदार सितारे से रोशनी चुराकर मैंने अपनी हसरतों के दिए की लौ को रोशन किया है. आधी सदी से भी ज्यादा का वक्त हो गया है इस बात को एक नेक रूह से मेरी रूह का परिचय हुआ था. पर्दे पर राम (दिलीप कुमार) के किरदार को देखकर मैं मुग्ध हो गया था. जीप पर तिरंगा लिए हुए उनका सीन मेरे दिल को भेद गया और यहीं से मैंने इंडस्ट्री में आने का मन बनाया. सिनेमाघर के बाहर आकर मैं उनके पोस्टर को देखता रहा. उन्हें देखकर लगा कि कहीं ये मेरा भाई तो नहीं है. मैंने सपने भी नहीं सोचा था कि इस अजीम फनकार के घर में, पठान (दिलीप कुमार) परिवार में पंजाब का यह जाट (धर्मेंद्र) एक चहेता सदस्य बन जाएगा और ऐसे आना-जाना शुरु हो गया.
जितेन्द्र का कहना है कि दिलीप साहब 60-65 सालों से अधिक वक्त से इंडस्ट्री को रोल किया है. दिलीप साहब हरफनमौला हैं. इन्होंने हर किस्म के रोल किए हैं. जब इन्होंने कॉमेडी कि तो ऐसा लगा कि इनसे बढ़िया कोई कॉमेडियन नहीं है. मैं 1955-56 से इनकी फिल्में देख रहा हूं. युसुफ साहब की हर फिल्म मैं कम से कम 15 बार देखता था. घर से भाग कर मैं इनकी फिल्में देखता था. मैं उनका कट्टर फैन था, उनको खुदा मानता था. जब मैं एक्टर बना और एक स्टूडियो से बाहर निकला तो दिलीप साहब को देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया. लेकिन दिलीप साहब ने ऐसा महसूस ही नहीं होने दिया कि वो इतने महान और बड़े अभिनेता है. उन्होंने छोटे भाई कि तरह मुझे तुरंत गले लगा लिया. उस मैं अपनी पहली फिल्म की शूटिंग कर रहा था और वो राम और श्याम की शूटिंग कर रहे थे. उसके बाद से मेरी उनकी लगातार मुलाकात होने लगी और उनके साथ हुई हर मुलाकात में मुझे कुछ न कुछ सीखने को मिला.
शत्रुघ्न सिन्हा ने दिलीप साहब के बारे में कहा था कि वो अपने आप में एक इंस्टीट्यूशन हैं. उनका तजुर्बा, उनका परफॉर्मेंस, उनकी बातें. उन्हें तो शहंशाहे-ए-जस्बात भी कहा जाता है. कई लोग उन्हें कॉमेडी किंग, ट्रैजडी किंग कहते हैं. लेकिन मेरी नजरों में वो किंग कॉन्ग हैं.
अक्षय कुमार ने उनके निधन के बाद लिखा है कि “दुनिया के लिए कई अन्य हीरो हो सकते हैं. हम एक्टर्स के लिए, वह हीरो थे. दिलीप कुमार सर में भारतीय सिनेमा का एक पूरा युग था. मेरी भावनाएं और प्रार्थनाएं उसके परिवार के साथ हैं. ओम शांति”
सुनील दत्त ने “जीना इसी का नाम है” कार्यक्रम के दौरान कहा था कि जब वो रेडियो में काम करते थे तब उनकी मुलाकात दिलीप साहब से हुई थी. उस समय दिलीप कुमार से मिलने से पहले 100 दफा सोचना पड़ता था कि दिलीप साहब से मिलने जाना है. क्या बात करेंगे? क्या पूछेंगे? लेकिन दिलीप साहब के घर में मुझे सभी लोग बहुत प्यार करते थे. इस कार्यक्रम में खुद दिलीप कुमार ने कहा था कि “मेरे घर में मुझसे ज्यादा प्यार सुनील को मिलता था.”
वहीं सुनील दत्त ने कहा था कि जब मैं पहली बार फिल्म के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट देने गया था. तब दिलीप साहब की ही ड्रेस मुझे दी गई थी. मैं और दिलीप साहब पड़ोसी हैं, इस नाते इनके घर आना-जाना लगा रहता था. सायरा जी और दिलीप साहब ने मुझे बच्चे जैसा प्यार दिया है. जब इन्हें मेरी तकलीफ के बारे में पता चलता तब इनकी आंखों में भी आंसू होते थे. वहीं सायरा बानो और दिलीप कुमार कहते हैं कि सुनील ने काफी कष्ट देखे हैं. इनके लिए हमारे घर में दुआएं भी होती थीं.
दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा की ऐसी महान आत्माओं में से हैं, जिन पर कभी भी स्टारडम हावी नहीं रहा. वे हमेशा विनम्र रहे हैं. इतनी सफलता और इंडस्ट्री में अच्छा-खासा कद होने के बावजूद भी घमंड उनसे कोसों दूर रहा. उनकी यही खासियत उनको और महान बनाती है.
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