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कनाडा अब भारतीय छात्रों को क्यों आकर्षित नहीं कर रहा? डिप्लोमेटिक तनाव के अलावा भी कई वजह

क्या कनाडा में रहने के लिए महंगा जीवनयापन भी रुकावट बन रही है? क्विंट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से की बात

आकृति हांडा
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>डिप्लोमेटिक टेंशन के अलावा,कनाडा अब क्यों भारतीय छात्रों को आकर्षित नहीं कर रहा?</p></div>
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डिप्लोमेटिक टेंशन के अलावा,कनाडा अब क्यों भारतीय छात्रों को आकर्षित नहीं कर रहा?

(फोटो: क्विंट हिंदी/@Kamran Akhter)

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"कनाडा (Canada)में भारतीयों की सुरक्षा के बारे में पूछताछ करने के लिए मेरे पास कुछ भावी छात्र पहुंचे, इससे पहले मैंने ऐसी चिंता के विषय के बारे में किसी से नहीं सुना था.." ये बातें टोरंटो स्थित लेखिका और इमिग्रेशन अवेयरनेस की वकालत करने वाली सिंधु महादेवन ने क्विंट हिंदी को बताई.

महादेवन कहती हैं कि "भले ही राजनयिक तनाव ने एक भूमिका निभाई, लेकिन यह निश्चित रूप से सिर्फ एकमात्र कारण नहीं है."

बता दें कि विदेश में पढ़ाई के लिए भारतीय छात्रों की सबसे पहली पसंद में से एक कनाडा अब पीछे होता जा रहा है.

इमिग्रेशन मिनिस्टर, मार्क मिलर के अनुसार, कनाडा में स्टडी परमिट के लिए आवेदन करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2023 की तीसरी तिमाही की तुलना में अक्टूबर-दिसंबर 2023 तिमाही में 86 प्रतिशत कम हुई है. यह 2022 की समान तिमाही की तुलना में लगभग 80 प्रतिशत कम थी.

भारतीय छात्रों को जारी किए गए स्टडी परमिट की संख्या में उसी वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही की तुलना में 2023 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में लगभग 86 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई

(डाटा: IRCC)

कनाडाई रियल-एस्टेट फर्म बेटर डवेलिंग की एक और रिपोर्ट बताती है कि यह प्रवृत्ति 2023 की दूसरी छमाही में बढ़ी थी. कनाडाई सरकार ने जुलाई-अक्टूबर 2023 तिमाही में भारतीय नागरिकों के लिए लगभग 87,000 नए स्टडी परमिट दिए, जबकि 2022 में इसी तिमाही के लिए 146,000 आवेदन प्रोसेस किए थे - मतलब साल-दर-साल इसमें 41 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.

भले ही राजनयिक संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं, कनाडा भारतीय छात्रों के लिए चमक क्यों खो रहा है? गिरावट के पीछे और दूसरे कारण क्या हैं?

भारतीय छात्र कनाडा जाने के इच्छुक क्यों नहीं हैं?

इंडियन स्टूडेंट्स मोबिलिटी रिपोर्ट 2023 के अनुसार, लगातार चार वर्षों (2018-2022) में भारतीय छात्र अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया से ज्यादा कनाडा गए थे.

इमिग्रेशन, रिफ्यूजी और सिटिजनशिप कनाडा (आईआरसीसी) के मुताबिक, 2022 में कनाडा द्वारा जारी किए गए 5.5 लाख नए स्टडी परमिटों में से लगभग 41 प्रतिशत या 2.26 लाख छात्र भारत से थे.

इससे पता चलता है कि 2015 के बाद से कनाडा में हर साल अध्ययन परमिट पाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या लगभग सात गुना बढ़ गई है.

(डाटा: IRCC)

हालांकि, नवंबर 2023 तक जारी किए गए लगभग 5.8 लाख नए स्टडी परमिटों में से, भारतीय छात्रों के पास 2.15 लाख से अधिक परमिट या कुल का 37 प्रतिशत हिस्सा था.

महादेवन कहती हैं, ''[हरदीप सिंह] निज्जर के मामले के बाद और तनावपूर्ण डायलॉग ने निश्चित रूप से छात्रों को चिंतित कर दिया है.''

पिछले साल सितंबर में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में बयान जारी कर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को भारतीय एजेंटों से जोड़ा था. प्रतिबंधित संगठन खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख निज्जर की 18 जून 2023 को कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में एक गुरुद्वारे के बाहर दो नकाबपोश लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

रजिस्टर्ड कैनेडियन इमिग्रेशन कंसल्टेंट अर्ल ब्लैनी ने क्विंट हिंदी को बताया कि द्विपक्षीय तनाव और सरकार की बार-बार दी गई चेतावनियों के कारण भारतीय माता-पिता के बीच एंटी कनाडा सेंटिमेंट पैदा हो सकती है.

दूसरी बात, ट्रूडो की टिप्पणियों के बाद नई दिल्ली में कनाडाई दूतावास से 41 राजनयिकों के निलंबन ने वीजा आवेदनों की प्रोसेसिंग को कम करने में योगदान दिया है. हालांकि, अधिकांश प्रोसेसिंग भारत में स्थानीय स्तर पर लगे कर्मचारियों द्वारा की जाती है, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि वीजा प्रोसेसिंग कैसे प्रभावित होती है.
अर्ल ब्लैनी, रजिस्टर्ड कैनेडियन इमिग्रेशन कंसल्टेंट

लेकिन दूसरे फैक्टर भी हैं. ज्यादातर भारतीयों के लिए, विदेश में पढ़ाई एक बड़ा निवेश है और यह अंतरराष्ट्रीय छात्रों और उनके परिवारों में "असाधारण रूप से जोखिम से बचने" वाली प्रवृत्ति बनाता है. महादेवन ने एक एडुकेशन प्रोग्राम को सार्थक नौकरी में बदलने के संबंध में बताया, वे वहां पैसा खर्च नहीं करना चाहेंगे, जहां वे इसके फायदे के बारे में निश्चित न हों.

वो आगे कहती हैं कि कोविड-19 के बाद स्थायी निवासी (पीआर) हासिल करने की प्रक्रिया और अधिक कठिन हो गई है.

जब भारतीय छात्र कनाडा आते हैं, तो यह केवल स्टडी परमिट हासिल करने के बारे में नहीं होता. उनका उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से स्थायी निवास (पीआर) का दर्जा प्राप्त करना है, अर्ल ने बताया कि यह तीन चरणों वाली प्रक्रिया है - 1. स्टडी परमिट , 2. पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट (पीजीडब्ल्यूपी), जो आपको कनाडा में तीन साल तक काम करने की अनुमति देता है, और 3. परमानेंट रेजिडेंस

अर्ल ने कहा, "हालांकि, पीआर में बदलने के लिए सफलता दर बेहद कम है, पिछले साल ये सिंगल डिजिट से भी नीचे था."

उन्होंने आगे कहा कि जो लोग ऐसा नहीं कर पाते, उन्हें अनधिकृत सलाहकारों (कंसल्टेंट), अनैतिक भर्तीकर्ताओं (रिक्रूटर) आदि जैसे बुरे लोगों द्वारा शोषण का जोखिम उठाना पड़ता है.

कनाडा की अपनी ही समस्या है

कनाडा घरों की भारी कमी से जूझ रहा है, जिसके कारण देश के लगभग हर हिस्से में आवास की कीमतें बढ़ गई हैं. और ये खबरें सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से फैल रही हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, बेटर डवेलिंग के सह-संस्थापक स्टीफन पुनवासी भारतीय छात्रों की संख्या में गिरावट को भारत और कनाडा के बीच तनावपूर्ण राजनयिक संबंधों के परिणाम के रूप में नहीं देखते हैं;

पुनवासी कहते हैं, "अधिक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय छात्र सोशल मीडिया पर कनाडा में उनके सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में पोस्ट कर रहे हैं, विशेष रूप से रहने के हाई कॉस्ट और वादे के मुताबिक मौकों की कमी के बारे में बता रहे हैं."

इसके अलावा, कनाडाई एडुकेशनल टेक कंपनी अप्लाईबोर्ड द्वारा शीर्ष स्तरीय भारतीय मीडिया के एक भावनात्मक विश्लेषण में पाया गया कि अप्रैल और अगस्त 2023 के बीच, कनाडा में आवास के बारे में लिखे गए लेखों की संख्या पिछले साल की समान अवधि की तुलना में पांच गुना बढ़ गई.
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साथ ही, नेगेटिव माने जाने वाले कंटेट 12 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गए, जिसमें भारतीय छात्रों की वित्तीय कठिनाइयों और बेरोजगारी की चुनौतियां बार-बार सामने आ रही हैं.

महादेवन इस बात से सहमत हैं कि, "कनाडा में आप्रवासी छात्रों को होने वाली कठिनाइयों की खबरें, भारत से कनाडा आने वाले कैंडिडेट्स तक पहुंच रही हैं. यह निश्चित रूप से कनाडा में पढ़ने के इच्छुक भारतीय छात्रों के दिमाग पर असर डाल रही है."

रहने के संकट का मुकाबला करने के लिए, कनाडा के इमिग्रेशन मिनिस्ट्री ने पिछले हफ्ते विदेशी छात्रों के प्रवेश पर दो साल रोक लगाने की घोषणा की, और कहा कि आने वाले वर्ष में यह 360,000 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को प्रवेश नहीं देगा - मतलब 2023 की तुलना में 35 प्रतिशत की कमी .

इसके अलावा, इमिग्रेशन मंत्री मार्क मिलर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "असल में भारत के साथ हमारे संबंधों ने भारत के कई आवेदनों को संसाधित करने की हमारी क्षमता को आधा कर दिया है." हालांकि, यह सीमा पोस्ट ग्रैजुएट और पीएचडी स्टूडेंट्स या एलिमेंट्री या सेकेंडरी स्कूल के स्टूडेंट्स पर लागू नहीं होगी.

मिलर ने कहा कि ज्यादा स्टूडेंट्स के आने से आवास, स्वास्थ्य सेवा और अन्य सेवाओं पर दबाव पड़ रहा है. अंतर्राष्ट्रीय छात्रों सहित आप्रवासियों की भारी संख्या ने रहने की जगहों पर इतना अधिक दबाव डाला है कि किराए के लिए पर्याप्त यूनिट नहीं हैं

कनाडा में रहने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या में साल दर साल वृद्धि हुई है, केवल 2020 में COVID-19 प्रकोप के दौरान गिरावट दर्ज की गई

(डाटा: IRCC, मीडिया रिपोर्ट)

सीबीसी की एक रिपोर्ट से पता चला है कि हर महीने $1,000 (83,130 रुपये) से कम के किराये वाले अपार्टमेंट की तलाश कर रहे स्टूडेंट्स को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था.

हालांकि, महादेवन का तर्क है कि बढ़ते किराए के लिए जवाबदेह हाउसिंग क्राइसिस भारतीय छात्रों के कारण नहीं है. "हाउसिंग क्राइसिस के दो पहलू हैं - डिमांड साइड की बात करें तो, आप्रवासियों की संख्या हर साल बढ़ रही है; और आपूर्ति पक्ष की बात करें तो, कनाडा जरूरत के मुताबिक निर्माण नहीं कर रहा है. वह बताती हैं कि भारतीय छात्र वहां की मांग का हिस्सा हैं लेकिन निश्चित रूप से संकट का कारण नहीं हैं."

कनाडाई सरकार ने यह भी घोषणा की कि स्टडी परमिट के नए आवेदकों को अब C$20,635 (12.8 लाख रुपये) की वित्तीय क्षमता (जीवनयापन की लागत को कवर करने के लिए) दिखानी होगी - मतलब C$10,000 (6.2 लाख रुपये) की मौजूदा राशि के दोगुने से भी अधिक.

इस कदम का स्वागत करते हुए महादेवन ने क्विंट हिंदी से कहा:

"हालांकि जीवन यापन की लागत में लगातार बढ़ोतरी हुई है, पिछले 10 सालों में फंड की जरूरत के सबूत नहीं बदले हैं. इस असमानता के कारण कुछ अप्रवासी छात्र कनाडा में रहने के लिए वित्तीय रूप से तैयार नहीं हैं. जबकि एडजस्टमेंट की बहुत जरूरत थी,क्योंकि यह आने वाले भारतीय छात्रों को हतोत्साहित कर सकता है ”

भारतीय छात्र क्या कर सकते हैं?

कनाडा में पढ़ाई को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच, भारतीय छात्र अन्य विकल्पों की तलाश में हो सकते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी और आयरलैंड के बाद अमेरिका और यूके पसंदीदा विकल्प के रूप में उभर रहे हैं.

हालांकि, न्यूयॉर्क स्थित इमिग्रेंट वकील अदिति पॉल ने चेतावनी दी है कि इससे विदेशी छात्रों को स्कैम के जरिए टार्गेट किया जा सकता है. ऐसे स्कैम उन्हें अमेरिका के अवैध विश्वविद्यालयों में कोर्स कराने की ओर ले जा सकता है, जहां उन्हें गैर-मौजूद या घटिया पढ़ाई के लिए हाई ट्यूशन फीस का भुगतान करना पड़ता है.

वह "पहले दिन के सीपीटी घोटाले" को याद करती हैं, जिसने उन अंतरराष्ट्रीय छात्रों को प्रभावित किया था जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अमेरिका में वर्क परमिट हासिल करने में असमर्थ थे.

2019 में, 'मिशिगन में फार्मिंगटन यूनिवर्सिटी' के नाम से एक संस्थान ने छात्रों को क्लास में हिस्सा लेने की आवश्यकता के बिना सीपीटी (करिकुलम प्रैक्टिकल ट्रेनिंग, जो एफ 1 वीजा धारकों को एक वर्ष के लिए अमेरिका में रहने की अनुमति देता है) नामांकन की पेशकश करने का दावा किया था. उस साल एक जांच से पता चला कि यूनिवर्सिटी एक दिखावा था, जिसमें कोई फैकल्टी, कोर्स या शैक्षणिक प्रतिबद्धता नहीं थी.

वहीं, जबकि एफ1 वीजा पर कोई लिमिट नहीं है, ग्रेजुएशन के बाद अमेरिका में काम करने के लिए एच1-बी वीजा हासिल करना सीमित स्लॉट (लगभग 65,000 - 85,000 प्रति वर्ष) और लॉटरी सिस्टम के कारण बेहद चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. सेलेक्ट होने पर भी, आप्रवासियों को जिस कंपनी में नौकरी करते हैं उन्हें ग्रीन कार्ड के लिए अप्लाई करने के लिए राजी करना होगा, जिससे उन्हें एच1-बी की छह साल की लिमिट से ज्यादा काम करने की इजाजत मिल सके.

पॉल टिप्पणी करते हुए कहते हैं, "टेक सेक्टर में लगातार छंटनी और ग्रीन कार्ड के लिए व्यापक बैकलॉग, विशेष रूप से भारतीय नागरिकों के लिए, अप्रवासियों की जिंदगी को बेहद चुनौतीपूर्ण बना देता है." उनका दावा है कि कैपिंग करने से नौकरी बाजार में मांग-आपूर्ति संतुलन सुनिश्चित होगा और आप्रवासियों को ऐसी स्थितियों से बचाया जा सकेगा.

ब्लैनी ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया भारतीय छात्रों के बीच एक लोकप्रिय एडुकेशन डेस्टिनेशन के रूप में उभर सकता है, लेकिन उन्होंने कहा कि ये रुझान 2024 की पहली तिमाही के बाद स्पष्ट हो जाएंगे क्योंकि विदेशी छात्रों के प्रवेश की जांच करने के उपाय 1 जनवरी से प्रभावी हैं.

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