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चुनावों में टीम केजरीवाल की फतह के बाद दिल्ली नगर निगम (Delhi MCD) ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 16 हजार करोड़ रुपये से अधिक का बजटीय प्रस्ताव पेश किया है. इस बजटीय प्रस्ताव में सफाई के लिए एक-चौथाई से अधिक धनराशि आवंटित की गई है. हालांकि इन सबके बीच MCD के नए मेयर के चुनाव को लेकर संशय बना हुआ है.
हम आपके लिए लेकर आए हैं एक एक्सप्लेनर, जहां आपको आसान शब्दों में इन सवालों के जवाब मिलेंगे-
MCD का गठन कब और क्यों किया गया?
MCD कैसे काम करता है?
उसकी क्या जिम्मेदारियां होती हैं?
MCD का बॉस कौन है? दिल्ली सरकार या केंद्र?
MCD के लिए बजट कहां से आता है?
MCD का खजाना कितना मजबूत है?
MCD यानी दिल्ली नगर निगम 1958 में सामने आया था. इस नागरिक निकाय को दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 द्वारा बनाया गया था. तब MCD में 80 पार्षद थे. उस समय इसमें दिल्ली जिला बोर्ड, दिल्ली सड़क परिवहन प्राधिकरण, दिल्ली राज्य बिजली बोर्ड और दिल्ली संयुक्त जल और सीवेज बोर्ड जैसी बॉडी भी शामिल थी.
अगले 10 साल तक ये तीन नगर निगम काम करते रहे. लेकिन फिर 17 अक्टूबर 2022 को, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक परिसीमन आदेश जारी किया और 272 पार्षदों और वार्डों को घटाकर 250 कर दिया गया, और तीनों नगर निगमों को एक बार फिर से दिल्ली नगर निगम के रूप में पूरी तरह से एकीकृत कर दिया गया. MCD के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि दिल्ली की आबादी बढ़ने के बावजूद पार्षदों की संख्या कम हुई है.
हर 5 साल में दिल्ली के सभी वार्ड (वर्तमान में 250) से पार्षद चुने जाते हैं. इस चुनाव से यह तय होता है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी MCD में सत्ता में रहेगी. MCD अधिनियम, 1957 की धारा 35 के अनुसार प्रत्येक वित्तीय वर्ष की शुरुआत में निगम को अपनी पहली बैठक में मेयर का चुनाव एक साल के लिए करना होता है. इसी मेयर की अध्यक्षता में पार्षदों का यह दल अधिनियम में बताई गयी जिम्मेदारियों को पूरा करता है, उसके संबंध में निर्णय लेता है.
निगम को अपना टैक्स वसूलने का और अपना बजट तैयार करने का अधिकार होता है.
कानून में मेयर की शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ उल्लेख है. इसके अनुसार निगम को हर महीने कम से कम एक बार बैठक करनी होती है, जिसकी अध्यक्षता मेयर करता है. मेयर के पास कम से कम एक-चौथाई पार्षदों के लिखित अनुरोध पर, निगम की एक विशेष बैठक बुलाने की शक्ति है. मेयर की अनुपस्थिति में, डिप्टी मेयर उनकी जिम्मेदारी को संभालता है.
खास बात है कि किसी मुद्दे पर वोट बराबर रहने की स्थिति में मेयर के पास दूसरा वोट या निर्णायक वोट देने की शक्ति भी होती है.
इसके अलावा MCD में वार्ड समिति के साथ 12 जोन हैं. ये वार्ड समितियां उन खास वार्डों के सभी पार्षदों से बनती हैं. इन्हें सत्ता के विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 में जोड़ा गया था. वे जोन के स्तर पर महत्वपूर्ण प्रशासनिक निर्णय लेती हैं.
मुख्य रूप से दिल्ली MCD के कार्य वहीं हैं जो देश भर के अन्य नगर निगमों के हैं.
हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी चलाना
पानी की सप्लाई का प्रबंधन
सीवर व्यवस्था को दुरुस्त बनाए रखना
बाजारों के रखरखाव को सुनिश्चित करना
पार्कों और पार्किंग स्पेस का निर्माण और रखरखाव
सड़कों और ओवर-ब्रिजों का निर्माण और रखरखाव
60 फीट से कम चौड़ी सड़कों की सफाई
कचरा-सफाई के प्रबंधन की जिम्मेदारी
स्ट्रीट लाइटिंग सुनिश्चित करना
प्राइमरी स्कूल चलाना
संपत्ति और पेशेवर/प्रोफेशनल टैक्स वसूलना
टोल टैक्स वसूलना
श्मशान घाट का प्रबंधन
क्षेत्र के जन्म और मृत्यु रिकॉर्ड को तैयार करना
भले ही दिल्ली की अपनी राज्य सरकार है लेकिन यह एक राज्य नहीं है. देश की राजधानी होने के कारण इसकी स्थिति अन्य राज्यों से अलग है और इसके संबंध में केंद्र सरकार को कई शक्तियां दी गयी हैं. यह राज्य सरकार के साथ-साथ नगर निगम के संबंध में भी लागू होती है. हाल ही में दिल्ली के 3 नगर निगमों को एक में मिलाने के लिए लाए गए दिल्ली नगर निगम संशोधन अधिनियम ने केंद्र सरकार की शक्तियों को और बढ़ा दिया है.
इस संशोधित अधिनियम में 'सरकार' शब्द को 'केंद्र सरकार' से बदल दिया गया है. इस प्रकार अब केंद्र सरकार के प्रतिनिधि- उपराज्यपाल के पास सरकार में निहित सभी शक्तियां हैं.
इसके अलावा इस संशोधन से केंद्र सरकार ने अगले मेयर के चुनाव तक उसकी सब शक्ति और जिम्मेदारी अपने द्वारा नियुक्त एक विशेष अधिकारी को दी है. MCD में नए मेयर का चुनाव अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत तक हो सकता है. यानी तबतक लगाम केंद्र के हाथ में ही है.
MCD विभिन्न गतिविधियों और टैक्स वसूली के माध्यम से अपना राजस्व जुटाता है. इसमें प्लॉट, दुकानें, कमर्शियल बिल्डिंग, जगह-जगह लगने वाले एडवटरटाइजिंग बोर्ड पर टैक्स, बॉर्डर पर वसूला जाने वाला टोल टैक्स, नक्शा पास करने के लिए लिया जाने वाले शुल्क शामिल है.
इसके अलावा MCD को दिल्ली सरकार और केंद्र से अनुदान भी मिलता है. पांचवें वित्त आयोग की व्यवस्था के अनुसार दिल्ली सरकार अपने बजट का 12.5% हिस्सा नगर निगम को देना होता है.. इसके अलावा केंद्र सरकार का शहरी विकास मंत्रालय भी MCD को एक फंड जारी करता है.
दिल्ली के तीनों नगर निगम के एकीकरण से पहले तक तीनों वित्तीय संकट के चपेट में थे. दक्षिण MCD की तुलना में पूर्वी और उत्तरी MCD की हालत खस्ताहाल है. तीनों निगमों की अपने खुद के राजस्व से कुल वार्षिक आय लगभग 6,700 करोड़ रुपये है, जबकि उसके अपने 1.6 लाख कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का खर्च 8,900 करोड़ रुपये है.
MCD के लिए केंद्र से नियुक्त विशेष आयुक्त ज्ञानेश भारती ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 16,023 करोड़ रुपये का बजटीय प्रस्ताव पेश किया है. अगले वित्त वर्ष में MCD की कुल आय का अनुमान ₹15523.95 करोड़ का लगाया गया है, और लगभग ₹500 करोड़ के घाटे से बचने के लिए दिल्ली सरकार से पैसा लिया जायेगा. ध्यान रहे कि MCD के 250 पार्षद इस प्रस्ताव में संशोधन कर सकते हैं.
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