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Atopic Eczema Day: एटोपिक एक्जिमा डे- इस बीमारी से जूझ रहे लोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने और इस दिशा में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है. इस विषय में और अधिक रिसर्च करने, इससे जुड़े भ्रम को दूर करने और लोगों को सही जानकारी देकर छूआछूत खत्म करना जरूरी है.
क्या है एटोपिक एक्जिमा? क्या हैं एटोपिक एक्जिमा का कारण और ट्रिगर्स? जांच और इलाज के उपाय क्या हैं? एटोपिक एक्जिमा को ऐसे करें मैनेज? कैसे मिटाएं छूआछूत की भावना? बता रहे हैं एक्सपर्ट्स.
एटॉपिक डर्मेटाइटिस जिसे आमतौर पर एटॉमिक एक्जिमा भी कहते हैं, दुनियाभर में एक्जिमा के प्रमुख कारणों में से एक है. यह ऐसा क्रोनिक रोग है, जिसमें त्वचा में इंफ्लेमेशन के चलते लाल खुजलीदार चकत्ते उभरते हैं, जो शरीर के दूसरे भागों को भी प्रभावित कर सकते हैं और लगभग सभी उम्र के लोग इनसे प्रभावित होते हैं. हालांकि बच्चों में ये अधिक होते हैं.
दुनियाभर में लाखों लोग इससे पीड़ित हैं, खास कर बच्चे और युवा. इसमें त्वचा पर लाल, खुजली और जलन वाले चकत्ते पड़ जाते हैं. यह परेशान करने वाला और दर्द भरा होता है. इसे समझने के लिए इसके ट्रिगर्स को समझना जरूरी है.
इसके इलाज में कई पहलुओं का ध्यान रखना होता है. इसमें सही तरीके से स्किन केयर, ट्रिगर्स को पहचानना और उनसे बचना और कुछ मामलों में दवा लेना भी जरूरी होता है.
दुनियाभर में करीब 15 से 20% बच्चे और 1 से 3% वयस्क इससे पीड़ित हैं. अक्सर नवजात उम्र में ही इसकी शुरुआत हो जाती है और वयस्क होने तक इसके लक्षण बने रहते हैं. यह आमतौर पर बचपन में शुरू होता है, लेकिन यह बीमारी किसी को भी और किसी भी उम्र में हो सकती है.
कई लोगों को होने वाली, गैर-संचारी, पुरानी त्वचा की स्थिति के रूप में, एटोपिक डार्मेटाइटिसकी सूजन (एडी) को सभी गैर-घातक बीमारियों में 15वें स्थान पर रखा गया है. अस्थमा, हे फीवर या दूसरी एलर्जी की फैमिली हिस्ट्री वालों में इसका खतरा ज्यादा होता है.
वैसे तो इससे कोई भी पीड़ित हो सकता है, लेकिन विकसित देशों में इसके ज्यादा शिकार हैं. यह बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है और ज्यादातर मामलों में पांच साल से कम उम्र में ये डायग्नोस होता है.
एटोपिक एक्जिमा का कारण जटिल है. इसमें जेनेटिक, पर्यावरणीय और इम्यून संबंधी कई फैक्टर शामिल होते हैं.
इसी तरह धूल के कण, पालतू पशुओं के फर जैसे पर्यावरणीय कारण (environmental causes), साबुन, डिटर्जेंट जैसे इरिटेंट और तापमान में बदलाव और नमी जैसे कारक, साथ ही तनाव इसके लक्षणों को बढ़ा सकते हैं. इन ट्रिगर्स को पहचानने और इनसे बचने की जरूरत होती है.
एटोपिक एक्जिमा की जांच के लिए स्किन एक्सपर्ट यानी कि डर्मेटोलॉजिस्ट शारीरिक परीक्षण करते हैं और मेडिकल हिस्ट्री देखते हैं. इसके लिए किसी विशेष लैब टेस्ट की जरूरत नहीं होती. स्थिति की गंभीरता के हिसाब से इलाज के विकल्प आजमाए जाते हैं.
मॉइश्चराइजर और त्वचा पर लगाने वाली क्रीम से लक्षणों को कंट्रोल किया जाता है. ज्यादा गंभीर स्थिति में ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड, इम्यून सप्रेसेंट या बायोलॉजिकल थेरेपी की जरूरत भी पड़ सकती है.
एटोपिक एक्जिमा होने पर इन बातों का ध्यान रखते हुए मैनेज किया जा सकता है:
स्किन केयर: हल्का और बिना खुश्बू वाला क्लींजर और मॉइश्चराइजर प्रयोग करते हुए स्किन को हाइड्रेटेड रखें.
ट्रिगर्स से बचें: परेशानी बढ़ाने वाले ट्रिगर्स की पहचान करें और उनसे बचकर रहने की कोशिश करें.
गर्म पानी से न नहाएं: नहाने के लिए अधिक गर्म पानी का इस्तेमाल न करें क्योंकि उससे स्किन ड्राई होती है.
सही तरीके से स्किन ड्राई करें: स्किन को सुखाने के लिए रगड़ने की बजाय किसी नरम तौलिए से थपथपाएं ताकि स्किन की नमी बनी रहे.
सही कपड़े पहनें: नरम और सूती कपड़े पहनें. टाइट और रूखे कपड़े न पहनें.
तापमान और नमी का रखें ध्यान: घर में तापमान और नमी का स्तर सही रखें.
तनाव कम करें: ज्यादा तनाव से भी लक्षण बढ़ते हैं. ध्यान और योग के जरिए मन को शांत रखने और तनाव से दूर रहने का प्रयास करें.
खानपान पर दें ध्यान: कुछ लोगों को खानपान से भी आराम मिलता है. ऐसे खाने से बचें, जिनसे लक्षण ट्रिगर होते हैं और साथ ही नियमित फॉलो-अप करते रहें.
एटोपिक एक्जिमा के लक्षण त्वचा पर साफ नजर आते हैं. इसी कारण कई लोग इससे पीड़ित लोगों के साथ भेदभाव करते हैं.
एटॉपिक डर्मेटाइटिस से ग्रस्त बच्चों को स्कूलों में दूसरे बच्चे चिढ़ाते हैं और कई बार उन्हें अलग-थलग कर दिया जाता है, जिससे उनकी पढ़ाई पर भी असर पड़ता है.
इनसे बचने और इस संबंध में जागरूकता लाने की जरूरत है. लोगों को इसके इलाज और इससे बचाव के तरीकों के बारे में बताया जाना चाहिए.
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