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Mental Health: कैंसर की चुनौती का सामना करते हुए कैसे रखें मेंटल हेल्थ का ख्याल?

कैंसर रोगियों के इलाज के दौरान एक होलिस्टिक एप्रोच की जरूरत होती है.

प्रांजल तनेजा
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p><strong>कैंसर रोगी&nbsp;मेल-मिलाप नहीं कर पाते</strong></p></div>
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कैंसर रोगी मेल-मिलाप नहीं कर पाते

(फोटो:iStock)

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Mindfulness During Cancer: पिछले कई साल से कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं. यह लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करता आ रहा है. इसका असर न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है. ऐसे में कैंसर रोगियों के इलाज के दौरान एक होलिस्टिक एप्रोच की जरूरत होती है, जिससे जब बीमारी से जूझते हुए उनके दिल और दिमाग में उथल-पुथल मची हो, तो उन्हें मानसिक सुकून या राहत मिल सके.

कैंसर रोगी मेल-मिलाप नहीं कर पाते

कैंसर रोगी कई तरह की भावनाओं के तूफानों से गुजरते हैं, वे परेशान और अनिश्चितता के दौर से गुजरते हुए मानसिक पीड़ा को सहते हैं. कई बार उन्हें लगता है कि उनका अपने आप पर और अपने शरीर पर भी कोई कंट्रोल नहीं रहा है. वे समाज में दूसरे लोगों के साथ मेल-मिलाप नहीं कर पाते और यहां तक कि उन्हें कम्युनिकेशन में भी परेशानी आती है. सेल्फ केयर या अपने शौक पूरे करने में भी खुद को असमर्थ पाते हैं.

ऐसे में माइंडफुलनेस की तकनीकों को आजमाकर वे वापस इस कंट्रोल को पा सकते हैं.

इसके लिए उन्हें अपनी सांसों पर फोकस करना होता है, अपने शरीर को महसूस करना होता है, भविष्य की चिंता से खुद को बाहर लाकर वर्तमान पर ध्यान देना होता है और अपने आसपास एक सुखद माहौल की कल्पना कर उसमें खुद को डुबोना होता है.

बेशक, यह करना शुरू में मुश्किल लग सकता है, लेकिन एक समय में एक चीज पर ध्यान देकर, धीरे-धीरे आप आगे बढ़ सकते हैं.

‘वर्तमान को महसूस करना’ एक आसान प्रक्रिया है, जो लोगों को अनिश्चितता से उबरने और आगे क्या होगा जैसी बातों की चिंता के चलते अपनी भावनाओं और अनुभवों पर ध्यान दिए बगैर अगला कदम क्या हो सकता है, इस चिंता में घुलने से बचा सकती है.

माइंडफुलनेस दरअसल, ऐसी अवस्था होती है, जिसमें नॉन-जजमेंटल रवैया रखने के साथ-साथ अपने अनुभवों, विचारों और भावनाओं को लेकर अधिक सजगता का भाव पैदा होता है.

साथ ही, अपने दिमाग और शरीर को आराम की अवस्था में ले जाना होता है ताकि जिन चुनौतियों से वे जूझते आए हैं, उनसे उबर सकें और आगे आने वाले समय में जो होना है, उसके लिए खुद को तैयार कर सकें.

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ब्रेन के साथ बढ़ता है जुड़ाव 

सांसों पर ध्यान केंद्रित करना और अपनी इंद्रियों/भावों से जुड़ना, माइंडफुलनेस का बुनियादी सिद्धांत है. इससे दिमाग में सुकून का अहसास होता है. शरीर में सभी स्तरों पर अहसास बढ़ने से उन्हें अपने भीतर जो कुछ घट रहा होता है, उसे समझने में मदद मिलती है. धीरे-धीरे वे उस पीड़ा और तकलीफ को भी महसूस कर पाते हैं, जिससे वह हर दिन गुजरते हुए भी उसके प्रति अनजान रहते आ रहे होते हैं. लेकिन माइंडफुलनेस उन्हें इस पहलू के बारे में सजग बनाती है.

अपने बारे में इस सजगता के भाव के पैदा होने पर, मरीज उस कंट्रोल को वापस पाते हैं, जिसे वे खो चुके होते हैं और साथ ही, अपने अहसासों और भावनाओं पर भी उनका पूरा कंट्रोल बनता है. इसका नतीजा यह होता है कि जरूरत पड़ने पर वे खुद की देखभाल भी कर पाते हैं.

कैंसर केयर के दौरान रिलैक्सेशन की तकनीकें

कैंसर के दौरान, मरीज कई तरह की स्थितियों से गुजरते हैं. रोग के डायग्नॉसिस से लेकर इलाज पूरा होने तक मरीज कई तरह की चुनौतियों, पीड़ाओं और चिंताओं का सामना करते हैं. इसलिए यह जरूरी है कि इन स्थितियों का सामना करने के लिए वे रिलैक्सेशन तकनीकों को जानें.

  • प्रोग्रेसिव मसल रिलैक्सेशन ऐसी ही एक रिलैक्सेशन तकनीक है, जिसमें शरीर की सभी मांसपेशियां पहले तनावग्रस्त होती हैं और फिर एक-एक कर रिलैक्स होती हैं.

  • गाइडेड इमेजरी में एक ऐसे लक्ष्य की कल्पना की जाती है, जिसमें पहुंचकर मरीज को सुखद अनुभव मिल रहा होता है और वह अपने प्रति खो चुकी सिम्पथी को वापस हासिल करते हैं. इससे उन्हें अपने आगे के सफर के लिए खुद को तैयार करने में मदद मिलती है.

इस प्रकार की रिलैक्सेशन तकनीकों का शारीरिक फायदा मिलता है. मरीज का ब्लड प्रेशर कम होता है और मसल टेंशन भी घटती है, जो कि मितली आने, अनिद्रा और एंग्जाइटी जैसे हालातों में काफी फायदेमंद साबित होता है.

मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता असर

जब मरीज खुद को साइकोलॉजिकल रूप से हताश और परेशान महसूस करता है, तो उसे फिजिकल परेशानी और दर्द भी अधिक महसूस होते हैं. वह अस्पताल में हो या घर में, खुद को इस तकलीफ से दूर नहीं कर पाता है.

कैंसर के इलाज में हर तरह का नजरिया अपनाना इसीलिए जरूरी होता है ताकि मरीज के स्ट्रेस के कारणों जाहे वे शारीरिक हों, मानसिक हों या सामाजिक हों, पर काम किया जा सके. जिससे मरीज खुद के बारे में अच्छा महसूस करे.

साथ ही, उनके माइंड-बॉडी कनेक्शन को भी मजबूत बनाने की जरूरत होती है, जिससे वे खुद को मेंटल ग्राउंड पर मजबूत महसूस करें और इसका असर उनकी शारीरिक अवस्था पर भी दिखायी दे.

इस कनेक्शन को मजबूत बनाने के कुछ आसान तरकीबें इस प्रकार हैं:

  • अपने आसपास की चीजों को नोटिस करना/महसूस करना

  • अपनी सांसों पर कंसंट्रेशन बढ़ाना

  • डेली ऐक्टिविटीज जैसे ब्रश करना, सैर करना और खाने-पीने पर ध्यान देना और उनका आनंद लेना

  • परिवार के साथ समय बिताना

  • आर्ट, फोटोग्राफी, म्यूजिक जैसे शौक से जुड़ना

आधुनिक दौर में कैंसर केयर के साथ माइंडफुलनेस प्रेक्टिस और रिलैक्सेशन तकनीकों को जोड़कर होलिस्टिक केयर की दिशा में बढ़ा जा सकता है. ये ही वे महत्वपूर्ण टूल्स हैं, जो मरीज की लाइफ क्वालिटी को बेहतर बनाएंगे और उन्हें कैंसर के कारण पैदा होने वाली रोजमर्रा की चुनौतियों का सामना करने में भी मदद करेंगे.

(फिट हिंदी के लिए ये आर्टिकल फोर्टिस हेल्टकेयर के डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज के साइको-ऑन्कोलॉजिस्ट प्रांजल तनेजा ने लिखा है)

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