मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Women's Day 2024:"ऑफिस में होने वाले भेदभाव ने मुझे बनाया इंपोस्टर सिंड्रोम का शिकार"

Women's Day 2024:"ऑफिस में होने वाले भेदभाव ने मुझे बनाया इंपोस्टर सिंड्रोम का शिकार"

Workplace Discrimination: महिलाओं में वर्कप्लेस डिस्क्रिमनेशन इंपोस्टर सिंड्रोम का एक कारण बन सकता है.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Updated:
<div class="paragraphs"><p><strong>Women's Day 2024: Imposter Syndrome से जूझती महिलाएं</strong></p></div>
i

Women's Day 2024: Imposter Syndrome से जूझती महिलाएं

(फोटो: कामरान अख़्तर/फिट हिंदी)

advertisement

Women's Day 2024: "मैं मान बैठी थी कि मुझ में काबिलियत नहीं है. मेरा सेल्फ-कॉन्फिडेंस इतना कम हो गया था कि ऑफिस मीटिंग में कुछ भी बोलते हुए घबराहट महसूस होने लगी थी. स्ट्रेस में जब भी आती तो मैं खुद से बातें करने लगती."

अपने ऑफिस मैनेजर से लगातार मिल रहे नेगेटिव फीडबैक ने प्रेरणा (बदला हुआ नाम) के मेंटल हेल्थ पर ऐसा बुरा प्रभाव डाला कि वो अपने रोजाना के कामों को करने के बाद कई बार चेक करती कि उसने काम सही ढंग से किया है या नहीं?

काम का बोझ, अनरियलिस्टिक गोल्स, लगातार मिल रहा नेगेटिव फीडबैक, डिस्क्रिमिनेशन और सही मेंटरशिप नहीं मिलने से महिलाओं में इंपोस्टर सिंड्रोम हो सकता है.

ऑफिस में महिलाओं के साथ भेदभाव होना कोई नई बात नहीं है. ऐसा दशकों से चला आ रहा है, पर चिंता कि बात यह है कि 21वीं सदी में इतना आगे बढ़ने के बाद भी इस तरह की कुंठित मानसिकता समाज में जड़ जमाए हुई है.

क्या अनरियलिस्टिक गोल्स, नेगेटिव फीडबैक, डिस्क्रिमिनेशन और मेंटरशिप की कमी से होता इंपोस्टर सिंड्रोम?

महिलाएं हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहीं है. अक्टूबर, 2023 में लेबर ब्यूरो द्वारा जारी पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के नए नतीजों में महिलाओं की भागीदारी में काफी वृद्धि देखी गई थी. साल 2017-18 में भागीदारी दर 23.3% थी और 2022-23 में यह बढ़कर 37% हो गई.

लेकिन क्या वर्कप्लेस पर महिलाओं की भागीदारी दिखाने भर के लिए उन्हें नौकरी/काम दिया जा रहा है?

"मेरे पुराने वर्कप्लेस में महिला कर्मचारी की तय संख्या को पूरा करने भर के लिए, उन्हें रखा जाता था. उनके मेंटल और फिजिकल हेल्थ को नजरअंदाज कर उन्हें ऐसे मुश्किल टार्गेट्स दिये जाते थे, जिसे पूरा करना किसी भी व्यक्ति के लिए संभव नहीं होता था".
प्रेरणा, आईटी प्रोफेशनल

ऐसे हालात पर डॉ. सृष्टि साहा कहती हैं, "कई बार मान लिया जाता है कि महिला है, तो काबिल नहीं होगी या महिला है, तो उससे नहीं हो पाएगा. अक्सर ऑफिस में टोकन वीमेन रिप्रजेंटेशन के लिये महिला को पोजीशन दी जाती है न कि उनकी काबिलियत की वजह से. मर्दों के मामले में शायद ही कभी इस तरह के सवाल उठते हैं. इस तरह की टॉक्सीसिटी इंपोस्टर सिंड्रोम को बढ़ाती है.

"लगातार बढ़ा हुआ काम मैनेज करना और अनरियलिस्टिक टारगेटों (unrealistic target) को पूरा करना किसी के भी बस की बात नहीं है, चाहे वह महिला हो या पुरुष. इस वजह से लगातार मिल रहे नेगेटिव फीडबैक कि आप इफेक्टिव नहीं हैं, आप में क्षमता नहीं है, (ये जानते हुए भी कि ये सच नहीं है) स्वाभाविक रूप से मन में सेल्फ डाउट पैदा कर देता है और वो सेल्फ डाउट इंपोस्टर सिंड्रोम का कारण बनता है या उसे बढ़ाता है."
डॉ. सृष्टि साहा, कंसल्टेंट मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियोरियल साइंसेज, फोर्टिस हॉस्पिटल, आनंदपुर

जब अनरियलिस्टिक टार्गेट्स (unrealistic targets) पूरे नहीं होते थे तो प्रेरणा को यह एहसास दिलाया जाता है कि उनमें काबिलियत की कमी है. वो बस मैनेजर के अच्छे स्वभाव के कारण ऑफिस में बनी हुई हैं.

जब ऑफिस में महिला के काम, अचीवमेंट और प्रयासों को उतना वेलिडेशन नहीं मिले जितना मिलना चाहिए तब वे इंपोस्टर सिंड्रोम की शिकार हो सकती हैं.

"ऑफिस में होने वाले भेदभाव ने मुझे बनाया इंपोस्टर सिंड्रोम का शिकार" 

कलकत्ता में रहने वाली रुचिका (बदला हुआ नाम) एक प्यारी सी बच्ची की मां हैं और प्राइवेट फर्म में अकाउंटेंट का काम करती हैं. पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने इंपोस्टर सिंड्रोम के बारे में पढ़ा और पढ़ते ही समझ गई कि वो किस समस्या से गुजर रहीं हैं.

"मैं दिन रात एक डर में जी रही थी कि मैं एक फ्रॉड हूं, जिसमें काबिलियत की कमी है, और मेरी नौकरी कभी भी जा सकती है."
रुचिका, अकाउंटेंट

घर, बच्ची और ऑफिस के कामों में वे खुद को समय देना भूल चुकी थीं. रूचिका, ऑफिस से दिए सारे अनरियलिस्टिक (unrealistic) गोल पूरा करने के प्रेशर से जूझती रहतीं.

"जब भी अप्रेजल का समय आता तो मुझसे कम अनुभव और कम टारगेट पूरा करने वाले पुरुष सहकर्मी को मुझसे अधिक इंक्रीमेंट दिया जाता. मैं मैनेजर से सवाल नहीं करती पर परेशान रहने लगी थी."
रुचिका, अकाउंटेंट

रुचिका बताती हैं कि ऐसा नहीं था कि उनकी प्रोडक्टिविटी कम थी. वो 8 घंटे की शिफ्ट में अपने पुरुष सहकर्मियों जितना या उनसे अधिक क्वालिटी काम कर लेती थीं पर तब भी उनके काम को सराहा नहीं जाता था.

डॉ. सृष्टि साहा के मुताबिक महिलाओं में वर्कप्लेस डिस्क्रिमनेशन इंपोस्टर सिंड्रोम का एक कारण बन सकता है.

"अगर महिलाओं पर ज्यादा काम का प्रेशर डाल दिया जा रहा है और तब यह दिखाया जा रहा है कि उसका परफॉरमेंस अच्छा नहीं है, तो यह वर्कप्लेस डिस्क्रिमिनेशन का मामला बन जाता है."
डॉ. सृष्टि साहा, कंसल्टेंट मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियोरियल साइंसेज, फोर्टिस हॉस्पिटल, आनंदपुर

डॉ. सृष्टि साहा फिट हिंदी को बताती हैं कि अधिक काम और अनरियलिस्टिक (unrealistic) गोल मिलने की समस्याएं महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है क्योंकि उनमें असर्टिव कम्युनिकेशन की क्षमता पुरुष के मुकाबले कम होती है.

वैसे तो किसी बात या काम के लिए 'न' बोलने में सब को ही प्रॉब्लम होती है पर ये समस्या महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

ऐसा नहीं है कि इंपोस्टर सिंड्रोम केवल महिलाओं में होता है. पुरुष भी इससे प्रभावित होते हैं पर महिलाओं की तुलना में कम.

"मैं वर्क प्लेस पर थोड़ी इनसिक्योर महसूस करती थी, कई बार ऐसा लगता था कि ज्यादा काम करने से मना कर देने पर कुछ बुरा असर पड़ेगा."
रुचिका, अकाउंटेंट

डॉ. साहा महिलाओं के अंदर होने वाली एक जिद का भी जिक्र करती हैं. वो कहती हैं कि औरतें अक्सर खुद को साबित करने के लिए दिए गए काम को न नहीं कर पाती हैं और एक्स्ट्रा वर्कलोड (extra workload) ले लेती हैं, जिस कारण उन पर ज्यादा प्रेशर आ जाता है.

इंपोस्टर सिंड्रोम के लक्षण कई बार पहचान में नहीं आते

कई प्रसिद्ध और कामयाब महिलाओं ने सार्वजनिक तौर पर ये बताया है कि उन्हें इंपोस्टर सिंड्रोम है या कभी था. उनमें फेसबुक की पूर्व सी ओ ओ शेरिल सैंडबर्ग, पॉप आइकॉन लेडी गागा, शांग ची फिल्म की अदाकारा आक्वाफीना, हॉलीवुड ऐक्ट्रेस मेरिल स्ट्रीप और हैरी पॉटर की हर्मायनी यानी की एमा वॉटसन शामिल हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि इंपोस्टर सिंड्रोम के लक्षण जल्दी पहचान में नहीं आते हैं.

ये कुछ लक्षण हैं, जो इंपोस्टर सिंड्रोम में देखे जा सकते हैं:

  • आत्मविश्वास में कमी

  • अपनी योग्यता और क्षमता पर संदेह करना

  • ज्यादातर किसी सोच में डूबे रहना

  • सफल होने पर भी खुश नहीं होना

  • मन में हारने का डर रहना

  • हर काम को पर्फेक्ट करने में लगे रहना

  • लोगों के सामने बोलने में घबराहट महसूस करना

इम्पोस्टर सिंड्रोम के लक्षणों में एंग्जाइटी, स्ट्रेस और डिप्रेशन भी शामिल है.

इंपोस्टर सिंड्रोम से कैसे बचें? 

काफी सारी स्टडीज से यह पता चलता है कि इंपोस्टर सिंड्रोम औरतों में ज्यादा होता है. उनके मन में कई बार ऐसे ख्याल आते हैं कि उन्होंने अपने पोजिशन को अपनी काबिलियत से नही बल्कि छल से पाया है.

"ऐसा उनके आत्मविश्वास की कमी से होता है, जिसके पीछे सोसायटी में उनके बारे में किए जाने वाले नेगेटिव कॉमेंट्स हैं."
डॉ. सृष्टि साहा, कंसल्टेंट मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियोरियल साइंसेज, फोर्टिस हॉस्पिटल, आनंदपुर
  • यह फीलिंग समय के साथ कम होने लगती है, जब इंपोस्टर सिंड्रोम से ग्रसित महिला नकरात्मक सोच को पीछे छोड़, अपना खोया हुआ आत्मविश्वास दोबारा पा लेती हैं.

  • पॉजिटिव जर्नलिंग की मदद से भी इंपोस्टर सिंड्रोम से बाहर निकला जा सकता है.

  • अगर इन उपायों से भी समस्या का हल नहीं निकले तब प्रोफेशनल हेल्प लें चाहिए. थेरेपी से इसके मूल कारण का पता लगता है, जिससे इसका प्रॉपर सोल्यूशन निकलता है.

लेकिन सबसे जरूरी है कि महिलाएं अपने आप को काबिल समझें और खुद के अंदर कॉन्फिडेंस और पॉजिटिविटी रखें. इसके साथ साथ अपने मेंटल हेल्थ का भी खयाल रखें.

किसी एक नकारात्मक घटना की वजह से ये नहीं होता है बल्कि कई नकारात्मक घटनाओं की वजह से सेल्फ डाउट वाली परिस्थिति आती है. ये घटनाएं घर पर, दोस्तों के बीच में, ऑफिस में या कहीं भी हो सकती है.

प्रेरणा और रुचिका ने मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की मदद से खुद को इंपोस्टर सिंड्रोम के चक्रव्यूह से बाहर निकाल लिया है और अब वे अपने आसपास की महिलाओं को इंपोस्टर सिंड्रोम के बारे में जागरूक करने का काम भी करने लगीं हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 08 Mar 2024,02:42 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT