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Stroke: एशियाई देशों में क्रोनिक स्मोकर्स को कई वजहों से स्ट्रोक का जोखिम अधिक रहता है. इसमें इन देशों में धूम्रपान की लत के अलावा आबादी के स्तर पर कई जेनेटिक कारण भी जिम्मेदार होते हैं, जिनके चलते स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. कई स्टडीज से यह साबित हो चुका है कि स्मोकिंग के कारण स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है और साथ ही एशियाई आबादी दूसरे देशों की तुलना में स्मोकिंग की लत के ज्यादा आदी है.
सिगरेट के धुंए में तरह-तरह के नुकसानदायक पदार्थ होते हैं, जैसे निकोटिन और कार्बन मोनोऑक्साइड, जिनसे हमारे ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचता है और यह एथेरोस्क्लेरोसिस (आर्टरीज की दीवारों का सख्त और संकरा होना) का कारण भी बनते हैं.
इसके अलावा, एशियाई आबादी में कुछ जेनेटिक कारणों से भी स्मोकिंग के बुरे परिणाम अधिक गंभीर होते हैं. स्ट्रोक की जांच कब करवानी चाहिए, इस बारे में यह जानना महत्वपूर्ण होता है कि स्ट्रोक की स्क्रीनिंग आम आबादी के स्तर पर कोई रूटीन जांच नहीं है. लेकिन कुछ लोगों को उनके जोखिम कारकों और मेडिकल हिस्ट्री के चलते इस स्क्रीनिंग से फायदा हो सकता है.
इनमें खतरा अधिक देखा जाता है:
ऐसे लोगों को जिनकी खुद या परिवार में स्ट्रोक या ट्रांजिएंट इस्केमिक अटैक (TIA) की हिस्ट्री हो
हाई ब्लड प्रेशर के रोगी
डायबिटीज रोगी
अधिक कोलेस्ट्रॉल लेवल
हृदय रोग या एट्रियल फिब्रिलेशन
धूम्रपान या दूसरे तंबाकू पदार्थों के सेवन के आदी
मोटापा
सेडेंटरी लाइफस्टाइल
55 वर्ष से अधिक (यह जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है)
स्ट्रोक के लिए जांच (स्क्रीनिंग) आम आबादी के लिए रूटीन प्रक्रिया नहीं है. लेकिन जिन लोगों को उनके निजी जोखिम कारकों या मेडिकल हिस्ट्री के चलते स्ट्रोक का खतरा होता है उनके मामले में यह जांच उपयोगी साबित हो सकती है.
यहां कुछ उन परिस्थितियों की जानकारी दी जा रही है, जिनके मद्देनजर स्ट्रोक संबंधी स्क्रीनिंग करवायी जा सकती है:
अधिक जोखिमग्रस्त व्यक्ति: कई लोग अपनी अधिक उम्र (एडवांस एज), निजी या पारिवारिक स्ट्रोक हिस्ट्री और ट्रांजिएंट इस्केमिक अटैक (TIA), हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, दिल की बीमारी, एट्रियल फिब्रिलेशन, मोटापा, सेडेंटरी लाइफस्टाइल और दूसरे मेडिकल कंडीशंस की वजह से स्ट्रोक स्क्रीनिंग के लिहाज से उपयुक्त होते हैं.
लक्षण या चेतावनी संकेत: अगर आपको स्ट्रोक के लक्षण महसूस हों या कुछ चेतावनी वाले संकेत दिखायी दें, जैसे अचानक चेहरे, बाजू और पैरों (खासतौर से बाएं भाग में) का सुन्न पड़ना या कमजोरी महसूस होना, बोलने या समझने में कठिनाई, दिखाई देने में किसी तरह की परेशानी, तेज सिरदर्द या बिना किसी कारण के चक्कर आना और संतुलन बिगड़ने की शिकायत महसूस हो तो तुरंत मेडिकल सहायता लेना जरूरी है. ऐसे में, हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स कुछ जरूरी मेडिकल जांच कर इन लक्षणों का कारण पता लगाकर स्ट्रोक की आशंका को पहचानने की कोशिश करते हैं.
प्री-ऑपरेटिव मूल्यांकन: कुछ खास किस्म की सर्जरी या प्रक्रियाओं से पहले, जिनमें स्ट्रोक का अधिक जोखिम होता है, डॉक्टर आपको प्री-ऑपरेटिव जांच करवाने की सलाह दे सकते हैं, इसके तहत किसी व्यक्ति के स्ट्रोक संबंधी जोखिमों का मूल्यांकन और बचाव के समुचित उपायों का पालन किया जाता है.
जेनेटिक कारण: एशियाई आबादी में कुछ खास किस्म के जेनेटिक कारण मौजूद होते हैं, जिनके चलते वे स्मोकिंग के दुष्प्रभावों की चपेट में ज्यादा आते हैं. ये आनुवांशिक कारक तंबाकू के धुंए और दूसरे कई रोगों के मामले में व्यक्तिगत स्तर पर प्रतिक्रियाओं, जिनमें स्ट्रोक भी शामिल है, को प्रभावित कर सकते हैं.
जोखिम कारकों का मेल: स्मोकिंग ही अक्सर स्ट्रोक का एकमात्र कारण नहीं होता. एशियाई देशों में क्रोनिक स्मोकर्स में दूसरे कई जोखिम कारक भी मौजूद हो सकते हैं, जैसे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मोटापा या सेडेंटरी लाइफस्टाइल. इन तमाम कारकों के मौजूद होने के साथ-साथ स्मोकिंग का मेल स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है.
यह जानना जरुरी है कि स्ट्रोक की जांच का फैसला हेल्थकेयर प्रोफेशनल की सलाह से करना चाहिए. वे आपके मामले में जोखिम के कारकों, मेडिकल हिस्ट्री और दूसरे लक्षणों का मूल्यांकन करने के बाद आपको सलाह देंगे कि आपके मामले में स्ट्रोक की स्क्रीनिंग जरूरी है या नहीं.
(यह आर्टिकल फिट हिंदी के लिये फरीदाबाद, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. कुणाल बहरानी ने लिखा है.)
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