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सर्दियों में देश भर में भीषण ठंड और शीत लहर के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ते इसके बुरे प्रभाव की खबरें अक्सर सुनने को मिलती हैं. वैसे तो ठंड का मौसम ज्यादातर लोगों का पसंदीदा मौसम होता है क्योंकि इस मौसम में पौष्टिक पकवान खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने और गुनगुनी धूप सेंकने का आनंद ही कुछ और होता है. लेकिन ठंड का मौसम अपने साथ कई खतरनाक बीमारियां भी साथ लेकर आता है. इसमें विंटर स्ट्रोक यानी ब्रेन स्ट्रोक भी शामिल है.
सर्दियों में क्यों बढ़ जाते हैं स्ट्रोक के मामले? क्या हैं स्ट्रोक के लक्षण? स्ट्रोक का इलाज क्या है? स्ट्रोक से बचने के कारगर उपाय क्या हैं? स्ट्रोक का खतरा किसे अधिक होता है और क्यों? क्या विंटर स्ट्रोक और स्ट्रोक में अंतर होता है? इन सभी सवालों के जवाब आइए जानते हैं एक्सपर्ट्स से.
दूसरे मौसमों के मुकाबले ठंड के दिनों में स्ट्रोक के मामले ज्यादा सामने आते हैं. तापमान में गिरावट का प्रभाव शरीर की कार्यप्रणाली पर तेजी से पड़ता है. तापमान में कमी के चलते खून गाढ़ा होने लगता है और इससे शरीर के अंगों की सक्रियता प्रभावित होती है.
डॉ. सुचेता मुदगेरीकर ने फिट हिंदी को बताया कि ठंड के दिनों में ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है. इसके दो कारण हैं.
अत्यधिक ठंड के कारण खून गाढ़ा होकर जमने लगता है और इस वजह से ब्लड वेसल्स यानी खून की नसों में क्लॉट्स यानी थक्के बनने लगते हैं. इससे खून की नसें अवरूद्ध या बंद हो जाती हैं. इसके चलते दिमाग में पहुंचने वाला खून का प्रवाह बंद हो जाता है.
ठंड के दिनों में खून प्रवाहित करने वाली नसें आसानी से सिकुड़ने लगती हैं और दिमाग में पहुंचने वाले खून के प्रवाह की गति धीमी हो जाती है. कई मामलों ये नसें बंद हो जाती हैं और दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून नहीं मिल पाता है. ऑक्सीजन और खून के प्रवाह में बाधा आने से खून का थक्का बनता है.
एक्सपर्ट्स के अनुसार, रेटिनल स्ट्रोक के लक्षण होते हैं अचानक से दिखाई देना बंद होना. इसके अलावा ये हैं स्ट्रोक के लक्षण.
अचानक एक हाथ या पैर काम करना बंद कर दे और व्यक्ति का चेहरा टेढ़ा होने लगे
बोलने और बात को समझने में दिक्कत हो
चलने-फिरने और संतुलन बनाए रखने में कठिनाई हो
अचानक चक्कर आने से बेहोश हो जाए या अचानक बहुत तेज सिर दर्द और उल्टी हो
"ऐसी स्थिति को नजरअंदाज करते हुए घर पर नहीं बैठना चाहिए, तत्काल न्यूरोलॉजिस्ट से कंसल्ट करना चाहिए. क्योंकि ऐसी स्थिति के बाद बड़ा लकवा यानी पैरालिसिस होने की संभावना रहती है. ऐसे में तुरंत एमआरआई स्केन कराना और जल्द से जल्द उपचार शुरू करना आवश्यक है" ये है डॉ. सुचेता मुदगेरीकर का कहना.
स्ट्रोक का खतरा इन लोगों में अधिक होता है:
ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हृदय रोग से पीड़ित लोगों को स्ट्रोक होने का खतरा अधिक होता है. इसके अलावा, जिनके शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लेवल ज्यादा है, जो मोटापे से ग्रसित हैं.
जो बीड़ी-सिगरेट या तंबाकू-गुटखा का सेवन करते हैं, उन्हें स्ट्रोक होने का खतरा औरों के मुकाबले अधिक होता है.
बढ़ती उम्र में डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के कारण दिमाग तक खून पहुंचाने वाली नसें बंद होना शुरू हो जाती हैं.
गर्भावस्था, हार्मोन की गोलियां, बी12 और फोलिक एसिड की कमी के कारण खून गाढ़ा हो जाता है और खून की गुठलियां (थक्का) बनने से दिमाग में खून का प्रवाह बंद हो सकता है.
ज्यादा मात्रा में शराब के सेवन या कोकेन जैसे मादक पदार्थों का सेवन भी स्ट्रोक का खतरा बढ़ाता है.
खराब लाइफस्टाइल, असमय खान-पान, व्यायाम की कमी और देर रात तक जगना भी बीमारियों को आमंत्रित करता है.
एक्सपर्ट आगे कहती हैं कि इस दौरान मरीज के हॉस्पिटल पहुंचने पर जिस खून के थक्के (गुठली) से खून की सप्लाई बंद हुई है, उसे पिघलाया जा सकता है और रक्त प्रवाह फिर से पहले जैसा सामान्य हो सकता है. सीटी स्केन के बाद नस में दवाई दे सकते हैं या फिर एंजियोग्राफी के जरिए खून के थक्के को खींचकर बाहर निकाला जा सकता है.
स्ट्रोक के बारे में एक कहावत है- ‘टाइम इज ब्रेन!’
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार, ‘समय का नुकसान ब्रेन का नुकसान है.’ अगर किसी व्यक्ति को स्ट्रोक हुआ है, तो उसका उपचार तत्काल शुरू हो जाना चाहिए नहीं तो यह मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकता है.
इमरजेंसी उपचार के बाद खून पतला करने वाली दवाइयां हमेशा लेनी होंगी. कोलेस्ट्रॉल, बीपी और डायबिटीज की दवाइयों को डॉक्टर की सलाह अनुसार लेते रहना होगा.
ठंड के मौसम में खुद को भीषण कंपकपाती ठंड के बीच स्वस्थ एवं फिट बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में डॉ. सुचेता मुदगेरीकर विंटर स्ट्रोक जैसे खतरे से बचने के लिए अपने ब्लड प्रेशर के स्तर और डायबिटीज को नियंत्रण में रखें और सही उपचार की सलाह देती हैं.
हृदय रोग, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की दवाइयों को नियमित रूप से लेते रहें.
साल में एक बार बॉडी चेकअप करवाएं, विशेषकर 45 साल की उम्र के बाद.
यदि पहले लकवा हुआ हो तो दवाइयों को बंद न करें, उसे नियमित रूप से लेते रहें.
नियमित रूप से व्यायाम करें और अपने शरीर के वजन (मोटापे) को नियंत्रित करें.
हेल्दी खाना खाएं, जो हरी पत्तेदार सब्जियों और सलाद से भरपूर हों.
खाने में नमक, घी (वसा) और तेल का प्रयोग न करें और जंक फूड, फास्ट फूड और ज्यादे मसालेदार खाना खाने से बचें.
पानी अच्छे से पिएं. ठंड के दिनों में प्यास कम लगती है, इस कारण हम पानी कम पीते हैं. पानी कम पीने से शरीर डिहाइड्रेट होने हो सकता है. ऐसी स्थिति में खून में थक्के बनने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इस कारण स्ट्रोक के लक्षणों में वृद्धि हो सकती है.
बीड़ी, सिगरेट या शराब का सेवन कम करें या टालें. तंबाकू खाना बंद करें. ठंड के दिनों में संभव हो तो ओसी पिल्स (आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां) का प्रयोग टालें और इसके बजाय अन्य उपायों को अपनाएं.
ठंड के मौसम में विंटर स्ट्रोक से बचने के लिए आपको सर्द हवाओं से बचना भी बेहद जरूरी है.
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