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World Cancer Day 2024: कैंसर अब दुनिया में आम बीमारी का रूप लेता जा रहा है. सच यह है कि इसका नाम सुनकर व्यक्ति चिंता में डूब जाता है. कैंसर का गंभीर होना उसके स्टेज और ग्रेड पर निर्भर करता है. कैंसर के ग्रेड की बात करें तो, इसे हाई ग्रेड और लो ग्रेड में बांटा जाता है. दोनों ही ग्रेड के कैंसर में नियमित जांच और समय से बीमारी का पता लगाने पर परिणाम में सुधार हो सकता है.
यहां फिट हिंदी ने एक्सपर्ट से बात की और यह जाना कि हाई-ग्रेड कैंसर और लो-ग्रेड कैंसर के बीच का अंतर क्या है, उसके लक्षण और इलाज क्या हैं?
गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में सीनियर कंसल्टेंट - मेडिकल ऑन्कोलॉजी, डॉ. सुमन एस. करंत ने बताया कि
हाई-ग्रेड कैंसर: हाई-ग्रेड कैंसर में सेल्स तेजी से डिवाइड होते हैं और बढ़ते हैं. ये सेल्स आम तौर पर माइक्रोस्कोप के जरिए असामान्य रूप में दिखते हैं और काफी तेजी से आसपास के टिश्यू और शरीर के दूसरे हिस्सों तक फैल जाते है.
लो ग्रेड कैंसर: दूसरी तरफ लो-ग्रेड कैंसर में जो सेल्स होते हैं वो काफी अलग होते हैं और सामान्य सेल्स की तरह ही दिखते हैं. इस प्रकार के कैंसर धीरे-धीरे फैलते हैं और इस बात की कम ही आशंका होती है कि इससे इसके आसपास के टिश्यू या अंग प्रभावित हों.
एक्सपर्ट ने बताया कि मुख्य अंतर कैंसर सेल्स के व्यवहार के हिसाब से तय होता है.
हाई-ग्रेड कैंसर कहीं अधिक घातक होता है. वृद्धि दर काफी तेज होती है और इनके फैलने की आशंका भी कहीं अधिक होती है. वहीं लो-ग्रेड कैंसर कम घातक होता है और इसके ठीक होने की संभावना अधिक होती है.
डॉ. सुमन एस. करंत ने बताया कि कैंसर के प्रकार और कैंसर किस जगह पर है, इस हिसाब से लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं.
अगर किसी व्यक्ति को लगातार लक्षणों का अनुभव हो रहा हो या कैंसर को लेकर चिंताएं हों, तो यह सलाह दी जाती है कि उचित जांच और मार्गदर्शन के लिए किसी डॉक्टर से सलाह लें. कुछ सामान्य प्रकार के लक्षण इस प्रकार हैं:
लगातार दर्द रहना
अचानक से वजन कम होना
पेट या ब्लैडर की आदतों में बदलाव होने
थकान रहना
शरीर पर किसी तिल या घाव में बदलाव देखना
इनमें इलाज मरीज में कैंसर के प्रकार, स्टेज, सेहत और दूसरे कारणों पर आधारित होते हैं.
हाई-ग्रेड कैंसर: हाई-ग्रेड कैंसर के इलाज के लिए आक्रामक रणनीति अपनाई जाती है जैसे कि सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी. खास तौर पर कैंसर सेल्स को टारगेट करने के लिए टारगेटेड थेरेपी और इम्युनोथेरेपी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
लो-ग्रेड कैंसर: लो-ग्रेड कैंसर के इलाज में ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी की जा सकती है और कुछ मामलों में यह करेक्टिव ऑप्शन हो सकता है. रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी की सलाह भी दी जा सकती है लेकिन कुल मिलाकर रवैया हाई-ग्रेड कैंसर के मुकाबले कम आक्रामक होता है.
हाई-ग्रेड कैंसर: हाई-ग्रेड ग्लियोमास (ब्रेन ट्यूमर), पैनक्रिएटिक कैंसर और कुछ तरह के ब्रेस्ट कैंसर को हाई-ग्रेड कैंसर के तौर पर क्लासिफाई किया जाता है.
लो-ग्रेड कैंसर: लो-ग्रेड कैंसर में कुछ प्रकार के प्रोस्टेट कैंसर, कुछ प्रकार के लिंफोमा और कुछ प्रकार के स्किन कैंसर जैसे बेसल सेल कार्सिनोमा शामिल होते हैं.
इस बात पर ध्यान देना जरुरी है कि हाई-ग्रेड या लो-ग्रेड कैंसर को क्लासिफाई करने के लिए कैंसर सेल्स के व्यवहार को ध्यान में रखना होता है, जो पैथोलॉजी रिपोर्ट के हिसाब से तय होती हैं.
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