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COPD Awareness Month 2023: दिल्ली NCR में बढ़ते प्रदूषण ने यहां रहने वालों के लिए कई तरह की बीमारी की चपेट में आने की चिंता बढ़ा दी है. ये कहना गलत नहीं होगा कि वायु प्रदूषण अब केवल एक पर्यावरणीय चिंता नहीं है, बल्कि ह्यूमन हेल्थ और कल्याण के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है.
प्रदूषण का बुरा असर शरीर के कई हिस्सों पर होता है और उससे होती हैं अलग-अलग तरह की बीमारियां. उन बीमारियों में से एक है सीओपीडी (chronic obstructive pulmonary disease) जिसे काला दमा भी कहते हैं.
फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से जाना सीओपीडी (COPD) और प्रदूषण के संबंध के बारे में.
सीओपीडी को क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज या काला दमा भी कहते हैं. भारत में देखा गया है कि ये धुएं और टॉक्सिक गैसे के एक्सपोजर से होता है. सीओपीडी फेफड़ों की एक आम बीमारी है, जो सांस लेने में समस्या पैदा करती है और स्मूथ एयर फ्लो को प्रभावित करती है. यह दुनिया भर में मौत का तीसरा प्रमुख कारण है. सीओपीडी से पीड़ित लोगों के फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं या कफ से ब्लॉक्ड हो जाते हैं.
डॉ. विकास मौर्य आगे कहते हैं कि कुछ लोगों में इन्फेक्शन या टीबी हो जाती है. उनमें भी आगे जाकर दमा बनने की आशंका होती है.
सीओपीडी के लक्षण होते हैं:
खांसी-कभी-कभी कफ के साथ
सांस लेने में कठिनाई
घरघराहट
थकान
डॉ. दिव्या सिंह फिट हिंदी से कहती हैं कि सीओपीडी के लक्षण अक्सर धीरे-धीरे विकसित होते हैं लेकिन समय के साथ तेजी से बिगड़ते हैं. सीओपीडी कई बार गंभीर भी हो जाती है. यह स्थिति आमतौर पर कुछ दिनों तक रहती है और कभी-कभी अतिरिक्त दवा की आवश्यकता होती है.
आमतौर पर, सीओपीडी के लक्षण मिडल ऐज के बाद विकसित होते हैं और जैसे-जैसे सीओपीडी बढ़ता है, लोगों को सांस फूलने के कारण अक्सर अपनी नार्मल दैनिक गतिविधियां करने में कठिनाई होती है.
वायु प्रदूषण (air pollution) का व्यक्ति के हेल्थ पर कई बुरा प्रभाव पड़ता है. वायु प्रदूषण सीओपीडी और इसके लक्षणों के लिए एक ज्ञात जोखिम कारक है. लंबे समय तक पोल्यूटेंट्स के हाई कंसंट्रेशन के संपर्क में रहने वाले व्यक्तियों में सीओपीडी की समस्या बढ़ जाती है.
एक्सपर्ट्स के अनुसार, सीओपीडी, काला दमा होता है और धुएं के लगातार एक्सपोजर से इसके होने का खतरा बढ़ता है. हवा में पॉल्यूशन होने पर कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड और दूसरी हानिकारक गैसें मौजूद होती है. इनके लगातार एक्सपोजर से हमारे सांस की नलियों में बीमारियां बननी शुरू हो जाती है और ये हमारे फेफड़ों के अंदर भी जाती हैं.
हवा में मौजूद प्रदूषक फेफड़ों पर तनाव बढ़ाकर और सूजन पैदा करके व्यक्ति के एयरवे को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
मेदांता के डॉ. विवेक सिंह ने डॉ. दिव्या सिंह की बात से सहमत होते हुए कहा कि ज्यादातर यह बीमारी उन लोगों से जोड़ी जाती है, जो धूम्रपान करते हैं और तंबाकू लंबे समय से स्थापित जोखिम कारक रहा है पर इस बात के बढ़ते सबूत हैं कि यह वैश्विक स्तर पर केवल 35% मामलों के लिए जिम्मेदार है.
सीओपीडी के लिए प्रमुख जोखिम कारक नीचे दिए गए हैं:
सेकेंड-हैंड धूम्रपान: सेकेंड-हैंड धूम्रपान के संपर्क में आने से जिसे निष्क्रिय धूम्रपान भी कहा जाता है, वयस्कों में सीओपीडी हो सकता है.
केमिकल और धुएं का जोखिम: धूल, गैस और धुएं का व्यावसायिक जोखिम सीओपीडी के विकास के जोखिम से जुड़ा हुआ है. इनके लगातार संपर्क में रहने से धीरे-धीरे समय के साथ फेफड़ों को नुकसान पहुंच सकता है.
लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना: रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट का बाहरी वातावरण से सीधा संपर्क होता है और यह हवा में मौजूद प्रदूषकों के प्रति अधिक संवेदनशील होता है. इन प्रदूषकों के अधिक संपर्क से अस्थमा जैसी पहले से मौजूद सांस संबंधी बीमारियों के रोगियों के लक्षण बढ़ सकते हैं और यहां तक कि सीओपीडी सहित सांस संबंधी बीमारियों के नए मामले भी सामने आ सकते हैं.
घर के अंदर वायु प्रदूषण: चूल्हे और बायोगैस का अभी भी देश के कई हिस्सों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है और खराब हवादार घरों में इस धुएं के संपर्क में आने से फेफड़ों को हानिकारक नुकसान होता है. इसके अलावा, अगरबत्ती जलाने और मच्छर मारने वाली कॉइल जलाने से होने वाला घरेलू वायु प्रदूषण भी सीओपीडी में योगदान देता है.
जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ता है, सीओपीडी वाले मरीजों में समस्याएं बढ़ जाती हैं.
यह जानना महत्वपूर्ण है कि सीओपीडी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन हेल्थ केयर टीम की दी गई सलाह का पालन करके इसे मैनेज किया जा सकता है.
रोगी धूम्रपान करता है, तो धूम्रपान छोड़ना
धूम्रपान न करने वाले लोग सेकेंड-हैंड धूम्रपान से दूर रहकर अपना जोखिम कम कर सकते हैं
समय-समय पर टीकाकरण (फ्लू वैक्सीन, निमोनिया वैक्सीन और सभी उपलब्ध COVID-19 टीकों सहित)
ट्रीटमेंट प्लान का पालन करना
नियमित रूप से अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना
मास्क पहनें. यह विशेष रूप से उन लोगों पर लागू होता है, जो व्यावसायिक रूप से निर्माण श्रमिक जैसे धुएं या धूल के संपर्क में आते हैं
सीओपीडी का जल्द पता लगाना महत्वपूर्ण है ताकि इलाज जल्द शुरू हो सके और फेफड़ों की कार्यप्रणाली को और अधिक खराब होने से रोका जा सके.
डॉ. दिव्या सिंह कहती हैं कि यदि आप नीचे बताए गए किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं, तो आपको तुरंत नजदीकी हॉस्पिटल में जाएं.
सांस लेने या बात करने में कठिनाई
छाती में दर्द
बुखार बने रहना
तेज दिल की धड़कन बने रहना
नाखून जो नीले या भूरे हो जाते हैं
इलाज वाली दवा काम नहीं कर रही और लक्षण बदतर होते जा रहे हों
बोलने में परेशानी, भटकाव, भ्रम, चक्कर आना
ड्रॉसिनेस और नींद से जागने में कठिनाई
क्रोनिक स्थितियों से पीड़ित मरीजों को आपातकालीन कार्य योजना बनाने के लिए डॉक्टरों के साथ काम करना चाहिए जो आपातकालीन स्थिति में आने पर महत्वपूर्ण हो सकता है।
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