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जींद सिविल अस्पताल का हाल: हरियाणा के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी क्यों?

Haryana Jind Hospital: जींद के सबसे बड़े प्राइमरी अस्पताल में इस वक्त जरूरी 55 डॉक्टरों में से सिर्फ 22 डॉक्टर ही काम कर रहे हैं.

गरिमा साधवानी
फिट
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<div class="paragraphs"><p>हरियाणा के जींद में  कम से कम 35 सरकारी अस्पताल हैं</p></div>
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हरियाणा के जींद में कम से कम 35 सरकारी अस्पताल हैं

फोटो: विभूषिता सिंह/फिट

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हरियाणा के जींद में सिविल अस्पताल (Haryana Jind Hospital) में कर्मचारियों की भारी कमी की वजह से डॉक्टरों के लिए सैकड़ों मरीजों की भीड़, प्रशासनिक कामों का बोझ और मेडिको-लीगल मामलों से जूझना एक आदत बन चुकी है.

पहली नजर में ऐसा लगता है कि ज्यादा डॉक्टरों की नियुक्ति कर देने से समस्या का समाधान हो जाएगा. लेकिन आरोप है कि हरियाणा सरकार डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए रिटायर डॉक्टरों को फिर से काम पर रख रही है.

सिविल अस्पताल के एक सीनियर मेडिकल प्रशासनिक अधिकारी डॉ. अमन (अनुरोध पर नाम बदल दिया गया है) ने द क्विंट को बताया, “जींद के सिविल सर्जन अधिकारी ने हाल ही में चार और डॉक्टरों को दूसरे अस्पतालों से अस्थायी तौर पर यहां नियुक्त किया है.”

वह बताते हैं "कभी-कभी, जब डॉक्टरों को मदद की जरूरत होती है, तो हम दूसरे हेल्थकेयर सेंटर्स से आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर्स को भी बुला लेते हैं.

प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ और देश की राजधानी नई दिल्ली दोनों से बमुश्किल तीन घंटे की दूरी पर स्थित हरियाणा के सबसे बड़े शहरों में से एक जींद में, यहां कम से कम 35 पब्लिक हेल्थकेयर फैसिलिटीज हैं– उनमें से ज्यादातर प्राइमरी फैसिलिटीज हैं. इन सबमें सिविल अस्पताल सबसे बड़ा है.

सिविल अस्पताल जींद जिले की सबसे बड़ी हेल्थकेयर फैसिलिटी है.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

आमतौर पर अस्पताल में रोजाना तकरीबन 1,000-1,500 मरीज आते हैं. इसके अलावा यहां हर वक्त करीब 80-100 मरीज भर्ती रहते हैं.

ये वे मरीज हैं, जो जिले भर से आते हैं– धमतान साहिब, जुलाना, उचाना, नरवाना, अलेवा और सफीदों से. हालांकि, अस्पताल में 55 डॉक्टरों की जरूरत है, इसमें से इस समय सिर्फ 22 डॉक्टर काम कर रहे हैं.

अस्पताल में हमेशा तकरीबन 80-100 मरीज भर्ती रहते हैं.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट

इस साल फरवरी में हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने राज्य विधानसभा को बताया कि राज्य में मेडिकल अधिकारियों के 26 फीसद पद– 4,260 मंजूर पदों में से 1,134– खाली हैं. उन्होंने बताया कि सीनियर मेडिकल अधिकारियों के 144 पद (374 मंजूर पदों में से) और डॉक्टरों के 1,506 पद (5,522 मंजूर पदों में से) भी खाली थे.

फिट ने अस्पताल का दौरा किया और डॉक्टरों और मरीजों से बात की, जिससे समझा जा सके कि हालात कितने गंभीर हैं.

डॉक्टरों की भारी कमी

21 वर्षीय मनीष 19 अप्रैल को दोपहर लगभग 3 बजे सिविल अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में आते हैं, जहां उनके चाचा को बीमार होने पर भर्ती कराया गया है.

“मेरे चाचा आज अचानक बीमार पड़ गए. हम उन्हें करीब 1-1.5 घंटे पहले इमरजेंसी वार्ड में ले गए. हमें बताया गया कि उन्हें कुछ ऑपरेशन और कंसल्टेशन की जरूरत हो सकती है, लेकिन इस समय अस्पताल में कोई सर्जन नहीं है.”
मनीष

सर्जन आज पहले ही जा चुका है, और अब अगले दिन ही लौटेंगे. फौरन जरूरत के समय मनीष जैसे मरीजों की मदद करने वाला और कोई नहीं है क्योंकि अस्पताल में सिर्फ एक ही सर्जन नौकरी कर रहा है.

डॉ. अमन प्रशासनिक पद पर हैं और रोजाना सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक (जो अस्पताल के सरकारी काम के घंटे हैं) कागजी कार्यवाही समेत प्रबंधन की देखरेख के लिए जिम्मेदार हैं. वह फिट को बताते हैं कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी इतनी ज्यादा है कि उन्हें अस्पताल का काम करते हुए भी मरीजों को देखना पड़ता है.

औसतन हर 10-15 मिनट में डॉ. अमन के केबिन के बाहर बैठा सिक्योरिटी गार्ड दरवाजा खटखटाता है और एक मरीज और उसके परिवार को अंदर ले आता है.

डॉ. अमन के पास अमरनाथ यात्रा जैसी धार्मिक यात्राओं के लिए जरूरी मेडिकल क्लीयरेंस फॉर्म पर दस्तखत करवाने के ख्वाहिशमंद लोगों की भी पूरे दिन लंबी कतारें लगी रहती हैं.

डॉक्टर के केबिन के बाहर मरीजों की कतार.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

उनकी लगातार दूसरी व्यस्तताएं भी हैं– मरीज आते हैं और दवा मांगते हैं, डॉक्टर सलाह लेने उनके पास आते हैं, और वह कई कामों के अलावा अस्पताल में सारे मेडिको-लीगल मामले भी देखते हैं.

काम के भारी बोझ से दबे डॉ. अमन अपने असल काम को पूरा करने के लिए ज्यादातर दिनों में अपनी शिफ्ट के बाद यहीं रुकते हैं.

“मैं आमतौर पर सुबह 8 बजे तक आ जाता हूं. लेकिन चूंकि आज एक मेडिको-लीगल केस में अदालत में पेशी थी, इसलिए मुझे अस्पताल पहुंचने में देर हो गई. उसके बाद, मरीज आते रहे. इसलिए मैं असल काम शुरू नहीं कर पाया. ऐसा अक्सर होता है, जब मुझे ड्यूटी के समय से ज्यादा देर तक काम करना होता है, क्योंकि OPD [आउट-पेशेंट डिपार्टमेंट] के समय में मैं हमेशा मरीजों से घिरा रहता हूं.”
डॉ. अमन

हरियाणा में सरकारी अस्पतालों की नौकरी की शर्तों पर जरूर सवाल उठने चाहिए.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

अस्पताल में ज्यादातर डॉक्टरों की यही कहानी है.

सिविल अस्पताल में रोजाना तकरीबन 1,000-1,500 मरीज इलाज कराने आते हैं, डॉक्टर ज्यादातर मरीजों को देखने और दूसरी प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच फंसे होते हैं, जिनमें यह बातें भी शामिल हैं (लेकिन यह इतने पर ही खत्म नहीं हो जाता हैं):

  • जेल में हर दूसरे महीने लगने वाले मेडिकल कैंप

  • मेडिको-लीगल मामलों में अदालत में पेशी

  • महत्वपूर्ण हस्तियों के दौरे पर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को VIP ड्यूटी पर तैनात किया जाता है

इसके अलावा, अस्पताल के पूरे हफ्ते 24 घंटे काम करने वाले विभागों– इमरजेंसी, नर्सरी और स्त्री रोग विभाग– में से हर एक में सिर्फ चार डॉक्टर हैं, जिसके नतीजे में उन्हें बिना रुकावट वार्ड चलाने में मुश्किल होती है.

डॉक्टरों ने फिट के सामने आरोप लगाया कि उन पर न सिर्फ जरूरत से ज्यादा काम का बोझ डाला जाता है बल्कि अपनी समस्याएं बताने पर उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता है.

“हमारी मांगें काफी समय से अनसुनी की गई हैं. कुछ महीने पहले इस अस्पताल के डॉक्टर दो दिन की हड़ताल पर चले गए थे. सरकार ने उन दो दिनों का हमारा वेतन काट लिया था, जो हमें अभी तक नहीं मिला है.”
डॉ. अमन

FIT ने हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर पूछा है कि खाली पदों को भरने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. प्रतिक्रिया मिलने पर लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.

‘मरीजों को अच्छी सेवा नहीं दे सकते’

चेस्ट फिजीशियन डॉ. विनीता पिछले चार सालों से अस्पताल में काम कर रही हैं. वह एक स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं, जिन्हें अक्सर VIP ड्यूटी पर लगाया जाता है.

अस्पताल में वह अक्सर चारों तरफ से मरीजों से घिरी रहती हैं. वह भीड़ को आसानी से संभाल लेती है और एक साथ कई मरीजों को देखने की आदी हो चुकी हैं.

डॉक्टर हर वक्त ढेर सारे मरीजों से घिरे रहते हैं.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

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“हम हर दिन OPD और वार्ड दोनों में सैकड़ों मरीजों को देखते हैं. हमें अक्सर हमारी शिफ्ट के बाद भी रुकना पड़ता है ताकि हम सभी को देख सकें. लेकिन हमारे पास उन्हें ठीक से देखने या उनकी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में ज्यादा कुछ पूछने का समय नहीं होता है. हमें एक मरीज के लिए बमुश्किल दो मिनट मिलते हैं.”
-डॉ. विनीता

डॉक्टर अपनी शिफ्ट के दौरान ओपीडी और वार्डों के बीच कई बार मशक्कत करते हैं.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

इन डॉक्टरों से मुलाकात के दौरान इस संवाददाता ने भी पूरे दिन यही देखा. लगातार मरीजों की भीड़ के चलते डॉक्टर किसी को भी चंद मिनटों से ज्यादा समय समय नहीं दे पा रहे थे.

यह अक्सर मरीजों के लिए बहुत अच्छा नहीं होता है.

डॉ. मंजीत धीमान एक कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर हैं. उन्होंने डेढ़ साल पहले अस्पताल में नौकरी ज्वाइन की है. उनके यहां आने के बाद से मरीजों के तीमारदारों ने उनकी सोच से ज्यादा बार उनके साथ बदतमीजी किया है.

वह बताती हैं, “इमरजेंसी वार्ड में हम मरीजों के संपर्क का पहला जरिया हैं, इसलिए तीमारदारों का बुरा बर्ताव और तनाव काफी आम है. इसे निपटना भी मुश्किल है क्योंकि हर शिफ्ट में सिर्फ एक डॉक्टर काम करता है.”

इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टर मरीजों के लिए संपर्क का पहला जरिया होते हैं.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

डॉक्टरों का कहना है कि कभी-कभी जिन मरीजों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता, वे कई दिनों तक अस्पताल में रुकते हैं, अस्पताल के कॉमन एरिया में इंतजार करते हैं, और डॉक्टर शिफ्ट के बीच में उनका ख्याल रखते हैं.

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

‘कोई अलग कैडर नहीं है’: हरियाणा में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को नौकरी में रोक पाना मुश्किल है

लेकिन हरियाणा में डॉक्टरों की इतनी भारी कमी क्यों है?

डॉक्टरों के मुताबिक इसकी एक बड़ी वजह यह है कि राज्य में डॉक्टरों के लिए स्पेशलिस्ट कैडर नहीं है.

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, स्पेशलिस्ट कैडर “एक संस्थागत प्रक्रिया और संरचना है, जो पोस्टग्रेजुएट डॉक्टरों के लिए अलग और सीधी भर्ती का रास्ता बनाता है.”

इसका साफ मतलब यह है कि हरियाणा में MBBS डॉक्टरों और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों का वेतन और वर्क स्ट्रक्चर तकरीबन बराबर है, यही वजह है कि ज्यादातर डॉक्टर सरकारी नौकरी से बाहर रहना पसंद करते हैं.

सिविल अस्पताल में सिर्फ छह स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं– एक सर्जन, एक हड्डी रोग स्पेशलिस्ट, एक मनोचिकित्सक, एक बाल रोग विशेषज्ञ, एक फिजिशियन और एक स्त्री रोग विशेषज्ञ.

संयोग की बात है कि जिस दिन इस संवाददाता ने अस्पताल का दौरा किया, वह बाल रोग स्पेशलिस्ट और फोरेंसिक एक्सपर्ट का काम का आखिरी दिन था.

चाइल्ड हेल्थ स्पेशलिस्ट डॉ. अंजली (अनुरोध पर नाम बदल दिया गया है) ने करीब 14 सालों तक अस्पताल से जुड़े रहने के बाद जींद में अपना निजी अस्पताल खोलने के लिए मार्च में नौकरी को अलविदा कह दिया.

वह बताती हैं, “इतने कम डॉक्टर हैं कि स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को OPD संभालने के लिए मजबूर होना पड़ता है. काम का बोझ बहुत ज्यादा है और हमें वैसा वेतन नहीं मिलता, जैसा कि स्पेशलिस्ट को मिलना चाहिए.”

डॉ. विनीता भी ऐसी ही राय रखती हैं. दूसरी वजहों में, लंबी शिफ्ट, इन्क्रीमेंट नहीं, छुट्टियों में कोई लचीलापन नहीं, और छुट्टियों में नियमितता के अभाव ने मोहभंग और थकान की भावना भर दी है.

“मैंने एक बार इस्तीफा भी दे दिया था, लेकिन फिर यहीं रुक गई,” वह अपने मरीजों को देखने और भीड़ को संभालने की कोशिश करते हुए हंसती हैं, और कहती हैं कि केवल एक चीज जिसने उन्हें यहां रुकने के लिए मजबूर किया वह यह था कि उनका परिवार जींद में रहता है.

हरियाणा में डॉक्टर कई सालों से स्पेशलिस्ट कैडर की मांग कर रहे हैं.

स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने फरवरी में राज्य विधानसभा को बताया कि स्पेशलिस्ट कैडर के लिए “सैद्धांतिक मंजूरी” दे दी गई है. उन्होंने बताया कि औपचारिकताएं पूरी होने के बाद MBBS कैडर और स्पेशलिस्ट कैडर के लिए अलग-अलग भर्तियां की जाएंगी.

फिट ने हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर पूछा है कि क्या स्पेशलिस्ट कैडर बनाने में कोई प्रगति हुई है. प्रतिक्रिया मिलने पर लेख को अपडेट किया जाएगा.

काम के बोझ तले दबे डॉक्टर रुकना नहीं चाहते

लेकिन दूसरी वजहें भी हैं, जिनकी वजह से डॉक्टर राज्य के जिला-स्तरीय अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते हैं. बदकिस्मती से, ये ऐसी चीजें हैं जिन पर अस्पताल के अधिकारियों का कोई नियंत्रण नहीं है. और इसलिए वे डॉक्टरों को नौकरी में रोकने के लिए इन्हें दुरुस्त भी नहीं कर सकते हैं.

इनमें से एक वजह यह है कि जींद जैसे छोटे जिलों में बहुत सारे अच्छे स्कूल और कॉलेज नहीं हैं, यही वजह है कि डॉक्टर अपने परिवारों को वहां नहीं लाना चाहते हैं, और शहरों में बसना पसंद करते हैं

कई डॉक्टर एक ही बात कहते हैं, “अरे, डेवलपमेंट ही नहीं है कोई.”

डॉ. अमन एक दिलचस्प फैक्ट् की ओर भी इशारा करते हैं.

डॉक्टर जिला स्तर के अस्पतालों में खाली पदों के लिए आवेदन करते हैं, नौकरी स्वीकार करते हैं और फिर शहर के अस्पतालों में तबादले के लिए आवेदन देते हैं. “तो, आखिरकार, हम वहीं पहुंच जाते हैं, जहां से चले थे– फिर से खाली पद.”

  • इस बिंदु पर ध्यान खिंचते हुए, डॉ. महाजन कहते हैं कि यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे डॉक्टर सुविधा के लिए करते हैं. ज्यादातर जिला स्तरीय अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं.

  • जींद हॉस्पिटल में मरीजों को एक से दूसरी जगह ले जाने के लिए मूवेबल बेड नहीं हैं.

  • अस्पताल में दवा की कमी आम बात है.

  • एक अल्ट्रासाउंड मशीन है, जो खराब पड़ी है.

  • कोई रेडियोलॉजिस्ट या रेडियोग्राफर नहीं हैं जो मेडिकल परीक्षण टेस्ट कर सके और मशीनें ऑपरेट कर सके.

हॉस्पिटल में मरीजों को एक से दूसरी जगह ले जाने के लिए मूवेबल बेड नहीं हैं

(फोटो: गरिमा साधवानी/फिट)

नई बिल्डिंग में 22 डॉक्टरों के लिए सिर्फ दो वॉशरूम हैं और कोई ब्रेक रूम नहीं है. कई डॉक्टर छोटे केबिन साझा करते हैं.

डॉ. अमन कहते हैं, “अस्पताल में बुनियादी ढांचा इतना खराब है कि अगर हमारे पास डॉक्टरों का पूरा स्टाफ हो, तो भी हमारे पास पूरे क्लीनिक नहीं होंगे.”

इसके अलावा, यह भी हकीकत है कि प्राइवेट अस्पताल ज्यादा पैसे देते हैं और डॉक्टरों को बेहतर इंसेंटिव देते हैं. अस्पताल के एक और स्पेशलिस्ट, जिन्होंने दो महीने पहले नौकरी छोड़ दी थी, ने अब शहर में अपना प्राइवेट क्लिनिक खोल लिया है

“डॉक्टरों को अब सरकारी नौकरी में लंबे समय तक रहने का कोई फायदा नहीं दिखता. प्राइवेट रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर (RMP) डॉक्टर भी हमसे काफी ज्यादा कमाते हैं.”
- डॉ. अमन

तो, डॉक्टर चाहते क्या हैं?

“जल्दी-जल्दी ज्यादा वैकेंसी जारी करें और ज्यादा डॉक्टरों की नियुक्ति करें. एक स्पेशलिस्ट कैडर लागू करें और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को पूरी सुविधाएं और इन्सेंटिंव दें. सही बुनियादी ढांचे और मेडिकल सप्लाई सुनिश्चित करें.”
-जींद के सिविल अस्पताल के डॉक्टर

लेकिन, सबसे बढ़कर, इस समय, डॉक्टरों की सरकार से और जो भी उनकी तकलीफ सुन रहे हैं, उनसे केवल एक ही मांग है:

“डॉक्टरों को नौकरी में बनाए रखने के लिए इन खामियों को कुबूल करें और इन्हें दुरुस्त करें.”

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