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क्या फूड सीक्वेंसिंग आपको अपने भोजन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने में मदद कर सकता है?

एक्सपर्ट ट्रेडिशनल मील प्लानिंग और न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग के बीच का अंतर बता रही हैं.

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क्या आप जानते हैं कि अपने भोजन के विभिन्न कम्पोनेन्ट्स को खाने के क्रम को बदलने से वास्तव में आपको उनसे अधिकतम फायदा प्राप्त करने में मदद मिल सकती है?

फैट, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन के बीच वास्तव में एक क्रम मौजूद है, जो हाल के वर्षों में हेल्थ से जुड़ी बातचीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.

यहां हम न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग को आसान बनाने की कोशिश करते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या यह वास्तव में फायदेमंद है या बस एक फैड (fad) है.

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न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग क्या है?

कल्पना गुप्ता, क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट, मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली, बताती हैं कि न्यूट्रिशन या फूड सीक्वेंसिंग, खाने का एक पैटर्न है, जिसमें हर भोजन/पोषक तत्व का सेवन एक विशेष क्रम में किया जाता है.

"इसके पीछे आसान आइडिया यह है कि यह टेक्नीक हमें शरीर द्वारा निर्धारित या आवश्यक सभी पोषक तत्वों को कंज्यूम करने में मदद करता है, जिससे हमें ओवरऑल हेल्थ को बनाए रखने में मदद मिलती है."
कल्पना गुप्ता

गुप्ता आगे ट्रेडिशनल मील प्लानिंग और न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग के बीच का अंतर बताती हैं. जहां पहला आपको बताता है कि क्या खाना चाहिए वहीं दूसरा खाने के क्रम के बारे में बताता है ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा फायदा हो सके.

व्यक्ति को संतुलित आहार में रोटी, चावल, दाल, सलाद, दही और सब्जियां शामिल करनी चाहिए. लेकिन न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग के अनुसार आपको पहले दाल, दही और सलाद खाना चाहिए और फिर रोटी/चावल.

एक्सपर्ट्स के अनुसार, आपके भोजन खाने का क्रम इस प्रकार होना चाहिए, सब्जियां, फैट और प्रोटीन, उसके बाद कार्ब्स.

वेट मैनेजमेंट, मोटापा और डायबिटीज

अपने आहार में न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग को शामिल करने का सबसे बड़ा फायदा है वजन और ब्लड शुगर को कंट्रोल करना. इससे ओबीसिटी और डायबिटीज कंट्रोल करने में मदद मिलती है.

"कई स्टडीज में पाया गया है कि कार्बोहाइड्रेट से पहले प्रोटीन और फाइबर लेने से ग्लूकोज के स्तर के साथ-साथ ओबीसिटी की रोकथाम में मदद मिलती है. न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर जैसी मेडिकल कन्डिशनों और पोस्ट-ऑपरेटिव और कीमो-रेडियोथेरेपी रोगियों में मदद कर सकता है.”
कल्पना गुप्ता

हालांकि, इन हेल्थ स्थितियों वाले लोगों के अलावा, न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग वजन घटाने और मैनेज करने में भी मदद कर सकता है.

गुप्ता ने फायदों के बारे में ऐसे बताया है:

  • क्रेविंग कम होना

  • ब्लोटिंग कम होना

  • बेहतर ब्लड शुगर कंट्रोल

  • जल्दी पेट भरना

  • बेहतर पोषक तत्वों का अब्सॉर्प्शन

इसे अपने आहार में कैसे शामिल करें?

ज्यादातर भारतीय घरों में, हमारा भोजन प्रोटीन या सब्जियों के साथ-साथ कार्ब्स के सेवन पर आधारित होता है.

रोटी, दोसा या चावल को सब्जियों, मांस या दाल के साथ एक ही समय पर खाया जाता है. फिर कोई इस सीक्वेंसिंग को फॉलो कैसे कर सकता है?

एक आसान तरीका यह है कि सबसे पहले सलाद से शुरुआत करें. इसके बाद नंबर आता है रायता या दही का. इसके बाद, आप बाकी भोजन खा सकते हैं.

गुप्ता के अनुसार, अपने भोजन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, आप अपनी जीवनशैली में कुछ दूसरे आहार परिवर्तन कर सकते हैं:

  • थोड़ा-थोड़ा लेकिन कई बार भोजन करें.

  • अपने आहार में ओट्स, फल, सब्जियां, बीन्स और साबुत दालें जैसे घुलनशील और अघुलनशील फाइबर शामिल करें.

  • कम फैट वाले दूध, दही, पनीर, अंडा, चिकन और मछली जैसे प्रोटीन जोड़ें.

  • ब्राउन राइस, होल व्हीट और ओट्स जैसे कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट जोड़ें.

  • तलने के बजाय ग्रिलिंग / उबालना / बेकिंग या भूनने जैसी खाना पकाने की विधियां चुनें.

संतुलन जरूरी है

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जब पोषण की बात आती है, तो सबसे जरूरी चीज संतुलित आहार का सेवन करना है.

इस कारण, सीक्वेंसिंग कम महत्वपूर्ण हो जाता है और इसलिए ऐसे आहार को प्राथमिकता मिलनी चाहिए जिसमें फल, सब्जियां, हेल्दी प्रोटीन शामिल हो और अत्यधिक प्रासेस्ड या शुगर वाले खाद्य पदार्थों न हो.

ध्यान देने वाली एक और बात, जैसा कि गुप्ता बताती हैं कि अलग-अलग लोगों को अपनी खास आवश्यकताओं के अनुसार न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग को अलग-अलग तरीके से अपनाना होगा.

स्टेंट वाले हृदय रोगियों को अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट की तुलना में अधिक फाइबर की आवश्यकता होती है. इसी तरह, डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को अपने ब्लड शुगर के स्तर के बेहतर कंट्रोल के लिए प्रोटीन/कार्बोहाइड्रेट की तुलना में अधिक फाइबर की आवश्यकता होगी.

इसलिए, न्यूट्रिशन सीक्वेंसिंग किसी व्यक्ति की क्लीनिकल कंडिशन, शरीर के वजन, आहार संबंधी आदतों और गतिविधि स्तर पर निर्भर करता है. गुप्ता इस बात पर जोर देते हुए कहती हैं कि इन व्यक्तिगत कारकों और आवश्यकताओं पर हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए.

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