advertisement
Heart Attack In Men And Women: दिल से जुड़ी बीमारियां महिला और पुरुष दोनों को प्रभावित करते हैं, लेकिन दोनों में इन रोगों के लक्षण, डायग्नॉसिस और इलाज में काफी अंतर होता है. ये अंतर ही दिल की बीमारियों से बचाव और उनके मैनेजमेंट के मामले में जेंडर विशेष से जुड़े फैक्टर्स को समझने में मदद करते हैं.
क्या महिला और पुरुष में हार्ट अटैक के लक्षण एक जैसे होते हैं? महिला और पुरुष में दिल की बीमारी के रिस्क फैक्टर्स, डायग्नॉसिस, इलाज और बचाव में क्या अंतर होता है? फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से जाना इन सवालों के जवाब.
हृदय रोगों की स्थिति में महिलाओं और पुरुषों में अलग-अलग लक्षण महसूस हो सकते हैं. जहां एक ओर सीने में दर्द या बेचैनी महसूस होना दोनों ही जेंडर में सामान लक्षण हैं. वहीं महिलाओं में सांस फूलना, थकान, मितली आना, पीठ का दर्द या जबड़े का दर्द जैसे कई असामान्य लक्षण भी उभर सकते हैं.
पुरुषों में दिल की बीमारी महिलाओं की तुलना में कम उम्र में शुरू हो सकती है. लेकिन महिलाओं में आमतौर पर मेनोपॉज के बाद हार्ट की बीमारी के जोखिम बढ़ते हैं, जो इस बात का संकेत है कि दिल की बीमारियों में हार्मोनल बदलाव की भूमिका काफी अहम होती है.
महिलाओं में हार्ट की बीमारी के रिस्क फैक्टर के तौर पर पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) और प्रेगनेंसी संबंधी कंडीशंस जैसे प्रीक्लैम्पिसिया और गेस्टेशनल डायबिटीज, लाइफ में आगे चलकर हृदय रोगों का खतरा बढ़ा सकती हैं.
एक्सपर्ट फिट हिंदी को बताते हैं कि महिलाओं के सामने अक्सर डायग्नॉस्टिक चुनौतियां पेश आती हैं क्योंकि हृदय रोगों का पता लगाने के लिए किए जाने वाले कुछ साधारण टेस्ट महिलाओं के मामले में कम सटीक हो सकते हैं.
डॉ. अतुल माथुर ने ट्रेडमिल टेस्ट का उदाहरण देते हुए कहा, "महिलाओं के मामले में ट्रेडमिल टेस्ट उतना कारगर साबित नहीं हो सकता जितना कि यह पुरुषों के मामले में होता है. इस कारण महिलाओं में यह रोग कई बार पकड़ में नहीं आता.
बहुत संभव है कि महिलाओं को हार्ट अटैक के बाद गाइडलाइन-रिकमंडेड थेरेपी जैसे कि एस्प्रिन और स्टेटिन दवाएं न दी जाएं. इसके अलावा, उन्हें कार्डियक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के लिए भी कम भेजा जाता है.
जहां हृदय रोग महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही प्रभावित करते हैं, वहीं ये किस तरह से सामने आते हैं और किस प्रकार इन्हें मैनेज किया जाता है, इसमें फर्क है. इस अंतर को समझना काफी जरुरी है ताकि मरीजों के मामले में उपचार में सुधार हो सके और साथ ही, दोनों लिंगों पर हृदय रोगों का दबाव भी कम हो.
लाइफस्टाइल से जुड़े फैक्टर्स जैसे कि सेहतमंद खुराक का सेवन करना, रेगुलर एक्सरसाइज करना, स्ट्रेस मैनेजमेंट करना और स्मोकिंग से परहेज जैसे उपाय दिल की बीमारियों से बचाव के लिहाज से बेहद जरुरी हैं. लेकिन साथ ही हेल्थकेयर प्रोवाइडरों को मरीजों को बचाव के बारे में सलाह देते समय जेंडर-विशेष से जुड़े जोखिम के कारकों और लक्षणों पर गौर करना चाहिए.
महिलाओं में दिल की बीमारियों से जुड़े अनूठे पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है. ऐतिहासिक रूप से भी देखा जाए तो हृदय रोगों के संबंध में पुरुषों की कंडीशंस को स्टडी किया गया है जबकि महिलाओं को ये रोग किस प्रकार प्रभावित करते हैं, इस बारे में जानकारी अभी भी कम है. इसलिए हेल्थकेयर प्रोवाइडर और आम जनता को इस बारे में जागरूक बनाना महत्वपूर्ण है ताकि हृदय रोगों से पीड़ित महिलाओं के रिजल्ट्स में सुधार आ सके.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined