मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-201940 मेडिकल कॉलेजों की मान्यता खत्म, India Public Health के लिए इसके क्या मायने?

40 मेडिकल कॉलेजों की मान्यता खत्म, India Public Health के लिए इसके क्या मायने?

NMC के लिस्ट में कई और कॉलेजों की मान्यता रडार पर है और कुल 150 और मेडिकल कॉलेजों की मान्यता रद हो सकती है.

गरिमा साधवानी
Fit Hindi
Published:
<div class="paragraphs"><p>40 Medical Colleges Lose Recognition</p></div>
i

40 Medical Colleges Lose Recognition

(फोटोःफिट हिंदी)

advertisement

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) द्वारा निर्धारित मानकों का पालन नहीं करने के कारण पिछले दो महीनों में देशभर के करीब 40 मेडिकल कॉलेजों की मान्यता रद हो गई है. वहीं एनएमसी (National Medical Commission) के लिस्ट में कई और कॉलेजों की मान्यता रडार पर है और कुल 150 और मेडिकल कॉलेजों की मान्यता रद हो सकती है.

रिपोर्टों के मुताबिक, एनएमसी ने ये हवाला दिया है कि कॉलेज 'निर्धारित मानदंडों का पालन' नहीं कर रहे थे, जिसके कारण यह निर्णय लिया गया है. इन कॉलेजों की मान्यता खोने के तीन मुख्य कारण हैं :

  • सुरक्षा व्यवस्था और सीसीटीवी कैमरों में चूक

  • आधार-आधारित बायोमेट्रिक उपस्थिति में चूक 

  • अधिकांश कॉलेजों में फैकल्टी के पद खाली हैं

बता दें कि मान्यता रद होने वाले कॉलेजों की लिस्ट में अधिकांश कॉलेज पुडुचेरी, गुजरात, पंजाब, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और असम के हैं. वहीं अरुणाचल प्रदेश का एक कॉलेज जो एक सदी से अधिक पुराना था. इतना ही नहीं मान्यता खो चुके मेडिकल कॉलेजों की लिस्ट में तमिलनाडु के प्रतिष्ठित स्टेनली मेडिकल कॉलेज भी शामिल है.

हालांकि एनएमसी के डॉ. राजीव सूद ने एनडीटीवी से कहा है कि इससे मेडिकल कॉलेजों को चिंतित नहीं होना चाहिए.

यह नया नहीं है. निगरानी कड़ी हो गई है और पहले भी निरीक्षण किए गए हैं. मान्यता रद्द किया जाना भी कोई अंतिम फैसला नहीं है.
डॉ. राजीव सूद,

मेडिकल कॉलेजों पर इस कार्रवाई के नतीजों को समझने के लिए  फिट हिंदी ने डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात की.

सबसे पहले, क्या कहती हैं NMC की गाइडलाइंस?

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने उन सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए 'दिशानिर्देश' या 'न्यूनतम मानक आवश्यकताएं' निर्धारित की हैं जो सालाना 250 से अधिक छात्रों को दाखिला देने के लिए अनिवार्य कर दिया है.

अंतिम बार 2018 में संशोधित ये दिशानिर्देश सभी स्टाफ सदस्यों के लिए आवास, सर्जरी, मानव शरीर रचना विज्ञान, दंत चिकित्सा, मनोरोग आदि जैसे अनिवार्य विभागों से संबंधित हैं.

सीसीटीवी कैमरों: दिशानिर्देश के अनुसार, चिकित्सा शिक्षा/प्रशिक्षण के मानक पर निरंतर निगरानी को बनाए रखने के लिए परिषद को कक्षाओं और वार्डों की 'लाइव स्ट्रीमिंग' के लिए सीसीटीवी कैमरे उपलब्ध करानी चाहिए.

इसके अलावा, एनएमसी सभी संकाय सदस्यों या 'ऑनलाइन फैकल्टी अटेंडेंस मॉनिटरिंग सिस्टम' के लिए  बायोमेट्रिक उपस्थिति को भी अनिवार्य कर दिया था जो सत्यापन के लिए उनके आधार से जुड़ा हुआ है.

क्या कॉलेज की मान्यता रद्द करने के ये वैध कारण हैं?

एनएमसी के दिशानिर्देश के अनुसार, निश्चित संख्या में प्रोफेसरों, एसोसिएट प्रोफेसरों, लेक्चरर, वरिष्ठ रेजिडेंट्स और जूनियर रेजिडेंट्स की भी रूपरेखा तैयार की गई थी, जो प्रत्येक विभाग के पास होनी चाहिए. वहीं दिशानिर्देश को अनुपालन करने में विफल होने पर कॉलेजों की मान्यता समाप्त हो सकती है.

फिट हिंदी ने जिन डॉक्टरों से बात की, उन्होंने कहा कि खाली फैकल्टी के पद कॉलेज की मान्यता रद्द करने का एक वास्तविक कारण हैं. अन्य प्रशासनिक मुद्दों को आसानी से ठीक किया जा सकता है. बायोमेडिकल रिसर्च, पब्लिक हेल्थ इश्यू और डिजिटल हेल्थ इंटरवेंशंस पर काम करने वाले डॉ फैज अब्बास आबिदी ने कहा-

हमें देश के कई मेडिकल कॉलेजों में खाली फैकल्टी के पदों की चिंता को दूर करने की जरूरत है. साथ ही फैकल्टी, सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर और जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर की स्थायी नियुक्ति करने की जरूरत है.
डॉ फैज अब्बास आबिदी

उन्होंने कहा कि संविदा चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ और अस्थायी/गेस्ट फैकल्टी को वार्ड चलाने और अस्पतालों का प्रबंधन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. डॉ अब्बास आबिदी ने कहा, 'कर्मचारियों की कमी देश के स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रही है.'

इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, बेंगलुरु के सह-संस्थापक डॉ एन देवदासन भी डॉ आबिदी की बात से सहमत हैं. उन्होंने फिट हिंदी को बताया-

'यदि आपके पास पढ़ाने के लिए फैकल्टी नहीं है, तो छात्र अपनी किताबों से याद करेंगे और बिना किसी क्लिनिकल ग्राउंडिंग के आधे-अधूरे डॉक्टर बन जाएंगे.'

डॉ एन देवदासन ने आगे कहा कि एक डॉक्टर जिसके पास बुनियादी नैदानिक ​​​​कौशल (Basic Clinical Skills.) नहीं है, वह रोगियों को लाभ से अधिक नुकसान पहुंचाता है. उन्होंने दावा किया, 'एनएमसी इसी पर कार्रवाई करने की कोशिश कर रहा है.'

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की केरल इकाई के प्रदेश अध्यक्ष डॉ सल्फी एन ने भी कहा कि लंबे समय के बाद स्वास्थ्य सेवा के लिए यह एकअच्छा निर्णय है.

यह सच है कि हमें और अधिक मेडिकल कॉलेजों की आवश्यकता है, लेकिन हमें उन चिकित्सा पेशेवरों की गुणवत्ता की भी जांच करने की आवश्यकता है जो हम पहले से तैयार कर रहे हैं.
डॉ सल्फी एन

हालांकि बायोमेट्रिक अटेंडेंस पर इतना जोर क्यों? इस सवाल पर डॉ देवदासन बताते हैं कि पहले प्रोफेसर कई कॉलेजों में पढ़ाने के लिए दाखिला लेते थे. बायोमेट्रिक उपस्थिति के माध्यम से एनएमसी यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि चार अन्य कॉलेजों के बीच अपना समय बांटने के बजाय नामांकित प्रोफेसर एक ही कॉलेज में पढ़ा सके.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इन कॉलेजों के लिए वास्तव में क्या मायने रखता है?

मेडिकल कॉलेज की मान्यता खत्म होने का मतलब यह नहीं है कि वह बंद हो जाएगा. इसका सीधा सा मतलब है कि कॉलेज को आगे कोई प्रवेश लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी. 

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. पूजा त्रिपाठी ने कहा कि मान्यता रद्द करने से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर तुरंत प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन यह कई इच्छुक डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों के करियर को खतरे में डाल देगा. 

जब गोरखपुर में एक मेडिकल कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी गई थी, तो छात्रों की फरवरी में होने वाली परीक्षाएं नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गईं और उनका कीमती साल बर्बाद हो गया, जबकि उनके समकक्ष नौकरी या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए चले गए.
डॉ पूजा त्रिपाठी

हालांकि, डॉ सूद ने यह स्पष्ट किया है कि 'दूसरे, तीसरे या चौथे वर्ष में छात्रों को चिंता करने की कोई बात नहीं है.' लेकिन डॉ. त्रिपाठी आगे कहते हैं कि इन कॉलेजों को अक्सर कुछ मामलों में सुधार, पुन: आवेदन और मान्यता प्राप्त करने में भी समय लग सकता है. 

डॉ त्रिपाठी ने कहा, 'इससे चिकित्सा समुदाय में गलत संदेश जाएगा.'

क्या यह निर्णय सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा?

जब भारत पहले से ही मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों की कमी से जूझ रहा है, तो क्या ऐसे में लगभग 150 संस्थानों की मान्यता रद्द करने से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा?

डॉ आबिदी ने फिट हिंदी को बताया:

इन कॉलेजों की मान्यता समाप्त होने से लोग प्रभावित होंगे. खासकर हाशिए के समुदायों के लोग, जो इन अस्पतालों में आते हैं. लेकिन अगर आपके पास पर्याप्त स्वास्थ्यकर्मी नहीं हैं, तो आप अस्पताल के ठीक से काम करने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. आप वैसे भी प्रशिक्षित शिक्षकों और डॉक्टरों की अनुपस्थिति में गुणवत्तापूर्ण डॉक्टर नहीं बना पाएंगे.
डॉ आबिदी

लेकिन फिर, चिंता करने की कोई बात नहीं है. 2014 के बाद से भारत में मेडिकल कॉलेजों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है. पीटीआई के अनुसार, साल 2014 में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 387 थी, जिसकी संख्या 2023 में बढ़कर 654 हो गई है और स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में सीटें जो पूर्व में 94 प्रतिशत थी वो बढ़कर 107 प्रतिशत हो गई है.

कॉलेजों को प्रशासनिक मुद्दों को सुधारने के लिए समय दिया जाएगा?

हालांकि रिक्त पदों के लिए प्रशिक्षित लोगों को नियुक्त करने में कुछ समय लग सकते हैं. लेकिन सीसीटीवी  इंस्टॉलेशन और बायोमेट्रिक उपस्थिति जैसे प्रशासनिक मुद्दों को ठीक करने में कोई बड़ी समस्या नहीं होनी चाहिए.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एनएमसी दिशानिर्देशों को सख्ती से पालन करने के लिए दिसंबर 2022 में ही मेडिकल कॉलेजों को आगाह कर दिया था.

डॉ. देवदासन ने कहा, 'एनएमसी ने रातों-रात इन कॉलेजों को बंद नहीं किया. उन्होंने हफ्तों तक इसकी जांच की और विस्तृत जांच की और अब भी उनके पास मान्यता रद्द होने के 30 दिनों के भीतर नेशनल मेडिकल कमीशन में पहली अपील करने का विकल्प है. जबकि इसके बाद ये कॉलेज खुद केंद्रीय मंत्रालय के पास अपील कर सकते हैं.

डॉ. सूद ने NDTV को बताया कि करीब 20 मेडिकल कॉलेज पहले ही एनएमसी से अपील कर चुकी है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT