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Doctor's Day 2022: नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने अपने नये दिशा-निर्देश का प्रारूप जारी करके चिकित्सकों के बीच एक गंभीर बहस छेड़ दी है. कुछ प्रस्तावों का जहां स्वागत किया जा रहा है, वहीं कुछ प्रस्तावित निर्देशों को लेकर कई ऐसे सवाल उठाए जा रहे हैं, जो इलाज संबंधी मुश्किलों के संकेत दे रहे हैं.
लेकिन दूसरी तरफ ये भी कहा जा रहा है कि नये दिशा-निर्देश चिकित्सक-मरीज दोनों की सहूलियतों के मद्देनजर तैयार किए गए हैं.
आज नेशनल डॉक्टर्स डे के दिन चलिए बात करते हैं, डॉक्टरों के लिए प्रस्तावित दिशा-निर्देशों की.
वहीं फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी के प्रिंसिपल डायरेक्टर और एचओडी डॉ प्रवीण गुप्ता का कहना है, "हमारे यहां क्या है कंफ्यूजन क्रिएट हो गया. कंफ्यूजन क्यों है क्योंकि बहुत सारे सिस्टम ऑफ मेडिसिन यानी कि चिकित्सा की विधाएं हैं. बहुत सारे लोग क्रॉस प्रैक्टिस करते हैं. तो उस वजह से कंफ्यूजन है. इससे एक पारदर्शिता आएगी. इससे मरीज को भी स्पष्टता प्राप्त होती है कि वो किस पद्धति से इलाज करा रहे हैं और क्या दवा ले रहे हैं. इस कंफ्यूजन को मिटाने के लिए ये प्रस्ताव आया है".
साथ ही डॉ गुप्ता ये भी कहते हैं,
एक ऐसा प्रावधान रखा है, जिसमें डॉक्टर वो चाहे किसी भी विधा के हों या जो भी क्वालिफिकेशन हो यानी चाहे मॉडर्न मेडिसिन यानी एलोपैथी के, होमियोपैथी या आयुर्वेद के हों, 2 विधाओं में क्वालिफाइड होते हुए भी केवल किसी एक ही विधा की प्रैक्टिस करेंगे. दूसरी रेजिस्ट्रेशन डॉक्टर को वापस यानी सरेंडर करनी होगी.
नई ड्राफ्ट गाइडलाइन्स में कुछ बदलाव लाए गए हैं. जिसमें भारतीय एमबीबीएस ग्रैजूएट को अपने इंटर्न्शिप के बाद लाइसेंस के लिए NExT नाम की परीक्षा देनी होगी, जिसके आधार पर उनका रेजिस्ट्रेशन किया जाएगा. जो लोग विदेश से ग्रैजूएट हो कर आ रहे हैं उन्हें अपने देश में इंटर्न्शिप करने के बावजूद भारत में भी एक साल की इंटर्न्शिप करनी होगी. उसके बाद उन्हें NExT की परीक्षा और एक स्क्रीनिंग भी देनी होगी.
NExT एक टेस्ट है, जिससे डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स का एक न्यूनतम स्तर सुनिश्चित किया जाएगा. जैसे यूएस (US) में USMLE एक टेस्ट होता है, जो सभी मेडिकल ग्रैजुएट्स को देना पड़ता है, पोस्ट ग्रैजुएट की पढ़ाई और प्रैक्टिस करने के लिए.
उसी तरह हमारे देश में मेडिकल एजुकेशन का एक न्यूनतम स्तर जांचने के लिए ये शुरू करने की बात कही गयी है. ताकि हर व्यक्ति जो डॉक्टरी प्रैक्टिस कर रहा है, उसकी बुनियादी क्षमता समान और एक न्यूनतम स्तर के ऊपर हो.
"पहले किसी भी व्यक्ति को कहीं से भी इंटर्नशिप करके का लाइसेंस मिल जाता था और वो अपने आप को डॉक्टर रजिस्टर कर लेता था. पर अब रेजिस्ट्रेशन से पहले NExT नाम की परीक्षा देनी होगी. इसकी मदद से परीक्षार्थियों के न्यूनतम स्तर की जांच की जाएगी. इसमें देखा जाएगा कि व्यक्ति कम से कम तय न्यूनतम स्तर की जानकारी और एजुकेशनल क्वॉलिफिकेशन रखता है या नहीं, एक तय न्यूनतम स्तर के ऊपर की डॉक्टरी प्रैक्टिस कर सकता है या नहीं?
जिससे प्रैक्टिस के स्तर में कुल मिलाकर बढ़ोतरी होगी. ऐसा नहीं है कि किसी ने कहीं से भी या किसी भी प्राइवट कॉलेज से मेडिकल की डिग्री ले ली और उसे प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिल गया" ये कहना है डॉ प्रवीण गुप्ता का.
फायदा :
मेडिकल एजुकेशन और डॉक्टरों के प्रदर्शन का मानकीकरण (standardisation) होना बहुत जरूरी है. पूरे देश में एक स्तर के टेस्ट के आधार पर उनकी क्षमता का आंकलन किया जा सकता है. विदेश से पढ़कर भारत आ रहे डॉक्टरों को भारतीय मेडिकल सिस्टम में ट्रेन करके समान क्षमता पर उनका आंकलन किया जा सकता है. जिससे मेडिकल प्रैक्टिस की गुणवत्ता, मानकीकरण (standardisation) और डॉक्टरों के बुनियादी स्तर में सुधार आएगा और जो लोग उस मापदंड पर खड़े नहीं उतरेंगे, उन्हें प्रैक्टिस करने का लाइसेंस नहीं मिल पाएगा.
खामियां :
अभी तक नेशनल मेडिकल रजिस्टर बना नहीं है.
कैसे बनेगा और कैसे काम करेगा?
भारत में कौन-कौन से विदेशी एजुकेशन सिस्टम मान्यता प्राप्त हैं और कौन से नहीं हैं इस पर कोई स्पष्टता अभी नहीं है.
NExT परीक्षा का स्तर क्या होगा?
पूरे देश में एक ही परीक्षा से कैसे विभिन्न प्रकार के स्टूडेंट्स का आंकलन किया जाएगा?
कैसे इस टेस्ट के आधार पर पीजी सीट्स आवंटित होंगी?
जेनेरिक दवा का मतलब है, दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से अगर जानी जाए, तो उसे जेनेरिक दवा कहते हैं. जैसे- दर्द और बुखार में काम आने वाले पैरासिटामॉल सॉल्ट को कोई कंपनी इसी नाम से बेचे तो उसे जेनेरिक दवा कहेंगे. वहीं जब इसे किसी ब्रांड जैसे- क्रोसिन के नाम से बेचा जाता है, तो यह उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहलाती है.
मान लें कि ये गाइडलाइन लागू हो गयी है और अब डॉक्टर केवल जेनेरिक दवा लिख रहे हैं. कुछ समस्या जो मेरी समझ से सामने आ सकती हैं वो ये हैं:
1. ऐसे में जब मरीज दवा दुकान पर जेनेरिक दवा लेने जाता है, तो 2 तरह की परिस्थितियां सामने आ सकती हैं और दोनों ही परिस्थिति आदर्श नहीं है.
यहां हम आपको याद दिला दें कि हमारे देश में कई दवा कंपनियां हैं, जो जेनेरिक दवाओं को अलग-अलग नामों से बनाती और बेचती हैं.
दुकानदार यानी कि केमिस्ट मरीज को प्रिसक्राइब्ड जेनेरिक दवा का 4-5 विकल्प दिखा सकता है. ऐसे में मरीज दुविधा में पड़ या तो दोबारा डॉक्टर से संपर्क करेगा या केमिस्ट की सलाह से दवा खरीद लेगा. केमिस्ट की सलाह मानना हानिकारक हो सकता है क्योंकि केमिस्ट को भी कई बार पूरी जानकारी नहीं होती है.
केमिस्ट उस दवा को बेचेगा, जिसमें उसे सबसे ज्यादा मुनाफा हो. जिससे मरीज की जेब और हल्की हो जाएगी.
2. यह डॉक्टरों के लिए परेशानी का सबब भी बन जाएगा. उदाहरण के तौर पर,
मल्टी विटामिन की एक गोली या सिरप के 1 चम्मच में 15 अलग-अलग सॉल्ट यानी दवा होती है. इस गाइडलाइन के तहत डॉक्टरों को 1 मल्टी विटामिन के लिए 15 दवाइयों के नाम लिखने पड़ेंगे. जो कई दूसरी जटिलताओं को बढ़ा सकता है.
यहां एक समस्या ये भी है कि ऐसे में जब बात डॉक्टर, जो दवा के मामले में केमिस्ट से कहीं अधिक जानकारी रखते हैं, के हाथों से निकाल कर केमिस्ट के पास चली जाएगी तो दवा की गुणवत्ता पर भी सवाल उठ खड़े होंगे. हम सभी देश में नकली दवाओं के बाजार से भली भांति परिचित हैं.
"कुछ दवाइयां ऐसी होती हैं, जिनकी कंप्लायंस (compliance) की वजह से उन्हें 'फिक्स्ट डोस कॉम्बिनेशन' यानी कि एक ही कैप्सूूल में 2-3 दवाइयों को मिला कर बनाया जाता है. इसके अपने नुकसान और फायदे हैं. ज्यादातर मरीज जिन्हें ऐसी दवाओं की जरूरत है, वो इससे संतुष्ट हैं" ये कहना है डॉ. अश्विनी सेतिया का फिट हिंदी से.
आइए समझें क्या है फिक्स्ट डोज कॉम्बिनेशन के फायदे.
मान लें किसी मरीज को 2-3 बीमारी एक साथ है. जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थायराइड. इनके इलाज के लिए उसे एक दिन में 9 दवा खानी पड़ेगी. वहीं अगर वह फिक्स्ट डोज कॉम्बिनेशन वाली दवा का सेवन करें तो केवल 3 गोलियां दिन भर में लेनी होगी. स्वाभाविक है मरीज कम से कम गोली खाना चाहेंगे.
फिक्स्ट डोस कॉम्बिनेशन की मनाही के पीछे कारण क्या है?
हमारे एक्स्पर्ट्स कहते हैं, आजकल कई कंपनियां कोई भी 2-3 दवा को मिलाकर एक दवा बना देती है. उसके बाद डॉक्टर वो प्रिस्क्राइब करते हैं. इससे नए-नए कॉम्बिनेशन और ओवर मेडिकेशन बढ़ रहे हैं. इसे रोकने के लिए सरकार ये कदम उठा रही है, जो सही है पर सारे कॉम्बिनेशन खराब या बेकार नहीं होते. ऐसे में रेग्युलेटर के स्तर पर ही कॉम्बिनेशन को स्वीकृति या अस्वीकृति देनी चाहिए.
डॉ गुप्ता ने फिट हिंदी से कहा, "मरीजों को दुविधा के साथ-साथ दवाओं की संख्या में बढ़ोतरी की मार भी झेलनी पड़ेगी. इससे दवा पर पैसे भी ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे. अच्छा यह होगा कि नंबर ऑफ कॉम्बिनेशन को रेस्ट्रिक्ट कर दिया जाए. आजकल कोई भी कुछ भी कॉम्बिनेशन बना कर बेचता है. उसकी जगह कुछ स्टैंडर्ड अप्रूव्ड कॉम्बिनेशन को रखा जाए और दूसरे किसी भी कॉम्बिनेशन को अप्रूव करने से रोक दिया जाए. इससे अनावश्यक अवांछित (unnecessary unwanted) ड्रग कॉम्बिनेशन भी बंद हो जाएंगे, जो इस प्रस्ताव का मकसद है. जो कॉम्बिनेशन प्रचलित हो चुके हैं और लोगों को जिस वजह से कम दवाइयां खानी पड़ रही हैं, उन्हें बंद न करें".
डॉक्टर प्रीफिक्स का प्रयोग बहुत लोग कर रहे हैं. जैसे कि अगर कोई पीएचडी हों, फिजियोथेरपिस्ट हों, आयुर्वेद के डॉक्टर हों और भी कई लोग. NMC के अनुसार, यह दुविधा खत्म करने के लिए मॉडर्न मेडिसिन यानी एलोपैथिक के डॉक्टरों को कहा गया है Dr के पहले (MED) लगाने.
डॉ गुप्ता के अनुसार, यह प्रस्ताव थोड़ा काम्प्लिकेटड है पर कम से कम जो एलोपैथी (allopathy) डॉक्टर हैं उन्हें औरों से अलग कर देगा. यह मॉर्डन सिस्टम ऑफ मेडिसिन के डॉक्टर को पहचानने में मरीजों की मदद करेगा.
जब फिट हिंदी ने डॉ गुप्ता से पूछा, क्या एलोपैथी (allopathy) के डॉक्टर के लिए Dr और बाकी दूसरे डॉक्टरों के लिए दूसरे प्रीफिक्स का प्रयोग करना कॉम्प्लिकेशन को कम नहीं कर देता? तो उनका जवाब था,
"ये तो आदर्श बात होती. शायद ये कदम उठाने की हिम्मत हमारे अंदर अभी नहीं है. हमने ही बाकी सभी को ये सुविधा प्रदान की, अब हम उनसे ये सुविधा वापस नहीं चाह रहे क्योंकि हो सकता है उन्हें ये पसंद न आए. मैं आपको याद दिला दूं, डॉक्टर प्रीफिक्स की अहमियत इस पेशे के दूसरे प्रीफिक्स से कहीं ज्यादा है."
बहुत सारे डॉक्टर अपने नाम के आगे डिग्रीनुमा अलग-अलग तरह के अक्षर लगा लेते हैं. ये सही नहीं है. इसलिए डॉक्टर केवल उसी डिग्री को लिख सकते हैं, जो एनएमसी (NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त हैं. जैसे कि कई डॉक्टर MIMA यानी कि मेंबर ऑफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को भी डिग्री की तरह अपने नाम के साथ लिख देते हैं. इससे भ्रम फैलता है.
इस पर डॉक्टर एसोसिएशन के सदस्यों ने सुझाव दिया है कि जो मान्यता प्राप्त फेलोशिप हैं, उनके प्रीफिक्स को लिखने की सुविधा देनी चाहिए.
नेशनल मेडिकल रजिस्टर बनाया जाएगा जिसके अंदर लोगों (डॉक्टर) की क्वॉलिफिकेशन अपडेट की जाएगी और उसे डायनामिक बेसिस पर अपडेट किया जा सकेगा, जिससे कि एक कंटिन्यूअस इंफॉर्मेशन फ्लो (continuous information flow) बनाया जा सके. डॉक्टरों की सही संख्या, क्षमता और उनकी शैक्षणिक योग्यता का देश भर में डायनामिक अपडेशन होगा. जिससे देश भर के डॉक्टरों की शैक्षणिक योग्यता और रेजिस्ट्रेशन को एक समानता से देखा जा सकेगा. एक राज्य से दूसरे राज्य जा कर प्रैक्टिस करने में डॉक्टरों को आसानी होगी.
डॉक्टरों का इस पर सुझाव है कि एक यूनिक नंबर जो एनएमसी (NMC) देगी उसे स्टेट मेडिकल रेजिस्टर से लिंक कर देना चाहिए ताकि अगर किसी भी अधिकार प्राप्त (authorised) व्यक्ति को डॉक्टर से जुड़ी जानकारी चाहिए तो उन्हें वह सभी एक जगह प्राप्त हो जाएं. सभी जानकारी को डिजिटल रूप देना काफी मददगार साबित होगा.
डॉक्टर अपने मरीज को क्लिनिक में मौजूद दवा की दुकान से दवा बेच सकते हैं, पर किसी दूसरे डॉक्टर के मरीज को वो दवा नहीं बेच सकते. चाहे वो दवा के मामले में कितने भी जानकर क्यों न हों. क्योंकि ऐसा करना नियम के विरुद्ध है.
इस विषय पर भी डॉक्टरों ने अपना सुझाव दिया है कि जैसे किसी भी दूसरे व्यवसायी केमिस्ट को सभी को दवा बेचने का लाइसेन्स प्रदान किया जाता है, वैसे ही डॉक्टरों को, जो कि किसी भी केमिस्ट से कहीं ज्यादा दवाओं का ज्ञान रखते हैं, सभी को दवा बेचने की अनुमति मिलनी चाहिए.
मेडिकल नेग्लिजेंस के मामलों की सुनवाई नेशनल मेडिकल काउन्सिल या स्टेट मेडिकल काउन्सिल में होती है. यहां पर डॉक्टरों के लिए एक समस्या यह है कि डॉक्टर को अपने मामले या केस की वकालत खुद करनी होती है. वो इसमें किसी भी वकील या किसी भी दूसरे व्यक्ति की मदद नहीं ले सकते हैं. ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि क्या सभी निर्दोष डॉक्टर अपनी बात प्रभावी ढंग से कहने में या निर्दोष होते हुए काउन्सिल को यह साबित कर पाने में सक्षम होते हैं?
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