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India Air Quality: वायु प्रदूषण के कारण भारतीयों का जीवन 5 साल कम हुआ: रिपोर्ट

दुनिया भर में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है. भारत उन देशों में है, जिनमें वायु प्रदूषण सबसे अधिक है.

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<div class="paragraphs"><p>दिल्ली की वायु गुणवत्ता पिछले कुछ वर्षों में गिर गई है, और आज, यह ग्रह पर सबसे खराब में से एक है.</p></div>
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दिल्ली की वायु गुणवत्ता पिछले कुछ वर्षों में गिर गई है, और आज, यह ग्रह पर सबसे खराब में से एक है.

(फोटो:iStock)

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एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ऑफ द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो द्वारा जारी किए गए एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के नवीनतम एडिशन के अनुसार, वायु प्रदूषण ने भारत की लाइफ एक्सपेक्टेंसी को पांच साल कम कर दिया है - एक भारी कीमत जो भारत के नागरिकों को चुकाना पड़ रहा है.

बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान दुनिया के पांच सबसे प्रदूषित देशों में हैं.

रिपोर्ट में पाया गया कि भारत के सभी लोग, लगभग 130 करोड़, ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां वार्षिक औसत पार्टिक्युलेट प्रदूषण स्तर WHO के गाइडलाइन से अधिक है.

भारत के 63 प्रतिशत शहरों में AQI 40 µg/m3 (माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब), जो राष्ट्रीय मानक है, से अधिक है.

2019 के एक लैंसेट स्टडी में यह भी पाया गया कि भारत में 16 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार था, जो वार्षिक मौतों का लगभग 17.8 प्रतिशत है.

"2013 के बाद से, दुनिया में प्रदूषण की वृद्धि के लगभग 44 प्रतिशत के लिए भारत जिम्मेदार है, जहां पार्टिक्युलेट प्रदूषण स्तर 53 μg/m3 से बढ़कर आज 56 μg/m3 हो गया है - WHO दिशानिर्देश से लगभग 11 गुना अधिक."
- AQLI रिपोर्ट, शिकागो विश्वविद्यालय

भारत क्या कर रहा है?

हाल के वर्षों में, भारत के निवासियों ने वायु प्रदूषण को एक प्रमुख स्वास्थ्य खतरे के रूप में मान्यता दी है और सरकार भी अब इस पर एक्शन ले रही है.

2019 में, भारत सरकार ने अपना राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) शुरू किया, जिसका उद्देश्य 2024 से पहले हानिकारक कणों के स्तर को 20-30 प्रतिशत तक कम करना है, जो की नॉन-बाइन्डिंग है.

अभी भी उम्मीद है कि अगर WHO द्वारा निर्धारित वायु प्रदूषण के स्तर का पालन किया जाता है - तो लाइफ एक्सपेक्टेंसी दिल्ली में 10.1 साल, बिहार में 7.9 साल और उत्तर प्रदेश में 8.9 साल बढ़ सकती है.

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शिकागो स्टडी के लेखकों ने कहा, "भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में 1.6 साल जीवन को बढ़ाने की क्षमता है."

2013 के बाद से दुनिया में होने वाले प्रदूषण में करीब 44 फीसदी बढ़ोतरी भारत से हुई है.

लंबे समय के बाद, WHO ने भी अपने दिशानिर्देशों को रिवाइज (revise) किया और पीएम 2.5 के वार्षिक औसत को 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम कर दिया.

पीएम 2.5 हमारे शरीर के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि इसका छोटा आकार इसे आसानी से हमारे फेफड़ों और ब्लड स्ट्रीम में प्रवेश करने देता है, जिससे हमें श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा रहता है.

AQLI की निदेशक क्रिस्टा हैसेनकॉफ ने अपने बयान में बताया कि WHO के नए दिशानिर्देशों के अनुसार AQLI के अपडेट होने से हमें पता चलता है कि प्रदूषित वायु में सांस लेने से हमें कितना नुकसान हो रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि अब हमारे पास स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के दुष्परिणाम के पर्याप्त सबूत हैं और इसलिए सरकार को अब इसे अर्जेन्ट पॉलिसी मुद्दे के रूप में प्राथमिकता देनी चाहिए.

भारत का रिपोर्ट कार्ड

AQLI में भारत के प्रदर्शन में पिछले साल से कोई सुधार नहीं हुआ है.

इंडेक्स के अनुसार, उच्च प्रदूषण का स्तर मुख्य रूप से औद्योगीकरण, आर्थिक विकास और जनसंख्या वृद्धि के कारण है. 2000 के दशक की शुरुआत से सड़क वाहनों की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में फॉसिल फ्यूल से बिजली उत्पादन 1998 से 2017 के बीच तीन गुना हो गया है.

देश में सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र बिहार, दिल्ली और उत्तर प्रदेश हैं.

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में, जहां लगभग 20 करोड़ लोग रहते हैं, 2000 के दशक की तुलना में प्रदूषण के स्तर में 68.4 प्रतिशत और 77.2 प्रतिशत वृद्धि देखी गई है.

इन राज्यों में, औसत लाइफ एक्सपेक्टेंसी लगभग 1.7-2.5 वर्ष कम हो गई है.

पिछली AQLI रिपोर्ट में पाया गया था कि, विश्व स्तर पर, वायु प्रदूषण के कारण, अन्य चीजों की तुलना में, व्यक्ति के जीवन के वर्षों में सबसे ​​अधिक कमी आती है (2.2 वर्ष) - असुरक्षित पानी और सैनिटेशन (7 महीने), एचआईवी/एड्स (4 महीने), मलेरिया (3 महीने), संघर्ष और आतंकवाद (9 दिन), धूम्रपान (1.9 वर्ष), और शराब का सेवन (8 महीने).

AQLI दर्शाता है कि कौन से देश जोखिमों को समझते हैं और नागरिकों की भलाई को प्राथमिकता देते हैं.

यह देशों को स्वास्थ्य में सुधार लाने और लाइफ एक्सपेक्टेंसी में वृद्धि लाने का अवसर प्रदान करता है अगर वे पर्यावरण रेग्युलेशन को स्वीकार करें.

जिम्मेदारी अब सरकारों पर आ गयी है - चीन की तरह कठोर नीति (जिसके कारण 2013 के बाद से प्रदूषण का वैश्विक स्तर नीचे आया है) अपनाने से शायद नागरिकों को एक सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं.

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