मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019जनसांख्यिकी असंतुलन पर CM योगी ने जताई चिंता, किस समुदाय में प्रजनन दर कितनी है?

जनसांख्यिकी असंतुलन पर CM योगी ने जताई चिंता, किस समुदाय में प्रजनन दर कितनी है?

World Population Day: सीएम योगी ने कहा- जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम बढ़े लेकिन जनसांख्यिकी असंतुलन न हो

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Updated:
<div class="paragraphs"><p>जनसांख्यिकी असंतुलन पर CM योगी ने जताई चिंता, किस समुदाय में प्रजनन दर कितनी है?</p></div>
i

जनसांख्यिकी असंतुलन पर CM योगी ने जताई चिंता, किस समुदाय में प्रजनन दर कितनी है?

(फोटो- Altered By Quint)

advertisement

यूपी के CM योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) के मौके पर कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम सफलतापूर्वक आगे बढ़े, लेकिन जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति भी न पैदा हो पाए. सीएम योगी लखनऊ में विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर 'जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा' की शुरु कर रहे थे.

योगी आदित्यनाथ ने कहा, जब हम परिवार नियोजन की बात करते हैं. तब इस बात का ध्यान रखना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण का काम सफलतापूर्वक आगे बढ़े. लेकिन जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति भी पैदा न होने पाए. ऐसा नहीं है कि किसी वर्ग की आबादी बढ़ने की स्पीड, उनका प्रतिशत ज्यादा हो.

भारत में खास समुदाय के बीच प्रजनन दर को लेकर कई दांवे किये जाते रहे हैं. जानते हैं कि देश में देश की आबादी की बढ़ती रफ्तार में कितनी कमी आयी है और उसमें विभिन्न समुदाय का योगदान कितना है.

देश में घट रही प्रजनन दर, मुसलमानों में सबसे तेज गिरावट लेकिन अब भी सबसे ज्यादा

देश में घट रही हैं प्रजनन दर यानी देश की आबादी की बढ़ती रफ्तार में कमी आयी है. ये बात सामने आयी है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की ताजा रिपोर्ट में कई और बातें भी सामने निकलकर आई हैं.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारत में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) (2019-21) के पांचवें दौर के विस्तृत निष्कर्ष (detailed conclusion) जारी किए हैं. NFHS-5 के पांचवें चरण की रिपोर्ट से पता चला है कि भारत की कुल प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है.

पिछले साल नवंबर में एक संक्षिप्त तथ्य (brief facts) पत्र भी जारी किया गया था. इससे पता चलता है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए उठाए गए कदम सकारात्मक परिणाम दे रहे हैं. गौरतलब है कि NFHS के चौथे चरण के आंकड़ों के अनुसार प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) 2.7 थी.

सभी धार्मिक समुदायों ने देश की कुल प्रजनन दर के गिरावट में योगदान दिया है.

NFHS-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में सभी धार्मिक समुदायों में मुसलमानों की प्रजनन दर (fertility rate) में सबसे तेजी से गिरावट देखी गई है. पिछले कुछ वर्षों में देखी गई गिरावट को ध्यान में रखते हुए, मुस्लिम समुदाय की प्रजनन दर 2019-2021 में गिरकर 2.3 हो गई, जो 2015-16 में 2.6 थी.

प्रजनन दर के आंकड़ों के अनुसार, NFHS (1992-93) में 4.4 से NFHS 5 (2019-2021) में 2.3 तक गिरावट आई है.

NFHS- 5 में, हिंदू समुदाय 1.94 पर है, ईसाई समुदाय की प्रजनन दर 1.88, सिख समुदाय की 1.61, जैन समुदाय की 1.6 और बौद्ध और नव-बौद्ध समुदाय की 1.39 है.

नए आंकड़ों के अनुसार, देश में केवल 5 ऐसे राज्य हैं, जहां की प्रजनन क्षमता 2.1 से अधिक है. इनमें बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) और मणिपुर (2.17) शामिल हैं.

बच्चों के न्यूट्रिशनल स्टेटस में थोड़ा सुधार जरूर देखा गया है, लेकिन बच्चों और महिलाओं में एनीमिया (खून की कमी) की स्थिति चिंतित करने वाली है.

MoHFW ने अब रिपोर्ट से अधिक बारीक डेटा का विवरण जारी किया है, जो भारत और उसके प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (UT) के लिए जनसंख्या, स्वास्थ्य और पोषण पर जानकारी प्रदान करता है.

आइए जानते हैं, विस्तार से

क्या है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS)?

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) बड़ी संख्या में भारत के घरों से एकत्र किए गए डेटा सैंपल के आधार पर, एक बड़े पैमाने पर किया जाने वाला, मल्टी-राउंड सर्वे है. यानी की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे एक 'सैम्पल सर्वे' है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) भारत के लोगों की प्रजनन क्षमता, शिशु और बाल मृत्यु दर, परिवार नियोजन की प्रथा, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण, एनीमिया, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन सेवाओं की गुणवत्ता और उपयोग पर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जानकारी प्रदान करता है.

NFHS-5 के हाइलाइट्स (Highlights)

एनएफएचएस-5 2015-16 की एनएफएचएस-4 रिपोर्ट के समान है, हालांकि, इस बार प्रीस्कूल शिक्षा, विकलांगता, शौचालय की सुविधा तक पहुंच, मृत्यु पंजीकरण, मासिक धर्म के दौरान स्नान प्रथा, और गर्भपात के तरीके और कारण जैसे विषयों पर अधिक डेटा है.

यहां एनएफएचएस-5 रिपोर्ट के कुछ प्रमुख निष्कर्षों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है.

  • पिछले पांच वर्षों में जन्म लेने वाले बच्चों में लिंगानुपात (प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाएं) 919 (2015-16) से बढ़कर 929 (2019-2021) हो गया.

  • ऐसे परिवार जिसमें कम से कम एक सदस्य किसी स्वास्थ्य बीमा / वित्त पोषण योजना के अंतर आच्छादित (covered) हो, 28.7 प्रतिशत से बढ़कर 41 प्रतिशत हो गये.

  • 20-24 वर्ष की महिलाएं जिनकी शादी 18 साल से कम की उम्र में हो गई थी, 26.8 फीसदी से घटकर 23.3 फीसदी हो गई.

  • किशोर प्रजनन दर (15-19 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं) में भी 51 प्रतिशत से 43 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. ग्रामीण भारत में, यह संख्या शहरी भारत (27) की तुलना में लगभग दोगुनी (49) थी.

  • नवजात मृत्यु (एनएनएमआर) प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 24.9 रह गई है.

  • शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 35.2 है.

  • परिवार नियोजन में वृद्धि हुई है, वर्तमान में 15 से 49 आयु वर्ग की 66.7 विवाहित महिलाओं ने गर्भ निरोधकों का चयन किया है.

  • कंडोम, गोलियां, आईयूडी और इंजेक्शन सहित गर्भ निरोध के आधुनिक तरीकों का विवाहित महिलाओं में उपयोग भी 47 से बढ़कर 56.5 प्रतिशत हो चुका है.

घरेलू हिंसा के मामले कम होने की बजाय पहले की तुलना बढ़ गए हैं.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) की खास बातें

देश में पहली बार प्रजनन दर 2.1 से नीचे गया है.

प्रजनन दर में गिरावट

(कार्ड: फिट)

पहली बार देश में प्रजनन दर 2 पर आ गई है. 2015-16 में यह 2.2 थी. इस तरह भारत की कुल प्रजनन दर यानी प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या राष्ट्रीय स्तर पर 2.2 से घटकर 2 हो गई है.

पहली बार प्रति 1000 पुरुषों पर हजार से ज्यादा महिलाएं.

प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020

(कार्ड: फिट)

देश में पहली बार प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020 हो गई है. इससे पहले 2015-16 में हुए NFHS-4 (2015-16) में यह आंकड़ा प्रति 1000 पुरुषों पर 991 महिलाओं का था.

शिशु मृत्यु दर और न्यूट्रिशनल स्टेटस में सुधार

बच्चों की मृत्यु दर में थोड़ा सुधार

(कार्ड: फिट)

पिछले सर्वे की तुलना में, देश की शिशु मृत्यु दर (Mortality Rate) में कमी देखने को मिली है. देश में नवजात शिशुओं (प्रति 1,000 जन्मों पर मौतें) और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई है.

बच्चे के न्यूट्रिशनल स्टेटस में थोड़ा सुधार

बच्चे और बड़ों का न्यूट्रिशनल स्टेटस

(कार्ड: फिट)

सर्वे में बच्चों के न्यूट्रिशनल स्टेटस में थोड़ा सुधार देखा गया है क्योंकि देश में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग 38.4 प्रतिशत से घटकर 35.5 प्रतिशत और कम वजन 35.8 प्रतिशत से 32.1 प्रतिशत हो गया है. देश के 5 साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग (विकास रुकावट होना) के मामलों में कमी आई है. मामले 38 फीसदी से घटकर 36 फीसदी हुए.

एनीमिया के मामले में चिंताजनक स्थिति

बच्चों और महिलाओं में खून की कमी

(कार्ड: फिट)

देश में एनीमिया से जूझ रहे बच्चों और महिलाओं की तादाद में चिंताजनक वृद्धि दिखी है. देश में आधी से अधिक महिलाएं, जिनमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं और बच्चे एनीमिक हैं यानी उनमें खून की कमी है.

ग्रामीण भारत में 6-59 महीने के 68.3 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी दर्ज की गई है. शहरों में ये तादाद 64.2 प्रतिशत का है. इस आयु वर्ग में 2019-21 में कुल एनीमिक बच्चों की तादाद 67.1 फीसद है, जो कि 2015-16 के दौरान 58.6 फीसद थी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मोटापा भी बढ़ रहा

(कार्ड: फिट)

NFHS-4 की तुलना में NFHS- 5 में अधिक वजन या मोटापे की समस्या में वृद्धि हुई है. 5 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ ही मोटापे से ग्रस्त वयस्कों की संख्या में भी इजाफा हुआ है.

एनएफएचएस-5: इसमें क्या मिला और उसका अर्थ

  • गर्भनिरोधक उपयोग बढ़ा है

सर्वेक्षण के सबसे अच्छी बातों में से एक रहा है आधुनिक गर्भनिरोधक उपयोग में सकारात्मक वृद्धि. हालांकि, यह भी पता चलता है कि "परिवार नियोजन के तरीकों के आवश्यकता की अपूर्ती" सबसे कम धन वाले क्विंटाइल (11.4 प्रतिशत) में सबसे अधिक है.

सबसे कम धन वाले क्विंटाइल में केवल 50.7 प्रतिशत महिलाओं ने आधुनिक गर्भनिरोधकों का प्रयोग किया, जबकि उच्चतम धन वाले क्विंटाइल में 58.7 प्रतिशत महिलाओं ने.

जो महिलाएं कार्यरत हैं उनमें भी आधुनिक गर्भनिरोधकों का प्रयोग करने की अधिक संभावना पाई गई.

गर्भ निरोधकों के आधुनिक तरीकों का उपयोग बढ़ा, देश में कन्ट्रासेप्टिव प्रिवलेंस रेट (सीपीआर) में वृद्धि, 54 फीसदी से बढ़कर 67 फीसदी.

इसका क्या अर्थ है:

जबकि डेटा से पता चलता है कि गर्भ निरोधकों का ज्ञान अब लगभग सबको है (ग्रामीण और शहरी भारत में 99 प्रतिशत विवाहित पुरुषों और महिलाओं को उनके बारे में पता था), वर्तमान में विवाहित आबादी का केवल 50 प्रतिशत से थोड़ा अधिक गर्भ निरोधकों का विकल्प चुनता है.

उनका उपयोग रोजगार की स्थिति और आय के स्तर से भी निर्धारित होता है.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, "यह डेटा पहले से इकट्ठा किए गए कई सबूतों के साथ मिलकर साबित करता है कि विकास ही सबसे अच्छा गर्भनिरोधक है"

  • महिला नसबंदी अभी भी गर्भनिरोधक का सबसे लोकप्रिय तरीका है

15 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 37.9 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने महिला नसबंदी करवाई. यह 2015-16 की तुलना में लगभग 2 प्रतिशत अधिक है.

जबकि शहरी भारत (36.3 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण भारत में अधिक महिलाएं (38.7 प्रतिशत) इससे गुजरती हैं, अंतर छोटा है.

इसका क्या अर्थ है:

परिवार नियोजन का दायित्व अभी भी महिलाओं पर बहुत अधिक होता है, और आधुनिक गर्भ निरोधकों से महिला नसबंदी की प्रथा कम होने की जगह और बढ़ गयी है.

जहां तक ​​ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का संबंध है, इसमें बहुत अधिक अंतर नहीं है.

  • एनीमिया एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है

15-49 वर्ष की महिलाओं में से 57 प्रतिशत एनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित पाई गई, जबकि समान आयु वर्ग के 25 प्रतिशत पुरुषों में एनीमिया पाया गया.

वास्तव में, सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं सहित सभी श्रेणियों में एनीमिया की व्यापकता बढ़ी है.

इसका क्या अर्थ है:

2015-16 की तुलना में जहां महिलाओं में एनीमिया के मामलों में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं पुरुषों में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

भारत एनीमिया के बोझ से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम नहीं रहा है और यह सभी आयु समूहों, लिंगों और सामाजिक स्तरों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. सरकार को इस मुद्दे से निपटने के लिए इसे और अधिक प्राथमिकता देनी होगी.

  • मोटापा बढ़ रहा है

24 प्रतिशत महिलाएं और 22.9 प्रतिशत पुरुष अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त पाए गए (बीएमआई 25.0 kg/m2), जो 2015-16 की तुलना में 4 प्रतिशत अधिक है.

इसका क्या अर्थ है:

जहां मोटापा पुरुषों और महिलाओं दोनों में बढ़ा है, वहीं 2015-16 की तुलना में समान आयु वर्ग के कम लोगों का वजन घटा है.

  • बच्चों का वैक्सीनेशन कवरेज बढ़ा

देश में 1-2 वर्ष के 77% बच्चों का पूरा टीकाकरण होने की बात रिपोर्ट में सामने आयी है.

इसका क्या अर्थ है:

पिछले NFHS-4 और NFHS-5 डेटा की तुलना करने पर, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में तेजी से वृद्धि देखी गई है.

  • स्वच्छता के प्रति बढ़ी है जागरूकता

NFHS- 5 में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन (44 प्रतिशत से 59 प्रतिशत) और बेहतर स्वच्छता सुविधाओं (49 प्रतिशत से 70 प्रतिशत) के उपयोग में वृद्धि का भी उल्लेख है, जिसमें साबुन और पानी से हाथ धोने की सुविधा (60 प्रतिशत) शामिल है.

आगे का रास्ता

NFHS-5 की रिपोर्ट का डेटा सकारात्मक और असफल परिणाम, दोनों दर्शाता है.

जहां तक ​​प्रजनन स्वास्थ्य, नवजात स्वास्थ्य देखभाल और बच्चों में टीकाकरण का सवाल है, तो काफी सफलता प्राप्त हुई है, पर जहां तक ​​आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का सवाल है, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच असमानता को दूर करने के लिए अभी बहुत काम होना बाकी है.

"हालांकि एनएफएचएस-5 डेटा में जश्न मनाने के लिए बहुत कुछ है, खास कर यह तथ्य कि कुल प्रजनन दर 2.0 तक आ गई है, अब हमारा ध्यान उन वर्ग के लोगों तक पहुंचने पर होना चाहिए, जो पहचान या भूगोल के आधार पर वंचित हैं” ये कहना है, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा का.

कुछ बड़ी चिंताएं हैं, जो इस डेटा को उजागर करती हैं, एनीमिया का उच्च प्रसार, खराब पोषण, और गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) का उच्च प्रसार जो पहले दर्ज नहीं किया गया था:

पूनम मुटरेजा ने कहा, "देश की विशाल जनसंख्या और विविधता को ध्यान में रखते हुए, डेमोग्राफिक ट्रांजिशन के विभिन्न चरणों से गुजरने वाले राज्यों के लिए विशिष्ट नीति और कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी."

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 09 May 2022,08:14 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT