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भारतीय जेल और मेंटल हेल्थ: सलाखों के पीछे लोग मानसिक स्वास्थ्य से कैसे जूझ रहे?

जेलों में खराब सुविधाओं और सीमित स्वास्थ्य देखभाल के कारण कैदी खराब मेंटल हेल्थ से पीड़ित हो सकते हैं.

डॉ. देबंजन बनर्जी
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भारतीय जेल और मेंटल हेल्थ: सलाखों के पीछे लोग मानसिक स्वास्थ्य से कैसे जूझ रहे?

(फोटो: iStock)

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वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) अक्सर कहता है कि मेंटल हेल्थ के बिना कोई स्वास्थ्य नहीं है और मेंटल हेल्थ चुनौतियां उन जगहों पर ज्यादा देखने को मिलती हैं, जहां पर लोग किसी प्रकार से अधिक वल्नरेबल होते हैं. ऐसी ही एक वल्नरेबल आबादी कैदियों की है.

एक दशक पहले तक 4,00,000 से अधिक भारतीय जेलों में रहते थे.

ह्यूमन राइट्स और कानूनी आधारों पर बहस को एक तरफ रखते हुए, जेलों के वातावरण, जिनमें कई प्रकार के प्रतिबंध होते हैं, शक्तिशाली शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को जन्म दे सकते हैं. यह चुनौतियां कैद होने की अवधि, जेल की सुविधाओं, कर्मचारियों के व्यवहार और ट्रेनिंग पर भी निर्भर करती हैं.

जेल में खराब सुविधाएं, भीड़भाड़, प्रतिबंधित प्राइवसी, सीमित मोबिलिटी, बुनियादी सुविधाओं की कमी, ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन, नींद में खलल और स्वास्थ्य देखभाल की कम पहुंच, खराब मानसिक स्वास्थ्य का जोखिम बढ़ा सकती है.

कलंक, भेदभाव, दुर्व्यवहार: डेटा जेलों में खराब मेंटल हेल्थ की महामारी को दर्शाता है

2018 में इंडियन जर्नल ऑफ सोशल साइकाइट्री में पब्लिश एक स्टडी से पता चला कि 'स्किट्जोफ्रीनिया' जेल के कैदियों में सबसे आम मानसिक बीमारी है और उसके बाद सबसे आम है डिप्रेशन, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) और नींद न आना.

कैनबिस, शराब और तंबाकू की लत के मामले भी अधिक थे. जेलों में आत्महत्या और खुद को नुकसान पहुंचाने के व्यवहार भी आम हैं, जो और भी जटिल हो जाते हैं क्योंकि ऐसे मुद्दों पर निगरानी और सेंसिटिविटी कम होती है.

दुर्भाग्य से, दूसरी प्राथमिकताओं के कारण, मेंटल हेल्थ को फंडिंग और सेवा प्रावधानों (provision) के संबंध में लगभग हमेशा बैकबेंचर का दर्जा मिलता है.

जेलों में दूसरे कारक जैसे मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूकता की कमी, स्टिग्मा, सुविधाओं की कमी, हिंसा, सोशल आइसोलेशन, भविष्य के बारे में अनिश्चितता और 'सामान्य' कार्यक्रम की कमी कैदियों को मदद मांगने से डिसकरेज करती है.

किसी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा हुई है या नहीं, इसके आधार पर जेल में मेंटल हेल्थ के मुद्दे अलग-अलग हो सकते हैं या फिर इस बात पर भी कि क्या वह व्यक्ति वास्तव में दोषी है या नहीं या अतीत में उसे मेंटल हेल्थ संबंधी समस्याएं थीं या नहीं.

हिंसक अपराधों के कारण दोषी ठहराए गए लोगों में पीएसटीडी (PTSD), एजिस्टमेंट डिसऑर्डर, पैनिक डिसऑर्डर और लॉन्ग-टर्म डिप्रेशन जैसे ट्रॉमा रिएक्शन आम हैं.

प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2019 डेटा में इसका उल्लेख है

  • कुल जेल आबादी का 1.5% संभवतः मानसिक बीमारियों से पीड़ित है

  • इनमें से 50% लोग अन्डर-ट्रायल हैं.

भारतीय जेलों में सुधारात्मक (मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल सहित) कर्मचारियों की भी भारी कमी है.

कैदी और मेंटल हेल्थ देखभाल स्टाफ का रेशियो और कैदी और सुधारात्मक स्टाफ का रेशीओ क्रमशः 243:1 और 628:1 है.

जेलों में मेंटल हेल्थ के मुद्दों में वृद्धि के लिए स्टिग्मा, भेदभाव, ह्यूमन राइट्स क्राइसिस, सब्सटेंस एब्यूज और कर्मचारियों के प्रशिक्षण की कमी को मुख्य कारकों के रूप में पहचाना गया.

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लेकिन भारतीय कानून कैदियों को सुरक्षा प्रदान करता है

हालिया मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 में इस संबंध में कई स्वागत योग्य प्रावधान (provisions) हैं. यह एक मानसिक बीमारी वाले कैदी को "मानसिक बीमारी से पीड़ित एक व्यक्ति जो अन्डर-ट्रायल है या किसी अपराध का दोषी है और जेल या प्रिजन में कैद है" के रूप में परिभाषित करता है.

इस एक्ट के तहत, प्रस्तावित मेंटल हेल्थ रिव्यू बोर्ड से, मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं को इन्स्पेक्ट करने के लिए, जेलों का दौरा करने की अपेक्षा है. बोर्ड यह भी पूछ सकता है कि मानसिक बीमारी से पीड़ित कैदी को किसी मेंटल हेल्थ इस्टैब्लिश्मेंट में ट्रांसफर क्यों नहीं किया गया.

एक्ट इमरजेंसी हेल्थकेयर प्रदान करने के लिए जेलों में सभी चिकित्सा अधिकारियों के ट्रेनिंग को अनिवार्य बनाता है. लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण, हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में कम से कम एक जेल के मेडिकल विंग में एक 'मेंटल हेल्थ यूनिट' की अनिवार्य स्थापना का प्रस्तावित कदम था.

इसके अलावा, भारतीय कानून में जेलों में मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए कुछ प्रावधान हैं.

CRPC धारा 328, 329, और 330 में कहा गया है कि "यदि आरोपी व्यक्ति अनसाउंड दिमाग का है, तो निर्णायक प्राधिकारी (adjudicating authority) को मुकदमे को स्थगित करना चाहिए."

जेलों में मानसिक रूप से बीमार लोगों को मेंटल हेल्थ केयर फैसिलिटी में उपचार प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है.

साथ ही, मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों को सुरक्षित कन्डक्ट की गारंटी और पर्याप्त सिक्योरिटी प्रदान करने के आधार पर रिहा किया जा सकता है. अगर जमानत संभव न हो तो आरोपी को सुरक्षित कस्टडी में रखा जाएगा.

फिर भी क्या ये कानून पर्याप्त हैं?

जेल में रहने को मानव जीवन में निगरानी और रेगुलराइजेशन का सबसे सख्त रूप माना जा सकता है, जिससे इंसान में बहुत अधिक स्ट्रेस पैदा होता है.

कैदियों के लिए और भी बहुत कुछ किया जा सकता है:

  • कैदियों में मानसिक बीमारी के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के लिए जेल कर्मचारियों को ट्रेन करने की आवश्यकता है.

  • जोखिम वाले लोगों की सक्रिय निगरानी की जानी चाहिए.

  • मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के विजिट सहित डेडिकेटेड इलाज की आवश्यकता है.

  • आत्महत्या के जोखिम सहित गंभीर मेंटल हेल्थ स्थितियों के लिए मेंटल हेल्थकेयर यूनिटों में एडमिशन आवश्यक है.

MHCA 2017 को नीतिगत प्रावधानों (policy provisions) के साथ प्रभावी उपयोग में लाया जा सकता है.

  • लोकल मेंटल हेल्थ रिव्यू बोर्ड द्वारा नियमित रूप से जेलों का दौरा किया जाना चाहिए.

  • बाहरी (जो न्यूट्रल हों) एक्सपर्ट जेलों में मेंटल हेल्थकेयर सेवाओं की निगरानी कर सकते हैं और सुधार के तरीके सुझा सकते हैं.

  • जेल के कैदियों को मेंटल हाइजीन और मानसिक बीमारी से स्टिग्मा हटाने के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए.

  • जेलों में ट्रेंड काउन्सेलर उपलब्ध होने चाहिए.

अंत में, जेल के माहौल को, अपने सभी प्रतिबंधों और दंडात्मक ऐंगलों के साथ, मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है. मनोरंजक और शैक्षिक प्रावधानों जैसे ग्रुप एक्टिविटी कैदियों की लाइफ क्वालिटी को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं.

1994 में तिहाड़ जेल में की गई स्टडीज से पता चला कि विपश्यना (Vipassana), जो मैडिटेशन का एक रूप है, के अभ्यास से कैदियों में डिप्रेशन के लक्षण कम हो गए. इसी प्रकार, योग और प्राणायाम जीवन शक्ति और सामान्य स्वास्थ्य में सुधार करते हैं.

कम/अधिक उम्र वाले कैदी और महिला कैदी और भी अधिक असुरक्षित हैं. दोषी महिलाओं में अवसाद और चिंता विकार अधिक आम हैं, जबकि युवाओं में नशे की समस्या और आत्महत्या का जोखिम आम है.

कई वृद्ध कैदियों में मेमोरी संबंधी शिकायतें और संभावित डिमेन्शिया होता है, जो उनकी दैनिक गतिविधियों और सुरक्षा में बाधा डालते हैं.

हमारे देश में जेल कर्मचारियों और कैदियों के बीच डिमेंशिया के बारे में जागरूकता बहुत कम है और इसे बेहद उपेक्षित किया जाता है. तेजी से बढ़ती उम्र की भारतीय आबादी को देखते हुए, हमारी जेलों में डिमेन्शिया जागरूकता, पहचान और देखभाल विशेष महत्व रखती है.

जेल के वातावरण में पॉजिटिव मेंटल हेल्थ को बढ़ावा देने से न केवल कैदियों के भीतर मानसिक बीमारी का बोझ कम हो सकता है, बल्कि साइकोलॉजिकल स्थिरता में भी मदद मिल सकती है, जिससे आगे के अपराधों और हिंसा में कमी आएगी.

(डॉ. देबंजन बनर्जी, अपोलो मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल्स, कोलकाता में कंसलटेंट न्यूरोसाइकिएट्रिस्ट हैं.यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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