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Suicide Prevention Day 2023: (अगर आपको खुद को चोट पहुंचाने के ख्याल आते हैं, या आप जानते हैं कि कोई मुश्किल में है, तो मेहरबानी करके उनसे सहानुभूति दिखाएं और स्थानीय इमरजेंसी सर्विस, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGO के इन नंबरों पर कॉल करें.)
Trigger Warning: इस स्टोरी में खुदकुशी (suicide) का जिक्र है.
कुछ विषयों के बारे में लिखने के लिए बहुत हिम्मत जुटानी पड़ती है, सुसाइड यानी खुदकुशी उनमें से एक है.
यहां ‘मेरा खुदकुशी से सामना’ से मतलब है कि मैंने परिचित लोगों को खुदकुशी के कारण खोया भी है और एक-आध बार किस्मत और आसपास के लोगों की सजगता ने जिंदगी से थकी-हारी जान को जाने से रोक भी लिया है.
इस आर्टिकल में मैंने उन 3 लोगों से बातें की जिन्होंने खुदकुशी के कारण अपने परिवार के सदस्य को खोया है.
दुनिया का एक सबसे बड़ा झूठ, ‘शादी के बाद जो मन में आए वो करना, अभी वैसे रहो जैसे हम कह रहे’. माता-पिता और परिवार के दूसरे सदस्यों से ये बात लगभग भारत की 70% अविवाहित लड़कियों ने तो सुनी ही होगी और लगभग 25% लड़कियों ने नहीं क्योंकि उन्हें कभी भी अपने अधिकारों और अपने मन की करने की बात कहने या करने का एहसास तक नहीं हुआ होगा.
बाकी बची 5% लड़कियां उन भाग्यशाली परिवारों से होंगी जो बेटियों को उनके अधिकारों से दूर रखने में विश्वास नहीं रखते.
आए दिन इंस्ट्राग्राम रील्स बनते रहते हैं, इस मुद्दे पर भी बने हैं. ऐसी ही एक रील पर मेरी नजर गई और मैंने पूरी दिलचस्पी के साथ उसे देखा. फिर क्या था, एक के बाद एक इस मुद्दे से जुड़े रील्स मुझे दिखने लगे पर, शायद ही किसी ने इस मुद्दे की गंभीरता को समझा.
इन रील्स में से एक रील पर किए गये एक कमेंट ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया. मैंने उससे संपर्क किया तो पता चला उसकी दीदी और उसे अक्सर ऐसी बातें सुनने को मिलती थी.
दुनिया में कई जगहों पर लड़कियों को शादी से पहले और शादी के बाद उनके अधिकारों से दूर रखा जाता है. दूर रखने के 2 तरीके आम हैं, पहला जोर-जबरदस्ती से और दूसरा इमोशनल बना बहला-फुसला कर.
जोर-जबरदस्ती वाला तरीका अक्सर दूसरों पर निर्भर लड़कियों के साथ किया जाता है और वही इमोशनल बना भावनाओं के झूठे समुंदर में बह जाती हैं आत्मनिर्भर लड़कियां.
अनुराधा अपनी दीदी को ‘शादी के बाद करना’ वाली बातों पर अक्सर परिवार के सदस्यों से लड़ती देखती थी.
इन घटनाओं को देख कर अनुराधा अपनी दीदी की तरह नहीं बल्कि वैसा करती जैसा परिवार के लोग चाहते. उसने कभी आवाज नहीं उठाई, पर वो जानती थी, दीदी सही है.
आज भी हमारे देश में लड़कियों की पढ़ाई लड़के वालों की तरफ से की गई शादी की कई डिमांड्स में से एक होती है. लड़कियां इतनी पढ़ी-लिखी होनी चाहिए कि वो बच्चों को पढ़ा सके और पति के साथ उसके सर्किल में उठ-बैठ सके. देश के बहुत से घरों में आज भी पढ़ाई-लिखाई का बस इतना ही इस्तेमाल करने की इजाजत है लड़कियों को.
अनुराधा बतातीं हैं कि शादी के बाद उनकी दीदी बाहर घूमने-फिरने जाती थीं. पर तब जब परिवार और पति की इजाजत हो. इजाजत नहीं होने पर तो वो मायके के फंक्शन में भी नहीं आ सकती थी.
अपने मन का वो शादी के बाद भी नहीं कर सकी.
शादी के 3 साल बाद अनुराधा की दीदी की खुदकुशी से मौत हो गयी.
राजस्थान का कोटा शहर कई दशकों से इंजीनियरिंग कोचिंग के लिए जाना जाता है. वहां का प्रेशर भरा माहौल और खुदकुशी की घटनाएं अक्सर चिंता का विषय बनी रहती हैं. इस साल जनवरी से अभी तक 25 स्टूडेंट्स के खुदकुशी के मामले सामने आएं हैं.
कोटा में मशीनों जैसी जिंदगी वो झेल नहीं पा रहा था, पर क्या करता “हमारा बेटा इंजीनियर बनेगा” जैसी बातें उसका पीछा नहीं छोड़ रही थीं.
2003 में अंकित ने 12वीं पास की. अपनी कॉलोनी में वो अकेला था जिसने कोटा के फेमस कोचिंग इंस्टिट्यूट का एंट्रेंस एग्जाम पास किया. माता-पिता के साथ-साथ कॉलोनी के दूसरे बच्चों के पैरेंट्स भी अंकित की इस ‘उपलब्धि’ की मिसाल देने लग गए या यूं कहें अपने बच्चों पर प्रेशर और अधिक बनाने लगें.
कोटा इंजीनियर बनाने की वो फैक्ट्री है, जहां से हर साल कई बच्चे इंजीनियरिंग कॉलेज कम्पटीशन पास करते हैं और कई नहीं भी कर पाते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं, जो इंजीनियरिंग कॉलेज के कम्पटीशन तक पहुंच ही नहीं पाते.
नवीन ने बताया कि उसका भाई कोचिंग टीचरों की रोज बढ़ती उम्मीदों और तानों से परेशान रहता. हर संडे फोन पर उसकी आवाज पहले से धीमी सुनाई देने लगी थी. नवीन ने ‘कुछ बढ़िया कर के दिखाने’ का जज्बा रखने वाले भाई को निराशा के घेरे में खोते हुए देखा.
संडे को उससे बात करने की आस लगाए घर वाले फोन के पास बैठे रह गए पर, उसका कॉल नहीं आया.
नवीन के भाई को माता-पिता को अपनी तकलीफ बताने से आसान लगा इस दुनिया को अलविदा कह देना.
पिछले साल सुसाइड प्रिवेंशन डे पर मैंने एक आर्टिकल लिखा था जिसमें सुधा शुक्ला ने डिप्रेशन और खुदकुशी करने के ख्याल के बारे में हमसे बातें साझा की थीं. इस बार वो अपनी जिंदिगी के एक ऐसे चैप्टर का जिक्र कर रहीं हैं, जो किसी भी इंसान को अंदर से झकझोर कर रख दे.
सुधा की मां दुखी थीं और अकेली भी. वो घर से बाहर निकलना नहीं चाहतीं थीं. न किसी से मिलती और न किसी से अपनी बातें शेयर करतीं. हर समय स्ट्रेस में रहने के कारण वो ज्यादातर बिस्तर पर पड़ी रहतीं. कभी अचानक गुस्सा हो जातीं तो कभी एकदम प्यार से बातें करतीं.
सुधा आगे कहती हैं, "उस रात ही मां, मैं और मेरा भाई नाना-नानी के घर रहने चले गए. मां वहां भी खुश नहीं थी और इसका कारण था बार-बार लोगों को उसको पति के साथ रहने की सलाह देना. सभी मां को समझौता करने कहते थे, तब मैं इस शब्द का मतलब नहीं जानती थी".
भारत में शादी से दुखी बेटी का खुदकुशी करना अभी भी अचंभे वाली बात नहीं है. साल 2021 में भारत में 45,026 महिलाओं की आत्महत्या (suicide) से मौत हुई. इनमें से आधे से ज्यादा 23,178 होममेकर (homemaker) थीं. जिसका मतलब है, साल 2021 में हर रोज औसतन 63 गृहणियों (homemaker) की खुदकुशी करने से मौत हुई.
अनुराधा, नवीन और सुधा का जिंदगी को देखने का नजरिया बदल गया है. वो आज भी बेहद दुखी हैं और थेरेपी-काउंसलिंग का सहारा ले रहे हैं.
क्या परिवार, दोस्त, रिश्तेदार बिन मांगी सलाह देने की जगह उस परेशान इंसान को बिना किसी शर्त सहारा नहीं दे सकते? उसको आईना दिखाने की जगह उसका हाथ पकड़ उसकी हिम्मत नहीं बन सकते? माता-पिता अपने अधूरे सपनों का बोझ अपने बच्चों के कंधों पर डालने की जगह उसके सपनों को अपना नहीं बना सकते?
सच है अपनों के जाने के बाद कुछ भी पहले जैसा नहीं रहता.
अगर कोई परेशान, हताश, मायूस दिखे तो उससे बात करें. बात नहीं कर सकते या मायूसियत से गिरा वो इंसान बात नहीं करना चाहे तो कम से कम उसका साथ न छोड़े, उस पर नजर बनाए रखें. नहीं पता कब उसकी हिम्मत टूटे और हम एक और सितारा आसमान में खोजने निकल पड़ें.
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