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World Mental Health Day: एग्जाम और रिजल्ट ने मुझसे मेरे 3 करीबी दोस्त छीन लिए

कुछ ही महीनों के अंदर 3 दोस्तों को खो मैं खामोश हो गयी, वो खामोशी आज भी मौजूद है.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Updated:
<div class="paragraphs"><p>World Mental Health Day 2022: समय रहते अपने परिवार और दोस्तों की मदद करें</p></div>
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World Mental Health Day 2022: समय रहते अपने परिवार और दोस्तों की मदद करें

(फोटो: नमिता चौहान/फिट हिंदी)

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World Mental Health Day 2022: (अगर आपको खुद को चोट पहुंचाने के ख्याल आते हैं या आप जानते हैं कि कोई मुश्किल में है, तो मेहरबानी करके उनसे सहानुभूति दिखाएं और स्थानीय इमरजेंसी सर्विस, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGO के इन नंबरों पर कॉल करें.)

Trigger Warning: इस स्टोरी में सुसाइड (suicide) का जिक्र है.

14-15 साल की उम्र में अपने हम उम्र दोस्तों को खोने का सदमा आज भी जेहन से नहीं जाता. उन घटनाओं की गहरी छाप ने मेरे लिए रिजल्ट, विदेशी डिग्री, चमचमाते करियर के मायने बदल दिए हैं.

नहीं, समझ आया कि वो तीनों इतने परेशान थे. नहीं समझ आया कि वो खेलते-मुस्कुराते किस दर्द से गुजर रहे थे. नहीं समझ आया कि स्कूल बस में गाए जाने वाले उन गानों से वो हमें कुछ बता रही थी. हंसते-हंसते मरने की बात कहने में कितनी सच्चाई थी ये समझ नहीं आया किसी को.

भारत में स्टूडेंट सुसाइड का बड़ा हिस्सा परीक्षा में नाकामी के चलते होने वाली आत्महत्याएं होती हैं. साल 2021 में कम से कम 13,089 स्टूडेंट ने ‘परीक्षा के तनाव’ के चलते आत्महत्या कर ली, जो पांच साल में सबसे ज्यादा है.

मेरे 10वीं के बोर्ड एग्जाम और रिजल्ट के दौरान मैंने अपने 3 करीबी दोस्तों को खोया है. एक के बाद एक तीनों ने आत्महत्या कर ली.

आज भी जब कोई मुझसे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, टॉप रिजल्ट, कम्पटीशन, करियर, विदेश पढ़ने भेजने की बातें करता है, तो मैं खो जाती हूं और सोचने पर मजबूर हो जाती हूं, क्या हम सही जा रहे हैं? क्या बच्चा यही चाहता है? कहीं बच्चे को ये नहीं चाहिए हो तो? अगर वो अपने माता-पिता से नहीं कह पाया तब क्या होगा? ऐसे में उसकी घुटन और परेशानी का अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल है.

जितना सरल छोटे बच्चे के मन को पढ़ना और समझना होता है, उतना ही कठिन किशोरावस्था से गुजर रहे बच्चे के मन को. कई बार वो बिना जताए, अपनी इच्छाओं को दबाते हुए माता-पिता की खुशी से जीवन जीना शुरू कर देते हैं.

उसे किसी ने समझा ही नहीं

ये बात मेरी 10 वीं के प्री बोर्ड इग्जाम से कुछ दिनों पहले की है. तब मेरे शहर में (शायद अब भी) हर साल दिसंबर के अंत के दिनों में बुक फेयर लगता था. शहर में चारों तरफ एक अलग एनर्जी और चहल पहल रहती थी. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी किताब के पन्नों में खोए दिखते थे.

उस साल दोस्तों के साथ जाने का प्लान बना और सबने खूब मस्ती भी की. मेरे ग्रुप में स्कूल की 'टॉपर' भी थी. हम सभी उसे “राजश्री” परिवार की बेटी कहते क्योंकि हमने फ़िल्मों में ही ऐसी शांत और प्यारी लड़की देखी थी, जो हर क्षेत्र में अव्वल हो.

उसका नाम कीर्ति (बदला हुआ नाम) था.

बुक फेयर से लौटने के 1 हफ्ते बाद मेरी एक दोस्त ने रोते हुए फोन किया और बताया ‘कीर्ति’ के घर पुलिस आयी है और रोने की आवाजें आ रही हैं. लोग कह रहे हैं ‘कीर्ति’ अब इस दुनिया में नहीं रही.

पहले मुझे ये बात समझ नहीं आयी, फिर दोबारा पूछने पर भी जब यही जवाब मिला तो मेरे दिमाग ने कीर्ति से जुड़ी सारी बातें मेरी आंखों के सामने लाकर रख दिए. अभी तो मिले थे हम, हमेशा की तरह चेहरे पर प्यारी मुस्कान ले वो सबको देख रही थी.

तब लगता था उसे समझना कितना आसान है, पर अब लगता है उसे किसी ने समझा ही नहीं.
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जब से मुझे याद है, मेरी क्लास मॉनिटर कभी बदली नहीं

पल्लवी (बदला हुआ नाम) मेरे क्लास की मॉनिटर थी. समझदार और स्वभाव से शांत. खेल-कूद, पढ़ने-लिखने, ड्रामा, डांस में बहुत अच्छी. क्लास के साइन्स प्राजेक्ट्स में मदद के लिए दूसरे सेक्शन के स्टूडेंट्स भी उसके आसपास चक्कर लगाते रहते.

स्पोर्ट्स पीरियड में जब भी वो नहीं होती, तो खेल कम झगड़े ज्यादा होते थे. पूरे क्लास को ऐसे सम्भालती जैसे हम सभी उसके बच्चे हों. शायद तभी, जब से मुझे याद है, मेरी क्लास मॉनिटर कभी बदली नहीं.

10 वीं के रिजल्ट से एक दिन पहले दोस्तों के साथ मिलने का प्लान बना. उस समय बच्चों के पास अपना मोबाइल फोन नहीं हुआ करता था. जिन दोस्तों से मिलना था उनके घर फोन कर उनसे जगह और समय तय करने की जिम्मेदारी मेरी थी. लगभग 10-12 बच्चों का हमारा ग्रुप था. एक-एक कर मैंने कॉल कर सबसे बातें की. फोन पर पल्लवी की आवाज सुस्त लग रही थी. मेरे पूछने पर उसने हंसते हुए बात टाल दी.

उस समय मुझे भी कहां इतनी समझ थी कि जिद करूं और पूछूं कि क्या बात है?

अगले दिन हम सब मिले. कॉलेज और आने वाले समय की बातें की. पर हम सब एक डर में थे, वो डर था रिजल्ट का. उस रात शायद ही किसी को ठीक से नींद आयी हो.

अगले दिन रिजल्ट वेबसाइट पर आते ही मेरी कॉलोनी में कहीं जश्न तो कहीं सन्नाटा दिख रहा था.

आसपास के हर घर के लैंडलाइन फोन की आवाज याद दिला रही थी कि आज का दिन अलग है.

मेरे घर का फोन भी लगातार काम पर लगा हुआ था. पर शाम में आए एक फोन कॉल ने बहुत कुछ बदल दिया.

क्लास टीचर ने बधाई देने के लिए कॉल किया था. मुझसे बात कर उन्होंने मां से बात की. मैं वहीं खड़ी मां के चेहरे से खुशी जाते हुए देख रही थी. फोन रख उन्होंने मुझे गले से लगाया और जिंदगी कितनी खास होती है ये समझाने लगीं.

बहुत पूछने पर उन्होंने मुझे पल्लवी की आत्महत्या की खबर दी. इस बार भी मैं समझ नहीं पायी कि मां क्या कह रहीं हैं? पर उनकी आंखों ने मुझे तुरंत एहसास दिलाया कि मैंने अपनी एक और दोस्त को खो दिया है.

टीचर्स डे पर उसकी बनाई एक पेंटिंग शायद अभी भी स्कूल की दीवारों पर टंगी हो.

उसका रिजल्ट उसके परिवार की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा

टाक्सिक पेरेंटिंग एक सच्चाई है, जिसका शिकार कई बच्चे होते हैं. परिवार में कलेश, माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाएं (unrealistic expectations), दूसरे बच्चों से तुलना करने जैसी कई बातें बच्चों के कोमल मन पर इतनी गहरी छाप छोड़ते हैं कि उनकी बुनियाद हिल जाती है.

ये सच है कि हर घर और हर माता-पिता के परवरिश करने का तरीका अलग-अलग होता है. वहीं हमें ये भी समझना चाहिए कि हर बच्चा दूसरे बच्चे से अलग होता है.

रिजल्ट की अगली सुबह मेरी नींद एंबुलेंस की आवाज से खुली. कमरे से निकलते ही मां-पापा दिखे. उनके चेहरे का डर देख मैंने अंदाजा लगा लिया कि आज फिर किसी को मैंने खो दिया है.

केशव (बदला हुआ नाम) कॉलोनी का सचिन तेंदुलकर कहलाता था. स्कूल, दोस्त, कॉलोनी वाले सभी उसे क्रिकेट खेलता देख दंग रह जाते थे.

पर उसके माता-पिता के लिए ये समय की बर्बादी थी. उन्हें अपने बेटे को इंजीनियर बनाना था, बस इंजीनियर.

केशव के सपने कुछ अलग थे. वो बस भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बनने का सपना देखा करता था.

हम पड़ोसी थे इसलिए जब भी उसे पढ़ाई कम और खेल-कूद में ज्यादा ध्यान देने पर डांट पड़ती, तो आवाजें मेरे घर तक आती.

रिजल्ट के कुछ दिनों पहले से ही अचानक उसने क्रिकेट खेलना बंद कर दिया था. शाम के समय अपने बरामदे से दूसरे बच्चों को क्रिकेट खेलता देखता रहता.

उसका रिजल्ट उसके परिवार की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा.

क्या? क्यों? कैसे? कब? और भी बहुत सारे सवाल जिनका कोई जवाब नहीं था, एक बिना स्टॉप बटन वाले रिकॉर्डर की तरह चलता रहा. सालों बीत गए पर वो रिकॉर्डर आज भी मन के किसी कोने में चल रहा है.

कुछ ही महीनों के अंदर 3 दोस्तों को खो मैं शांत हो गयी, वो शांति आज भी मौजूद है.

बच्चों के मन को समझें और घर का माहौल ऐसा बनाएं कि बच्चा किसी भी समस्या की स्थिति में घर का रास्ता चुने न कि घर जाने का डर उसे आत्महत्या से ज्यादा खौफनाक लगे.

वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे को ध्यान में रख कर फिट हिंदी ये आर्टिकल दोबारा पब्लिश कर रहा है.

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Published: 08 Sep 2022,06:40 PM IST

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