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क्या आप जानते हैं कि तेज गर्मी और उमस के चलते लाखों भारतीयों को लू (heat stroke), तेज गर्मी (overheating), दौरे (seizures) और गर्मी से जुड़ी दूसरी बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ गया है?
क्या आप यह भी जानते हैं कि भारत सहित दक्षिण एशिया के कई हिस्से साल 2090 तक सहन न किए जा सकने की हद तक गर्म हो जाएंगे?
भारत ने साल 2022 में पिछले 120 सालों में सबसे गर्म मार्च का महीना दर्ज किया. मार्च में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया और अप्रैल 2022 में 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया.
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है भारत के कई हिस्सों में, खासतौर से समुद्र तटीय राज्यों में वेट बल्ब टेंपरेचर (wet bulb temperature) का उस स्तर पर पहुंचने का खतरा पैदा हो गया है, जिसे इंसानी शरीर कतई सहन नहीं पाएगा और ज्यादा गर्मी से मर जाएगा.
वेट बल्ब टेंपरेचर क्या है? भारत के कौन से हिस्से खतरे में हैं? और क्या हम इस मामले में कुछ कर सकते हैं?
वेट बल्ब टेंपरेचर दो कारकों- गर्मी और नमी का संयोजन होता है, जो आपको मिला-जुला बाहरी तापमान देता है, जिसे वेट बल्ब टेंपरेचर कहा जाता है.
इंसानी शरीर 35 डिग्री सेल्सियस को पार करने वाले वेट बल्ब टेंपरेचर को बर्दाश्त नहीं कर सकता है. इस हालत में शरीर और ज्यादा पसीना बहाकर बाहर की गर्मी की भरपाई नहीं कर सकता, क्योंकि बहुत ज्यादा नमी की मौजूदगी पसीने को ठीक से भाप बनने से रोकती है.
हम इंसानी शरीर पर गर्मी और ठंड के असर के बारे में काफी कुछ जानते हैं. संक्षेप में कहें तो इंसानी शरीर का अंदरूनी तापमान 36.8 डिग्री सेल्सियस होता है, इसमें 0.5 डिग्री सेल्सियस घट-बढ़ हो सकती है. जब बाहर का तापमान घटता है या बढ़ता है, तो हमारा शरीर भरपाई करने की कोशिश में ठंडा करने के लिए पसीना निकालता है या गर्म रखने के लिए फैट बर्न करना है/या कुछ खाकर खुद को गर्म करता है.
लेकिन पसीना बहाने और गर्मी के बारे में दो खास बातें हैं:
हम पसीना बहाते हैं, तो शरीर ठंडा हो जाता है, लेकिन ऐसा तभी होता है जब हमारी स्किन से पसीना बाहर निकलता है.
हमारा शरीर एक हद तक ही खुद को ठंडा कर सकता है. एयर कंडीशनिंग और ठंडा पानी इसमें मदद कर सकते हैं.
इस बिंदु के बाद हमारा शरीर गर्म हो जाएगा और हम थकान, डीहाइड्रेशन, भ्रम, ऐंठन और अंत में हीट स्ट्रोक और मौत शिकार हो सकते हैं.
हमारी स्किन पर पसीना तभी भाप बन सकता है, जब वातावरण की नमी और पानी की मात्रा इतनी कम हो कि ऐसा होने दे. यही वह बिंदु है, जहां तुलनात्मक नमी का समीकरण महत्वपूर्ण हो जाता है. अगर आप वायुमंडल में ज्यादा नमी वाली जगह पर हैं, तो पसीना ठीक से बाहर नहीं निकल सकेगा.
यह एक और वजह है, जिससे आप तेज गर्मी और नम जलवायु में बहुत ज्यादा बेचैनी महसूस करते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपका शरीर ठीक से खुद को ठंडा नहीं रख पा रहा है. अगर तापमान बहुत देर तक ऊपर रहता है, तो आप हीटस्ट्रोक से मर जाएंगे.
वेट बल्ब टेंपरेचर की गणना का समीकरण बेहद जटिल है, इसलिए इसे आसानबनाने के लिए यहां एक कैलकुलेटर दिया गया है.
जैसा कि हमने पहले बताया वेट बल्ब टेंपरेचर 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होना जिंदगी के लिए खतरा बन सकता है. साइंस जर्नल में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि “35 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब टेंपरेचर का पहला उदाहरण” 21वीं सदी लगभग आधी पार हो जाने के बाद दिखाई देगा.
लेकिन भारत के कई इलाकों में 2022 में ही वेट बल्ब टेंपरेचर 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने की खबर है, खासकर समुद्रतटीय राज्यों में.
भारत में कई मौसम केंद्रों ने मार्च और अप्रैल 2022 के महीनों में अब तक के सबसे ज्यादा तापमान दर्ज किए हैं.
ऊपर बताए गए वेट बल्ब टेंपरेचर कैलकुलेटर के हिसाब से 32 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का वेट बल्ब टेंपरेचर बनाने के लिए औसत बाहरी तापमान को 55 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की जरूरत है.
फिर भी भारत की ज्यादा नमी वातावरण के साथ देश के कई हिस्सों में पहले हीवेट बल्ब टेंपरेचर इस खतरनाक सीमा को पार कर चुका है. अमीरी-गरीबी के भारी अंतर की वजह से एयर कंडीशनर ऐसी विलासिता की चीज है, जिसका भारत के ज्यादातर लोग खर्च नहीं उठा सकते हैं. इसका नतीजा होगा गर्मी से जुड़ी परेशानियों से लाखों भारतीयों की मौत.
खैर, इकलौता हल जलवायु परिवर्तन (climate change) को खत्म करना है. लेकिन, अध्ययन बताते हैं कि भले ही हम जलवायु परिवर्तन को रोक दें, तब भी 21वीं सदी के अंत तक धरती 1 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाएगी.
जब तक भारत की 1.7 अरब से ज्यादा की आबादी को एयर कंडीशनिंग, हाइड्रेशन और “कूल ऑफ” जोन देने का एक किफायती तरीका नहीं मिल जाता, यह आबादी कभी भी गर्मी से जुड़े खतरों का शिकार बन सकती है.
इसलिए, संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन को खत्म करना इकलौता हल है.
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