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World Population Day 2023: विश्व में सबसे अधिक मातृ मृत्यु दर अभी भी भारत में है. हालांकि वर्ष 1990 में भारत में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) असाधारण रूप से बहुत ऊपर था. प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर 500 महिलाओं की बच्चे के जन्म के दौरान मृत्यु हो जाती थी. लेकिन इसमें सुधार हुआ है. वर्ष 2022 में यह संख्या 97 हो गई है, लेकिन हम अभी भी डब्ल्यूएचओ (WHO) के 70 के लक्ष्य से बहुत दूर है. भारत का लक्ष्य है 2030 तक इसे हासिल करना.
ग्रामीण भारत में माताओं को इस बात की जानकारी नहीं है कि गर्भवती महिलाओं के लिए अलग से स्वास्थ्य देखभाल की सेवाएं होती हैं. हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाएं खराब हैं, बुनियादी ढांचा बहुत निम्न और अनियमित है.
भारत में गर्भावस्था के दौरान प्रसव पूर्व देखभाल देर से शुरू की जाती है और स्वास्थ्य देखभाल की जांच अनियमित होती है. इसकी वजह से अधिकांश जटिलताओं का या तो बहुत देर से पता चलता है या चल ही नहीं पाता है. खराब पोषण और एनीमिया के कारण जन्म के समय शिशुओं का वजन कम होता है और मां और बच्चे दोनों में इन्फेक्शन का खतरा होता है.
महिलाओं को खास स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों की उपलब्धता और केंद्रों तक पहुंचने के बारे में जानकारी नहीं होती है. प्रसव पूर्व विटामिन की कमी, स्वच्छता की कमी, मातृ स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.
किशोरावस्था में विवाह और जल्द गर्भधारण, समय से पहले शिशु का जन्म, कम वजन जैसे कारकों से प्रसव में बाधा उत्पन्न होने की आशंका अधिक होती है. जब जटिलताएं सामने आती हैं, तो गांव में स्वास्थ्य सेवाएं दूर होने और उचित परिवहन व्यवस्था की कमी के कारण शहरों में स्थित स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों तक पहुंचने में काफी देर हो जाती है.
पारंपरिक प्रसव नर्सें अंट्रेनेड होती हैं. उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और वे गंदगी से भी परिस्थितियों में घर पर प्रसव कराती हैं. उन्हें हाई मैटरनल मोरबिडिटी और मृत्यु दर के लिए जिम्मेदार कारणों के बारे में बहुत कम जानकारी होती है.
शहरी महिलाएं कामकाजी होने के कारण एकल परिवारों में रहती हैं. वे भीड़-भाड़ वाली शहरी बस्तियों में रहती हैं, जहां उन्हें अक्सर शारीरिक और भावनात्मक समर्थन नहीं मिल पाता है. तेज रफ्तार शहरी जीवन में काम तनावपूर्ण होता है और जिंदगी व्यस्त होती है. वर्कप्लेस तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है. पर्याप्त आराम की कमी होती है.
ये सारी परिस्थितियां हाई ब्लड प्रेशर और जन्म के समय बच्चों के कम वजन का कारण बन सकते हैं.
खराब शारीरिक गतिविधि और फैट से भरे फूड का अधिक सेवन करने से वजन बढ़ जाता है, जिससे प्रेगनेंसी में डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बनता है.
भीड़ भाड़ वाले स्वास्थ्य केंद्रों पर लंबी-लंबी कतारें अनियमित और अपर्याप्त प्रसवपूर्व देखभाल का कारण बनती हैं.
अधिकांश शिक्षित शहरी महिलाएं पढ़ाई और आर्थिक स्वतंत्रता की चाहत में देर से शादी करती हैं. इससे रिप्रोडक्टिव हेल्थ समस्या जैसे- मां में डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की और शिशुओं में क्रोमोसोमल विसंगतियों की आशंका होती हैं.
बहुत सारी शहरी महिलाएं धूम्रपान करती हैं. शराब और नशीली दवाओं का सेवन करती हैं. इससे शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा आती है.
ग्रामीण क्षेत्रों में मृत्यु दर को कम करने के लिए, एनआरएचएम (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) वर्ष 2005 में शुरू किया गया था. 'जननी सुरक्षा योजना' महिलाओं को वित्तीय प्रोत्साहन के साथ-साथ बिना किसी लागत के उच्च सेवा केंद्रों पर प्रसव कराने में मदद करती है.
मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता कार्यक्रम 'आशा', स्थानीय समुदाय में विश्वसनीय महिलाओं को शामिल करता है और समुदाय और स्वास्थ्य सेवा के बीच अंतर को मिटाता है.
सस्ता और सुलभ प्रसवपूर्व देखभाल हो तो मां का वजन, बीपी, पेशाब में प्रोटीन और स्कैन की समय-समय पर जांच करके किसी भी जटिलताओं की पहचान और इलाज की ओर कदम उठाया जा सकता है.
डॉक्टर, दाइयां और नर्स जैसे कुशल प्रसव अटेंडेंट हर समय सुरक्षित प्रसव कराने के लिए उपलब्ध रहें.
समय पर आपातकालीन मातृत्व सेवाओं की उपलब्धता हो और यह सेवा सस्ती, कुशल, प्रभावी होनी चाहिए.
प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य केंद्रों के बीच उचित रेफरल प्रणाली होनी चाहिए.
महिलाओं को प्रसवपूर्व देखभाल, पोषण, परिवार नियोजन के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए.
(यह आर्टिकल गुरुग्राम, क्लाउड नाइन हॉस्पिटल्स में प्रसूति और स्त्री रोग विभाग की डायरेक्टर डॉ. चेतना जैन ने फिट हिंदी के विश्व जनसंख्या दिवस पर लिखा है.)
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