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भारत में कम उम्र में विवाह और किशोरावस्था में गर्भधारण से जुड़ी चुनौतियां

World Population Day 2023: भारत के कुछ क्षेत्रों में बाल विवाह का चलन कम उम्र में गर्भधारण को बढ़ावा देता है.

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World Population Day 2023: 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर मैं कम उम्र में विवाह और किशोरावस्था में गर्भधारण जैसे गंभीर मुद्दों पर प्रकाश डालना चाहता हूं, जो आपस में जुड़े हुए सामाजिक मुद्दे हैं. यह भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद हैं. हालांकि विश्व स्तर पर बाल विवाह दर को कम करने में सफलता मिली है, लेकिन भारत को अभी भी इस जटिल समस्या के समाधान में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

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क्यों बढ़ रहा है किशोरावस्था में गर्भधारण?

किशोर गर्भधारण, जिसके अन्तर्गत 10 से 19 वर्ष की आयु की लड़कियों के गर्भधारण को परिभाषित किया गया है, भारत में अभी भी बढ़ रही हैं. यह एक चिंताजनक स्थिति है, जो युवा माताओं और उनके बच्चों दोनों की भलाई और विकास के लिए कई तरह की चुनौतियां सामने लाती हैं.

अभी भी ग्रामीण भारत के कई इलाकों में सांस्कृतिक मानदंड और परंपराओं की समाज में इतनी गहरी जड़ें हैं कि दहेज प्रथा, जाति संबंधी विचार और पारिवारिक सम्मान को बनाए रखने की चिंता कम उम्र में विवाह की परंपरा को बढ़ावा देते रहते हैं.

गरीबी, शिक्षा की कमी और सीमित आर्थिक अवसर भी अक्सर परिवारों को कम उम्र में अपनी बेटियों की शादी करने के लिए प्रेरित करते हैं, जिसके कारण किशोरावस्था में गर्भधारण में वृद्धि होती है.

किशोरावस्था में गर्भधारण में वृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक

• कम उम्र में विवाह: भारत के कुछ क्षेत्रों में बाल विवाह का चलन कम उम्र में गर्भधारण को बढ़ावा देता है, शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में यह अधिक है. जब लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है, तो परिवार को बढ़ाने की चाह समय से पहले गर्भधारण का खतरा बढ़ाती है.

 • विस्तृत यौन शिक्षा का अभाव: सटीक और व्यापक यौन शिक्षा की अपर्याप्त जानकारी के कारण कई किशोर रिप्रोडक्टिव हेल्थ, गर्भनिरोधक और यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) के बारे में नहीं जानते हैं. जानकारी के अभाव में अनचाही प्रेगनेंसी बढ़ती है.

• गर्भनिरोधक तक सीमित पहुंच: सामाजिक बाधाएं, जागरूकता की कमी और गर्भ निरोधकों की सीमित उपलब्धता सहित गर्भनिरोधक तरीकों तक पहुंच और उपयोग में चुनौतियां, किशोर गर्भधारण के बढ़ते जोखिम का कारण बनती हैं. 

 • लैंगिक असमानता: भारतीय समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी लैंगिक असमानताएं, जिनमें युवा लड़कियों और महिलाओं के पास निर्णय लेने का सीमित अधिकार है, जिससे वह अक्सर प्रजनन और अपने स्वास्थ्य संबंधी फैसले खुद नहीं ले पातीं. यह असंतुलित अधिकार भी किशोरावस्था में गर्भधारण के खतरे को और बढ़ा देता है. 

 • सामाजिक आर्थिक कारक: गरीबी, सीमित शैक्षिक अवसर और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी किशोरियों को जल्दी गर्भधारण और कम अंतराल पर बार-बार गर्भधारण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है. आर्थिक पिछड़ापन और सामाजिक दबाव अक्सर लड़कियों को जल्दी शादी करने और शारीरिक रूप से तैयार होने से पहले परिवार शुरू करने के लिए मजबूर करते हैं.

कम उम्र में विवाह और किशोरावस्था में गर्भधारण के परिणाम

• स्वास्थ्य से संबंधित जोखिम: कम उम्र में शादी से किशोरावस्था में गर्भधारण की आशंका बढ़ जाती है, जो मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा करती हैं. किशोरावस्था तक लड़कियों का शरीर अक्सर पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, जिससे गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताएं पैदा होती हैं. 

 • पीढ़ियों के अंतर का प्रभाव: किशोर माताओं से पैदा हुए बच्चों को शारीरिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. सही हस्तक्षेप नहीं किया जाए तो गरीबी और पिछड़ेपन का चक्र जारी रह सकता है. 

 • सामाजिक कलंक और उसका प्रभाव: किशोर माताओं और उनके बच्चों को अक्सर सामाजिक कलंक, भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जिससे साइकोलॉजिकल समस्या पैदा होती है और सामाजिक समर्थन कम हो जाता है. 

 • मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक चुनौतियां: कम उम्र में शादी करनेवाली लड़कियां अक्सर अपने वैवाहिक संबंधों में बढ़ती आलोचना, अलगाव और सीमित निर्णय लेने की शक्ति का अनुभव करती हैं. इससे डिप्रेशन और स्ट्रेस जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. 

समस्या, समाधान और सीमाएं

कम उम्र में शादी और किशोरावस्था में गर्भधारण और गर्भावस्था के बीच कम अंतर के साथ बार-बार प्रसव भारत में एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, जिससे व्यक्तियों, परिवारों और समाज पर बड़े दूरगामी परिणाम (far-reaching consequences) होंगे. किशोरावस्था में गर्भधारण से मातृ मृत्यु दर में वृद्धि होती है और कई मामलों में शिशु मृत्यु दर में भी वृद्धि होती है. यह स्थिति किसी भी देश के डेवलपमेंट के लिए अच्छा नहीं है.

इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो कानूनी सुधार, शिक्षा, सशक्तिकरण और स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप पर निर्भर करती है. लड़कियों की शिक्षा में निवेश करके, परंपराओं को चुनौती देकर और उनके विकास के अवसर प्रदान करके, भारत कम उम्र में विवाह को रोकने की दिशा में आगे बढ़ सकता है.

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ऐसा करके अपने युवाओं को एक उज्ज्वल भविष्य दे कर हम देश को सशक्त बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं.

हमें अपने कानूनी ढांचे को मजबूत करने और इफेक्टिव इंप्लीमेंटेशन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जिससे बाल विवाह को रोकने और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह बनाने में मदद मिल सके. हमें लड़कियों के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने और कम उम्र में विवाह और किशोरावस्था में गर्भधारण के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है.

यह सब उपयोगी शिक्षा, स्किल ट्रेनिंग तक पहुंच बढ़ाने से संभव है. आर्थिक अवसर लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बना सकते हैं, जिससे वे खुद के लिए सही फैसला कर सके और अपनी शादी में देरी कर पाएं.

हमें परिवार नियोजन सेवाओं सहित रिप्रोडक्टिव हेल्थ की देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जो किशोर गर्भधारण को रोकने और युवा लड़कियों के हेल्थ और कल्याण को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है.

इन सबके अलावा, स्कूलों में आयु को ध्यान में रखते हुए सेक्स एजुकेशन को लागू करने से किशोरों को रिप्रोडक्टिव हेल्थ, गर्भनिरोधक और जिम्मेदार यौन व्यवहार के बारे में ज्ञान के साथ सशक्त बनाया जा सकता है.

किफायती और विश्वसनीय गर्भ निरोधकों तक आसान पहुंच सुनिश्चित करने के साथ-साथ, उनके उचित उपयोग पर सलाह से किशोरों में अनचाही प्रेगनेंसी को कम करने में मदद मिल सकती है. हमें लड़कियों की शिक्षा और कौशल विकास में निवेश जारी रखने की जरूरत है. जेंडर इक्वलिटी को बढ़ावा देने से उन्हें अपने रिप्रोडक्टिव हेल्थ के बारे में बताने, विकल्प चुनने और गर्भधारण में देरी होने तक सशक्त बनाया जा सकता है.

विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने से परामर्श, प्रसवपूर्व देखभाल और सुरक्षित प्रसव सुविधाओं सहित किशोरियों के लिए सही रिप्रोडक्टिव हेल्थ सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं.

अंतिम लेकिन एक महत्वपूर्ण बात, किशोर गर्भधारण के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों में माता-पिता, सोसाइटी और दूसरे शुभचिंतकों को शामिल करना महत्वपूर्ण है. अनुकुल वातावरण तैयार करने और सामाजिक बाधाओं को तोड़ने से समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने में मदद मिल सकती है.

(यह आर्टिकल क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के  संस्थापक अध्यक्ष और नियोनेटोलॉजिस्ट, डॉ. किशोर कुमार ने फिट हिंदी के लिए लिखा है. लेखक हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से हेल्थकेयर डिलीवरी में ग्रेजुएट भी हैं.)

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