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कोरोना काल का सबसे खौफनाक चेहरा जिस ‘Delta variant’ ने दिखाया, उसका नाम आज भी जुबान पर आते ही कंपकपी सी होती है.
बीते 2 सालों में कोविड की 3 लहरें आ चुकीं है. कोविड की लहर में जब भी कोई कहता है कि इस बार का कोविड माइल्ड है या बिल्कुल हल्का है, तो मन में एक सवाल उठता है, क्या कोविड सबके लिए एक जैसा है ? मुझे तो नहीं लगता. कोविड सबके लिए एक जैसा कहां ? वह किसी की जान ले लेता है, तो किसी को अपने होने का एहसास भी नहीं दिलाता. कोई कोविड होने के महीनों बाद भी अपना बीता कल खोज रहा होता है, तो कोई कोविड के प्रति बेफिक्र रहते हुए आने वाले कल के सपने बुनने में मगन है. यानी कोविड सबके लिए एक जैसा नहीं !
आज इस लेख में हम कुछ ऐसे लोगों की बातें आप सभी से साझा करने जा रहे हैं, जिन्होंने COVID के प्रलयकारी Delta वेव को काफी करीब से देखा है.
दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में 10 सालों तक बतौर नर्सिंग स्टाफ काम कर चुके स्वर्गीय राजकुमार अग्रवाल COVID संक्रमित हो, Delta वेव में गुजर गए. फिट हिंदी ने उनकी पत्नी मीनल अग्रवाल से बात की.
वो बताती हैं,
“Delta वेव में मेरे पति स्वर्गीय राजकुमार अग्रवाल कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी कर रहे थे. एक दिन उन्होंने तबीयत खराब होने की बात कही. टेस्ट कराने पर वो कोविड पॉजिटिव निकले. शुरू में घर पर ही इलाज चल रहा था, पर तबीयत बिगड़ जाने पर मैंने उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराने की कोशिश की.”
मीनल अग्रवाल आगे कहती हैं,
“मेरे 2 छोटे बच्चे हैं. वो अक्सर अपने पिता को याद करते रहते हैं और मैं बच्चों के लिए, यादों से बाहर निकल जीवन की संघर्ष गाड़ी को अकेले खींच रही हूं".
मीनल अग्रवाल अपने दुःख और सामने खड़ी जिंदगी के बीच परेशान हैं. वो कहती हैं, “मेरे पति घर में कमाने वाले इकलौते सदस्य थे. उनको गुजरे एक साल हो चुका है, पर अभी तक सरकार की तरफ से कुछ मदद नहीं मिली है. मुआवजा राशि की घोषणाएं तो बहुत हुए थीं, पर वो वहीं तक रह गईं. पैसे की किल्लत ने मुझे मेरे बच्चों को स्कूल से हटाने पर मजबूर कर दिया. उम्मीद है जल्दी ही सरकार की तरफ से मुआवजे की राशि मिल जाएगी.”
“हमने क्या देखा, क्या महसूस किया और Delta वेव के कारण आज हम क्या हैं, यह शब्दों में बता पाना बहुत मुश्किल है. मेरी समझ से Delta वेव जैसी महामारी 100 सालों में एक बार आती है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम इतिहास के इस भयानक अध्याय का हिस्सा बने” यह कहते हुए मेदांता में इंटर्नल मेडिसिन की सीनियर डायरेक्टर डॉ. सुशीला कटारिया Delta वेव की कभी न भूलने वाली यादों में खो गईं -
डॉ सुशीला कटारिया बताती हैं, “हम सिर्फ काम कर रहे थे, बिना सोचे कि हमारे आसपास क्या चल रहा है, हम सिर्फ काम कर रहे थे. आज ही मैं अपनी सहकर्मी डॉक्टर से Delta वेव की बात कर रही थी. उन बातों ने हमें अंदर से झकझोंर दिया और हम भावुक हो गए. पर पिछले साल उस समय, हम सभी बस मरीजों की जान बचाने में लगे थे. कुछ और सोचने-समझने की स्थिति में नहीं थे. बस खुद को समाज के काम आने के लिए मजबूत बनाए रखा था हमने.”
डॉ सुशीला कटारिया आगे कहती हैं, “Covid के Delta वेव में हमारे पास 2 रास्ते थे, पहला, हालात को देख कर कमजोर पड़ हिम्मत हार जाना और दूसरा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना, हमने दूसरा रास्ता चुना”.
Delta वेव के एक काले दिन को याद करती हुईं डॉ कटारिया बताती हैं, “ऐसा भी दिन आया था जब वीडियो कॉन्सल्टेशन के लिए बुक की हुई अपॉइंटमेंट्स में हमें एक के बाद एक अपॉइंटमेंट में मरीज के गुजर जाने की खबर मिली. तब कुछ देर रुककर मैंने अपने आपको अगले कॉल के लिए मजबूत किया”.
“मुझे याद है, एक ही परिवार के तीन भाई हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से लड़ रहे थे और एक के बाद एक हमने तीनों को खो दिया. उस समय उनके परिवार के लोगों की आंखों में देखना और यह बताना कितना कठिन था, मैं नहीं बता सकती” ये कह डॉ कटारिया कुछ समय के लिए चुप हो गईं.
“सभी के पास Delta वेव से जुड़ी कुछ न कुछ बातें बताने को जरूर है. अफसोस इस बात का है कि शायद ही कोई हो, जो कहे कि Delta वेव से मेरी कोई अच्छी, दिल को सुकून देने वाली याद जुड़ी हो. Delta के दिए कई बुरे जख्मों के बीच एक जख्म ऐसा है, जिसे मैं थोड़े दिनों पर मन के कोने में छुपा आता हूं और वो किसी न किसी बहाने बाहर निकलने का रास्ता खोज ही लेता है” इस तरह अपना दुःख बयान किया, कानपुर के प्रबल जोशी ने.
प्रबल कहते हैं-
"स्कूल की मेरी सीनियर कब मेरी दोस्त, बहन और हमराज बन गयी पता ही नहीं चला था. Covid के दस्तक देने से 2 साल पहले हमें पता चला कि वो कैंसर से लड़ रही हैं. अपनी इच्छाशक्ति और कैंसर के जल्दी पता चलने के कारण Covid की पहली लहर से पहले वो लगभग ठीक हो चुकी थीं”.
Covid के पहले और दूसरे वेव के दौरान दूसरी बीमारियों की जांच और इलाज में बहुत परेशनियां आईं, जिस कारण कई लोगों में कुछ बीमारियां जानलेवा बन गईं.
“उनके 2 छोटे बच्चे हैं, छोटे वाले ने अपनी अम्मी के गुजर जाने पर मासूमियत से कहा था, ”अम्मी कैंसर से जीत गयी पर Covid से जंग हार गयी”.
उनके बच्चों की आंखों में Covid का डर और एक सवाल साफ दिखता है, “अगर Covid नहीं आता तो आज अम्मी हमारे साथ होती न?” ये कह प्रबल ने अपनी बात खत्म कर दी.
डॉ समीर पारिख आगे कहते हैं, “कोविड के कारण अलग-अलग समस्याओं से जूझते लोग आए मेरे पास. कोई स्ट्रेस के कारण, कोई जॉब प्रेशर या उसे खोने के कारण, कोई पढ़ाई में परेशानी झेलने के कारण तो कोई अपनों को खोने के बाद आए थे. कुछ लोगों की समस्या खत्म हो गई, कुछ लोगों की अभी भी चल रही हैं. जीवन में समस्याओं का अंत नहीं है और सारी समस्या तुरंत ठीक नहीं हो जाती हैं. पूरी दुनिया के लिए ये एक लंबी लड़ाई है”.
"अभी भी कोविड गया नहीं है. मामले फिर से बढ़ रहे हैं. जब भी कभी कोविड के आंकड़े बढ़ेंगे तो स्वाभाविक है, डर और चिंता होना. क्योंकि हमने Delta वेव देखा है. पर मुझे लगता है कि हमें लगातार अडेप्ट करने और सीखने की जरूरत है. सीखना है पॉजिटिविटी. याद रखना है कि कैसे हमने अभी तक हिम्मत से काम लिया है. ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण है रिश्ते उन्हें सम्भलें", ये है डॉ समीर पारिख की सलाह.
जो अभी भी परेशानियों से लड़ रहे हैं, या जीवन में कोविड महामारी के भयानक प्रकोप को झेल रहे हैं, उनके लिए हमें क्या करना चाहिए जानें, डॉ समीर पारिख से:
उनको सपोर्ट करें
उनके जीवन में प्रभावपूर्ण मौजूदगी बनाएं
रिश्तों की अहमियत समझें और समझाएं
अगर कोई भी मानसिक, भावनात्मक तौर पर संघर्ष कर रहे हैं या सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हैं, तो उन्हें एक्स्पर्ट से मिलाएं.
कई परिवार कोविड के डेल्टा- प्रकोप की सिहरन साल भर बाद भी महसूस कर रहे हैं. जरूरत है उन सब को पॉजिटिव सपोर्ट की. लोगों में सिर्फ उम्मीद नहीं, बल्कि विश्वास जगाना होगा कि दोबारा वैसे बेकाबू-से हालात पैदा ही नहीं होने दिए जाएंगे. जाहिर है कि केंद्र और राज्य की सरकारें ही ऐसे संकल्प को साकार कर सकती हैं.
सिस्टम यानी व्यवस्था से जो गलतियां कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान हुईं, उनसे सबक लेकर आगे की रक्षात्मक तैयारियां हुईं या हो रही हैं क्या? आशंकाओं से भरा हुआ सबसे बड़ा सवाल यही है.
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