advertisement
Thyroid Disorders And Fertility: हॉर्मोन्स कई सारे फिजिकल एक्शन में शरीर के अंदर काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और फर्टिलिटी या प्रजनन भी उससे अलग नहीं है. रिप्रोडक्टिव हेल्थ यानी प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली कई चीजें आपस में बारीकी से जुड़ी हुई हैं और थायरॉइड फंक्शन भी एक ऐसा विषय है, जिसने हाल के वर्षों में काफी ज्यादा लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.
इस आर्टिकल में फिट हिंदी एक्सपर्ट से थायरॉइड हेल्थ और रिप्रोडक्शन के बीच के काम्प्लेक्स रिलेशनशिप को समझने की कोशिश करेगा और थायरॉइड फंक्शन, रिप्रोडक्शन की सफलता को कैसे प्रभावित कर सकता है ये भी जानेंगे.
थायरॉइड गले के अंदर तितली के आकार का एक छोटा-सा ग्लैंड होता है, जो कि मेटाबॉलिज्म़ को कंट्रोल करने वाले हॉर्मोन को बनाता है और शरीर के लगभग हर ऑर्गन के फंक्शन को प्रभावित करता है.
थायरॉइड से दो महत्वपूर्ण हॉर्मोन्स थायरॉक्सिन (टी4) और ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) का स्राव (discharge) ब्लड में होता है. ये दोनों हॉर्मोन्स शरीर की ऊर्जा के स्तर, तापमान और सबसे महत्वपूर्ण बात रिप्रोडक्टिव सिस्टम के फंक्शंस को कंट्रोल करने का काम करते हैं.
थायरॉइड हार्मोन के लेवल, खास कर थायरॉइड-उत्तेजक हार्मोन (TSH), थायरॉइड हार्मोन T3 (ट्राईआयोडोथायरोनिन) और T4 (थायरोक्सिन) को मापकर थायरॉइड फंक्शन का मूल्यांकन किया जाता है. TSH स्तरों के लिए संदर्भ सीमा (reference range) आमतौर पर 0.4 और 4.0 मिली-अंतर्राष्ट्रीय इकाइयों प्रति लीटर (mIU/L) के बीच होती है.
हालांकि, यह ध्यान रखना जरुरी है कि प्रयोगशाला और व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर सामान्य श्रेणियां थोड़ी अलग हो सकती हैं. किसको भी अगर थायरॉयड डिसऑर्डर का संदेह है, तो ऐसे में हेल्थकेयर प्रोफेशनल की सलाह लेना सबसे अच्छा है, जो आपकी स्थिति के अनुसार परिणामों को समझ सकते हैं.
थायरॉइड फंक्शन का असंतुलन जैसे हाइपोथायरॉइडिज्म़ (कम सक्रिय थायरॉइड) या हाइपरथायरॉइडिज्म़ (अधिक सक्रिय थायरॉइड), सफल प्रजनन (reproduction) के लिए जरुरी काम्प्लेक्स हार्मोन एक्शन में रुकावट डाल सकता है. ये हैं थायरॉइड से जुड़ी समस्याएं जो रिप्रोडक्शन सिस्टम में समस्या पैदा कर स्की हैं:
हाइपोथायरॉइडिज्म और रिप्रोडक्शन: थायरॉइड हॉर्मोन के शरीर में कम बनने को हाइपोथायरॉइडिज्म़ कहा जाता है. यह महिलाओं और पुरुषों दोनों में रिप्रोडक्टिव सिस्टम को प्रभावित कर सकती है. महिलाओं में हाइपोथायरॉडिज्म की वजह से अनियमित मासिक चक्र, ओव्युलेशन का न होना और ओव्युलेटरी क्षमता कम हो सकती है.
हाइपरथायरॉइडिज्म और रिप्रोडक्शन: वहीं, थायरॉइड हॉर्मोन की अधिकता हाइपरथायरॉइडिज्म कहलाता है, जिससे प्रजनन में समस्याएं पैदा हो सकती हैं. जिन महिलाओं को हाइपरथायरॉइडिज्म है, उन्हें अनियमित पीरियड्स की समस्या हो सकती है और गंभीर मामलों में एमेनोरिया (माहवारी का न होना) की समस्या हो सकती है. हाइपो और हाइपरथायरॉइडिज्म, दोनों में ही रिप्रोडक्टिव हॉर्मोन्स का बैलेंस ब्लॉक्ड हो सकता है. इससे गर्भधारण करने की संभावना प्रभावित हो सकती है.
अस्सिटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजीज (एआरटी): अस्सिटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजीज (ART) जैसे इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) से गुजर रहे लोगों के लिए थायरॉइड हेल्थ बेहद जरूरी होता है. स्टडीज में यह बात सामने आई है कि जिन महिलाओं को सबक्लीनिकल हाइपोथायरॉडिज्म की समस्या है, भले ही वह सामान्य रेंज में ही क्यों न हो, उससे आईवीएफ की सफलता दर कम हो सकती है. रिप्रोडक्टिव सिस्टम का इलाज शुरू करने से पहले थायरॉइड फंक्शन की जांच करना और पर्याप्त कार्यप्रणाली (adequate functioning) का ध्यान रखना, रिजल्ट्स को बेहतर बना सकता है.
रिप्रोडक्शन पर थायरॉइड डिसऑर्डर के प्रभाव को समझने से कपल्स और डॉक्टरों को संभावित चुनौतियों की सही समझ हो पाती है.
थायरॉइड फंक्शन टेस्ट: सामान्य थायरॉइड फंक्शन टेस्ट में शामिल, टीएसएच (थायरॉइड-स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन), फ्री टी4 और फ्री टी3, थायरॉइड हेल्थ टेस्ट के लिए जरुरी हैं. कॉम्प्रिहेंसिव टेस्टिंग (comprehensive testing) से समय रहते असंतुलन का पता चल जाता है, जिससे सही इलाज मिल जाता है.
संतुलित पोषण: सही थायरॉइड फंक्शन के लिए संतुलित आहार से मिले पोषण से पूरे रिप्रोडक्टिव हेल्थ को फायदा होता है. आयोडीन, सेलेनियम और दूसरे आवश्यक पोषक तत्व, थायरॉइड के पर्याप्त रूप से काम करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
स्ट्रेस मैनेजमेंट: क्रॉनिक स्ट्रेस का असर थायरॉइड के फंक्शन पर पड़ता है और रिप्रोडक्टिव हॉर्मोन्स में रुकावट पैदा कर सकता है. ध्यान, योग या माइंडफुलनेस जैसी स्ट्रेस मैंजमेंट की तकनीकों को शामिल करने से थायरॉइड और रिप्रोडक्टिव हेल्थ दोनों पर अच्छा प्रभाव पड़ सकता है.
डॉक्टरों से संपर्क करें: थायरॉइड संबंधी प्रजनन समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और रिप्रोडक्टिव हेल्थ एक्सपर्ट का साथ मिलकर काम करना बेहद जरुरी है. थायरॉइड असंतुलन को दूर करने वाली, खासतौर से तैयार की जाने वाली ट्रीटमेंट प्लान से रिप्रोडक्शन के रिजल्ट काफी बेहतर हो सकते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined