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IVF: भारत में बढ़ती इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट की कहानी, धोखा खाने से कैसे बचे?

IVF, Surrogacy में बढ़ते धोखाधड़ी के मामले. जानते हैं इससे जुड़े कानून और समस्याओं के बारे में.

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उत्तर प्रदेश के नोएडा में आईवीएफ (IVF) प्रक्रिया से जुड़ी एक शर्मनाक घटना में सामने आयी है. बच्चे की चाह रखने वाली एक नौजवान महिला, फर्जी एमबीबीएस की डिग्री के आधार पर आईवीएफ सेंटर (IVF Centre) में इलाज करने वाले डॉक्टर की बलि चढ़ गयी.

इस मामले में आईवीएफ सेंटर (IVF Centre) के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर प्रियरंजन ठाकुर को 2 सितंबर को गिरफ्तार किया है.

इस आईवीएफ सेंटर (IVF Centre) का डॉक्टर जिस MBBS डिग्री के आधार पर संचालन कर रहा था, पुलिस जांच में वो फर्जी मिली है.

देश में आए दिन आईवीएफ (IVF) और सरोगेसी (surrogacy) से जुड़ी धोखाधड़ी के मामले सामने आते रहते हैं. ऐसे में जरूरी है इन प्रक्रियाओं के बारे में पूरी और सही जानकारी होना.

IVF: भारत में बढ़ती इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट की कहानी, धोखा खाने से कैसे बचे?

  1. 1. खरबों रुपए के व्यवसाय में बदल चुका है आईवीएफ का बाजार

    भारत में बढ़ते इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, जिसमें आईवीएफ (IVF), आईयूआई (IUI), सरोगेसी (surrogacy) जैसी प्रक्रिया शामिल है, से लगभग हर घर परिचित है. इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे देश के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे शहर के गली मोहल्लों में इन्फर्टिलिटी क्लिनिक का खुलना, वो भी बड़ी संख्या में.

    इन्फर्टिलिटी क्लीनिक एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया है, जिसमें भारतीयों में बढ़ती इन्फर्टिलिटी की समस्या ने आग में घी का काम किया है.

    आखिर देश में बढ़ते इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट मार्केट का कारण क्या है? इन्फर्टिलिटी क्लिनिक के काम करने का सही तरीका क्या है? अगर कोई गड़बड़ी कर रहा हो तो उसे कौन देखेगा? इस पर क्या कहता है हमारे देश का कानून?

    ऐसे कई सवालों के जवाब जानने के लिए फिट हिंदी ने इस मुद्दे से जुड़े लोगों से संपर्क करने की कोशिश की. अधिकतर लोगों ने निराश किया. कुछ ने NGO पॉलिसी का हवाला दे सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया तो कुछ ने व्यस्तता की बात कह आज-कल करते हुए बात टाल दी. बहुतों ने तो इस विषय पर बात करने से साफ इनकार कर दिया और कुछ ने सवाल बदल कर पूछने को कहा.

    इस लेख में इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट से जुड़े कुछ सवालों के जवाब हैं, जो हमें हमारे एक्स्पर्ट्स ने दिए हैं. आइए जानें

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  2. 2. देश में बढ़ते इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट मार्केट का कारण क्या है?

    “इन्फर्टिलिटी फील्ड (Infertility field) एक बहुत बड़ा व्यवसाय हो गया हैं. निसंतान दंपति के बच्चे की चाह को वो अपने लिए पैसा कमाने का सोर्स बना लेते हैं. जैसे किडनी ट्रांसप्लांट के लिए किडनी खरीदना या बेचना मना है, पर लोग खरीद-बेच रहे हैं. उसका एक बहुत बड़ा ब्लैक मार्केट चल रहा है, ठीक उसी तरह IVF है. यह भी एक तरह का ऑर्गन (organ) डोनेशन है."
    डॉ अजय कुमार. पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

    इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट मार्केट के इतने फलने फूलने की सबसे बड़ी वजह है, भारतीयों में बढ़ती इन्फर्टिलिटी की समस्या. जिसके कई कारण हो सकते हैं. सी. के. बिरला हॉस्पिटल की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्स्टट्रिशन डॉ. अरुणा कालरा ने कुछ दिनों पहले फिट हिंदी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था,

    “इन्फर्टिलिटी की समस्या तेजी बढ़ रही है. जिसकी वजह से दंपति माता-पिता नहीं बन पाते हैं. इसका कारण है महिला में एग/उसाइट का न बनना, एंडोमेट्रिओसिस, फैलोपियन ट्यूब में समस्या होना, उम्र ज्यादा होने की वजह से एग का कमजोर पड़ जाना, कीमोथेरपी, दवाओं का अधिक सेवन, खराब लाइफस्टाइल और कई बार ऑटोइम्यून बीमारियों की वजह से अंडों का मर जाना.”

    पुरुषों में इन्फर्टिलिटी के कुछ कारण ये हैं. स्पर्म की कमी या खराब स्पर्म, फिजिकल एक्टिविटी का कम होना, अनहेल्दी खानपान, शराब और धूम्रपान का अधिक सेवन, बेतरतीब लाइफस्टाइल.

    इनके अलवा आजकल शादी और माता-पिता बनने के फैसले लोग अपनी सुविधा अनुसार ले रहे हैं. जिस कारण कभी-कभी माता-पिता बनने के लिए शारीरिक उम्र साथ नहीं देती है. तब ऐसे में अपने बच्चे की चाह रखने वाले इन्फर्टिलिटी क्लिनिकों का सहारा लेते हैं.

    कई बार बच्चा गोद लेने की लंबी और जटिल प्रक्रियाओं से बचने के लिए भी लोग आईवीएफ, एग या स्पर्म डोनेशन और सरोगेसी जैसी तरकीबों का सहारा लेते हैं.

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  3. 3. इन्फर्टिलिटी क्लिनिक के काम करने का सही तरीका क्या है?

    “इन्फर्टिलिटी क्लिनिक को फर्टिलिटी विषय में ट्रेंड गायनकॉलिजस्ट चलाते हैं. जो लोग हमारे पास इनफर्टिलिटी से जुड़ी समस्या ले कर आते हैं, हम उनकी जांच (examine) करते हैं. उससे ये पता चलता है कि किस तरह की इनफर्टिलिटी समस्या से दंपति जूझ रहे हैं और उसके लिए इलाज क्या करना है."
    डॉ आर.के.शर्मा, रिटायर्ड ब्रिगेडियर, आईवीएफ एक्स्पर्ट

    डॉ आर.के.शर्मा आगे कहते हैं, "उसके बाद उनकी काउन्सलिंग होती है. उन्हें IVF, IUI, सरोगेसी जैसी प्रक्रिया से जुड़ी पूरी जानकारी दी जाती है, जैसे कि उसके रिस्क, खर्च, सक्सेस रेट सब कुछ. सब जानने और समझने के बाद मरीज के कन्सेंट से इलाज शुरू किया जाता है. देश के IVF कानून को ध्यान में रखते हुए इलाज किया जाता है.”

    • आईवीएफ या सरोगेसी की प्रक्रिया शुरू करने से पहले दंपति की काउंसलिंग.

    • दंपति को इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए बनाए गए कानून की जानकारी देना.

    • आईवीएफ और सरोगेसी की असफलता दर के बारे में बताना.

    • सेहत पर इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट जैसे कि आईवीएफ, सरोगेसी, एग डोनेशन, आईयूआई जैसी प्रक्रियाओं से होने वाले अच्छे-बुरे असर के बारे में बताना.

    • इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के खर्चों के बारे में जानकारी देना.

    • इसमें आने वाली समस्याओं के बारे में खुलकर बातें करना.

    • मरीज/परिवार के सदस्य का कन्सेंट लिखित में लेने के बाद ही प्रक्रिया शुरू करना.

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  4. 4. इन्फर्टिलिटी क्लिनिकों पर नजर कौन रखता है?

    “पहले देश में 1-2 IVF सेंटर हुआ करते थे, जहां जरूरतमंद लोग पूरे देश से जाते थे और आज स्थिति ऐसी है कि देश के छोटे से छोटे शहर के गली-मुहल्लों में भी IVF सेंटर का बोर्ड देखने को मिल रहा है. हो सकता है, इनमें से कुछ सेंटरों में कई तरह के दूसरे काम भी चल रहे हों".
    डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

    इसी सवाल पर डॉ आर.के.शर्मा कहते हैं, “सबसे पहले तो जो क्लिनिक चला रहा होगा उसकी अपनी अंतर आत्मा इसका ध्यान रखती है. लेकिन अगर वही नहीं है, तो सरकार कितने भी नियम बना ले कुछ नहीं हो सकता. वैसे जो यह नया कानून आया है, उसमें जिला, राज्य और केंद्र के स्तर पर “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” (appropriate authority) बनी है. उसमें सरकारी अधिकारी, एनजीओ (NGO)के सदस्य, प्रतिष्ठित गायनकॉलिजस्ट होते हैं, जो कभी भी क्लिनिक आ कर किसी भी दस्तावेज को जांच परख कर सकते हैं.”

    इस पर IMA के पूर्व प्रेसिडेंट डॉ अजय कुमार कहते हैं कि नजर रखने वाले, तो कानून बनने से पहले भी थे और बनने के बाद भी हैं, पर कोई सामने आ कर शिकायत तो दर्ज कराए. कभी कोई शिकायतकर्ता ऐसा नहीं होता है, जो कहे कि उन्हें नाबालिग बच्ची का एग/उसाइट दिया गया है या उनके सरोगेसी के केस में नाबालिग बच्ची का इस्तेमाल किया गया हो.

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  5. 5. इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में शोषण कैसे होता है?

    “फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की सफलता पर लोग चुप हो जाते हैं, पर असफलता को लोग शोषण का नाम दे देते हैं. अब हर सेंटर में एक स्वतंत्र काउंसलर के रहने से और सारी जानकारी लिखित तरीके से होने पर डॉक्टरों को भी बहुत राहत है.”
    डॉ आर के शर्मा

    अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ शर्मा कहते हैं,
    “पहले भी मरीज या मरीज के परिवार वालों से कन्सेंट लिया जाता था और काउंसलिंग की जाती थी. बताया जाता था कि IVF प्रक्रिया में अगर सब ठीक रहा तो भी रिजल्ट 100% नहीं आता है. पर हिंदुस्तान में कई बार ऐसा होता है कि मरीज को आप 60% रिजल्ट की बात बोलो पर वो सुनते 100% ही हैं. लेकिन अब नए कानून के तहत हर एक सेंटर में एक स्वतंत्र काउंसलर होगा, जो मरीज को प्रक्रिया और उससे जुड़ी सारी जानकारी प्रदान करेगा ताकि कन्सेंट को ले कर किसी तरह की कोई समस्या न आए.”

    इन्फर्टिलिटी कानून के आने से पहले इस तरह के क्लिनिक आईसीएमआर (ICMR) की गाइडलाइंस के तहत चल रहे थे और अक्सर गाइडलाइंस के खुलेआम उल्लघंन की बात भी सामने आई है. लगातार ऐसे मामले होते रहे हैं, जिनमें निसंतान दंपतियों का शोषण कर लाखों रुपये ऐंठे गए.

    आईवीएफ (IVF) के लगातार फेल होने के बावजूद महिलाओं का गिनी पिग की तरह इस्तेमाल होता रहा, बार-बार उन्हें मां बनाने का लोभ दे कर इलाज के नाम पर उन पर प्रयोग किया गया और साथ ही लाखों रुपये ऐंठे गए.

    कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें जेनेटिक डिफेक्ट को जानने के बहाने आईवीएफ (IVF) सेंटरों ने बेहिचक जेंडर टेस्ट किए और लड़का पाने की चाह रखने वाले दंपतियों से मनमाने रुपये वसूले.

    नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक गायनकॉलिजस्ट ने बताया कि “जेनेटिक डिफेक्ट को जानने के बहाने आईवीएफ (IVF) सेंटर से लड़का पाने की चाह रखने वाले लोग भ्रूण (Embryo) के लिंग का पता कर, बेटे की चाह पूरी नहीं होने पर अबॉर्शन भी कराते हैं. यह सब गैरकानूनी है, पर कोई पकड़ में आए तब न कारवाई हो. भारत में ये टेस्ट गैरकानूनी है, सिर्फ कुछ ही परिस्थितियों में इन्हें किया जा सकता है.”

    अभी भी हमारे देश में सामाजिक कारणों की वजह से IVF या इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट को छुपाने का कल्चर मौजूद है.
    “इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए कोई गरीब व्यक्ति नहीं जाता है और जो भी जाते हैं, वो पढ़े-लिखे संपन्न परिवार के होते हैं. उन्हें सब बातें पता होती हैं. कई लोग कम से कम उम्र की एग/उसाइट डोनर या सरोगेसी के लिए कम उम्र की लड़की खोजते हैं और उसके लिए अधिक खर्च भी करने को तैयार रहते हैं.”
    डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट IMA
    पैसे कमाने के चक्कर में अविवाहित लड़कियां और यंग लड़के अपने स्पर्म और अविकसित एग सेल कई-कई बार बेच रहे थे/हैं.

    ऐसा भी होता है कि पैसे की जरुरत या लालच में पड़ कर लड़कियां/महिलाएं और लड़के/पुरुष कई-कई बार एग/उसाइट और स्पर्म डोनेट करते हैं. कानून की जानकारी उन्हें बखूबी होती है. उससे बचने के लिए वो नाम बदल कर और अलग-अलग सेंटर में जा कर ये गैर कानूनी काम करते हैं.

    एजेंट या मिडल मैन का भी इन गैर कानूनी कामों में बहुत बड़ा हाथ होता है. वो सेंटर और डोनर के बीच का लिंक होते हैं.

    “मेरे पास जब भी कोई लड़की (गैर शादीशुदा) एग/उसाइट डोनर बनने की इच्छा लेकर आयी, मैंने उन्हें माना कर दिया पर साथ ही जानने की कोशिश भी की, कि आखिर वो पढ़ी-लिखी होते हुए भी ऐसा क्यों करना चाहती हैं? जवाब मिलता कि किसी को अपने नाक या होठों की प्लास्टिक सर्जरी करानी होती थी, तो कोई अपने दोस्तों के साथ गोवा जाना चाहती थी. यह एक सामाजिक समस्या भी है.”
    डॉ आर.के.शर्मा
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  6. 6. नए कानून में इन्फर्टिलिटी सेंटरों के लिए बनाए गए ये नियम

    इन्फर्टिलिटी सेंटर में किए जाने वाले इलाज के लिए अलग-अलग कानून बनाए गए हैं. अभी हम यहां सेंटर के लिए तय नियम के बारे में बताने जा रहे हैं.

    “मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया ने फर्टिलिटी एथिक्स पर साफ शब्दों में नियम बनाया हुआ है. इन्फर्टिलिटी फील्ड (Infertility field) में धांधली करते हुए लोगों को अपनी नैतिक जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए.”
    डॉ अजय कुमार. पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

    इन्फर्टिलिटी सेंटर के लिए लाइसेन्स/रेजिस्ट्रेशन है जरुरी

    लेवल 1- वैसे सेंटर जहां पर गायनकॉलिजस्ट द्वारा इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन (IUI) की प्रक्रिया की जाती है, उस सेंटर को 50,000 रुपए रेजिस्ट्रेशन के तौर पर देना होगा.

    लेवल 2- जिस सेंटर में गायनकॉलिजस्ट द्वारा IVF की प्रक्रिया की जाती है, उन्हें 2,00000 रुपए रेजिस्ट्रेशन के तौर पर देना होगा.

    लाइसेन्स/रेजिस्ट्रेशन का नवीकरण (renewal)

    सेंटरों को रेजिस्ट्रेशन नवीकरण (renew) भी करना होगा. लाइसेन्स खत्म होने पर सेंटर को दुबारा मूल्यांकन प्रक्रिया (assessment process) से गुजरना होगा और रेजिस्ट्रेशन के लिए दुबारा भुगतान भी करना होगा.

    सेंटर का इंफ्रास्ट्रक्चर (infrastructure)

    इन्फर्टिलिटी सेंटर का इंफ्रास्ट्रक्चर (infrastructure), एक्ट में दिए गए नियम के मुताबिक होना चाहिए नहीं तो लाइसेन्स/रेजिस्ट्रेशन नहीं दिया जाएगा.

    रेजिस्ट्रेशन नवीकरण (renew) करने के समय भी इन बातों का ध्यान रखा जाता है.

    हर सेंटर पर स्वतंत्र काउंसलर

    हर एक सेंटर में एक स्वतंत्र काउंसलर होगा, जो मरीज को प्रक्रिया और उससे जुड़ी सारी जानकारी प्रदान करेगा ताकि कन्सेंट को ले कर किसी तरह की कोई समस्या न आए.

    “इन सख्त नियमों के कारण सही ढंग से काम नहीं करने वाले सेंटरों की संख्या में कमी आएगी.”
    डॉ आर.के.शर्मा
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  7. 7. इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट पर क्या कहता है हमारे देश का कानून?

    नए ART एक्ट के तहत हर एक सेंटर चाहे वो इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन (IUI) करते हों या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) सबको रेजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा और वो नियमित सरकारी निगरानी में रहेंगे. साथ ही समय-समय पर क्लिनिक का लेखा-जोखा सरकार द्वारा बनाई गयी रेग्युलटॉरी बॉडी से साझा करना होगा.

    “मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) में, मैं 18 साल रहा हूं. सिर्फ इसी मामले में नहीं बल्कि किसी भी तरह की धांधली के मामले में डॉक्टर की शिकायत होने पर, उन्हें आचार समिति (ethics committee) में बुलाया जाता था, फिर कारवाई भी होती थी और अभी भी होती है. पर उसके बाद वो डॉक्टर सीधे हाई कोर्ट जाएंगे और वहां से ले लेंगे स्टे (stay). वो स्टे (stay) ऐसा चलेगा कि केस ही नहीं खुलेगा तब तक डॉक्टर वापस उन्हीं गतिविधियों में लग जाते हैं.”
    डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

    आईवीएफ (IVF) और सरोगेसी (surrogacy) के लिए अलग-अलग कानून बने हैं. आईवीएफ के लिए बने ‘ART’ एक्ट में ही महिला एग/उसाइट डोनर (Oocyte/egg donor) के लिए भी नियम बने हैं.

    जब महिला अपने लिए ही एग/उसाइट फ़्रीज कर रही हैं तब,

    “मान लें जैसे कोई महिला 5 साल बाद शादी या बच्चा प्लान करने का सोच रही हैं और अगर उन्हें लगता है कि उस समय तक उनकी उम्र गर्भावस्था के लिए सही नहीं रहेगी, तो वो एग बैंक में अपने एग्स/उसाइट जमा करती हैं. कैंसर से लड़ रहीं महिलाएं भी गर्भावस्था में आगे होने वाली जटिलताओं से बचने के लिए ऐसा करती हैं. हमारे देश के नियम के अनुसार ऐसे मामलों में महिलाओं को 10 साल तक एग बैंक की सुविधा दी जाती है.”
    डॉ आर.के.शर्मा
    कानून को तोड़ने वालों को पहली बार पकड़े जाने पर 5 से 10 लाख और दूसरी बार पकड़े जाने पर 10 से 20 लाख रुपये जुर्माने के साथ आठ साल की कड़ी सजा का प्रावधान है.
    “जबतक मैं IMA का प्रेसिडेंट था तब तक मैंने अपनी पूरी कोशिश की थी ऐसे मामलों पर नकेल कसने की, पर शिकायत आए तब ना. जानते तो हम सभी हैं कि बहुत कुछ गड़बड़ हो रहा है, इन्फर्टिलिटी फील्ड (Infertility field) में पर कोई सामने आ कर शिकायत तो दर्ज कराए.”
    डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट IMA
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  8. 8. आईवीएफ, एग/उसाइट डोनर और सरोगेसी के नियम

    आईवीएफ के लिए उम्र निर्धारित कर दी गई है.

    • 50 साल तक की महिलाएं और 55 साल तक के पुरुष आईवीएफ सेवा ले सकते हैं.

    • अब 21 से 55 साल के पुरुष और 23 से 35 की महिलाएं ही अपना स्पर्म और अविकसित एग सेल डोनेट कर सकते हैं.

    एग/उसाइट डोनर (दूसरों के लिए)

    ART एक्ट में स्पर्म और अविकसित एग सेल स्टोर करने वाले बैंकों पर भी लगाम कसी गई है.

    • एग/उसाइट डोनर (दूसरों के लिए) अपने जीवन में 1 ही बार एग/उसाइट डोनेट कर सकती हैं, वो भी 7 एग/उसाइट से ज्यादा नहीं

    • डोनर वयस्क, शादीशुदा और स्वस्थ होनी चाहिए

    • डोनर और पति के पहचान पत्र की ठीक से जांच होनी चाहिए

    • दूसरी बड़ी बात ये है कि एग/उसाइट डोनेट (दूसरों के लिए) करने वाली महिला का अपना बच्चा होना चाहिए

    • बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट देखा जाएगा

    • प्रक्रिया और रिस्क से जुड़ी बातों पर काउंसलिंग अनिवार्य है

    • एग/उसाइट डोनर को 1 साल के बीमा (insurance) की सुविधा मिलेगी

    सरोगेसी यानी कि किराए की कोख

    वहीं सरोगेसी एक्ट के जरिए सरोगेट मदर यानी किराए पर कोख देने वाली महिलाओं के बढ़ते शोषण को खत्म करने के लिए नियम बनाए गए हैं.

    “महिला जब किसी ऐसी शारीरिक समस्या से जूझ रही हों, जिसकी वजह से वो मां बनने में असमर्थ हों, तब ऐसे में सरोगेसी का विकल्प वो चुन सकती हैं. नई सरोगेसी एक्ट के तहत महिला या जोड़े की तरफ से “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” को आवेदन भेजा जाएगा. वो मामले की गंभीरता की जांच करेंगे और अगर उन्हें जांच में सब सही लगा, तो उसके आधार पर सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी" ये बताया डॉ शर्मा ने.

    दूसरा नियम यह है कि कमर्शल सरोगेसी को बढ़ावा देने की बजाए परिवार के लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए सरोगेसी के लिए आगे आने को. लेकिन अगर परिवार में ऐसा कोई नहीं मिले तब जोड़े को “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” को यह बताना होगा. “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” की अनुमति मिलने पर जोड़ा “कमर्शल सरोगेसी” के विकल्प के लिए जा सकता है.

    तीसरा नियम है, माता-पिता बनने वाला जोड़ा सरोगेट मदर को 3 साल के हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा देगा.

    देश में कमर्शल सरोगेसी के कारण हाल ये है कि एक महिला की कोख एक-दो बार नहीं, बल्कि कई बार किराए पर ले ली जाती है. इसकी वजह से न केवल महिला का स्वास्थ्य दांव पर होता है बल्कि उसका मानसिक शोषण भी होता है. अब इस नए कानून के जरिए सरकार महिलाओं पर इस तरह के शोषण को रोकने के लिए आशावान है.

    “डॉक्टर जिन्हें अपनी जिम्मेदारी और प्रतिष्ठा का एहसास है, वो किसी भी मरीज या महिला का शोषण नहीं करेंगे. पर हां, आजकल कई व्यवसायी भी इन्फर्टिलिटी फील्ड में कूद गए हैं. जगह-जगह इन्फर्टिलिटी सेंटर खुल गए हैं. वहां पर काम करने वाले डॉक्टरों की बात कितनी सुनी जाती है इस पर मुझे संदेह है. इन्फर्टिलिटी फील्ड में हो रही गड़बड़ियों को ध्यान में रखते हुए ही नए कानून लाए गए हैं.”
    डॉ आर के शर्मा

    माता-पिता बनने की चाह रखने वालों के लिए इन्फर्टिलिटी की समस्या, दुखों और सामाजिक यातनाओं को जन्म देती है. संतान-प्राप्ति एक ऐसी संवेदनशील चाहत होती है, जिसे पूरी करने के लिए लोग कुछ भी करने को आतुर होते हैं. इसी का फायदा उठा रहा है यह कुकुरमुत्ते की तरह फैल चुका बाजार.

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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खरबों रुपए के व्यवसाय में बदल चुका है आईवीएफ का बाजार

भारत में बढ़ते इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, जिसमें आईवीएफ (IVF), आईयूआई (IUI), सरोगेसी (surrogacy) जैसी प्रक्रिया शामिल है, से लगभग हर घर परिचित है. इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे देश के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे शहर के गली मोहल्लों में इन्फर्टिलिटी क्लिनिक का खुलना, वो भी बड़ी संख्या में.

इन्फर्टिलिटी क्लीनिक एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया है, जिसमें भारतीयों में बढ़ती इन्फर्टिलिटी की समस्या ने आग में घी का काम किया है.

आखिर देश में बढ़ते इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट मार्केट का कारण क्या है? इन्फर्टिलिटी क्लिनिक के काम करने का सही तरीका क्या है? अगर कोई गड़बड़ी कर रहा हो तो उसे कौन देखेगा? इस पर क्या कहता है हमारे देश का कानून?

ऐसे कई सवालों के जवाब जानने के लिए फिट हिंदी ने इस मुद्दे से जुड़े लोगों से संपर्क करने की कोशिश की. अधिकतर लोगों ने निराश किया. कुछ ने NGO पॉलिसी का हवाला दे सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया तो कुछ ने व्यस्तता की बात कह आज-कल करते हुए बात टाल दी. बहुतों ने तो इस विषय पर बात करने से साफ इनकार कर दिया और कुछ ने सवाल बदल कर पूछने को कहा.

इस लेख में इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट से जुड़े कुछ सवालों के जवाब हैं, जो हमें हमारे एक्स्पर्ट्स ने दिए हैं. आइए जानें

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देश में बढ़ते इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट मार्केट का कारण क्या है?

“इन्फर्टिलिटी फील्ड (Infertility field) एक बहुत बड़ा व्यवसाय हो गया हैं. निसंतान दंपति के बच्चे की चाह को वो अपने लिए पैसा कमाने का सोर्स बना लेते हैं. जैसे किडनी ट्रांसप्लांट के लिए किडनी खरीदना या बेचना मना है, पर लोग खरीद-बेच रहे हैं. उसका एक बहुत बड़ा ब्लैक मार्केट चल रहा है, ठीक उसी तरह IVF है. यह भी एक तरह का ऑर्गन (organ) डोनेशन है."
डॉ अजय कुमार. पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट मार्केट के इतने फलने फूलने की सबसे बड़ी वजह है, भारतीयों में बढ़ती इन्फर्टिलिटी की समस्या. जिसके कई कारण हो सकते हैं. सी. के. बिरला हॉस्पिटल की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्स्टट्रिशन डॉ. अरुणा कालरा ने कुछ दिनों पहले फिट हिंदी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था,

“इन्फर्टिलिटी की समस्या तेजी बढ़ रही है. जिसकी वजह से दंपति माता-पिता नहीं बन पाते हैं. इसका कारण है महिला में एग/उसाइट का न बनना, एंडोमेट्रिओसिस, फैलोपियन ट्यूब में समस्या होना, उम्र ज्यादा होने की वजह से एग का कमजोर पड़ जाना, कीमोथेरपी, दवाओं का अधिक सेवन, खराब लाइफस्टाइल और कई बार ऑटोइम्यून बीमारियों की वजह से अंडों का मर जाना.”

पुरुषों में इन्फर्टिलिटी के कुछ कारण ये हैं. स्पर्म की कमी या खराब स्पर्म, फिजिकल एक्टिविटी का कम होना, अनहेल्दी खानपान, शराब और धूम्रपान का अधिक सेवन, बेतरतीब लाइफस्टाइल.

इनके अलवा आजकल शादी और माता-पिता बनने के फैसले लोग अपनी सुविधा अनुसार ले रहे हैं. जिस कारण कभी-कभी माता-पिता बनने के लिए शारीरिक उम्र साथ नहीं देती है. तब ऐसे में अपने बच्चे की चाह रखने वाले इन्फर्टिलिटी क्लिनिकों का सहारा लेते हैं.

कई बार बच्चा गोद लेने की लंबी और जटिल प्रक्रियाओं से बचने के लिए भी लोग आईवीएफ, एग या स्पर्म डोनेशन और सरोगेसी जैसी तरकीबों का सहारा लेते हैं.

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इन्फर्टिलिटी क्लिनिक के काम करने का सही तरीका क्या है?

“इन्फर्टिलिटी क्लिनिक को फर्टिलिटी विषय में ट्रेंड गायनकॉलिजस्ट चलाते हैं. जो लोग हमारे पास इनफर्टिलिटी से जुड़ी समस्या ले कर आते हैं, हम उनकी जांच (examine) करते हैं. उससे ये पता चलता है कि किस तरह की इनफर्टिलिटी समस्या से दंपति जूझ रहे हैं और उसके लिए इलाज क्या करना है."
डॉ आर.के.शर्मा, रिटायर्ड ब्रिगेडियर, आईवीएफ एक्स्पर्ट

डॉ आर.के.शर्मा आगे कहते हैं, "उसके बाद उनकी काउन्सलिंग होती है. उन्हें IVF, IUI, सरोगेसी जैसी प्रक्रिया से जुड़ी पूरी जानकारी दी जाती है, जैसे कि उसके रिस्क, खर्च, सक्सेस रेट सब कुछ. सब जानने और समझने के बाद मरीज के कन्सेंट से इलाज शुरू किया जाता है. देश के IVF कानून को ध्यान में रखते हुए इलाज किया जाता है.”

  • आईवीएफ या सरोगेसी की प्रक्रिया शुरू करने से पहले दंपति की काउंसलिंग.

  • दंपति को इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए बनाए गए कानून की जानकारी देना.

  • आईवीएफ और सरोगेसी की असफलता दर के बारे में बताना.

  • सेहत पर इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट जैसे कि आईवीएफ, सरोगेसी, एग डोनेशन, आईयूआई जैसी प्रक्रियाओं से होने वाले अच्छे-बुरे असर के बारे में बताना.

  • इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के खर्चों के बारे में जानकारी देना.

  • इसमें आने वाली समस्याओं के बारे में खुलकर बातें करना.

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“पहले देश में 1-2 IVF सेंटर हुआ करते थे, जहां जरूरतमंद लोग पूरे देश से जाते थे और आज स्थिति ऐसी है कि देश के छोटे से छोटे शहर के गली-मुहल्लों में भी IVF सेंटर का बोर्ड देखने को मिल रहा है. हो सकता है, इनमें से कुछ सेंटरों में कई तरह के दूसरे काम भी चल रहे हों".
डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

इसी सवाल पर डॉ आर.के.शर्मा कहते हैं, “सबसे पहले तो जो क्लिनिक चला रहा होगा उसकी अपनी अंतर आत्मा इसका ध्यान रखती है. लेकिन अगर वही नहीं है, तो सरकार कितने भी नियम बना ले कुछ नहीं हो सकता. वैसे जो यह नया कानून आया है, उसमें जिला, राज्य और केंद्र के स्तर पर “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” (appropriate authority) बनी है. उसमें सरकारी अधिकारी, एनजीओ (NGO)के सदस्य, प्रतिष्ठित गायनकॉलिजस्ट होते हैं, जो कभी भी क्लिनिक आ कर किसी भी दस्तावेज को जांच परख कर सकते हैं.”

इस पर IMA के पूर्व प्रेसिडेंट डॉ अजय कुमार कहते हैं कि नजर रखने वाले, तो कानून बनने से पहले भी थे और बनने के बाद भी हैं, पर कोई सामने आ कर शिकायत तो दर्ज कराए. कभी कोई शिकायतकर्ता ऐसा नहीं होता है, जो कहे कि उन्हें नाबालिग बच्ची का एग/उसाइट दिया गया है या उनके सरोगेसी के केस में नाबालिग बच्ची का इस्तेमाल किया गया हो.

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इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में शोषण कैसे होता है?

“फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की सफलता पर लोग चुप हो जाते हैं, पर असफलता को लोग शोषण का नाम दे देते हैं. अब हर सेंटर में एक स्वतंत्र काउंसलर के रहने से और सारी जानकारी लिखित तरीके से होने पर डॉक्टरों को भी बहुत राहत है.”
डॉ आर के शर्मा

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ शर्मा कहते हैं,
“पहले भी मरीज या मरीज के परिवार वालों से कन्सेंट लिया जाता था और काउंसलिंग की जाती थी. बताया जाता था कि IVF प्रक्रिया में अगर सब ठीक रहा तो भी रिजल्ट 100% नहीं आता है. पर हिंदुस्तान में कई बार ऐसा होता है कि मरीज को आप 60% रिजल्ट की बात बोलो पर वो सुनते 100% ही हैं. लेकिन अब नए कानून के तहत हर एक सेंटर में एक स्वतंत्र काउंसलर होगा, जो मरीज को प्रक्रिया और उससे जुड़ी सारी जानकारी प्रदान करेगा ताकि कन्सेंट को ले कर किसी तरह की कोई समस्या न आए.”

इन्फर्टिलिटी कानून के आने से पहले इस तरह के क्लिनिक आईसीएमआर (ICMR) की गाइडलाइंस के तहत चल रहे थे और अक्सर गाइडलाइंस के खुलेआम उल्लघंन की बात भी सामने आई है. लगातार ऐसे मामले होते रहे हैं, जिनमें निसंतान दंपतियों का शोषण कर लाखों रुपये ऐंठे गए.

आईवीएफ (IVF) के लगातार फेल होने के बावजूद महिलाओं का गिनी पिग की तरह इस्तेमाल होता रहा, बार-बार उन्हें मां बनाने का लोभ दे कर इलाज के नाम पर उन पर प्रयोग किया गया और साथ ही लाखों रुपये ऐंठे गए.

कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें जेनेटिक डिफेक्ट को जानने के बहाने आईवीएफ (IVF) सेंटरों ने बेहिचक जेंडर टेस्ट किए और लड़का पाने की चाह रखने वाले दंपतियों से मनमाने रुपये वसूले.

नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक गायनकॉलिजस्ट ने बताया कि “जेनेटिक डिफेक्ट को जानने के बहाने आईवीएफ (IVF) सेंटर से लड़का पाने की चाह रखने वाले लोग भ्रूण (Embryo) के लिंग का पता कर, बेटे की चाह पूरी नहीं होने पर अबॉर्शन भी कराते हैं. यह सब गैरकानूनी है, पर कोई पकड़ में आए तब न कारवाई हो. भारत में ये टेस्ट गैरकानूनी है, सिर्फ कुछ ही परिस्थितियों में इन्हें किया जा सकता है.”

अभी भी हमारे देश में सामाजिक कारणों की वजह से IVF या इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट को छुपाने का कल्चर मौजूद है.
“इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए कोई गरीब व्यक्ति नहीं जाता है और जो भी जाते हैं, वो पढ़े-लिखे संपन्न परिवार के होते हैं. उन्हें सब बातें पता होती हैं. कई लोग कम से कम उम्र की एग/उसाइट डोनर या सरोगेसी के लिए कम उम्र की लड़की खोजते हैं और उसके लिए अधिक खर्च भी करने को तैयार रहते हैं.”
डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट IMA
पैसे कमाने के चक्कर में अविवाहित लड़कियां और यंग लड़के अपने स्पर्म और अविकसित एग सेल कई-कई बार बेच रहे थे/हैं.

ऐसा भी होता है कि पैसे की जरुरत या लालच में पड़ कर लड़कियां/महिलाएं और लड़के/पुरुष कई-कई बार एग/उसाइट और स्पर्म डोनेट करते हैं. कानून की जानकारी उन्हें बखूबी होती है. उससे बचने के लिए वो नाम बदल कर और अलग-अलग सेंटर में जा कर ये गैर कानूनी काम करते हैं.

एजेंट या मिडल मैन का भी इन गैर कानूनी कामों में बहुत बड़ा हाथ होता है. वो सेंटर और डोनर के बीच का लिंक होते हैं.

“मेरे पास जब भी कोई लड़की (गैर शादीशुदा) एग/उसाइट डोनर बनने की इच्छा लेकर आयी, मैंने उन्हें माना कर दिया पर साथ ही जानने की कोशिश भी की, कि आखिर वो पढ़ी-लिखी होते हुए भी ऐसा क्यों करना चाहती हैं? जवाब मिलता कि किसी को अपने नाक या होठों की प्लास्टिक सर्जरी करानी होती थी, तो कोई अपने दोस्तों के साथ गोवा जाना चाहती थी. यह एक सामाजिक समस्या भी है.”
डॉ आर.के.शर्मा
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नए कानून में इन्फर्टिलिटी सेंटरों के लिए बनाए गए ये नियम

इन्फर्टिलिटी सेंटर में किए जाने वाले इलाज के लिए अलग-अलग कानून बनाए गए हैं. अभी हम यहां सेंटर के लिए तय नियम के बारे में बताने जा रहे हैं.

“मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया ने फर्टिलिटी एथिक्स पर साफ शब्दों में नियम बनाया हुआ है. इन्फर्टिलिटी फील्ड (Infertility field) में धांधली करते हुए लोगों को अपनी नैतिक जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए.”
डॉ अजय कुमार. पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

इन्फर्टिलिटी सेंटर के लिए लाइसेन्स/रेजिस्ट्रेशन है जरुरी

लेवल 1- वैसे सेंटर जहां पर गायनकॉलिजस्ट द्वारा इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन (IUI) की प्रक्रिया की जाती है, उस सेंटर को 50,000 रुपए रेजिस्ट्रेशन के तौर पर देना होगा.

लेवल 2- जिस सेंटर में गायनकॉलिजस्ट द्वारा IVF की प्रक्रिया की जाती है, उन्हें 2,00000 रुपए रेजिस्ट्रेशन के तौर पर देना होगा.

लाइसेन्स/रेजिस्ट्रेशन का नवीकरण (renewal)

सेंटरों को रेजिस्ट्रेशन नवीकरण (renew) भी करना होगा. लाइसेन्स खत्म होने पर सेंटर को दुबारा मूल्यांकन प्रक्रिया (assessment process) से गुजरना होगा और रेजिस्ट्रेशन के लिए दुबारा भुगतान भी करना होगा.

सेंटर का इंफ्रास्ट्रक्चर (infrastructure)

इन्फर्टिलिटी सेंटर का इंफ्रास्ट्रक्चर (infrastructure), एक्ट में दिए गए नियम के मुताबिक होना चाहिए नहीं तो लाइसेन्स/रेजिस्ट्रेशन नहीं दिया जाएगा.

रेजिस्ट्रेशन नवीकरण (renew) करने के समय भी इन बातों का ध्यान रखा जाता है.

हर सेंटर पर स्वतंत्र काउंसलर

हर एक सेंटर में एक स्वतंत्र काउंसलर होगा, जो मरीज को प्रक्रिया और उससे जुड़ी सारी जानकारी प्रदान करेगा ताकि कन्सेंट को ले कर किसी तरह की कोई समस्या न आए.

“इन सख्त नियमों के कारण सही ढंग से काम नहीं करने वाले सेंटरों की संख्या में कमी आएगी.”
डॉ आर.के.शर्मा
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इन्फर्टिलिटी ट्रीटमेंट पर क्या कहता है हमारे देश का कानून?

नए ART एक्ट के तहत हर एक सेंटर चाहे वो इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन (IUI) करते हों या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) सबको रेजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा और वो नियमित सरकारी निगरानी में रहेंगे. साथ ही समय-समय पर क्लिनिक का लेखा-जोखा सरकार द्वारा बनाई गयी रेग्युलटॉरी बॉडी से साझा करना होगा.

“मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) में, मैं 18 साल रहा हूं. सिर्फ इसी मामले में नहीं बल्कि किसी भी तरह की धांधली के मामले में डॉक्टर की शिकायत होने पर, उन्हें आचार समिति (ethics committee) में बुलाया जाता था, फिर कारवाई भी होती थी और अभी भी होती है. पर उसके बाद वो डॉक्टर सीधे हाई कोर्ट जाएंगे और वहां से ले लेंगे स्टे (stay). वो स्टे (stay) ऐसा चलेगा कि केस ही नहीं खुलेगा तब तक डॉक्टर वापस उन्हीं गतिविधियों में लग जाते हैं.”
डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (IMA)

आईवीएफ (IVF) और सरोगेसी (surrogacy) के लिए अलग-अलग कानून बने हैं. आईवीएफ के लिए बने ‘ART’ एक्ट में ही महिला एग/उसाइट डोनर (Oocyte/egg donor) के लिए भी नियम बने हैं.

जब महिला अपने लिए ही एग/उसाइट फ़्रीज कर रही हैं तब,

“मान लें जैसे कोई महिला 5 साल बाद शादी या बच्चा प्लान करने का सोच रही हैं और अगर उन्हें लगता है कि उस समय तक उनकी उम्र गर्भावस्था के लिए सही नहीं रहेगी, तो वो एग बैंक में अपने एग्स/उसाइट जमा करती हैं. कैंसर से लड़ रहीं महिलाएं भी गर्भावस्था में आगे होने वाली जटिलताओं से बचने के लिए ऐसा करती हैं. हमारे देश के नियम के अनुसार ऐसे मामलों में महिलाओं को 10 साल तक एग बैंक की सुविधा दी जाती है.”
डॉ आर.के.शर्मा
कानून को तोड़ने वालों को पहली बार पकड़े जाने पर 5 से 10 लाख और दूसरी बार पकड़े जाने पर 10 से 20 लाख रुपये जुर्माने के साथ आठ साल की कड़ी सजा का प्रावधान है.
“जबतक मैं IMA का प्रेसिडेंट था तब तक मैंने अपनी पूरी कोशिश की थी ऐसे मामलों पर नकेल कसने की, पर शिकायत आए तब ना. जानते तो हम सभी हैं कि बहुत कुछ गड़बड़ हो रहा है, इन्फर्टिलिटी फील्ड (Infertility field) में पर कोई सामने आ कर शिकायत तो दर्ज कराए.”
डॉ अजय कुमार, पूर्व प्रेसिडेंट IMA
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आईवीएफ, एग/उसाइट डोनर और सरोगेसी के नियम

आईवीएफ के लिए उम्र निर्धारित कर दी गई है.

  • 50 साल तक की महिलाएं और 55 साल तक के पुरुष आईवीएफ सेवा ले सकते हैं.

  • अब 21 से 55 साल के पुरुष और 23 से 35 की महिलाएं ही अपना स्पर्म और अविकसित एग सेल डोनेट कर सकते हैं.

एग/उसाइट डोनर (दूसरों के लिए)

ART एक्ट में स्पर्म और अविकसित एग सेल स्टोर करने वाले बैंकों पर भी लगाम कसी गई है.

  • एग/उसाइट डोनर (दूसरों के लिए) अपने जीवन में 1 ही बार एग/उसाइट डोनेट कर सकती हैं, वो भी 7 एग/उसाइट से ज्यादा नहीं

  • डोनर वयस्क, शादीशुदा और स्वस्थ होनी चाहिए

  • डोनर और पति के पहचान पत्र की ठीक से जांच होनी चाहिए

  • दूसरी बड़ी बात ये है कि एग/उसाइट डोनेट (दूसरों के लिए) करने वाली महिला का अपना बच्चा होना चाहिए

  • बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट देखा जाएगा

  • प्रक्रिया और रिस्क से जुड़ी बातों पर काउंसलिंग अनिवार्य है

  • एग/उसाइट डोनर को 1 साल के बीमा (insurance) की सुविधा मिलेगी

सरोगेसी यानी कि किराए की कोख

वहीं सरोगेसी एक्ट के जरिए सरोगेट मदर यानी किराए पर कोख देने वाली महिलाओं के बढ़ते शोषण को खत्म करने के लिए नियम बनाए गए हैं.

“महिला जब किसी ऐसी शारीरिक समस्या से जूझ रही हों, जिसकी वजह से वो मां बनने में असमर्थ हों, तब ऐसे में सरोगेसी का विकल्प वो चुन सकती हैं. नई सरोगेसी एक्ट के तहत महिला या जोड़े की तरफ से “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” को आवेदन भेजा जाएगा. वो मामले की गंभीरता की जांच करेंगे और अगर उन्हें जांच में सब सही लगा, तो उसके आधार पर सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी" ये बताया डॉ शर्मा ने.

दूसरा नियम यह है कि कमर्शल सरोगेसी को बढ़ावा देने की बजाए परिवार के लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए सरोगेसी के लिए आगे आने को. लेकिन अगर परिवार में ऐसा कोई नहीं मिले तब जोड़े को “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” को यह बताना होगा. “एप्रोप्रियेट अथॉरिटी” की अनुमति मिलने पर जोड़ा “कमर्शल सरोगेसी” के विकल्प के लिए जा सकता है.

तीसरा नियम है, माता-पिता बनने वाला जोड़ा सरोगेट मदर को 3 साल के हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा देगा.

देश में कमर्शल सरोगेसी के कारण हाल ये है कि एक महिला की कोख एक-दो बार नहीं, बल्कि कई बार किराए पर ले ली जाती है. इसकी वजह से न केवल महिला का स्वास्थ्य दांव पर होता है बल्कि उसका मानसिक शोषण भी होता है. अब इस नए कानून के जरिए सरकार महिलाओं पर इस तरह के शोषण को रोकने के लिए आशावान है.

“डॉक्टर जिन्हें अपनी जिम्मेदारी और प्रतिष्ठा का एहसास है, वो किसी भी मरीज या महिला का शोषण नहीं करेंगे. पर हां, आजकल कई व्यवसायी भी इन्फर्टिलिटी फील्ड में कूद गए हैं. जगह-जगह इन्फर्टिलिटी सेंटर खुल गए हैं. वहां पर काम करने वाले डॉक्टरों की बात कितनी सुनी जाती है इस पर मुझे संदेह है. इन्फर्टिलिटी फील्ड में हो रही गड़बड़ियों को ध्यान में रखते हुए ही नए कानून लाए गए हैं.”
डॉ आर के शर्मा

माता-पिता बनने की चाह रखने वालों के लिए इन्फर्टिलिटी की समस्या, दुखों और सामाजिक यातनाओं को जन्म देती है. संतान-प्राप्ति एक ऐसी संवेदनशील चाहत होती है, जिसे पूरी करने के लिए लोग कुछ भी करने को आतुर होते हैं. इसी का फायदा उठा रहा है यह कुकुरमुत्ते की तरह फैल चुका बाजार.

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