मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Vulnerable Adult Groups: इन्हें कोविड-19 वैक्सीन के अलावा अन्य टीकों की भी जरूरत

Vulnerable Adult Groups: इन्हें कोविड-19 वैक्सीन के अलावा अन्य टीकों की भी जरूरत

‘कमजोर’ आबादी को संक्रामक रोगों से खतरा ज्यादा है.

डॉ अतुल गोगिया
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>Vulnerable Adult Groups: इन्हें कोविड-19 वैक्सीन के अलावा अन्य टीकों की भी जरूरत</p></div>
i

Vulnerable Adult Groups: इन्हें कोविड-19 वैक्सीन के अलावा अन्य टीकों की भी जरूरत

(फोटो: फिट हिंदी/iStock)

advertisement

50 साल से अधिक उम्र के ऐसे लोगों को, जो कि ज्यादा जोखिमग्रस्‍त हैं या जो हृदय रोग, सांस के पुराने रोग, डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों से पीड़ि‍त हैं, उन्हें आबादी के ‘कमजोर’ समूह का माना जा सकता है.

इस समूह में वे लोग भी शामिल हैं, जो अंग प्रत्‍यारोपण और डायलिसिस जैसी मेडिकल कंडीशंस से गुजर चुके हैं या गुजर रहे हैं. दरअसल, इन वयस्‍कों का इम्‍यून सिस्‍टम कमजोर हो जाता है, जिसकी वजह से वे आसानी से संक्रामक रोगों के शिकार बनते हैं.

‘कमजोर’ आबादी को संक्रामक रोगों से खतरा ज्यादा है

फिलहाल भारत में 260 मिलियन से ज्‍यादा ऐसे वयस्‍क हैं, जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक है और 2036 तक यह आंकड़ा बढ़कर 404 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है यानी देश की 27% आबादी इस आयुवर्ग की होगी. हमें अभी भी ‘युवा’ देश कहा जाता है, लेकिन जैसे-जैसे आबादी को दीर्घायु बनाने की हमारी कोशिशों को सफलता मिली है, हमारे सामने अधिक उम्र वाली आबादी के लिए आयु संबंधी रोगों के रूप में नई चुनौतियां उभर रही हैं.

अपने क्‍लीनिकल अनुभवों के दौरान, हमने देखा है कि इस ‘कमजोर’ आबादी को निमोनिया, इंफ्लुएंजा तथा शिंगल्‍स जैसे उन संक्रामक रोगों से ज्‍यादा खतरा है, जिनसे वैक्‍सीन से बचाव मुमकिन है. निमोनिया और इंफ्लुएंजा जैसे संक्रमण मौसमी होते हैं और हर साल अक्सर अक्‍टूबर से फरवरी के दौरान इनमें तेजी देखी गई है.

‘कमजोर’ समूह की कम इम्‍युनिटी की वजह से ये संक्रमण ज्‍यादातर उन्‍हें ही अपना शिकार बनाते हैं. यहां तक कि कुछ मामले तो घातक भी साबित होते हैं.

अस्‍पताल में भर्ती होने के मामले ज्‍यादा और रिकवरी धीमी

इस समूह के लोगों के अस्‍पताल में भर्ती होने के मामले भी ज्‍यादा होते हैं और साथ ही उनकी रिकवरी भी धीमी रफ्तार से होती है. इसके अलावा, आमतौर पर साधारण स्किन कंडीशन माना जाने वाला शिंगल्‍स विकार भी इस आबादी में भयंकर पीड़ा का कारण बन सकता है और कुछ दुर्लभ मामलों में, इसकी वजह से मरीजों की आंखो की रोशनी भी जा सकती है. इनमें से कुछ को रोजमर्रा की सामान्‍य गतिविधियों जैसे कि नहाने, कपड़े पहनने, खाने-पीने और घरेलू कार्यों तक में मदद की जरूरत हो सकती है. इस तरह दूसरों पर उनकी निर्भरता बढ़ती है और जिंदगी की क्‍वालिटी गिर जाती है.

मौजूदा रोगों को और भी अधिक जटिल बनाते कुछ संक्रामक रोग

एक और ध्यान देने की बात है कि कुछ संक्रामक रोग मौजूदा रोगों को और भी अधिक जटिल बना देते हैं. मसलन, सांस के पुराने मर्ज के शिकार मरीजों के मामले में इंफ्लुएंजा की वजह से लंग फंक्‍शन कमजोर पड़ सकता है. इसी तरह, हृदय रोगों के मरीजों में निमोनिया की वजह से हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ सकता है. उधर, डायबिटीज रोग में शिंगल्‍स के चलते ब्लड शुगर लैवल बढ़ जाता है. बढ़ती उम्र के वयस्‍कों में पुराने मर्ज उन्‍हें और कमजोर बनाते हैं, जिसके चलते वे संक्रामक रोगों के शिकार बन सकते हैं. इसके कारण उन्‍हें बार-बार डॉक्‍टर के पास और अस्‍पताल जाना पड़ सकता है, यानी हेल्‍थकेयर पर खर्च बढ़ता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

चुनौती है...वैक्‍सीनों के बारे में जानकारी और उन्हें अपनाने की कमी की 

संक्रामक रोगों के मामलों और उनसे पैदा होने वाली बीमारियों को वैक्‍सीन (टीकाकरण) से काफी हद तक कम किया जा सकता है. कमजोर समूह के सभी वयस्‍कों को निमोनिया और इंफ्लुएंजा की वैक्‍सीन दी जानी चाहिए. यदि शिंगल्‍स के लिए भी कोई वैक्‍सीन उपलब्‍ध है, तो उसे खासतौर से उम्रदराज वयस्‍कों को दिया जाना चाहिए.

मौजूदा समय की चुनौती वयस्‍कों के स्‍तर पर इन वैक्‍सीनों के बारे में जानकारी और इन्हें अपनाने की कमी को लेकर है. हालांकि कोविड-19 टीकाकरण अभियान ने वयस्‍कों के टीकाकरण को तेज किया है, साथ ही इसने वैक्‍सीन सुरक्षा और अन्‍य गलतफहमियों पर भी चर्चा शुरू कर दी है. ऐसे में पूरी मेडिकल बिरादरी के सामने यह चुनौती है कि वे मरीजों को वैक्‍सीनों की सुरक्षा और इनकी प्रभावशीलता के बारे में विश्‍वसनीय तरीके से बताएं और खासतौर से आबादी के कमजोर वर्ग को इस बारे में जानकारी दें.

मरीजों को इस बारे में सोशल मीडिया पर और लोगों के जरिए आपस में फैलायी जाने वाली अफवाहों पर ध्‍यान देने से बचाया जाना चाहिए.

वैक्‍सीनेशन को बढ़ावा देना होगा

हमारी बढ़ती उम्र (एजिंग) वाली आबादी को, जो कि हैल्‍दी हैं और जो क्रोनिक रोगों से घिरे हैं, हमारी मदद की ज्यादा जरूरत है. यदि शुरुआत में गलतफहमी की वजह से कोई विरोध हो, तो भी उन्‍हें जानकारी देनी चाहिए तथा वैक्‍सीन लेने के लिए मनाया जाना चाहिए ताकि जिंदगियों को बचाया जा सके.

शायद अब सिर्फ वैक्‍सीनों की सिफारिश करना ही काफी नहीं है, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी उम्रदराज आबादी वैक्‍सीनेशन के मामले में जरूरी कदम उठाए. पिडियाट्रिक वैक्‍सीनेशन की तर्ज पर हमें अपनी उम्रदराज कमजोर वयस्‍क आबादी के स्‍तर पर वैक्‍सीनेशन को बढ़ावा देना होगा.

(फिट हिंदी के लिए यह आर्टिकल डॉ अतुल गोगिया, एमआरसीपी (यूके), एमएससी (इंफेक्शियस डिज़ीज), (यूओएल), सीनियर कंसल्‍टैंट इंटरनल मेडिसिन एंड इंफेक्शियस डिज़ीज), सर गंगा राम हॉस्पिटल (एसजीआरएच), दिल्‍ली ने लिखा है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT