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World Cancer Day 2024: इन दिनों अक्सर कैंसर स्क्रीनिंग के बारे में कुछ न कुछ सुनाई देता रहता है. स्क्रीनिंग या जांच का मतलब होता है रोग के किसी भी तरह के लक्षण को प्रकट नहीं करने वाले व्यक्ति-आबादी की जांच करना, यह व्यक्तिगत या आबादी के स्तर पर जांच हो सकती है. कैंसर स्क्रीनिंग इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होती है कि इससे कैंसर का शुरुआती चरण में ही पता चल जाता है और इससे न सिर्फ इलाज में मदद मिलती है बल्कि मरीज को कैंसर के जानलेवा खतरे से भी बचाया जा सकता है.
यहां दी गई जानकारी आपको जांच के तौर-तरीकों, कैंसर स्क्रीनिंग के फायदों और पब्लिक हेल्थ को इससे मिलने वाले फायदों के बारे में बताएगी.
अक्सर कैंसर एडवांस स्टेज में पकड़ में आता है और तब तक इलाज के विकल्प काफी गिने-चुने बचते हैं और मरीज को स्वास्थ्य लाभ भी देरी से मिल पता है. कैंसर स्क्रीनिंग का मकसद शुरुआती चरण में ही कैंसर रोग का पता लगाना है, जो कि ऐसी स्टेज होती है जबकि उपचार के ज्यादा विकल्प होते हैं.
कैंसर स्क्रीनिंग के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि कैंसर के खास प्रकार, टार्गेटेड आबादी और उपलब्ध रिसोर्सेस पर निर्भर है. आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए मैमोग्राफी का इस्तेमाल होता है. युवाओं के मामले में यह अल्ट्रासाउंड आधारित होती है जबकि बुजुर्गों की जांच के लिए एक्स-रे का इस्तेमाल किया जाता है.
पैप-स्मीयर एक और स्क्रीनिंग विकल्प है, जो ओपीडी आधारित सुविधाजनक प्रक्रिया है, जिसमें सर्विक्स (गर्भ ग्रीवा) की कोशिकाओं को जांच के लिए स्लाइड पर रखकर उन्हें माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है. इन कोशिकाओं में वायरस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए भी जांच की जा सकती है.
प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन (पीएसए) टेस्ट से प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाया जाता है और इसमें प्रोस्टेट ग्रंथि में बने प्रोटीन स्तर की जांच की जाती है.
हाल में लंग कैंसर का शुरू में पता लगाने के लिए लो-डोस सीटी स्कैन की सुविधा भी उपलब्ध करायी गई है. इसके अलावा, इमेजिंग टैक्नोलॉजी जैसे सीटी स्कैन और एमआरआई में सुधार होने से भी कई तरह के कैंसर का निदान करने में मदद मिली है.
जेनेटिक टेस्टिंग और मॉलीक्यूलर प्रोफाइलिंग भी उपलब्ध है, जिससे कुछ खास तरह के कैंसर के अधिक जोखिम से घिरे लोगों की जांच उनके जेनेटिक मेकअप के अनुसार की जाती है.
स्क्रीनिंग के जरिए कैंसर का जल्द पता लगाने के कई फायदे हैं. सबसे पहले, यह कम आक्रामक और अधिक टार्गेटेड इलाज को लागू करने में मदद करता है, साइड इफेक्ट्स को कम करने के साथ-साथ यह मरीज की लाइफ क्वालिटी को भी बेहतर बनाने में मदद करता है.
रोग का जल्द पता लगने पर मरीज की जीवन रक्षा में भी काफी हद तक सुधार होता है. यदि किसी खास अंग तक ही कैंसर सीमित हो, तो उसका इलाज आसानी से हो जाता है और मरीज को भी लंबे समय तक राहत मिलती है. यह ब्रेस्ट, कोलोरेक्टल और सर्वाइकल कैंसर के मामलों में खासतौर से लागू होता है और इनमें यह देखा गया है कि रूटीन स्क्रीनिंग से मृत्यु दर घटाने में मदद मिलती है.
जैसे कि कोलोनोस्कोपी के दौरान प्रीकैंसरस पॉलीप्स को हटाने से कोलोरेक्टल कैंसर को पनपने से रोका जा सकता है या पैप स्मीयर में एचएसआईएल की पहचान होने पर एक छोटे भाग को हटाकर या नॉन-सर्जिकल तकनीकों से भी इलाज संभव होता है.
इस तरह, शुरुआती अवस्था में रोग का पता लगाकर काफी हद तक खर्चों से भी बचाव होता है, क्योंकि इलाज काफी सीमित होता है.
अब एक सवाल जो उठता है कि अगर स्क्रीनिंग इतनी फायदेमंद है, तो इसकी सलाह नियमित आधार पर क्यों नहीं दी जाती?
इसके कई कारण हैं, हेल्थ केयर रिर्सोसेस की उपलब्धता और सुलभता, जनता को स्क्रीनिंग के फायदों के बारे में जागरूक बनाना, स्क्रीनिंग की सलाह देने वाले और जांच के नतीजों का कुशलतापूर्वक विश्लेषण करने वाले प्रोफेशनल्स का अभाव.
कैंसर स्क्रीनिंग बेशक, कैंसर के खिलाफ युद्ध में एक महत्वपूर्ण हथियार है, जो जल्द से जल्द और इलाज हो सकने वाले चरण में, मैलिग्नेंसी का पता लगाने में मदद करता है. शुरू में ही रोग का पता लगाने का फायदा केवल मरीज तक की सीमित नहीं होता, बल्कि इससे आम जन के स्वास्थ्य दायरे को भी लाभ मिलता है.
जैसे-जैसे टैक्नोलॉजी एडवांस बन रही हैं और स्क्रीनिंग सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं, आम जनता को कैंसर के बारे में जागरूक बनाना और स्क्रीनिंग सेवाओं तक उनकी पहुंच को बढ़ाना कैंसर के खिलाफ जारी कंबाइंड अभियान का जरूरी पहलू है.
हमारी आबादी से जुड़ी समस्याओं की पहचान करना, सही प्रकार के स्क्रीनिंग टेस्ट्स का चुनाव करना, हेल्थ केयर रिर्सोसेस का समान को किफायती तरीके से बंटना करना और टेस्ट के नतीजों से निपटने के लिए रिर्सोसेस का विकास करना जरूरी है.
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि सही नतीजों और सेहतमंद जीवन के लिए हमें प्लैनेड तरीके से पालिसी बनाने की जरूरत है.
(ये आर्टिकल नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल में मेडिकल ऑन्कोकोलॉजी के कंसलटेंट, डॉ. अरुज ध्यानी ने फिट हिंदी के लिये लिखा है.)
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