ADVERTISEMENTREMOVE AD

Air Pollution: वायु प्रदूषण से फेफड़े के कैंसर में 30% की वृद्धि, ऐसे करें बचाव

WHO ने हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट्स में वायु प्रदूषण और फेफड़े के कैंसर के बीच एक चिंताजनक लिंक के बारे में बताया है.

Published
फिट
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

Air Pollution Affects Lung In Hindi: दिल्ली NCR में वायु प्रदूषण से राहत नहीं मिल पा रही है. यहां रहने वाले लोग दम घोटू हवा में सांस लेने को मजबूर है. जिसकी वजह से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. एक रिसर्च के अनुसार, बाहरी वायु प्रदूषण फेफड़ों के कैंसर के लगभग 10 में से 1 मामले का कारण बनता है लेकिन स्मोकिंग अभी भी फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण है.

वायु प्रदूषण और लंग कैंसर के बीच क्या है संबंध? पॉल्यूशन फेफड़े को कैसे नुकसान पहुंचाता है? क्या हैं बचाव के उपाय? यहां इन सवालों के जवाब दे रहे एक्सपर्ट.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वायु प्रदूषण और लंग कैंसर के बीच क्या है संबंध?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट्स में वायु प्रदूषण और फेफड़े के कैंसर के बीच एक चिंताजनक लिंक के बारे में बताया है. जिन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर अधिक है, वहां फेफड़े के कैंसर के मामलों में 30% वृद्धि दर्ज की गई है. हालांकि, धूम्रपान अब भी फेफड़े के कैंसर का सबसे प्रमुख कारण है, लेकिन वायु प्रदूषण भी बहुत तेजी से इस घातक बीमारी को बढ़ावा देने वाले एक प्रमुख कारक के तौर पर उभर रहा है.

"यह खतरनाक रुझान खास तौर पर भारत और चीन जैसे देशों में देखने को मिल रहा है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर पिछले दो या तीन दशकों से तेजी से बढ़ रहा है."
डॉ. मनदीप सिंह मल्होत्रा, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली

डॉ. मनदीप सिंह मल्होत्रा फिट हिंदी को आगे बताते हैं कि कुछ अलग-अलग तरीके हैं, जिनसे वायु प्रदूषण के कण, टिशूज में डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और फेफड़े के कैंसर का कारण बन सकते हैं. जैसे कि छोटे कण फेफड़ों में जमा हो सकते हैं और टिशूज की रिप्लिकेशन (replication) बनाने के तरीके को बदल सकते हैं. इससे डीएनए को नुकसान हो सकता है, जो कैंसर का कारण बन सकता है.

प्रदूषण में मौजूद हैं पार्टिकुलेट मैटर और नुकसानदायक गैसें

वायु प्रदूषण में दो प्रमुख तत्व (element) होते हैं, पार्टिकुलेट मैटर और नुकसानदायक गैसें. नुकसानदायक गैस जैसे कि सल्फर डाईऑक्साइड, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, सीधे तौर पर कार्सिनोजेनिक होती हैं. ये सभी गैस, सांस लेने पर सांस संबंधी म्यूकोसा यानी हमारे फेफड़ों की बारीक टिशूज में बदलाव ला सकती हैं.

दूसरी तरफ पार्टिकुलेट मैटर यानी बेहद छोटे कण जो कि पराली जलाने, कंस्ट्रक्शन के समय और स्मॉग बनने के दौरान निकलने वाले कण होते हैं.

हालांकि, प्रोटेक्टिव उपायों की मदद से बड़े आकार के कणों को तो प्रभावी तरीके से खत्म किया जा सकता है, लेकिन छोटे कण खतरनाक साबित हो सकते हैं क्योंकि वे फेफड़ों के भीतर जा म्यूकोसा में अटक सकते हैं और ब्लड फ्लो तक भी पहुंच सकते हैं.

पार्टिकुलेट मैटर के इकट्ठा होने से फेफड़े के कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ सकती हैं.

बचाव के इन तरीकों को अपनाएं

"वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़े के कैंसर के मामलों में आ रही तेजी को ध्यान में रखते हुए, खास तौर पर अधिक प्रदूषण वाले भारत और चीन जैसे देशों में, इस अहम मामले का समाधान निकालने के लिए कठोर कदम उठाने जरूरी हैं."
डॉ. मनदीप सिंह मल्होत्रा, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली
0

हालांकि, वायु प्रदूषण को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है लेकिन ऐसे में हम कई महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं, जिनसे हमारी सेहत पर पड़ने वाले इसके असर को कम किया जा सकता है.

  • पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल, साइकलिंग और पैदल चलना शुरू करने के साथ ही वाहनों के लिए ग्रीन फ्यूल सोर्स का इस्तेमाल करके वायु प्रदूषण के मूल कारणों का समाधान निकालना चाहिए जिससे ट्रांसपोर्ट की वजह से होने वाले वायु प्रदूषण को कम किया जा सके.

  • पराली जलाने के मामलों को कम करने और मैन्यूर मैनेजमेंट के प्रभावी तकनीकें अपनाने जैसी कृषि संबंधी स्थायी प्रक्रियाओं (sustainable agricultural processes) को बढ़ावा देकर खेती की वजह से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है.

वायु प्रदूषण के मूल कारणों का समाधान करना जरूरी है, वहीं पर्सनल लेवल पर भी खुद को इसके नुकसानदायक प्रभावों से बचाने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं.
  • बाहरी गतिविधियों को सीमित करना, खास तौर पर अधिक प्रदूषण के समय.

  • घर और वर्कप्लेस पर अच्छी क्वॉलिटी वाले एयर प्यूरीफायर और हवा साफ करने वाले पौधों का इस्तेमाल करना.

  • जब बाहर निकलना जरूरी हो, तो अधिक मेहनत वाली गतिविधियों से बचें क्योंकि इससे सांस लेने और प्रदूषक तत्वों का सांस के साथ भीतर जाने की दर तेज हो जाती है.

  • N95 या एफएफपी2 मास्क पहनने से बाहर जाने पर पार्टिकुलेट मैटर को अच्छी तरह फिल्टर किया जा सकता है और नुकसानदायक प्रदूषक तत्वों से संपर्क को कम किया जा सकता है. 

वायु प्रदूषण जहां से शुरू होता है, वहीं से उसे कम या खत्म करने के उपाय निकालने के साथ ही पर्सनल लेवल पर सुरक्षा के उपाय करके, हम फेफड़े के कैंसर के बोझ को काफी हद तक कम कर सकते हैं और अपनी हेल्थ का ख्याल रख सकते हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×