advertisement
सावन (Sawan 2022) का महीना शुरू होने जा रहा है. ये माह भोले नाथ को समर्पित है. इसमें बड़ी तादाद में भोले के भक्त अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए उत्तराखंड (Uttarakhand) में आते हैं. उत्तराखंड यानी देवभूमि, इस राज्य में जहां चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री तो प्रसिद्ध हैं ही, साथ ही साथ यहां पर पंच केदार भी हैं.
यदि आप देश की राजधानी या अन्य महानगरों में रहते हैं और चाहते हैं कि इस महीने में बाबा शंभुनाथ को प्रसन्न किया जाये तो देवभूमि से अच्छा विकल्प दूसरा नहीं हो सकता है.
राज्य के ये शिव मंदिर बहुत महत्वपूर्ण हैं. यहां हर मंदिर का अपना एक विशेष महत्व है. 14 जुलाई से सावन का महीना शुरू होने जा रहा है, जिसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है. इस महीने में हर दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. तो आइए आपको उत्तराखंड के प्रसिद्ध शिव मंदिरों के बारे में बताते हैं.
टपकेश्वर मंदिर उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून में स्थित है. ये सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, आदिकाल में भोले शंकर ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे. इस मंदिर की शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं.
जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है. इस ज्योतिर्लिंग को आठवां ज्योतिर्लिंग भी माना जाता है और इसे योगेश्वर नाम से भी जानते हैं. पुरातत्वविदों के अनुसार मंदिरों का निर्माण 7वीं से 14वीं सदी में हुआ था. जागेश्वर एक हिंदू तीर्थ शहर है और शैव परंपरा में धामों में से एक है.
बैजनाथ, बागेश्वर जनपद में गोमती नदी के किनारे एक छोटा सा नगर है. ये अपने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तरफ से उत्तराखंड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता प्राप्त है. बैजनाथ को प्राचीनकाल में 'कार्तिकेयपुर' के नाम से जाना जाता था और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी. बैजनाथ बागेश्वर मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है.
त्रियुगीनारायण मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में स्थित है. ये प्राचीन मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. यहां भगवान नारायण भूदेवी और लक्ष्मी देवी की एक साथ मूर्ति हैं. इस प्रसिद्ध स्थान पर विष्णु ने देवी पार्वती और शिव के विवाह स्थल के रूप में नाम दिया था, जिस कारण ये लोकप्रिय तीर्थस्थल है. भगवान विष्णु ने इस दिव्य विवाह में पार्वती के भाई का कर्तव्य निभाया था, जबकि ब्रह्मा इस विवाह के आचार्य बने थे.
उत्तरकाशी ऋषिकेश से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय् राजमार्ग पर है. ये प्राचीन पवित्र मंदिर है. काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. मंदिर को 1857 में सुदर्शन शाह की पत्नी महारानी श्रीमती खनेती द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था.
नीलकंठ महादेव मंदिर मंदिर पौडी (गढवाल) जिले मे स्थित है, लेकिन ऋषिकेश के पास है. नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख तीर्थ स्थल है. ऋषिकेश के निकट होने के कारण इसे ऋषिकेश का माना जाता है. भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था. उसी समय उनकी पत्नी पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे. इस तरह विष उनके गले में बना रहा.
विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था. गला नीला पड़ने के कारण ही उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था. अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है, जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं. यह ऋषिकेश से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में है. यहां पर बाबा भोले की भुजाओं की पूजा की जाती है. ये समुद्रतल से 6 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह रुद्रप्रयाग से 70 किलोमीटर तथा ऋषिकेश से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर है.
कोटेश्वर महादेव रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में है. इसके कण कण में शिव लिंग है तथा गुफा में भी शिव लिंग है. बताते हैं कि सावन माह में जबतक अलकनंदा नदी शिव लिंग को स्पर्श नहीं करती तब तक ये अपने रौद्र रूप में बहती है.
इनपुट- मधुसूदन जोशी
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)