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नफरत से नफरत का मुकाबला मानवता का नामोनिशान खत्म कर देता है. इस जंग में इंसानियत घायल होती है और इंसानियत पसंद हर मजहब के मायने बदलकर हर धर्म को बदनाम भी किया जाता है. 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का संदेश देने वाले सनातन धर्म की आत्मा के विपरीत इस धर्म को डरावना बनाने की साजिशों को बल मिलता है. इंसानियत का पैगाम देने के लिए अवतरित हुए इस्लाम को भी नफरत की सियासत दहशतगर्दी से जोड़ देती है.
इन सच्चाइयों की हकीकत जानकर नफरत की सियासत को मात देने के लिए पच्चीस बरस पहले कुछ मुस्लिम नौजवान उदारवादी बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थन में आगे आये थे. अयोध्या कांड के बाद भड़के नफरत के शोलों को मोहब्बत की शीतलता से शांत करने का सिलसिला शुरू हो गया था. इस सिलसिले को आगे बढ़ाने वाले हुसैनी शिया मुसलमान थे.
स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी बीजेपी के नायाब नेता ही नहीं, दुनिया के उदारवादी नेताओं में उनका नाम शामिल था. उन्हें ये बेशकीमती खूबी लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की तरबियत से हासिल हुई थी. अयोध्या कांड में उपजी नफरतों के बाद हिन्दू-मुस्लिम के बीच दीवार को तोड़कर आपसी भाईचारे की अलख जलाना उस वक्त देश की सबसे अहम जरूरत थी. अटल जी ने अपने उदारवादी व्यक्तित्व की रौशनी से ना सिर्फ बढ़ती फिरकापरस्ती से नफरत के अंधेरों को भेदा, बल्कि उनपर कट्टरवादी छवि का आरोप लगाने वालों का मुंह भी बंद कर दिया.
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लखनऊ की लोकसभा सीट को अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत कहा जाता है. इस विरासत की हिफाजत करने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता राजनाथ सिंह हैं. ये बीजेपी में उदारवाद के आखिरी चिराग हैं. हालांकि बीजेपी की कद्दावर राष्ट्रीय नेता सुषमा स्वराज और यूपी के उप मुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा में भी उदारवाद की झलक दिखती है. लेकिन राजनाथ सिंह को ही बीजेपी का सबसे बड़ा उदारवादी चेहरा कहा जाता है. यही स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत के वारिस कहे जाते हैं. अटल के संस्कारों पर 'अटल' राजनाथ इसलिए भी शियों के दिलों पर राज करते हैं क्योंकि इन्होंने हमेशा मुस्लिम समाज से दिल से दिल का रिश्ता कायम रखा है.
करीब तीस साल पहले पुराने लखनऊ की शिया आबादी में भी अटल बिहारी वाजपेयी की चाहत के नजारे नजर आने की शुरूआत हुई थी. उनके नाम से ब्लड डोनेशन के कैंप लगते थे. पुराने लखनऊ में खून और फूल से अटल को तोलने के ऐतिहासिक कार्यक्रम चर्चा का विषय बने थे.
हांलाकि, लखनऊ की गंगा जमुनी तहजीब से महकते बीजेपी और शिया मुसलमानों के रिश्ते में खटास पैदा करने की साजिशें खूब हो रही हैं. ऐन चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी सभाओं में दो बार हजरत अली को लेकर नकारात्मक बयान देकर शिया समुदाय को ठेस पहुंचा दी. इसके बाद राजनाथ सिंह के समर्थन में लखनऊ के शिया समाज के बीच जाने में शिया भाजपाई हिचकिचा से रहे हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने के बीजेपी नेता भी अब राजनाथ सिंह और शियों के बीच बदमजगी को खत्म करने की कोशिश में लग गये हैं, जिससे कि शिया भाजपाईयों को बल मिल रहा है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष और 'अटल-राजनाथ' लॉबी के करीबी रहे ह्रदय नारायण दीक्षित ने बात को घुमाकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है. दीक्षित ने अपने एक ताजा बयान में मुख्यमंत्री योगी के हजरत अली संबंधित नकारात्मक बयान पर सफाई देते हुए ये कहने की कोशिश की है कि मुख्यमंत्री के बयान में शिया मुसलमानों के पहले इमाम और सुन्नी समुदाय के खलीफा हजरत अली का जिक्र नहीं, बल्कि किसी दूसरे अली का जिक्र किया गया था.
अब शायद इस तर्क को लेकर ही शिया भाजपाई अपने समाज में लखनऊ लोकसभा प्रत्याशी राजनाथ सिंह के लिए वोट की अपील करने की हिम्मत जुटा सकें, क्योंकि सियासत को एक और एक ग्यारह ही बनाना नहीं आता बल्कि 9 को 6 और 6 को 9 बनाने का भी हुनर आता है.
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