हमसे जुड़ें
ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत रत्न अटल बिहारी, जिनके भाषणों का लोहा विरोधी भी मानते थे 

अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में अक्सर दूसरी पार्टी के नेता कहते थे कि ‘वो गलत पार्टी में सही नेता हैं

Updated
भारत
3 min read
भारत रत्न अटल बिहारी, जिनके भाषणों का लोहा विरोधी भी मानते थे 
i
Hindi Female
listen
छोटा
मध्यम
बड़ा

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में अक्सर दूसरी पार्टी के नेता कहते थे कि ‘वो गलत पार्टी में सही नेता हैं’. लेकिन समय के साथ वाजपेयी ने इसे हमेशा झुठलाया है. एक बार नहीं बार बार इसे झुठलाते गए. उन्होंने बीजेपी का जनाधार बढ़ाया बल्कि समय के मुताबिक पार्टी की विचारधारा में भी बदलाव करते गए. बीजेपी की कट्टरता पर अटल की उदारता हमेशा भारी रही. अब वो नहीं है लेकिन उनकी नीतियां, उनकी आवाज हमेशा याद रहेगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

8 अगस्त 2003 को अटल जब लोकसभा में आए तो उनके हाथ में सोनिया गांधी की लिखी एक चिट्ठी थी और इस चिट्ठी के कुछ शब्दों पर वाजपेयी को आपत्ति थी.

संसद सत्र से पहले विपक्ष की नेता सोनिया से मुलाकात करते अटल बिहारी वाजपेयी.
(फोटो: रॉयटर्स).

लेकिन जिस तरह से वाजपेयी ने सदन में आपत्ति जताई, अपना विरोध पूरे संयम के साथ देश के सामने रखा वो आज के राजनेताओं के लिए एक मिसाल है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नेहरू Vs वाजपेयी

पहली बार सांसद बने अटल बिहारी संसद में सीधे प्रधानमंत्री नेहरू तक से सवाल पूछ बैठते थे. एक बार तो उन्होंने संसद में ये तक कह दिया था कि नेहरू की शख्सियत विंस्टन चर्चिल (ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जो अपने जुझारु स्वभाव और भाषणों के लिए जाने जाते थे) और नेविल चेंबरलेन (ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जिन्हें तुष्टिकरण नीति के लिए जाना गया) का मिश्रण है.

(फोटो: रॉयटर्स)
20 मई 1998 को पोखरण टेस्ट के बाद वाजपेयी और वैज्ञानिक अब्दुल कलाम की तस्वीर.

वाजपेयी ने नेहरू की नीतियों का विरोध करने के बाद उनकी तुलना राम से की. पंडित नेहरू ने भी वाजपेयी के लिए कहा कि वे एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे. समय के साथ नेहरू की ये भविष्यवाणी सच भी साबित हुई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘मृत्यु से नहीं, बदनामी से डरता हूं’

13 दिन की बीजेपी सरकार का जाना तय था, जीती बाजी भी अटल राजनीति की वजह से हार चुके थे.
(फोटो: PTI)

13 दिन की बीजेपी सरकार का जाना तय था, जीती बाजी भी अटल राजनीति की वजह से हार चुके थे. उनकी सरकार अल्पमत में थी और बार- बार विपक्ष ये आरोप लगा रहा था कि अटल सत्ता की राजनीति कर रहे हैं.

पार्टी कार्यक्रम में बीजेपी नेताओं के साथ अटल बिहारी वाजपेयी
(फोटो: रॉयटर्स)

हालात गंभीर थे, पार्टी का पूरा दारोमदार अटल पर था और फिर संसद में ऐसी अटलवाणी गूंजी कि विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी, बीजेपी की सरकार चली गई लेकिन अटल ने पार्टी में एक नई जान फूंक दी थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

और बर्फ जम गई.....

40 साल की सियासत में सिर्फ 6 साल की सत्ता ही अटल की नियति थी. साल 2005 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और पार्टी की कमान लाल कृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन को सौंप दी.

कई साल बीमार रहने के बाद 16 अगस्त 2018 को वाजपेयी ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
और खबरें
×
×