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ऑलवेदर रोड या कहें चार धाम सड़क परियोजना, कुछ भी हो लेकिन ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PRIME MINISTER NARENDRA MODI) की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है. चार धाम की यात्रा हो या एलएसी तक पहुंच को आसान बनाना हो, सुगम यातायात के लिए यह सड़क बनायी जा रही है, लेकिन सड़क के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए यह 'अभिशाप' बनती जा रही है. हाल के दिनों में भूस्खलन और गांव दरकने के हादसे बढ़ रहे हैं, स्थानीय लोग और पर्यावरणविदों का कहना है कि इसकी एक वजह बेतरतीब विकास है.
सड़क 825 किलोमीटर तक चौडी करनी है,लेकिन इसे एक परियोजना नहीं बल्कि इसे 53 अलग-अलग परियोजना मे बांटा गया है. ऐसा क्यों? बड़ी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर प्रभाव का आकलन करना जरूरी होता है. क्या इसीलिए इस परियोजन को टुकड़ों में बांट दिया गया है ताकि आकलन कराने की जरूरत ही न पड़े?
825 किलोमीटर सड़क चौड़ा करने के लिए दसियों हजार पेड़ काटे जा चुके हैं, पहाड़ मटियामेट किए जा रहे हैं और पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका कोई आकलन नहीं, कोई अध्ययन नहीं!
कार्यदायी संस्था को भी जानकारी नहीं कि कितने पेड़ कटे, ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग, रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड और ऋषिकेश से गंगोत्री तक कुल कितने पेड़ों को काटा गया, उसकी सटीक जानकारी न तो राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण को है और न ही उस जिले के आलाधिकारियों को है. अलग-अलग अधिकारियों से बात करने पर अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं.
इस परियोजना से हो रहे पर्यावरण को नुकसान के खिलाफ 'सिटिजन्स ऑफ ग्रीन दून' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने समिति गठित करने का आदेश दिया ताकि परियोजना के सभी प्रभावों का अध्ययन किया जा सके. अदालत के 08 अगस्त 2018 के आदेश के अनुपालन में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने डॉ.रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी.
सड़क की चौड़ाई को लेकर भले ही उक्त कमेटी में दो मत थे, लेकिन इन बातों को लेकर कोई मतभेद नहीं थे कि इस परियोजना को अवैज्ञानिक और अनियोजित तरीके से लागू करने के कारण, इसने हिमालय के परिस्थितिक तंत्र को पहले ही बहुत नुकसान पहुंचा दिया है. अवैज्ञानिक निर्माण, अनियोजित मलबा निस्तारण और पहाड़ों की तीव्र कटान ने नए भूस्खलनों और संबंधित आपदाओं को निमंत्रण दिया है.
वहीं ऑलवेदर रोड से प्रभावित और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले वन सरपंच देवी प्रसाद थपलियाल बताते हैं ऐसे पेड़ भी काट दिए गए,जिसकी रोड के लिए जरूरत नहीं थी.
समिति ने पाया कि एनएच 125 पर ही 174 ताजा कटे ढलानों में से 102 भूस्खलन संभावित हैं. ऐसी ही स्थिति दूसरी जगहों पर भी है. मानसून से पहले ही राज्य में हल्की बारिश से नये भूस्खलन क्षेत्र बन गए हैं. स्वीत,फरासू नरकोटा, चटवापीपल, कर्णप्रयाग, आश्रम, समेत दर्जनों स्थानों पर बने भूस्खलन से आम आदमी की समस्या बढ़ गई है.
वहीं NHIDCL के सहायक अभियंता शक्ति सिंह ने बताया कि "पहले चरण में कुछ दिक्कतें होनी लाजिमी है लेकिन जब सकड़ पूरी तरह बनकर तैयार होगी, तब आम जन को किसी तरह की परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी. सड़क कटिंग के बाद शुरू हुए भूस्खलन क्षेत्र में जापानी तकनीक से ट्रीटमेंट किया जा रहा है और भूस्खलन क्षेत्र में घास के पौधे लगाए गए हैं जो मिट्टी को जकड़े रखते हैं."
चारधाम परियोजना उत्तराखंड के चार प्रमुख हिंदू तीर्थ यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ को सड़क मार्ग से जोड़ेगी.
लगभग 900 किलोमीटर के इस हाइवे प्रोजेक्ट से पूरे उत्तराखंड में सड़कों का जाल विकसित होगा.
वहीं चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण परियोजना है.
इस परियोजना के तहत कुल 53 परियोजनाओं पर काम होना है. 40 परियोजनाएं आवंटित हो चुकी हैं. जबकि 38 परियोजनाओं के लिए ठेका दिया जा चुका है.
बची हुई 13 परियोजनाओं में सड़क की चौड़ाई और पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है.
इसमें कोई शक नहीं कि ये परियोजना उत्तराखंड के विकास, तीर्थयात्रियों की सहूलियत और डिफेंस की दृष्टि से अहम है, लेकिन अगर सड़क को बनाने के क्रम में पर्यावरण की अनदेखी की गई तो ये तीनों उद्देश्य पूरे नहीं होंगे साथ ही इनपर आपदाओं का भी डर रहेगा.
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